Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
04-25-2019, 11:54 AM,
#22
RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
चौधराइन 
भाग 20 – नया चस्का 1


यहाँ तक की कहानी सुना के मदन बोला –“तो चौधराइन चाची ये थी, मेरी ट्रेनिंग़ की कहानी। मुझे मेरी मामी उस्ताद बनाया।”
इस गरम कहानी के बीच एक बार चौधराइन चाची चुदास से गरमा कर मदन से चुदवा के मस्त हो चुकीं थीं । पर कहानी खतम होते होते मदन पूरे मूड मे आ चुका था सो मदन ने अपनी एक टांग उठा, उनकी जांघो पर रखते हुए, उसके पैरो को अपने दोनो पैरों के बीच करते हुए, लण्ड को पेटिकोट के ऊपर से चूत पर सटाते हुए, उसके होठों से अपने होठों को सटा उसका मुंह बन्द कर दिया। रसीले होठों को अपने होठों के बीच दबोच, चूसते हुए अपनी जीभ को उसके मुंह में ठेल, उसके मुंह में चारो तरफ घुमाते हुए चुम्मा लेने लगा।

कुछ पल तो माया देवी के मुंह से ...उम्म...उम्म... करके गुंगियाने की आवाज आती रही, मगर फिर वो भी अपनी जीभ को ठेल-ठेल कर पूरा सहयोग करने लगी। दोनो आपस में लिपटे हुए, अपने पैरों से एक दूसरे को रगड़ते हुए, चुम्मा-चाटी कर रहे थे। मदन ने अपने हाथ कमर से हटा उसकी चूचियों पर रख दिया था, और ब्लाउज के ऊपर से उन्हे दबाने लगा। माया देवी ने जल्दी से अपने होठों को उसके चुम्बन से छुडाया. दोनो हांफ रहे थे, और दोनो का चेहरा लाल हो गया था। मदन के हाथों को अपनी चूचियों पर से हटाती हुई बोली,
“इस्स,हट,,,,,,,क्या करता है…?"

मदन ने माया देवी का हाथ को पकड़, अपनी लुंगी के भीतर डाल, अपना लण्ड उसके हाथ में पकड़ा दिया। माया देवी ने अपना हाथ पीछे खींचने की कोशिश की, मगर उसने जबरदस्ती उसकी मुट्ठी खोल, अपना गरम तपता हुआ खड़ा लण्ड उसके हाथ में पकड़ा दिया। लण्ड की गरमी पा कर उसका हाथ अपने आप लण्ड पर कसता चला गया।

“…। तेरा मन नही भरता क्या?”
लण्ड को पूरी ताकत से मरोड़ती, दांत पीसती बोली।

“हाय,,,,,,!!! …एक बार और करने दे…ना,,,,!!”,
कहते हुए, मदन ने उसके घुटनो तक सिमट आये पेटिकोट के भीतर झटके से हाथ डाल चूत दबोच ली। माया देवी ने चिहुंक कर लण्ड को छोड़, पेटिकोट के भीतर उसके हाथ से चूत छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली,
“इस्स्स्स,,,,,…क्या करता है,,,??…कहाँ हाथ घुसा रहा…???”

मदन जबरदस्ती उसकी जांघो के बीच हाथ से चूत को मसलता हुआ बोला,
“हाय,,,,,,,,एक बार और…देख ना कैसे खड़ा…??!!”
“उफफफ्,,,,,हाथ हटा,,,,,। बहुत बिगड़ गया है, तु…??”

मदन का हाथ गीला हो गया था चौधराइन की चूत पनिया गई थी। मदन बोला,
“हाय,,,,पनिया गई है,,,,तेरी चु…”

माया देवी उसकी कलाई पकड़, रोकने की कोशिश करती बोली,
“उफफ्,,,,,छोड़,,,,,ना,,,!,,,,क्या करता है,,,,?…वो पानी तो पहले का है…।"

एक हाथ से लुंगी को लण्ड पर से हटाता हुआ बोला,
“पहले का कहाँ से आयेगा ??…देख, इस पर लगा पानी तो कब का सुख गया…।"

नंगा, खड़ा लण्ड देखते ही चौधराइन, आंखे चुराती, कनखियों से देखती हुई बोली,
“तेरा लुंगी से पौंछ गया होगा,,,,,,मेरा अन्दर, कैसे सुखेगा…??”,
कहते हुए, मदन के हाथ को पेटिकोट के अन्दर से खींच दिया। पेटिकोट जांघो तक उठ चुका था। लण्ड को अपने हाथ से पकड़, दिखाता हुआ मदन बोला,
“…। एक बार और्…तेरी चु…”

“चुप,,,बेशरम,,,,बहुत देर हो चुकी है…”

“हाय चाची,,,,कहानी कहते कहते मन …बस एक बार और…”

“हर बार तू यही कहता है रात भर तु यही करता रहता था, क्या…???”

“…तीन…चार…बार तो करता ही था ......छोड़ो उसे …बस एक बार और…”,
कहते हुए, फिर से उसके पेटिकोट के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की।

“उफफ्,,,,सीईईईई…। कमीने छोड़…। घड़ी देख…। क्या टाईम हुआ…???”

मदन ने घड़ी देखी। सुबह के ४:३० बज रहे थे. मदन के किस्से में टाईम का पता ही नही चला था.

अब चौधराइन की चूत की बन आई दोपहर में बाप सदानन्द से और हर दूसरे तीसरे दिन किसी बहाने से रात में बगिया वाले मकान में सदानन्द के बेटे मदन से अपनी चूत जम के बजवाती। रोज रात को इसलिए नहीं कि कहीं किसी को शक न हो जाय सो जिस जिस दिन बगिया वाले मकान पे जाने का कोई बहाना न मिलता वो रात भर चुदास से छटपटाती रहती क्योंकि चुदवाने का चस्का जो पड़ गया था। अचानक उनके शैतानी दिमाग ने इसका भी तरीका निकाल लिया।
दरअसल चौधरी के मकान में आंगन पीछे की तरफ़ था उसके बाद दीवार थी, जिससे चौधरी साहब का दूसरा मकान जुड़ा था उस मकान में आधे में मवेशी घर था, जहाँ जानवरों के बँधे रहते थे, बाकि के आधे में चौधरी साहब की पँचायत का कमरा था जो पँचायतघर कहलाता था जिसमें जरूरत पड़ने पर शाम को चौधरी साहब पँचायत लगाते थे उस कमरे में दिन दोपहर में कोई भी नहीं रहता था। दिन दोपहर में अक्सर चौधराइन इस कमरे का इस्तेमाल नौकरों का हिसाब किताब करने के लिए करती थीं क्योंकि यहाँ एकान्त रहता था और वो सुकून से अपना हिसाब किताब बिना व्यवधान के कर सकती थी। कमरे में लोगों के बैठने के लिए दरी बिछी थी, एक चौकी थी और उस पर एक गद्दा व गाव तकिया लगे रहते थे, उसी पर बैठ चौधरी पँचायत और चौधराइन नौकरों का हिसाब करती थीं। इस मकान के बाद सड़क थी इसलिये नौकर चाकर बाहर ही बाहर आ जा सकते थे पर चौधरी और चौधराइन अपने मकान के अन्दर से भी आ जा सकते थे । चौधराइन को ये जगह जच गई और कोफ़्त हुआ कि अभी तक उन्हें ये जगह क्यों न सूझी । बस उन्होंने बेला के हाथ वहाँ की अतिरिक्त चाभी दे उससे कहा कि इसे मदन को दे देना और उसे रात बारह बजे के बाद पँचायत घर आने को बोलना । बेला को भी मदन से उस दिन चुदवाने के बाद से मौका नहीं लगा था क्योंकि इस माह कई त्योहार थे उनकी छुट्टियों के कारण उसका मर्द आजकल घर आया हुआ था, और पति को शक हो जाने के डर से बगिया वाले मकान पर जा नही पाई थी, उसे तो जाने का बस बहाना चाहिये था, सो वो खुशी खुशी जाने को राजी हो गयी।
मदन दोपहर में बगिया वाले मकान पर खाली बैठा मक्खियाँ मार रहा था क्योंकि जैसा कि मैने पहले बताया इस माह कई त्योहार थे सो उनकी छुट्टियों के कारण गाँव की सभी चुदक्कड़ औरतों के मर्द और भाई बन्द आये हुए थे। पिछले कई दिनों से उसे कोई चूत नहीं मिली थी । बेला को देख उसकी बाछें खिल गई।
मदन –“अरे आओ बेला चाची! बहुत दिनों पे दिखाई दीं लगता है इस भतीजे को भूल ही गईं क्या ।”
बेला –“ अरे नहीं बेटा! काम काज से छुट्टी ही नहीं मिलती, वो तो आज चौधराइन ने जरूरी बात बताने भेजा है इसलिए छुट्टी मिली।”
मदन –“भरी दुपहरी में आई हो अन्दर चलके पानी वानी पी लो बात कहीं भागी नहीं जा रही सुन लूंगा।” 
बेला समझ गई कि मदन आज बिना चोदे न जाने देगा, चाहती वो भी यही थी सो मन ही मन खुश होकर पर ऊपर से नखरा दिखा बोली –“ अच्छा बेटा! भगवान भला करे पर मैं हुँ जरा जल्दी में चौधराइन का बड़ा काम फ़ैला छोड़ के आई हूँ।”
ऐसे बोल अन्दर को चल दी जबकि वो चौधराइन को बोल के आई थी कि उसे कुछ दूसरे घरों का काम निबटाना है सो अब वो अगर आ सकी तो शाम को छ: सात बजे के करीब आयेगी। मदन उसके अपने भारी चूतड़ों और पपीते सी विशाल चूचियों को ललचाई आँखों से घूरते पीछे पीछे अन्दर आया और दरवाजा अन्दर से बन्द कर उसे पानी दिया और पूछा –“अब बताओ क्या कहलवाया है चाची ने ।”
मदन को अन्दर आ दरवाजा बन्द करते देख बेला अर्थ पूर्ण ढ़ंग से मुस्कुराई और बोली –“चौधराइन ने ये पँचायत घर की चाभी भिजवाई है और रात बारह बजे वहाँ आने को कहा है। अभी आराम कर रात में मजे करना ।
मदन ने चाभी ले ली और बेला को बिस्तर पर गिराते हुए बोला –“अरे मैं तो आराम ही कर रहा था तुम भी तो थोड़ा आराम कर लो चाची ।
बेला –“ अरे अरे क्या कर रहे हो बेटा अपनी ये ताकत रात के लिए बचा के रख। दरवाजा खोल दे और मुझे जाने दे।”
मदन –“ रात के लिए अभ्यास तो करा दो चाची ।
बेला –“अरे जाने दे बेटा तुझे किसी अभ्यास की जरूरत नहीं, मैं क्या जानती नहीं ।”
बेला के इस अरे अरे और बात चीत के बीच मदन ने फ़ुर्ती से उसकी नाभी के पास हाथ डाल उसकी धोती की प्लेटें(चुन्नटें) बाहर निकाल और पेटीकोट का नारा खींच धोती और पेटीकोट एक ही झटके में निकाल फ़ेंका और अगले ही क्षण बेला सिर्फ़ ब्लाउज में नंगधड़ग बिस्तर पर पड़ी थी। तभी मदन बड़े बड़े चूतड़ माँसल जाघें देख उसके ऊपर कूदा तो बेला हँसते हुए बोली –“आराम से मदन बेटा मैं क्या कहीं भागी जा रही हूँ।”
मदन (उसका ब्लाउज खोलते हुए) –“ अभी तो कह रही थीं कि चौधराइन चाची का बड़ा काम फ़ैला छोड़ के आई हो, अब कह रही हो क्या मैं कहीं भागी जा रही हूँ
बेला(मुस्कुराते हुए दोनो हाथ ऊपर कर ब्लाउज उतारने में मदद करते हुए) –“अरे वो तो मैं तुझे चिढ़ा रही थी मैं तो चौधराइन से बोल के आई हूँ कि कुछ दूसरे घरों का काम निबटाना है सो अब तो शाम को छ: सात बजे के करीब आऊँगी।
मदन(उसकी ब्रा उतारते हुए) –“फ़िर क्या मजे लो, पर ये क्या चाची तुम भतीजे चिढ़ा के तड़पाती हो ।
बेला(मुस्कुरा के) –“जब भतीजे से चुदवा ही लिया तो चिढ़ा के तड़पाने मे क्या है तड़पने मे जोश बढ़ता है।
ब्रा उतरते ही बेला की बड़ी बड़ी चूचियाँ फ़ड़फ़ड़ाई मदन ने जिन्हे मदन ने दोनों हाथों मे दबोच उनपर मुँह मारते हुए कहा –“तो चाची अब देखो मेरा जोश।”
मदन ने पिछले दो दिन बिना चूत के बिताये थे सो बेला चाची को खूब पटक पटक के चोदा । मारे मजे के बेला मालिन ने अपने भारी चूतड़ उछाल उछाल के किलकारियाँ भर भर के चुदवाया। शायद रात में मनपसन्द चौधराइन की चूत मिलने की सोच सोच कुछ ज्यादा ही जोश मे चोदा । उसके बाद भी मदन ने उसे जाने न दिया और उसकी सेर सेर भर की चूचियाँ थाम, उसकी मोटी मोटी जाँघों और बड़े बड़े चूतड़ों के बीच अपना लण्ड दबा के चिपक के शाम साढ़े चार बजे तक सोया। 
उस रात मदन पँचायतघर करीब पौने बारह बजे पहुँचा। दरवाजा खोल के अन्दर गया और गद्दा व गाव तकिया लगी चौकी पर बैठ गया । करीब बारह बजे चौधराइन घर के अन्दर से वहाँ आयीं और उसी चौकी पर बेखटके इत्मीमान से मदन से लिपट लिपट रात भर सोईं मतलब चुदवाती सोती जागती रहीं और सुबह होने से पहले बिना किसी को शक हुए अन्दर ही अन्दर अपने घर अपने कमरे में वापस चली गई। पँचायतघर का इन्तजाम देख उसने मन ही मन चौधराइन के दिमाग की दाद दी।
अब क्या था दोपहर को सदानन्द, रात में मदन, चौधराइन की चूत को पूरा आराम सुकून हो गया । 
अचानक एक दिन के 11 बजे चौधराइन ने मदन को बुला भेजा। मदन को ताज्जुब हुआ क्योंकि इस समय आमतौर पे उसके पिता पण्डित सदानन्द का बुलावा आता था। नौकरानियां घर के काम में व्यस्त थीं, कम उम्र के बच्चे इधर-उधर दौड़ रहे थे और आंगन में कुछ नौकर सफाई कर रहे थे। पता चला कि चौधरी साहब खेत पर जा चुके हैं। मदन चौकी पर आराम से बैठ गया। तभी चौधराइन आई और मदन के बगल में बैठ गई।
माया देवी(चौधराइन) ने उसका हाथ पकड़ कर एक लड़के की तरफ इशारा करके पूछा,"वो कौन है मदन?"
वो लड़का आंखें नीची करके अनाज बोरे में डाल रहा था। उसने सिर्फ हाफ-पैंट पहन रखा था।
"हां, मैं जानता हूँ, वो गोपाल है, श्रीपाल का भाई !" मदन ने चौधराइन को जवाब दिया।
श्रीपाल मदन के घर का पुराना नौकर था और पिछले 8-9 सालों से काम कर रहा था। चौधराइन उसको जानती थी।
मदन ने पूछा,"क्यों, क्या काम है उस लड़के से?"
चौधराइन ने इधर उधर देखा और अपने कमरे में चली गई। एक दो मिनट के बाद उन्होंने मदन को इशारे से अन्दर बुलाया। वो अन्दर गया और मायादेवी ने झट से हाथ पकड़ कर कहा,"बेटा, मेरा एक काम कर दे... पर देख किसी को पता न चले।"
"बताइये चाची! कौन सा काम ?"
जवाब में उन्होंने जो कहा वो सुनकर मदन हक्का बक्का रह गया।
"बेटा, मुझे गोपाल से चुदवाना है...!"
मदन चौधराइन को देखता रह गया। उसने कितनी आसानी से बेटे के उम्र के लड़के से चुदवाने की बात कह दी.....
"क्या कह रही हो.....ऐसा कैसे हो सकता है...." मदनने कहा।
"मैं कुछ नहीं जानती, जब से तुझसे चुदवाया है मुझे छोटी उमर के लड़कों से चुदवाने का चस्का लग गया है, मैं सुबह से अपने को रोक रही थी, उसको देखते ही मेरी चूत गरम हो चुलबुलाने लगती है, मेरा मन करता है की नंगी होकर सबके सामने उसका लण्ड अपनी चूत के अन्दर ले लूँ !" चौधराइन ने मदन के सामने अपनी चूत को ऊपर से खुजाते हुए कहा,"कुछ भी करो, बेटा गोपाल का लण्ड मुझे अभी चूत के अन्दर चाहिए !"
चौधराइन की बातें सुनकर मदन का सर चकराने लगा था। मदनने कभी नहीं सोचा था कि चौधराइन, इतनी आसानी से दूसरे लड़कों के बारे में उससे बात करेगी। वो सोचने लगा कि गोपाल, अपने से 20-22 साल बड़ी, चौधराइन, उसकी ही उमर की लड़की की अम्मा को कैसे चोद पायेगा। मुझे लगा कि गोपाल का लण्ड अब तक चुदाई के लिये तैयार नहीं हुआ होगा।
"चौधराइन, वो गोपाल तो अभी बहुत छोटा है.. वो तुम्हें नहीं चोद पायेगा...." मदन ने चौधराइन की बड़े कटीले लंगड़ा आम के साइज की चूची पर हाथ फेरते हुए कहा,"चलिये आपका बहुत मन कर रहा है तो मैं इसी वख्त आपकी चोद देता हूँ..!"
मदन चूची मसल रहा था, चौधराइन ने उसका हाथ अलग नहीं किया। "बेटा, तू तो चोदता ही है फ़िर चोद लेना, लेकिन पहले गोपाल से मुझे चुदवा दे...अब देर मत कर ....बदले में तू जो बोलेगा वो सब करुंगी... तू किसी और लड़की या औरत को चोदना चाहता है तुझे आज से पूरी छूट है यहाँ तक कि अगर तू कहेगा तो मैं गाँव की चौधराइन हूँ, खुद उसका इंतज़ाम कर दूंगी, लेकिन तू अभी अपनी चौधराइन चाची को गोपाल से चुदवा दे.. मेरी चूत बुरी तरह गीली हो रही है।, तुझे बस उसे पँचायतघर में लेके आना है। बाकि मैं देख लूँगी। "
पँचायतघर का नाम सुन मदन का दिमाग सन्नाटे में आ गया । उसने मन ही मन चौधराइन के दिमाग की दाद दी । चौधराइन ने खुद से चुदाई की पेशकश की है तो कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा। मदन ने चौधराइन चाची को अपनी बांहों में लेकर उसके टमाटर जैसे गालों को चूमा और उनकी दोनों मस्त लंगड़ा आमों जैसी चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से सहलाते हुए कहा," आप थोड़ा इन्तज़ार करें...मैं कुछ करता हूँ !" यह कहकर वो बाहर निकल कर आ गया।
उसने करीब पाँच दस मिनट इधर उधर घूमकर समय बिताया ताकि चौधराइन को लगे कि उसने उनके काम के लिए काफ़ी जोड़ तोड़ मेहनत की है फ़िर वो वापस आया। चौधराइन अपने कमरे में मिलीं मदन उनके बगल में बैठ गया और कहा कि वो दस मिनट के बाद पँचायतघर में पहुँचे ,वहाँ से उठ कर वो आंगन में ग़ोपाल के पास आया, उसने देखा चौधराइन भी पीछे बाहर आंगन में आ गई थीं। उसने गोपाल की पीठ थप-थपा कर साथ आने को कहा। वो बिना कुछ बोले साथ हो लिया। मदन ने कनखियों से देखा चौधराइन के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी।
गोपाल को लेकर पँचायतघर में आया और दरवाज़ा खुला रहने दिया। मदन आकर गद्दे पर लेट गया और गोपाल से कहा कि मेरे पैर दर्द कर रहे हैं, दबा दे.. यह कहते हुये उसने अपना पजामा बाहर निकाल दिया। नीचे उसने जांघिया पहना था। ग़ोपाल पांव दबाने लगा और मैं उससे उसके घर की बातें करने लगा।
वैसे तो गोपाल के घरवाले मदन के घर में सालों से काम करते हैं फिर भी वो कभी उसके घर नहीं गया था। गोपाल की दादी को भी उसने अपने घर में काम करते देखा था और अभी उसकी माँ और भैया काम करते हैं। गोपाल ने बताया कि उसकी एक बहन है और उसकी शादी की बात चल रही है। वो बोला कि उसकी भाभी बहुत अच्छी है और उसे बहुत प्यार करती है।
अचानक मदन ने उससे पूछा कि उसने अपने भाई को अपनी बीबी यानि के तेरी भाभी को चोदते देखा है कि नही। ग़ोपाल शरमा गया और जब मदनने दोबारा पूछा तो जैसा उसने सोचा था, उसने कहा कि हाँ उसने चोदते देखा है।
मदन ने फिर पूछा कि चोदने का मन करता है या नहीं?
तो उसने शरमाते हुये कहा कि जब वो कभी अपनी भाभी को अपने भैया से चुदवाते देखता है तो उसका भी मन चोदने को करता है। ग़ोपाल ने कहा कि रात में वो अपनी माँ के कमरे में सोता था । लेकिन पिछले एक साल से भैया भाभी की चुदाई देख कर उसका भी लण्ड टाईट हो जाता है। इसलिए वो अब अलग सोता है।
"फिर तुम अपनी भाभी को ही क्यों नहीं चोद देते..." मदन ने पूछा,
लेकिन गोपाल के जबाब देने के पहले चौधराइन मायादेवी कमरे में आ गई और उसने अन्दर से दरवाजा बन्द कर दिया। ग़ोपाल उठकर जाने लगा तो मदन ने उसे रोक लिया। गोपाल ने एक बार चौधराइन के तरफ देखा और फिर पैर दबाने लगा।
"क्या हुआ चौधराइन चाची?"
"अरे बेटा, मेरे पैर भी बहुत दर्द कर रहे है, थोड़ा दबा दे !" मायादेवी बोलते बोलते मेरे बगल में लेट गई। मदन उठ कर बैठ गया और चौधराइन को बिछौने के बीचोंबीच लेटने को कहा।
मदन चौधराइन का एक पैर दबाने लगा ।
क्रमश:……………………………
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