RE: mastram kahani राधा का राज
मुकुल उस वक़्त मेरी गर्दन पर और मेरी नितंबों पर अपने दाँत गढ़ा रहा था. मैं मस्त हुई जा रही थी. फिर मुकुल ने मेरे सिर को पकड़ा और अपने लंड पर झुकने लगा. मैं उसका इरादा समझ कर कुछ देर तक मुँह को इधर उधर घुमाती रही. मगर उसके आगे मेरी एक नही चल पा रही थी. वो मेरे खूबसूरत होंठों पर अपना काला लंड फेरने लगा. मुझे उसके लंड से पेशाब की बदबू आ रही थी जिससे मेरा जी मचलने लगा. लंड के आगे के टोपे की मोटाई देख कर मैं काँप गयी. लंड से चिपचिपा प्रदार्थ निकल कर मेरे होंठों पर लग रहा था. लेकिन मैने अपना मुँह नही खोला. मुकुल ने काफ़ी कोशिश की मेरे मुँह को खोलने की मगर मैने उसकी एक ना चलने दी.
कुछ देर बाद अरुण ने मुझे गोद से उठा कर कोहनी और घुटनों के बल पर चौपाया बनाकर पीछे से मेरी योनि को च्छेदने लगा. योनि की फाँकें अलग कर अपनी उंगलियाँ अंदर बाहर करने लगा. उसने मेरी योनि से अपनी उंगलियाँ निकाल कर एक उंगली को खुद चाता और दूसरी उंगली मुकुल को चाटने दिया.
" ले देख चाट कर अगर इससे अमृत का स्वाद ना आए तो कहना." अरुण ने कहा.
"एम्म्म बॉस मज़ा आ गया… बड़ी नसीली चीज़ है. आज तक इतना मज़ा कभी नही आया."
मुकुल मेरे सिर को वापस अपने लंड पर दबा रहा था. मुझे मुँह नहीं खोलता देख कर मेरे निपल्स को बुरी तरह मसल्ने लगा. मेरे निपल्स इतनी बुरी तरह मसल रहा था और खींच रहा था मानो उसे आज मेरे बदन से ही उखाड़ फेंकने का मन हो. मैं जैसे ही चीखने के लिए मुँह खोली उसका मोटा लंड जीभ को रास्ते से हटाता हुआ गले तक जाकर फँस गया.
मेरा दम घुटने लगा था. मैने सिर को बाहर खींचने के लिए ज़ोर लगाया तो उसने अपने हाथ को कुछ ढीला कर दिया. लंड आधा ही बाहर निकला होगा उसने दोबारा मेरे सिर को दाब दिया. और इस तरह वो मेरे मुँह को किसी योनि की तरह चोदने लगा.
उधर अरुण मेरी योनि मे अपनी जीभ अंदर बाहर कर रहा था. मैं कामोत्तेजना से चीखना चाहती थी मगर गले मे मुकुल का लंड फँसा होने के कारण मेरे मुँह से सिर्फ़ "उूउउन्न्ञणनह उम्म्म फफफफफफफम्म्म" जैसी आवाज़ें निकल रही थी. मैं उसी अवस्था मे वापस झार गयी.
काफ़ी देर तक चूसने चाटने के बाद अरुण उठा. उसके मुँह, नाक पर मेरा कामरस लगा हुआ था. उसने अपने लंड को मेरी योनि के द्वार पर सटा दिया. फिर बहुत धीरे धीरे उसे अंदर धकेलने लगा. खंबे के जैसे अपने मोटे ताजे लंड को पूरी तरह मेरी योनि मे समा दिया. योनि पहले से ही गीली हो रही थी इसलिए कोई ज़्यादा दिक्कत नहीं हुई. लेकिन उसका लंड काफ़ी मोटा होने से मुझे हल्की से तकलीफ़ हो रही थी. वो अपने लंड को वापस पूरा बाहर निकाला और फिर एक जोरदार धक्के से पूरा समा दिया. फिर तो उसके धक्के लगातार हो चले.
मुकुल मेरा मुख मैंतुन कर रहा था. दोनो के लंड दोनो तरफ से मेरे बदन मे अंदर बाहर हो रहे थे और मैं जीप मे झूला झूल रही थी. मेरे दोनो उरोज़ पके हुए अनार की तरह झूल रही थे. दोनो ने मसल कर काट कर दोनो स्तनो का रंग भी अनारो की तरह लाल कर दिया था.
कुछ देर बाद मुझे लगने लगा कि अब मुकुल डिसचार्ज होने वाला है. ये देख कर मैने लंड को अपने मुँह से निकाल ने का सोचा. मगर मुकुल ने शायद मेरे मन की बात पढ़ ली. उसने मेरे सिर को प्युरे ताक़त से अपने लंड पर दबा दिया. मूसल जैसा लंड गले के अंदर तक घुस गया. उसका लंड अब झटके मारने लगा. फिर ढेर सारा गरम गरम वीर्य उसके लंड से निकल कर मेरे गले से होता हुआ मेरे पेट मे समाने लगा. मेरी आँखें दर्द से उबली पड़ी थी. दम घुट रहा था. काफ़ी सारा वीर्य पिलाने के बाद लंड को मेरे मुँह से निकाला. उसका लंड अब भी झटके खा रहा था. और बूँद बूँद वीर्य अब भी टपक रहा था. मेरे होंठों से उसके लंड तक वीर्य एक रेशम की डोर की तरह चिपका हुआ था. मैं ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रही थी. उसके वीर्य के कुछ थक्के मेरी नाक पर और मेरे बालों पर भी गिरे.
अरुण पीछे से ज़ोर ज़ोर से धक्के दे रहा था. और मैं हर धक्के के साथ मुकुल के ढीले पड़े लंड से भिड़ रही थी. इससे मुकुल का ढीला लंड फिर कुछ हरकत मे आने लगा. मैं सिर को उत्तेजना से झटकने लगी "ऊउीई माआ ऊऊहह हूंंम्प्प" जैसी उत्तेजित आवाज़ें निकालने लगी. मेरी योनि ने ढेर सारा रस छोड़ दिया. मगर उसके रफ़्तार मे कोई कमी नहीं आई थी. मेरी बाहें मेरे बदन को और थामे ना रख सकी. और मेरा सिर मुकुल की गोद मे धँस गया. उसके काम रस से लिसडे ढीले पड़े लंड से मेरा गाल रगड़ खा रहा था. काफ़ी देर तक धक्के मारने के बाद उसके लंड ने अपनी धार से मेरी योनि को लबालब भर दिया. जब तक पूरा वीर्य मेरी योनि मे निकल नही गया तब तक अपने लंड को अंदर ही डाले रखा. धीरे धीरे उसका लंड सिकुड कर मेरी योनि से बाहर निकल आया.
हम तीनो गहरी गहरी साँसें ले रहे थे. खेल तो अभी शुरू ही हुआ था. दोनो ने कुछ देर सुसताने के बाद अपनी जगह बदल ली. अरुण ने अपना लंड मेरे मुख मे डाल दिया तो मुकुल मेरी योनि पे चोट करने लगा. दोनो ने करीब दो घंटे तक मेरी इसी तरह से जगह बदल कर चुदाई की. मैं तो दोनो का स्टॅमिना देख कर हैरान थी. दोनो ने कई बार मेरे मुँह मे , मेरी योनि मे और मेरे बदन पर वीर्य की बरसात की. मैं उनके सीने से चिपके साँसे ले रही थी.
"अब तो छोड़ दो. अब तो तुम दोनो ने अपने मन की मुदाद पूरी कर ली. मुझे अब आराम करने दो. मैं बुरी तरह थक गयी हूँ." मैने कहा.
मगर दोनो मे से कोई भी मेरी मिन्नतें सुनने के मूड मे नहीं लगा. घंटे भर मेरे बदन से खेलने के बाद और अपने लंड को आराम देने के बाद दोनो के लंड मे फिर दम आने लगा. अरुण सीट पर अब लेट गया और मुझे उपर आने का इशारा किया. मैं कुछ कहती उस से पहले मुकुल ने मुझे उठाकर उसके लंड पर बैठा दिया. मैं अपने योनि द्वार को अरुण के खड़े लंड पर टिकाई. अरुण ने अपने लंड को दरवाजे पर लगाया. मैं धीरे धीरे उसके लंड पर बैठ गयी. पूरा लंड अंदर लेने के बाद मैं उसके लंड पर उठने बैठने लगी. तभी दोनो के बीच आँखों ही आँखों मे कोई इशारा हुआ. अरुण ने मुझे खींच कर अपने नग्न बदन से चिपका लिया. अरुण मेरे नितंबों को फैला कर मेरे पिच्छले द्वार पर उंगली से सहलाने लगा. फिर उंगली को कुछ अंदर तक घुसा दिया. मैं चिहुनक उठी. मैं उसका इरादा समझ कर सिर को इनकार मे हिलाने लगी तो अरुण ने मेरे होंठ अपने होंठों मे दबा लिए. मुकुल ने अपनी उंगली निकाल कर मेरे योनि से बहते हुए रस को अपने लंड और मेरी योनि पर लगा दिया. मैं इन दोनो बलिष्ठ आदमियों के बीच बिल्कुल असहाय महसूस कर रही थी. दोनो मेरे बदन को जैसी मर्ज़ी वैसे मसल रहे थे.
क्रमशाश...........................
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