RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
अंजलि की आवाज़ सुन कर विशाल की तन्द्रा भंग होती है. वो अपनी माँ को जवाब देणे की बजाय कदम बढाकर उसके सामने खड़ा हो जाता है. दोनों के जिस्मो में अब बस हलकी सी दूरी थी. माँ के मम्मे लगभग बेटे की छाती को छू रहे थे. विशाल अपनी माँ की कमर पर हाथ रख देता है तोह अंजलि अपने हाथ हटाकर बेटे के गले में डाल देती है.
"माँ......मत जाओ माँ ............प्लीज् मत जाओ......" विशाल तोह जैसे याचना कर रहा था.
"नही मुझे जाना होगा......तुमारे पिताजी बहुत देर से मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे......देखो पहले ही कितना समय हो गया है" अंजलि बोलते हुए आगे बढ़ बेटे से सट जाती है. उसकी आवाज से अब दंभ अभिमान ग़ायब हो चुका था. बेटे की याचना सुन कर वो अभिमानि नारी एक ही पल में फिर से एक माँ का रूप धारण कर लेती है.
"अच्छा अगर जाना ही है तोह कुछ देर तोह और ठहरो माँ.......बस थोड़ा सा समय और रुक जायो माँ फिर चली जाना..प्लीज् माँ" विशाल तोह मिन्नत कर रहा था, भीख मांग रहा था. और उसकी आवाज़ से उसकी बिनती से और उसके चेहरे की उदासी देखकर माँ का दिल दुखी हो जाता है.
"प्लीज् बेटा.....समझने का प्रयास करो.......जब में तुम्हारे पास आई थी तभी तुम्हारे पिता जी बहुत उतावले हो रहे थे.......यह जो किचन से तुमने बर्तन गिरने की आवाज़ सुनि थी न वो उन्होनो जान बूझकर गिराया था.....वो मुझे बुलाने का संकेत था.......मुझे जाना ही होगा......कहिं वो ऊपर न आ जाये......" अंजलि बेटे को समझाती है मगर बेटा समझने को तैयार नहीं था. वो गुस्स्से से एक तरफ को मुंह फेर लेता है.
"बेटा सिर्फ आज की रात है.........कीसी तरह निकाल लो.......कल सारा दिन में तुम्हारे साथ रहूंग़ी..........जी भरकर प्यार करना......" अंजलि बेटे के गले में बाहे डालकर उसके होंठो को चूमती है.
"पिताजी को नहीं मुझे तोह लगता है के तुमसे रहा नहीं जा रहा.........कैसे उनके घोड़े पर चढ़ने के लिए बेताब हो रही हो" विशाल थोड़ा ग़ुस्से से कहता मुंह फेर लेता है. असल में वो अपनी माँ को जताना चाहता था के वो उसके जाने की बात से कितना नाराज था. अंजलि बेटे की बात सुनकर जरा भी बिचलित नहीं होती बल्कि मुसकरा कर उसका मुंह वापस अपनी तरफ कर लेती है और उसके होंठो पर अपने होंठ रख देती है.
"वो कोनसा मुझे सारि रात अपने घोड़े पर सवारी करवाने वाले है. उनका मरियल सा घोडा तोह अब बिचारा बूढ़ा हो चुका है.......उसमे किधर दम है के तुम्हारी माँ को खूब सैर करा सके.........बस चंद मिन्टो में उसका दम निकल जाएगा" अंजलि हँसति बेटे को चूमती जा रही थी. वो प्रयास कर रहा थी किसी तरह बेटे के चेहरे से उदासी के बादल हट जायें और ख़ुशी की चमकती धुप खील जाये . "मुझे तोह अपने बेटे के घोड़े पर सवारी करनी है" अंजलि अपनी चुत बेटे के खड़े लौडे पर दबाती है. "बोलो बेटा चढ़ाओगे मुझे अपने घोड़े पर..........अपनी माँ को सवारी कराओगे न अपने घोड़े पर......" अंजलि के उन चंद शब्दों ने जैसे विशाल के खून में फिरसे आग लगा दी थी.
"में तोह कब से तैयार हु माँ......" विशाल अंजलि की कमर से हाथ हटाकर पीछे उसके नितम्बो पर रख देता है और अपने हाथ फ़ैलाकर अपनी माँ के नितम्बो को मुट्ठियाँ में भर लेता है. अपना लंड पूरे ज़ोर से अपनी माँ की चुत पर दबाता है जैसे खड़े खड़े ही उसे वहीँ चोद देना चाहता हो. "देख लो माँ..........महसूस हो रहा है मेरा घोड़ा..............तेरे लिए कब से तैयार खड़ा है....मगर तू है के चढती ही नही"
एक तरफ विशाल अपना लंड माँ की चुत पर दबा रहा था और साथ साथ उसके नितम्बो को खींच उसकी चुत को लंड पर दबा रहा था. दूसरी तरफ अंजलि बेटे के गले में बाहें और भी कस देती है और एक टांग उठाकर अपने बेटे की जांघो पर लपेट देती है.
"चुदूँगी बेटा........हाय.......जरूर चुदूँगी........जब तक तेरा घोड़ा थकेगा नहीं में उससे नहीं उतरूंग़ी" अंजलि बेल की भाँति बेटे से लिपटती जा रही थी. उसकी चुत से फिर से रस की नदिया बहने लगी थी.
"मेरा घोड़ा नहीं थकेगा मा.......यह पिताजी का घोडा नहीं है....दिन रात सवारी कर लेना.......जितना चाहे दौड़ा लेना........मगर यह थकेगा नहि.......तु चढ़ो तो सही माँ......एक बार चढ़ो तोह साहि" विशाल माँ के दोनों नितम्बो को थाम उसे ऊपर को उठता है ताकि उसका लंड माँ की चुत पर एकदम सही जगह दवाब दाल सके. अंजलि का पांव ज़मीन से थोड़ा सा ऊपर उठ जाता है. अंजलि जिसने एक टांग पहले ही ऊपर उठायी थी दूसरी तांग भी उठा लेती है और दोनों टाँगे बेटे के पीछे उसकी जांघो पर बांध लेती है.
अब हालत यह थी के अंजलि बेटे के गले में बाहे डाले झुल रही थी. विशाल ने अपनी माँ को उसके नितम्बो से पकड़ सम्भाला हुआ था.
"चढ़ोगी माँ.....बोल माँ चढेगी बेटे के घोड़े पर" अंजलि की टाँगे खुली होने के कारन अब लंड अब चुत के छेद पर था.
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