RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 31
बहुत टूटा था आज में। कोई भी परेशानी उतनी बड़ी नहीं होति, कोई भी ज़खम उतना गहरा नहीं होता जितना गहरा सदमा किसी के कटाक्ष भरे शब्दों का होता है और वो भी यदि बोलने वाला आप का कोई अपना हो....
मेरे आँखों से आंसू नहीं बहे पर मेरी रूह तक कंप गाई, इतना झकझोर के रख दी सुनैना की बातें। उस रात नींद कोसों दूर थी। कब सोया पता नहीं पर जगा सुबह के 4 बजे से ही था । और अन्दर ही अन्दर घुट रहा था । दरवाजा मैंने तब खोला जब मेरे कानो में माँ की आवाज़ पडी, क्या बोल रही थी वो भी पता नहीं ।
सच कहूँ उस समय का अहसास, मेरे पैर कांप रहे द, मेरा कान(एअर) बिलकुल गरम थे, आँखें बिलकुल मुर्झायी, होंठ बिलकुल सुखे, कोई देख कर कह सकता था की मैं बहुत परेशान हूँ ।
पर अचानक मुझे किसी की कही बातें याद आई कि आप अगर उदास होते हो तो आप के चाहनेवाले भी उदास होते है, और बस जल्दी से मुँह धोया पानी से, बाल ठीक किये और अंगड़ाई लेते हुए दरवाजा खोला ।
समने पूरा परिवार जमा था मेरी और मासी दोनों की और साथ में थी सुनैना । सब ने मुझे हॉल में बुलया। में जाकर माँ के पास बैठ गया चेहरे पर एक बनावटी मुस्कान लिये।
पर कहते है न माँ तो आखिर माँ होती है, उनको मेरी उदासी मेरे बनावटी हंसी के ऊपर से दिख गाई । अभी मैं उनके पास ही बैठा था, की माँ.....
प्यार से मेरे हाँथ फेरते हुए.... " क्या हुआ बेटू कोई बात है"
इत्ने प्यार से मेरे सर पर हाँथ फेरा की में क्या बताऊ एक अद्भुत सुकूं में, पर अब मैं रोना चाहता त। में माँ के गले से लिपट गया, जोर से लिप्त और पीछे मेरे आंखों से आंसू बाह रहे थे ।
कुछ पल मैं यूँ ही सुकून से उन्हें गले लगाएं राख, अब अच्छा मेहसूस हो रहा था की तभी सामने दरवाजे पर परिधि खडी थी। उसे देख मैं जल्दी अपने आंसू पोंछे पर तबतक शायद उसने देख लिया था ।
माँ से लिपट कर रोंए से दिल तो शान्त था पर अब दिमाग मैं हलचल की..... "परिधि कल आने वाली थी पर ये यन्हा, यूँ अचनाक"।
अभी जिन आँखों में आंसू थे वो अब फटी के फटी बस गेट की ओर देखे जा रही थी और अभी भी मैं माँ से लिपटा था ।
मासी.... कौन हो बेटी तुम और किसे ढूंढ रही हो ( सबने सोचा की इंगेजमेंट के कारन सायद किसी ने बुलाया हो या किसी से मिलने आई हो)
अभी परिधि कुछ बोलने वाली थी की मैं....
"मासी ये परिधि है" बस मेरा इतना बोलना था की माँ, सिमरन, दिया तीनो ने ऐसे घेरा की पूछो ही मत ।
सबने उसे अंदर बुलाया फिर लगे स्वागत में, माँ तो उसे पाकर कर रोंने ही लगी और बोली.... तुम और तुम्हारा परिवार न होता तो मेरे बेटे का क्या होता?
मै बस हैरान था की.... " ये यंहा कर क्या रही है और मासी का अड्रेस इसे पता कैसे चला"
साब परिधि को घेरे उस से उसके बारे में फैमिली के बारे में पूछ रहे थे । परिधि सब अच्छे से बता रही थी पर मैं नहीं चाहता था की मोहित अंकल के बारे मैं अभी कुछ भी पता चले किसी को। जैसे ही परिधि की नज़र मुझसे मिली आंखों आँखों मैं एक इशारा हुआ और जैसे मेरे हर इक बात का अहसास हो वो फैमिली बैकग्राउंड को बड़े सफाई से टाल गई ।
अभी 2 घंटे हो गए उसे आये अब वो सब से इज़ाज़त ले रही थी वापस लौटने की इसपर माँ पूछ्ने लागी.... चली जाना पर ये तो बताओ की तुम आई क्यों और कैसे?
परिधि ने बताया की उसकी फ्रेंड इसी तरफ आ रही थी उसी के साथ आई है और ऑटो से चली जाएगी पर माँ के क्यों मैं उलझ गयी और सवालिया नज़रों से मेरी ओर देखने लागी।
मुझे समझते देर न लगी तो मैंने कहा की.... "आप्लोग यंहा आ रहे थे तो मैंने ही इसे बुलाया था आप सब से मिलने"।
माँ.... "ये तूने अच्छा किया बेटा"
अभी माँ की बात समाप्त हुए और उधर ये दिया ने अपना दिमाग लगा दिया.....
"पर भैया आप का मोबाइल तो कल इवनिंग से ऑफ है, और फिर मेरे मोबाईल पर रिंग करते हुए देखो अभी भी ऑफ है आपने बुला कब लिया"
अब परिधि की हलकी मुस्कान उसके हांथों पर आ गयी और में.....
"ये दिया जब देखो मेरी खिचाई करती है कल सरप्राइज को आग लगा दी और अभी जासूसी सूझ रही है वो तो अच्छा हुआ जो कल बात हुए थी परिधि से नहीं तो ये तो आज फँसा देती"
मै जल्दी से रूम से अपना मोबाइल ले करके माँ को दिखाया..... देख माँ कल शाम को बात हुए थी की नहीं। फिर मैंने भी तीर छोड़ा ,अब जरा इस से पूछो की ये इन्क्वायरी क्यों कर रही है क्या चल रहा है इसके मन में।
अब क्या था दिया की लग गयी क्लास क्योंकि थी वो सबसे छोटी और इन्क्वायरी भी किसकी की जिसने मेरी जान बचायी फिर क्या एक एक ने एक एक कर उसकी क्लास ली।
मै खुश तो था पर दिया को कुछ जयादा ही सुन्ना पद गया और मुँह लटक गया जो में कभी नहीं देख सकता था । पर अभी इस मेटर के लिए टाइम नहीं था मेरे पै। उसे तो मैं गिफ्ट देकर मना लूंगा ।
"अभी तो परिधि की चिंता थी की एक दिन पहले क्यों आई और अड्रेस कंहा से मिला इसे" ।
फाइनली परिधि जाने लगी तो माँ ने उसे रोका और मुझे बोलै ड्राप करने को पर मैं कोई इशू नहीं चाहता था इसीलिए.... " माँ वो बच्ची नहीं है चली जाएगी, आज कितने दिनों बाद देखा है आप को मैं आप के पास ही रहूँगा ( सफ़ेद झूठ )"।
परिधि सायद मेरा झूठ समझ चुकी थी इसलिए वो मुस्कुराये बिना नहीं रह सकी।
मेरी बात सुनकर सिमरन बोल पड़ी....... और तू तो अभी बच्चा है । जो गुम जायेगा अभी जाता है या खयेगा एक थप्पड़ ।
इधर परिधि ने भी दिमाग लगा लिया..... रहने दो आंटी छोड़ दो दीदी मुझे अभी 1,2 घंटे और लगेंगे मुझे अपने कुछ 12थ के स्टडी मटेरियल कलेक्ट करने है बुक शॉप से कंहा राहुल मेरे साथ भटकटा रहेगा ।
अब मैं बिना मुस्कुराये नहीं रह सका भगवान किस दिन इसका ब्रेन बनाया आपने
माँ.... कुछ नहीं होता बेटी तू रुक यंहा और मुझसे तू खड़ा खड़ा कर क्या रहा है 10 मं मैं रेडी होकर जा ईसे जो भी बुक चाहिए हेल्प कर दे और घर छोड़ कर आना ।
आब मैं जल्दी से रेडी हो गया माँ के दिए टाइम में और कार की के लेकर चल पड़ा परिधि को ड्राप करने पर अभी मैंने किसी को नहीं बताया था की मैंने कार जीती है इसलिए बड़ा भोला बाँटे हुए परिधि से.... कान्हा जाना है तुम्हे परिधि उसने जगह बतायी, फिर मैं निराज से .....भैया टैक्सी कंहा से मिलेगी उस जगह के लिये।
यारों मैंने तो जैसे कॉमेडी कर दिया हो ये पूछ कर सब के सब एक साथ हसने लागे ।
माँ ने कहा.... बेटा अपने कार से ले जा कंहा टेक्सी मैं तू यंहा से वंहा जायेगा और कंहा परिधि को भी भटकता रहेगा । इतना बोल माँ और उनके साथ सब हॅसने लागे ।
मैने सवालिया नज़रों से मासी निरज, गुंजन, और सुनैना के तरफ देखा तो...
सिमरन..... इन में से किसी ने नहीं बताया ।
मैं..... तो फिर मेरे सुस्पेंस मैं आग किसने लगायी ।
सिमरन.... तू अभी सुस्पेंस मैं ही जा लौट कर आ तब बताती हूँ ।
ये हो क्या रहा था कल से पता नहीं जिसे भी सरप्राइज देना चाहा उसने उल्टा मुझे सरप्राइज दिया।
बेहरहाल अब मैं परिधि के साथ निकला मन में कई सवाल लिए.....
कहानी जारी रहेगी.....
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