RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैंने तुरंत अपना तौलिया लपेटा और भाग लिया घर की तरफ और सीधा अपने कमरे में आकर ही रुका तब जाके चैन की साँस आई , कपडे पहन कर मैं रसोई में गया और खाना खाया राणाजी का हुक्का भरा और फिर अपने कमरे में आ गया धीमी आवाज में डेक चलाया और सो गया
अगले दिन जब मेरी आंख खुली तो मुझ से उठा ही नहीं गया पूरा बदन दर्द कर रहा था बुखार सा हो गया था पर अपनी कौन परवाह करता था जैसे तैसे उठा और निकल गया रास्ते में ठीक उसी जगह साइकिल रोकी और छज्जे की तरफ देखा और जैसे दिल खुश सा हो गया उसी लड़की के दीदार जो हुये थे
आँखे आँखों से मिली , उसने धीरे से अपने कानो ओ फिर से हाथ लगा कर इशारे से माफ़ी मांगी तो मैं भी हौले से मुस्कुरा दिया और वो तुरंत अन्दर भाग गयी मैंने अपने सर को झटका और बढ़ गया आगे को कुछ गुनगुनाते हुए पुरे दिन फिर मेरा कही भी मन नहीं लगा सिवाय उस छज्जे वाली के
दोपहर बाद मैं घर आया और थाली में खाना डाला ही था की भाभी ने बताया की राणाजी ने खेतो पर बुलवाया है तो मैंने खाना खाया और फिर चल पड़ा सीधा वहा पर जाकर देखा तो काफी लोग जमा थे मम्मी भी थी मैं भी जाकर खड़ा हो गया
तो पता चला की कल रात जंगली जानवरों के झुण्ड ने काफी उत्पात मचाया था चंदा चाची की पूरी सब्जियों को रौंद डाला था और हमारे भी एक खेत का ऐसा ही हाल था फसल की बर्बादी को देख कर राणाजी भी चिंतित थे प् दिक्कत ये थी की पास ही जंगल था उअर ये खेती वाला इलाका खुला था तो बाड वाली बात बन नहीं सकती थी तो सबने तय किया की सब अपने अपने खेत की हिफाज़त करेंगे
राणाजी ने मुझे कहा की अपने खेतो पर वो नौकर छोड़ देंगे पर चूँकि चंदा चाची अकेली है तो मैं उनकी मदद करूँगा बस अब ये ही रह गया था जिंदगी में पर राणाजी ये नहीं जानते थे की ऐसा कहकर वो मुझे वो मौका दे रहे है जिसकी मुझे शायद जरुरत भी थी
चंदा चाची के पति यानि सुधीर चाचा बापू सा के बहुत ही अच्छे मित्र थे और अरब देश में कमाते थे तो दो साल में दो-तीन बार ही आते थे एक लड़की थी जो मुझे कुछ महीने ही बड़ी थी और डोक्टोरनी की पढाई करती थी जोधपुर में , बाकि समय चाची अकेले ही घर-बार संभालती थी चूँकि बापूसा के मित्र की बात थी तो हम सब भी उनका बहुत ही मान रखते थे और परिवार का सदस्य ही समझते थे
अब बापूसा के आदेश को ना माने इतनी मेरी हिम्मत थी नहीं तो बस मन ही मन कोस लिया खुद को हमेशा की तरफ और कर भी क्या सकते थे इसके सिवा, मैं चाहता था थोडा समय भाभी के साथ बिताने का पर पिछले कुछ दिनों से बस कामो में ऐसा उलझा हुआ था की घर में ही अजनबी से हो गए थे खैर, मैंने राणाजी के साथ खेतो का दूर तक चक्कर लगाया
उनकी बाते गौर से सुनी उसके बाद मैं घर आ गया और भाभी को बताई पर वो कुछ नहीं बोली शाम की चाय मैंने गाने सुनते हुए पी करने को कुछ खास था नहीं पर तभी भाभी आ गयी बाते शुरू हो गयी
“कल डाक खाने से चिट्ठी ले आना ”
“क्या करोगे भाभी ”
“तुम्हारे भैया को लिखनी है ”
“याद आ रही है क्या ,”
“धत्त, बदमाश, काफी दिन हो गए उनकी चिट्ठी तो आई नहीं मैंने सोचा की मैं ही पूछ लेती हु ”
“ले आऊंगा भाभी, वैसे भैया नहीं तो क्या हुआ मैं तो हु आपका ख्याल रखने के लिए ”
“वो तो है , पर फिर भी ...... ”भाभी ने जानबूझ करबात को अधुरा छोड़ दिया फिर बोली “सोच रही हु कुछ दिन मायके हो आऊ ”
“फिर मेरा जी कैसे लगेगा भाभी ”
“तो तुम भी चलो इसी बहाने घूम आना ”
“मांजी, से करती हु बात फिर देखो मंजूरी मिलती है या नहीं ”
भाभी ने कुछ देर और बाते की फिर उन्होंने फिर से चिट्ठी का याद दिलाया और निचे चली गयी मैंने अपना सामान रखा जो चाहिए था उसके बाद मैं खाना खाकर चंदा चाची के पास चला गया चाची ने मुझे बैठने को कहा और करीब दस मिनट में ही वो भी तैयार थी
मैंने सामान लादा साइकिल पर और चाची को आगे बैठने को कहा पर चाची बोली, “पैदल ही चलते है ”
“अब इतनी दूर कौन जायेगा पैदल चाची और वैसे भी आज नहीं गिराऊंगा आपको ”
“वो बात नहीं है खैर, थोडा आगे तक पैदल चलते है फिर बैठ जाउंगी ”
हम चल रहे थे की तभी मुझे वो ही छज्जे वाली दो और लडकियों के साथ आते हुए दिखी मुझे देख का उसने सलीके से अपने दुपट्टे को सर पर ले लिया हमारी आँखे एक बार फिर से आपस में टकराई और पता नहीं क्यों हम दोनों के चेहरे पर ही एक मुस्कान सी आ गयी , बस कुछ सेकंड की वो छोटी सी मुलाकात जो बस ऐसे ही राह में हम मिल गए थे
मैंने हलके से सर को झटकते हुए उसे नमस्ते कहा , उसने भी सर हिलाकर जवाब दिया और बड़े ही कायदे से आगे को बढ़ गयी जैसे की कुछ हुआ ही नहीं हो मैंने धीरे से अपने बालो में हाथ मारा और बस बढ़ गए आगे को मुस्कुराते हुए
“क्या हुआ छोरे, ”
“कुछ ना चाची ”
“तो के अब पैदल ही चलेगा ”
“ना, आओ ”
चाची अपने गांड को मेरी टांगो से रगड़ते हुए चढ़ गयी साइकिल के डंडे पर और मैं बार बार अपने पैरो से उनके चूतडो को रगड़ते हुए चल पड़ा खेतो की ओर मोसम मस्त था एक दम चाची थोड़ी सी पीछे सरक गयी जिस से और मजा आने लगा था मजे मजे में पता नहीं कब खेतो पर पहुच गए हम दोनों साइकिल खड़ी की और चाची ने कमरा खोला
“काफी कबाड़ जमा कर रखा है चाची, ”
“तेरा चाचा आएगा तो करवाउंगी सफाई मेरे बस का नहीं है ”
“सोऊंगा कहा ”
“यहाँ और कहा ” उन्होंने उस कोने की और इशारा करते हुए कहा
“ना, निचे नहीं सोऊंगा ”
“अब इतनी दूर कौन पलंग लायेगा तेरे लिए ”
“मैं अपने कुवे से चारपाई लाता हु ”
मैं कुवे पर गया तो वहा प् तीन लोग पहले से ही तो मैं बस थोड़ी बात चित करके ही वापिस आ गया जबतक आया तो चाची ने बिस्तर सा बिछा दिया था और तभी बिजली चली गयी चिमनी जलाई और लेट गए इस से पहले की नींद आती बरसात की टिप टिप ने ध्यान खींच लिया मैंने अपनी चादर ओढ़ ली और सोने की कोशिश करने लगा चाची मेरे से कुछ दूर ही लेटी हुई थी
चिमनी की रौशनी में मैंने देखा चाची की पीठ मेरी तरफ थी और मेरी निगाह उसकी गांड पर गयी मैंने हलके से अपने लंड को खुजाया और आंख मूंद ली पता नहीं कब नींद आई शायद कुछ ही देर सोया होऊंगा की तभी चाची ने मुझे जगाया और बोली “नीलगायो का झुण्ड है ”
“मैंने पास पड़ा लट्ठ उठाया और उन्निन्दा ही भागा बाहर की और दिमाग से ये बात निकल ही गयी थी की बाहर तो मेह पड़ रहा है पर अब क्या फायदा अब तो भीग गया , मैं लट्ठ लिए भागा और नीलगायो को खदेड़ कर ही दम लिया मैंने देखा की हमारे कुवे पर कोई हलचल नहीं थी साले सब सोये पड़े थे ”
जब तक मैं आया हद से जायदा भीग चूका था अन्दर आते ही मैंने कपडे उतारे और जल्दी ही मैं बस गीले कच्छे में खड़ा था .................... एक तो बुखार से परेशां और अब भीगा हुआ क्या करू .....
लगभग कांपते हुए मैं बिस्तर के पास खड़ा था अब समस्या ये थी की कपडे और थे नहीं मेरे पास और कच्छा उतराना भी जरुरी था चंदा चाची उठी और मेरे कपड़ो को निचोड़ कर सुखाया और बोली “चादर लपेट ले जल्दी से”
मैंने चिमनी को फुक मारी और फिर कच्छे को उतार दिया और चादर लपेट ली और बिस्तर पर बैठ गया पर अभी समस्या कहा सुलझी थी बल्कि बढ़ गयी थी क्योंकि चादर तो मैंने लपेट ली पर अब ओढूंगा क्या ठण्ड तो लग ही रही थी पर कुछ देर मैं ऐसे ही लेता रहा
“क्या हुआ नींद नहीं आ रही क्या ”
“ठण्ड लग रही है चाची ”
“एक काम कर मेरी चादर में आ जा ” जैसे ही चाची नी ये शब्द बोले मैं तुरंत चाची की चादर में सरक गया मेरा हाथ जैसे ही चाची के हाथ से टकराया “तुझे तो बुखार है छोरे ”
“हां, कल से है थोडा ”
चाची ने मेरा हाथ अपने पेट पर रख लिया और थोड सा मुझ से सत गयी “सो जा ” जल्दी ही चाची के बदन की गर्मी मुझे मिलने लगी तो आराम मिला करीब आधे घंटे बाद मैंने पाया की मैं चाची के पीछे एक दम चिपका हुआ हु और में चादर खुली हुई थी मतलब मैं पूरा नंगा चाची के बदन से चिपका हुआ था और मेरा लंड जो की ताना हुआ था चाची की चूतडो से लगा हुआ था
मेरा हाथ चाची के सुकोमल पेट पर था मैंने हलके से अपने हाथ को पेट पर घुमाया तो मेरी उंगलिया चाची की नाभि से टकरा गयी मैंने हौले से नाभि को कुरेदा तो मेरे लंड में उत्तेजना और बढ़ने लगी मैं थोडा सा और चिपक गया चाची से चाची की गरम सांसे चादर के वातावरण को और गर्मी दे रही थी मै जैसे बहता जा रहा था किसी ने सिखाया नहीं था पर जैसे मुझे पता था की अब क्या होगा क्या करना है
मुझे खुद पता नहीं चला बेखुदी में कब मेरा हाथ चाची की चूची पहुच गया मैंने हलके से चाची की चूची को दबाया तो मेरे बदन में झटके लगने लगे और उत्तेजना वश मैंने थोडा जोर से दबा दिया तो चाची ने झुरझुरी सी लगी मैंने देखा जाग तो नहीं गयी परन्तु वो सो रही थी तो मैं धीरे धीरे चुचियो को दबाता रहा इधर मेरे लंड का हाल बहुत बुरा हो रहा था
मेरी हिमत कुछ बढ़ सी गयी थी मैंने हौले से चाची के गाल को चूमा उफ्फ्फ कितना नरम गाल था वो और तभी चाची ने करवट ली और अपना मुह मेरी तरफ कर लिया तो मैं भी सीधा होकर लेट गया कुछ मिनट ऐसे ही गुजरे फिर चाची मुझसे चिअक गयी और सो गयी , उत्तेजना भरे माहौल में कब मेरी आँख लग गयी मुझे फिर पता नहीं चला
सुबह जाग हुई तो देखा की मैं अकेलाही हु मैंने चादर लपेटी और बाहर आया तो चाची ने आग जला रखी थी और बोली “ले कपडे पहन ले ज्यादा तो नहीं सूखे पर पहन लेगा ” मैंने अन्दर आके कपडे पहने और आंच के पास बैठ गया बाहर सब कुछ खिला खिला सा लगता था दिन बस निकला ही था
“डॉक्टर, को दिखा आइयो ”
“जी ”
चाची वही रुक गयी मैं सीधा डॉक्टर के घर गया और दवाई ली फिर अपने घर गया फिर अपने घर गया तैयार हुआ और नाहा धोकर निकल गया पढने के लिए रस्ते में छजे पर नजर मारी पर कोई नहीं था तो आगे हो लिए अपन भी दोपहर में कुछ ही देर थी मैं मास्टर जी से पानी पीने की आज्ञा लेकर बाहर आया तो देखा की वो छज्जे वाली लड़की टंकी के पास ही खड़ी थी
मैं लगभग दौड़ते हुए वहा गया एक नजर आसपास डाली और फिर हमने एक दुसरे को देखा “आप यहाँ पढ़ती है ”
“जी ”उसने नजरे झुकाए हुए कहा उफ़ ये नजाकत मियन तो मर ही मिटा
“कब से ”मैंने अपनी मुर्खता दिखाई
“हमेशा से ” वो बोली
“पर मैंने आपको कभी नहीं देखा ”
“आप पढाई करने आते है या हमें देखने ”
इस से पहले मैं कुछ बोलता वो मुड़ी और चल अपनी कक्षा की और मैं देखता रहा की किस कक्षा में जाएगी लड़की विज्ञानं संकाय में थी आज पहली बार खुद को कोसा की काश पढाई पे ध्यान दिया होता तो हम आज कला में ना होते पर दुःख इस बात का था की वो भी हामरे साथ ही थी फिर नजर क्यों ना पड़ी पर कर क्या सकते थे सिवाय अपनी मुर्खता के आलावा
लौट ते समय डाक खाने का चक्कर लगाया और फिर घर आके सो गया सोया ऐसा की फिर भाभी ने ही उठाया “उठो, अभी इतना सो लोगे तो रात को क्या करोगे ”
“मैं उठा भाभी ने मुझे चाय दी और मेरे पास बैठ गयी , मैंने चाय की चुस्की ली और बोला “आज आप बहुत खुबसूरत लग रही है ” भाभी हल्का सा शर्मा गयी
“आजकल कुछ ज्यादा ही तारीफे हो रही है भाभी की ”
“आप हो ही इतनी प्यारी की बस तारीफ करने को ही जी चाहता है ”
“चलो अब उठो मैं कमरे में झाड़ू निकाल देती हु ”
भाभी सफाई करने लगी और मैंने पास पड़े रेडियो को चालू किया “ये आकशवाणी का जोधपुर केंद्र है और आप सुन रहे है श्रोताओ की फरमाइश दोस्तों इस प्रोग्राम में हम अपने उन श्रोताओ की पसंद के गीत बजाते है जो दूर दराज से हमे पत्रों के माध्यम से अपनी फरमयिशे भेजते है तो आज का पहला गाना फिलम विजयपथ का राहो में उनसे मुलाकात हो गयी जिसकी फरमाईश की है आयत ने जो गाँव ............... से है ”
एक पल के लिए मैं और भाभी दोनों ही चौंक गए क्योंकि हमारे गाँव का नाम था और गाना चलने लगा
“अपने गाँव का नाम लिया न ”
“हाँ, भाभी ”
“तू जानता है आयत को ”
“”नहीं भाभी “
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