Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:56 PM,
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं- तो बात घूम फिर के जहा से चली है वहा पर आ जाती है देखो घूमफिर कर हम लोग हर बार इसी पॉइंट पर आ जाते है मतलब की हम लोग गलत तरीके से सोच रहे है कई बार ऐसा भी होता है की कोई और फायदा ले जाता है जबकि शक किसी और पर होता है 

नेनू- पर तुम्हारे मामले में ये थ्योरी गलत है क्योंकि गाँव में तुम्हारे परिवार की किसी से दुश्मनी थी नहीं ये सब जब हुआ जब तुमने चुनाव में बिमला से धोखा किया ये जो भी पंगा है ये फॅमिली का है अब दुश्मनी वाला एंगल ले भी तो कैसे जब किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी और वैसे भी अपने ही सबसे बड़े दुश्मन होते है अगर वो ठान ले तो 

मैं- तो क्या करू 

पिस्ता- हमे मामी को उठना चाहिए जब मैं सेवा करुँगी उसकी तो बताएगी वो 

मैं- नहीं रे पगली, सीधा सीधा उठा लेंगे तो कही काम बिगड़ ना जायेगा 

नीनू- क्यों न हम उस पूरी जमीन की खुदाई करवाए 

मैं- पागल हुई हो क्या कितनी जमीन है वो और सीधी बात है अगर पिताजी ने भी वहा से सोना निकाल लिया था तो वो उसे वही जमीन में बिलकुल नहीं छुपायेंगे 

माधुरी –भाई आप इन सब चीज़ के बीच ये क्यों भूल रहे है की कंवर को किसने मारा अगर उस एंगल से सोचेंगे तो शायद कोई बात बने 

वाह रे छुटकी, क्या बात पकड़ी थी जबसे इस खजाने की बात आई थी ये बात सूझी ही नहीं थी अब उस रात गाँव में किसी ने तो कंवर को देखा होगा अब जुगाड़ करके किसी न किसी से तो कुछ उगलवाना था पर मेरे दिमाग में उसके आलावा हरिया काका की भी मौत का कारण था हो ना हो दोनों की मौत तकरीबन उसी टाइम पीरियड में हुई थी मतलब साफ़ था की कुछ तो गड़बड़ है मतलब ऐसा भी हो सकता था की कंवर को भी सोने वाली बात पता चल गयी हो ,


ये फिर चाचा ने उसका पत्ता काट दिया ताकि वो उसके और बिमला के बीच ना सके या फिर इसलिए की कोई नहीं चाहता था की घर का वारिस आये आज मेरा दिमाग पूरी तरह से घुमा हुआ था तो मैंने ठेके पे जाने का सोचा हल्का हल्का अँधेरा हो रहा था करीब आधे घंटे में मैं वहा पर पंहुचा अपना ऑर्डर लिया और वही बैठ गया गाँव के कई लोग वहा पर बैठे थे एक बुद्धे को मैं पहचान गया उसे राम राम की तो वो मेरे पास आ गया 


मैं- ताऊ, लोगे 

वो- नहीं बेटा, मेरा कोटा हो गया है 

मैं- कोई ना ताऊ एक तो ले लो मैंने आवाज मारके ताऊ के लिए गिलास मंगाया वो बैठ गया 

मैं- ताऊ, और बताओ गाँव के क्या हाल चाल है 

वो- बस बेटा जी रहे है ज्यादा गुजर गयी अब तो थोड़ी बची 

मैं- वो तो है ताऊ 

मैंने पेग बना के उसको दिया 

हमारी बाते होने लगी 

मैं- ताऊ क्या करते हो 

वो- बेटा शहर में pwd में माली हु तुम्हारे चाचा की मेहर है उन्होंने ही जुगाड़ करवा दिया 

मैं- ताऊ उधर तो वो हरिया काका भी लगा हुआ था न 

वो- अरे बेटा , उसको मरे कई साल हुए पर आदमी बढ़िया था 

मैंने एक पेग और सरकाया 

मैं- ताऊ वो आपका दोस्त था ना 

वो- दोस्त ही कह लो उम्र में तो काफी छोटा था पर दोनों साथ काम करते थे तो दोस्ती सी ही थी 

मैं- दारू का रसिया था वो भी 

वो- ना रे बेटा, उसने छोड़ दी थी बस अपने काम में ही मस्त, कहता था बहुत पी ली अब खोयी इज्जत कमानी है अब एक ही लड़की थी ब्याह दी थी उसकी औरत भी बहुत ही नेक थी कई बार मैं जाता था उसके घर दारू छोड़ने से फिर से रोनक हो गयी थी उसके घर 

मैं- पर वो मारा कैसे ताऊ 

वो- बेटा बुरा मत मानना सब समझते है की उसको तुम्हारी भाभी ने मरवाया है पर मुझे ऐसा नहीं लगता 

मैं- क्यों ताऊ , ये बोलके मैंने उसे एक पेग और दिया 

वो- बेटा, उसकी मौत से कुछ दिन पहले वो बहुत बुझा बुझा सा था तो मैंने पूछ लिया उसने बताया की उसे वो बानिया है ना रतिया 

मैं- हां 

वो- वो उसे परेशान कर रहा था अब बात क्या थी ये तो उसने नहीं बताई पर वो बहुत मुसीबत में लगता था उसके बाद वो दो तीन दिन काम पे भी नहीं आया फिर उसकी लाश ही मिली थी 

मैं- ताऊ, कहा मिली लाश 

वो- बेटा वो जो परली पार खेत है ना तुम्हारे चाचा के उधर ही मरा मिला था वो 

ओह! तो उसके बाद ही चाचा ने खेतो की तरफ जाना छोड़ दिया था अब सबूत तो कुछ मिलना था नहीं वहा पर पर एक नजर देखना तो बनता था 

मैं- ताऊ, घनी हो गई चले अब 

वो- हा, बेटा 

मैं- बैठ ले गाडी में 

उसके बाद रस्ते भर मैंने ताऊ से बात की पर कुछ खास ना पता चला बात घूम फिर कर वही आ गयी थी अब ये पता करना था की रतिया काका से उसका क्या पंगा हुआ था जहाँ मैं रतिया काका को बेहद शरीफ समझता था वहा उसका नया चेहरा ही समझ आ रहा था झोल पे झोल हुए जा रहा था हर तरफ बस शक ही शक कोई राह नहीं बस भटकते रहो अँधेरे में 


अब इन हत्याओ को हो भी तो बहुत समय गया था सबूत कहा से ढूंढ कर लाऊ चारो तरफ भुस सवाल थे और जवाब दने वाला कोई नहीं था कौन करे मेरी मदद खैर, घर आया बैठक में सब घर वालो की तस्वीर लगी थी आखिर ये लोग मुझे क्यों छोड़ कर चले गए मैं बहुत देर वहा बडबडाता रहा फिर मैं पिताजी के कमरे में चला गया मैं समझ रहा था की पिताजी ने जरुर कोई सुराग छोड़ा होगा सब कुछ किस्मत के हवाले तो नहीं कर सकता था मैं मैंने पिताजी की हर चीज़ की बारीकी से तलाशी ली पर कुछ नहीं मिला फिर नींद कब आई कुछ पता नहीं

अगले दिन मैं और नीनू निकल गए घूमने मंदिर की तरफ चले गए दर्शन किये बाबा के नए मंदिर का काम चल रहा थोडा देखा कुछ बाते पुजारी जी से हुई हम चलने को ही थे की बिमला आ गयी अब सरपंच होने के नाते वो मंदिर का निर्माण देखने आती रहती थी तो हमसे भी बात हो गयी हम लोग एक पेड़ के निचे बैठ गए ऐसे भी नार्मल बात हो रही थी मेरे मन में एक दो बात थी पर मैंने टाल दी फिर बिमला चली गयी हम बैठे रहे 
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