RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
आखिर मुझ से न रहा गया. मैंने झुक कर उनकी छाती चूम ली और एक हाथ जांघिये में डाल कर लंड पकड़ लिया. मजा आ गया. ऐसा लगता था कि मोटी ककड़ी या लौकी हाथ में आ गयी हो. राजीव चाचा ने मेरी कमर में हाथ डाला और मुझे पास खींच लिया. फ़िर दूसरा हाथ मेरी गर्दन में डाल कर मेरे सिर को नीचे खींचकर अपने होंठ मेरे होंठों पर लगा दिये. एक दूसरे की आंखों में देखते हुए हम बेतहाशा एक दूसरे को चूमने लगे. अब कुछ कहने की भी जरूरत नेहीं थी.
मुझे खींचकर राजीव चाचा ने बाहों में भर लिया और मुझे नीचे चटाई पर पटक कर मेरे ऊपर चढ़ बैठे. ऐसे चूमने लगे जैसे अपनी प्रेमिका को चूम रहे हों. उनके थोड़े खुरदरे होंठ और उनमें भिनी सिगरेट की भीनी खुशबू मुझे बहुत अच्छी लगी. अपनी लंबी जीभ उन्होंने मेरे गले तक उतार दी जिसे मैं जोर से चूसने लगा. अब तक उन्होंने अपने हाथों से मेरी चड्डी खींच कर उतार दी थी. उनका हाथ कभी मेरा लंड सहलाता और कभी नितंब.
बीच में ही वे उठकर बैठ गये और मेरे नग्न शरीर को अलट पलट कर देखने लगे. मेरा गुलाबी किशोर शिश्न और चिकने नितंब देखकर वे सिसक उठे. "मेरे राजा, मेरे बेटे, तू तो बिलकुल स्वर्ग का टुकड़ा है रे, अब तक कहां था रे, अपने चाचाजी से जुदा क्यों था?" कहकर वे झुककर मेरे नितंब चूमने लगे. प्यार से उन्हें सहलाते हुए वासना के आवेश में राजीव चाचा मेरे गुदा को चूसने लगे. जल्द ही उनकी जीभ मेरे गुदा में घुस गयी. सारे समय मेरे लंड को वे अपनी हथेली में पकड़कर प्यार से मुठिया रहे थे.
मैं सुख से सिहर उठा. पहले वार किसी ने मेरी गांड चूसी थी. मैं कराह कर बोला. "राजीव चाचा, मैं झड़ जाऊंगा."
"झड़ जा मेरे लाल पर अपने चाचा के मुंह में झड़, पिला दे मुझे तेरा अमृत" कहकर उन्होंने अपना मुंह खोला और एक ही निवाले में पूरा लंड निगल कर गन्ने जैसा चूसने लगे. उनकी जीभ इस तरह से मेरे सुपाड़े पर थिरक रही थी कि मुझसे न रहा गया और मैंने उनके सिर को पकड़कर कस कर अपने पेट पर सटा लिया. फ़िर मैं हचक हचक कर उनके मुंह को चोदने लगा.
एक हिचकी के साथ जब मैं झड़ा तो उनकी आंखें चमकने लगीं. चूस चूस कर ऐसे उन्होंने मेरा वीर्य पिया कि कोई कैंडी हो. आखिर जब मैं मुरझा कर लस्त पड़ गया तो फ़िर मुझे पलटकर मेरी गांड चूसने लगे.
मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था. झड़ गया था पर वासना शांत नहीं हुई थी. मैं उठ बैठा और जिद करने लगा. "चाचाजी, अब मैं आपका लंड चूसूंगा. निकालिये बाहर." मुझे और कुछ कहने का समय न देकर उन्होंने मेरा मुंह फ़िर अपने होंठों से बंद कर दिया और मुझे बांहों में लेकर प्यार करने लगे. "बेटे, मैं तो निहाल हो गया. अब तुझसे जुदा होना मुश्किल है पर तेरी चाची के सामने कुछ कर भी नहीं सकता. उसे बुरा लगेगा."
"नहीं चाचाजी, चाची को सब पता है. वह भी कह रही थी कि जैसे आपने उनका खयाल रखा वैसे ही वे भी
आपका खयाल रखना चहती हैं. जैसे उन्हें बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ी, वैसे ही वे मुझे कह रही थीं कि घर में मेरे जैसा माल है आपके काम का तो क्यों न उसका उपयोग किया जाय." फ़िर मैंने पिछले दो हफ्तों में हुए सब कर्मों की कहानी उन्हें सुनाई.
अपनी पत्नी, भतीजे और पत्नी की भांजी की कहानी सुन वे इस जोर से उत्तेजित हुए कि उनकी सांसें जोर से चलने लगीं. मैंने टटोल कर देखा तो उनका शिश्न लोहे जैसा कड़ा था. मैं उसे देखने की और चूसने की जिद कर बैठा तो वे आखिर बड़ी अनिच्छा से नीचे लेट गये. शायद इस दुविधा में थे कि मैं उनकी साइज़ देखकर घबरा न जाऊ.
उनका लंड अब इस बुरी तरह से जांघिये में तंबू बना कर खड़ा था कि जांघिया निकल ही नहीं रहा था, फंस गया था. आखिर जब बड़ी मुश्किल से मैने उसे निकाला तो टन्न से वह खड़ा होकर झूमने लगा. मैं उसकी तरफ़ देखता ही रह गया. जरूर आठ नौ इंच का होगा. कम से कम ढाई इंच मोटा. किसी आधे किलो के गोरे गोरे गाजर की तरह लग रहा था. सूजी हुई नसें और ऊपर पाव भर के टमाटर जैसा सुपाड़ा ! लंड की जड़ में घनी काली झांटें थी. राजीव चाचा के पूरे चिकने शरीर पर बालों की कमी उन झांटों ने पूरी कर दी थी. नीचे दो बड़ी बड़ी भरी हुई गोटियां लटक रही थीं. मैं तो निहाल हो गया.
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