RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
अशोक की मुश्किल
भाग 5
अशोक का प्लान…
गतांक से आगे…
दूसरे दिन सबेरे ही सबेरे चाची ने फ़ोन करके चन्दू चाचा को बुलवा भेजा। फ़िर रोजमर्रा के कामों से निबट कर दोनों ने नाश्ता किया और चाची के कमरे में पलंग पर बैठ इतमिनान से एक बार फ़िर इस बात पर गौर किया कि महुआ से फ़ोन पर कैसे और क्या बात करनी है। पूरी तरह से तैयारी कर लेने के बाद अशोक की योजना अनुसार स्पीकर आनकर महुआ को फ़ोन मिलाया।
महुआ –“हलो!”
चाची-“महुआ बेटी मैं चाची बोल रही हुँ कैसी हो बेटी।
महुआ-“अच्छी हूँ चाची! आप कैसी हैं? रात अशोक वापस नहीं आए लगता है आपके पास रुक गये।
चाची-“ मैं ठीक हुँ बेटी! दामाद जी के साथ तू भी क्यूँ नहीं चली आई चाची से मिलने, महुआ।
महुआ-“मैंने सोंचा ये अपने काम से जा रहे हैं। कहाँ मुझे साथ साथ लिए फ़िरेगें, अकेले रहेंगे, तो काम जल्दी निबटा कर शाम तक वापस आ जायेंगे।
चाची(तेज आवाज में)-“पर क्या तुझे अशोक के अचानक उठने वाले पेट दर्द का ख्याल नहीं आया क्या इस बात का ख्याल रखना तेरी जिम्मेदारी में नहीं आता? मुझे तो इस बात का पता ही नहीं………
महुआ( घबरा के बीच में बात काटते हुए)-“हाय, तो क्या दर्द उठा था?”
चाची-“वरना मुझे कैसे पता चलता? मुझे कोई सपना तो आया नहीं।
महुआ( घबराहट से)- “अशोक ठीक तो है? क्योंकि उसमें तो कोई दवा………
चाची-“……असर नही करती। घबरा मत, अशोक अब ठीक है। वो यही मेरे पास है स्पीकर आन है ले बात कर, बोलो अशोक बेटा। ”
अशोक-“हलो महुआ! घबरा मत मैं ठीक हूँ।“
चाची ने आगे अपनी बात पूरी की-“हाँ तो मैं बता रही थी कि रात का समय, ये एक छोटा सा गाँव, न कोई डाक्टर, ना वैद्य। उसपे तुर्रा ये मैं अकेली बूड्ढी औरत।”
बुड्ढी शब्द सुनते ही अशोक ने आँख मार के उनकी कमर में हाथ डाल के अपने से सटा लिया।
महुआ(फ़िक्र से)- “ये तो मैंने सोंचा ही नही था। अशोक को तो बड़ी तकलीफ़ हुई होगी। फ़िर क्या तरकीब की चाची?
चाची-“ऐसी हालत में बिना डाक्टर, वैद्य के कोई कर भी क्या सकता है जब चूरन मालिश किसी भी चीज का असर नहीं हुआ तो मुझसे लड़के का तड़पना देखा नही गया। एक तरफ़ मेरी अपनी मान मर्यादा थी दूसरी तरफ़ मेरी बेटी के सुहाग की जान पे बनी हुई थी मैने सोंचा मेरी मान मर्यादा का अब क्या है मेरी तो कट गई, पर बेटी तेरे और अशोक के आगे तो सारी जिन्दगी पड़ी है । आखीर में जीत तेरी हुई और मुझे वो करना पड़ा किया जो ऐसे मौके पे तू करती है।”
महुआ- “हे भगवान! ये आपने कैसे…चाची… ये समाज……।
अशोक की पहले से सिखाई पढ़ाई तैयार चाची बात काटकर बोली –“मैंने जो किया मजबूरी में किया, आज हम दोनों चाची और भतीजी के पास अशोक के अलावा और कौन सहारा है, भगवान न करे अगर अशोक को कुछ हो जाता तो क्या ये समाज हमें सम्हालता। फ़िर रोने और इस समाज के हाथों का खिलौना बन जाने के अलावा क्या कोई चारा था, सो समाज का नाम तो तू न ही ले तभी अच्छा। तू अपनी बता तेरे लिए अशोक की जान या समाज में से क्या जरूरी था।
महुआ जिन्दगी की इस सच्चाई को समझ भावुक हो उठी- “नहीं नहीं मेरे लिए तो अशोक की जिन्दगी ही कीमती है आपने बिलकुल ठीक किया मेरे ऊपर आपका ये एक और अहसान चढ़ गया।”
चाची की आवाज भी भावुक हो उठी- “अपने बच्चों के लिए कुछ करने में अहसान कैसा पगली।”
महुआ को दूसरी तरफ़ फ़ोन पे ऐसा लगा कि चाची बस रोने ही वाली हैं सो माहौल को ह्ल्का करने की कोशिश में हँस के बोली-“अरे छोड़ो ये सब बातें चाची ये बताओ मजा आया कि नहीं आया तो होगा। सच सच बोलना।”
महुआ की हँसी सुन अशोक और चाची दोनों की जान में जान आई अशोक तो चाची से लिपट गया।
चाची झेंपी हुई आवाज में - “चल हट शैतान! तुझे मजाक सूझ रहा है यहाँ इस बुढ़ापे में जान पे बन आई। कितना तो बड़ा है लड़के का!
कहते हुए चाची ने लुंगी मे हाथ डाल अशोक का हलव्वी लण्ड थाम लिया।
महुआ(हँसते हुए)-“क्या चाची?”
-“चुप कर नट्खट! शुरू में तो मेरी आँखे ही उलटने लगी थीं, लगा कि कही मैं ही ना टें बोल जाऊँ।
चाची ने लण्ड सहलाते हुए साफ़ झूठ बोल दिया। इस बीच अशोक उनका ब्लाउज खोल के गोलाइयाँ सहलाने लगा था।”
महुआ-“अरे छोड़ो चाची! अब तो हम दोनों एक ही केला खा के सहेलियाँ बन गये हैं
मुझसे क्या शर्माना!”
अब चाची को भी जोश आ गया उन्होंने नहले पर दहला मारा- “ठीक है सहेली जी जब मिलोगी तो विस्तार से बता दूँगी पर फ़ोन पर तो बक्श दो। हाँ खूब याद दिलाया इस हादसे के बाद अशोक ने बताया कि तू अभी तक उसका आधा भी…… ।”
महुआ-“मैं क्या करूँ चाची आपने मुझे बचपन से देखा है जानती ही हैं, कहाँ मैं नन्हीं सी जान और कहाँ अशोक। अभी आपने भी मानाकि वो बहुत……।”
चाची-“इसका इलाज हो सकता है बेटी। मेरे गांव के एक चाचा वैद्य हैं। चन्दू चाचा, वो इसका इलाज करते हैं, दरअसल मेरा हाल भी तेरे जैसा ही था मैंने भी उन्हीं से इलाज कराया, ये उनके इलाज का ही प्रताप है कि मैं कल का हादसा निबटा पाई।”
ये कहते हुए चाची ने शैतानी से मुस्कुरा कर अशोक की ओर देखते हुए उसका लण्ड मरोड़ दिया।
फ़िर आगे कहा –“मैंने अशोक से भी बात कर ली है, वो तैयार है। ले तू खुद ही बात कर ले।”
अशोक-“ महुआ! मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ पर रात में इसके अलावा और कोई चारा नजर नही आया।”
महुआ–“छोड़ यार! वैसे अब तबियत कैसी है। चाची ने मुझे वख्त की नजाकत बतायी थी मैं समझती हूँ और हाँ! ये बताओ ये इलाज का क्या किस्सा है? ”
–“ये इलाज भी लगभग उतना ही असामाजिक और शर्मिन्दगी भरा है जितना कि कल का हादसा। पर मेरे तेरे और चाची के बीच शर्माने को अब कुछ बचा तो है नहीं।”
अशोक ने चाची की चूचियों पर अपना सीना रगड़ते हुए जवाब दिया।
महुआ–“अगर तुम्हें मंजूर है तो मुझे कोई एतराज नहीं। वैसे भी ठीक होना तो मैं भी चाहती हूँ शर्मा के पूरी जिन्दगी तकलीफ़ झेलने से तो अच्छा है कि एक बार शर्मिन्दगी उठा के बाकी की जिन्दगी आराम से बितायें।”
अशोक –“तब तो मेरे ख्याल से इससे पहले कि कोई और हादसा हो हमें ये इलाज करा लेना चाहिये। अगर तुम्हें एतराज ना हो तो मेरी तरफ़ से पूरी छूट है। चाची तुम्हें ठीक से समझा देंगी ।”
कहकर अशोक ने चाची के पेटीकोट को पकड़ कर नीचे खींच दिया। अब वो पूरी तरह नंगी हो चुकी थीं।
चाची ने अशोक की लुंगी खीच के उसे भी अपने स्तर का कर लिया और नंगधड़ंग उससे लिपटते हुए बोलीं –“मैं चन्दू चाचा को भेज रही हूँ विश्वास रख सब ठीक हो जायेगा, बस तू दिल लगा के मेहनत से उनसे इलाज करवाना। करीब हफ़्ते भर का इलाज चलेगा। अशोक के सामने तुझे झिझक आयेगी और वैसे भी जितने दिन तेरा इलाज चलेगा उतने दिन तुझे अशोक से दूर रहना होगा तो तू उसका ख्याल न रख पायेगी सो उसे मैं तबतक यहीं रोक लेती हूँ।”
महुआ ने फ़िर छेड़ा –“ओह तो जितने दिन मेरा इलाज यहाँ चलेगा उतने दिन अशोक का वहाँ चलेगा। वाह चाची! तुम्हारे तो मजे हो गये, मस्ती करो।”
चाची के भारी चूतड़ों को हाथों से दबोचते हुए, जवाब अशोक ने दिया –“ तुझे ज्यादा ही मस्ती सवार हो रही है ठहर जा, चन्दू चाचा से कह देते हैं वो इलाज के दौरान तेरी मस्ती झाड़ देंगें।”
चाची ने अशोक का लण्ड थाम उसका हथौड़े सा सुपाड़ा अपनी गुलाबी चूत पर रगड़ते हुए कहा-“बिलकुल ठीक कहा बेटा! यहाँ तो जान पे बनी है इसे मस्ती की सूझ रही है।
महुआ-“हाय! तो क्या इलाज में वो सब भी होता……
अशोक (चाची की चूत पे अपने लण्ड का सुपाड़ा हथौड़े की तरह ठोकते हुए)-“और नहीं तो क्या बिना चाकू लगाये आपरेशन हो जायेगा। पर चन्दू चाचा की गारन्टी है और चाची ने तो आजमाया भी है कि उनके मलहम में वो जादु है कि तुझे तकलीफ़ बिलकुल न होगी।”
महुआ –“हे भगवान! ठीक से सोच लिया है अशोक। तुम्हें बाद में बुरा तो नहीं लगेगा।
अशोक(चाची की हलव्वी चूचियों पे गाल रगड़ते हुए) –“तू जानती है कि मैं कोई दकियानूसी टाइप का आदमी तो हूँ नहीं । फ़िर जो कुछ मैंने किया उसके लिए तूने खुले दिल से मुझे उसके लिए माफ़ कर दिया। तो मेरा भी फ़र्ज बनता है कि मैं खुले दिल और दिमाग के साथ तेरा इलाज कराऊँ ताकि तू मेरे साथ जीवन का सुख भोग सके। सो दिमाग पे जोर डालना छोड़ के जीवन का आनन्द लो इलाज के दौरान जैसे जैसे चन्दू चाचा बतायें वैसे वैसे करना।”
चाची –“ठीक है महुआ बेटी चन्दू चाचा, कल शाम तक पहुंच जायेंगे। अच्छा अब फ़ोन रखती हूँ। ऊपरवाला चाहेगा तो सब ठीक हो जायेगा। खुश रहो।”
महुआ –“ठीक है चाची प्रणाम।
सुनकर चाची ने फ़ोन काट दिया और अशोक के ऊपर यह कहते हुए झपटीं –
“इस लड़के को एक मिनट भी चैन नहीं है अरे अपने पास पूरा हफ़्ता है एक मिनट शान्ती से फ़ोन तो कर लेने देता। अभी मजा चखाती हूँ।”
कहते हुए चाची ने अपनी लण्ड से रगड़ते रगड़ते लाल हो गई पावरोटी सी चूत के मोटे मोटे होठ बायें हाथ की उँगलियों से फ़ैलाये और दूसरे हाथ से अशोक का लण्ड थाम उसका हथौड़े सा सुपाड़ा चूत के होठों के बीच फ़ँसा लिया।और इतनी जोर का जोर का धक्का मारा कि अशोक की चीख निकल गई।
चाची बोलीं –“ चीखने से काम नहीं चलेगा अब तो पूरे एक हफ़्ते चाची तेरे पेट दर्द का इलाज करेगी।”
अशोक मक्कारी से मुस्कुराते हुए बोला–“ पर चाची अभी नहाना भी तो है।”
चाची(दोनों के नंगे बदन की तरफ़ इशारा करते हुए) बोलीं –“फ़िर ये सब किसलिए किया, ये आग किसलिए लगा रहा था।”
अशोक –“खुद और आपको नहलाने, और नहाते हुए इस आग को बुझाने के लिए।”
चाची समझ गई कि लड़का उनके भीगते बदन का आनन्द लेते हुए चोदना चाहता है ये सोच उनके भी बदन में अशोक के मर्दाने भीगते शरीर की अपने बदन से लिपटे होने की कल्पना कर सन्सनाहट हुई। अगले ही पल चाची ने अपनी चूत उसके लण्ड से पक से बाहर खींच ली।
चाची कुछ सोच के बोलीं –“ठीक है तो चल नहाने।”
और नंगधड़ंग चाची उसका लण्ड पकड़ के कुत्ते के गले के पट्टे की तरह खींचते हुए बाथरूम की तरफ़ चल दीं।
क्रमश:……………………
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