Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:32 PM,
#8
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
साँसे कुछ बागी सी थी कुछ मौसम मनचला था और हम तो थे ही आवारा मदमस्त मलंग मैं घर के बाहर बने उस चबुतरे पर बैठ गया और बस उसके बारे में ही सोचने लगा उसका भोला सा चेहरा मेरी आँखों के सामने आ रहा था दिल कह रहा था की काश वो मेरी आँखों के सामने आ जाये तो कुछ चैन मिल जाये 



मैं सोच रहा था की अबकी बार जब भी उस से मिलूँगा तो पक्का बात करनी है चाहे कुछ भी जुगाड़ करना पड़े हलकी सी हवा च रही थी तो मैंने चादर को कस कर ओढ़ लिया और बैठा रहा जो भी थी वो मुझे बहुत अच्छी लगती थी सादगी उसकी मुझे मार ही गयी थी कानो में छोटे से झुमके हलके गुलाबी होंठ और ठोड़ी पर काला तिल अगर मैं कोई कवी होता तो उसके ऊपर पूरा काव्य लिख डालता पर यहाँ तो मैंने इतना कुछ सोच लिया था और असल में ठीक से बात भी नहीं हो पाई थी पर उसने जिस अंदाज में कहा था की वो जुम्मे को पीर साहब की अंजर पर जाती है तो कही ना कही लग रहा था की उसके मन में भी कुछ तो है 



“ला ला लालाल्ल्ल लाला ला ला लाला ” बस ऐसे हु गुनगुनाते हुए मैंने दिल को थोड़ी तस्सल्ली दी और रुख किया चंदा चाची के घर की तरफ 



“तू, यहाँ ”


“खेत पर नहीं चलना क्या चाची ”


“जाउंगी अभी थोड़ी देर में पर ”


“चलने को आया हु ” 



“पर तेरी हालत ”


“अब मैं ठीक हु चाची ”


“थोड़ी देर रुक बस ”


करीब पंद्रह मिनट बाद हम दोनों हाथो में लाठी और लालटेन लेकर पैदल ही चल दिए जल्दी ही गाँव पीछे रह गया और कचचा रास्ता शुरू हो गया चाची मुझसे थोडा सा आगे चल रही थी मेरी निगाह चाची की बलखाती कमर और मतवाली गांड पर थी जी कर रहा था छु लू उसके चूतडो को पर अभी शायद और कुछ देर लगनी थी 



रास्ता करीब आधा रह गया था तभी चाची बोली “तू चल आगे मैं आती हु ”


क्या हुआ चाची ”


“कहा ना तू चल ”


मैं कुछ कदम आगे बढ़ गया वो दो पल खड़ी रही फिर चाची ने अपने घाघरे को ऊपर कमर तक उठाया लालटेन की रौशनी में मैंने उसकी चिकनी जांघो को चमकते हुए देखा उसने अपनी उंगलिया कच्छी में फंसाई और धीरे से उसको घुटनों तक किया खेतो के बीच कच्चे रस्ते पर ऐसा हाहाकारी नजारा उफ्फ्फ्फ़


इर अहिस्ता से वो निचे बैठ गयी, surrrrrrrrrrrrrr सुर्र्र्रर्र्र्र पेशाब की तेज आवाज जैसे मेरे कानो को बेध गयी थी उसके गोरे चूतडो को मैं नजरे टेढ़ी किये देखता रहा वो मूतती रही मैं हद से ज्यादा उत्तेजित हो गया था उस पल मेरा लंड उस पल कुछ चाहता था तो बूस इतना की चाची की चूत में घुसना 
पर उसने भी आज ठेका ही ले लिया था मुझे तडपाने का और वो कामयाब भी हो गयी थी अपने काम में 



“मैंने कहा था ना की आगे चल पर तू कभी बात नहीं मानता है ना ”


“चाची, आगे कैसे चलू आपके बिना अब तो आपका साथ ही करना पड़ेगा ”


“कैसा लगा ”


“क्या ”


“वो ही जो तू देख रहा था ”


“मैं कुछ नहीं देख रहा था ”


“अब मुझसे झूठ मत बोल तू चल बता ”


“अच्छा लगा, आप बहुत सुन्दर हो चाची ”


“झूठी तारीफे कर रहा है चाची की ”


“मैं तो जो महसूस किया वो बोल दिया चाची अब चाहे आप मानो या न मानो सची में आपसे सुन्दर कोई नहीं है ”


“अब ऐसा क्या देख लिया तूने मुझमे ये तो तू ही जाने पर आजकल तेरा ये बहुत खड़ा रहता है मैं देख रही हु ” चाची ने मेरे लंड की तरफ इशारा करते हुए कहा 



“क्या करू चाची मैं खुद परेशान हु इस से पर पता नहीं कैसे दूर होगी ये परेशानी ”


“हम्म परेशानी तो दूर करनी पड़ेगी 

पर पहले जरा एक चक्कर लगा के देख की कोई जानवर आस पास तो नहीं ” 

बातो बातो में हम कब खेतो पर आ गए थे पता नहीं नहीं चला था , चाची ने एक गहरी मुस्कान दी मुझे और मैं अपनी लाठी लिए खेतो की दूसरी और चल पड़ा ये सोचते हुए की आज कुछ भी करके चाची को चोद ही दूंगा मैंने एक नजर अपने कुवे पर डाली पर सब शांत था या तो राणाजी के आदमी अभी आये नहीं थे या सो गए थे 



परली पार मुझे जंगली जानवरों का झुन्ड दिखा तो मैं उस और हो लिया उनको हांकते हुए उनका पीछा करते हुए मैं थोड़ी आगे तक आ गया जो हमारा इलाका नहीं था नदी के उस पार के खेत खलिहान किसी और के थे और फिर आगे शुरू हो जाता था रेत वाला इलाका बीच में कोई एक आधा पेड़ दिख जाये तो अलग नहीं तो बस रेत के टिब्बे कितनी अजीब बात थी ना की पास नदी होने के बावजूद ये इलाका नहीं पनप पाया था 



खैर इन सब में करीब आधा घंटा ख़राब हो गया मैं आया तो देखा की बिजली गुल थी कमरे में रौशनी थी लालटेन की चाची बोली “कहा रह गया था मुझे चिंता हो रही थी ”


“परली पार तक हांक आया हु, अब पूरी रात इधर ना फटकेंगे ”


“अच्छा किया ”


मैंने दरवाजे को अन्दर से कुण्डी मारी और चाची के पास लेट गया कुछ देर हम लेटे रहे फिर मैंने धीरे से अपना हाथ चाची के पेट पर रख दिया और सहलाने लगा उसकी नाभि में ऊँगली करने लगा चाची कसमसाने लगी मैं उसके और करीब हो गया 



“क्या कर रहा है नींद नहीं आ रही क्या ”


“नींद कैसे आएगी चाची भूख जो लगी है ”


“खाना खाके नहीं आया क्या अभी यहाँ कुछ नहीं है खाने पिने का ”


“खाने का नहीं पर पिने का तो है चाची ”


“क्या मतलब ”


“मतलब ये की मुझे दूध पीना है वो ही दूध जो दिन में मैं नहीं पी पाया था ” कह कर मैंने अपना हाथ चाची की चूची पर रख दिया और हल्का सा मसल दिया

“तू मेरी जिंदगी है तू ही मेरी पहली खवाहिश तू ही आखिरी है तू....... मेरी जिंदगी है हम्म्म्म हुम्मुम्म्म्मु ” बेहद धीमी आवाज में उस कमरे में संगीत बज रहा था आवाज बस इतनी की महसूस भर ही कर पाए सामने वाली खिड़की जो खुली हुई थी उसमे से बहती हुई ठंडी हवा उसके खुले बालो से छेड़खानी कर रही थी 



वो कमरे के बीचो बीच रखी टेबल-कुर्सी पर बैठी थी हाथो में पेन था और पास एक कॉपी थी अपने चेहरे पर बार बार आ रही बालो की उस लट को उसने फिर से एक बार पीछे किया और सोचने लगी उन सब हालात के बारे में जो पिछले कुछ दिनों में उसके साथ हुए थे अचानक वो उठी और खिड़की के पास जाके खड़ी हो गयी पता नहीं उसके होंठो पर एक मुस्कान सी थी अपनी ही बेखुदी में खोयी थी वो 



पर कौन था वो जिसके खयालो में वो थी कौन सी बात थी की उसके होंठो से वो मुस्कराहट हट ही नहीं रही थी जबकि कुछ देर पहले ही वो गुस्सा थी उसे वो छोटी छोटी बाते याद आ रही थी जो उन दोनों के बीच हुई थी कैसे जब पानी की टंकी पर उसने धीरे से उसकी उंगलियों को छू भर दिया था कैसे कांप गयी थी वो ऊपर से निचे तक जैसे किसी ने ठंडी बर्फ उड़ेल दी हो उस पर 



शाम को कितनी बार ही वो जाके छज्जे पर जाकर गली में देखती थी बार बार वो उस दुपट्टे को देखती थी उसे अपने सीने से लगाती थी उसे पता नहीं क्या हो रहा था सच तो तह की वो अब अपनी रही ही कहा थी उसकी धडकनों की तेजी कुछ जोर से बढ़ गयी थी बार बार एक ही चेहरा उसकी आँखों के सामने आता था और बस वो तड़प सी जाती थी 



जब रहा नहीं गया तो बिस्तर पर लेट गयी पर उफ्फ्फ ये करवटे बदले भी तो कितनी बदले आँखों से नींद ने जैसे बगावत सी कर दी थी उसने थोडा पानी पिया कुछ बुँदे बस उसके होंठो पर ही रह गयी जैसे चूम लेना चाहती हो जब रहा नहीं गया तो अपने हर उस ख्याल को उस कॉपी में लिखने लगी न जाने कितनी रात तक वो जागती रही बल्कि उसके लिए तो अब जैसे ये नियम सा बन गया था 
“मुझे दूध पीना है चाची ” मैंने उसके उभारो को दबाते हुए कहा 



“उम्म्म, ये दूध बड़ा महंगा है कुंदन , कीमत चूका पायेगा ”


“कितनी भी कीमत हो चाची पर आज ये दूध मुझे पीना ही है ” मैंने धीरे से चाची को अपनी बाहों में ले लिया उसके जिस्म से आती खुशबु मुझे पागल करने लगी मेरे रोम रोम में उत्तेजना भरने लगी मैं हहलके हलके कांप रहा था चाची भी मुझसे चिपकने लगी 



उसके गरम सांसे मेरे सीने पर लग रही थी हलकी सी ठण्ड में जबरदस्त गर्मी का अहसास मेरे चारो ओर था मैं धीरे धीरे चाची की चुचियो को दबा रहा था मेरा हाथ उसकी चुचियो की घाटी तक जा रहा था मेरा घुटना चाची की टांगो के बीच दवाब डाले हुए थे चाची ने उत्त्जेना वश मेरा मुह अपनी छातियो पर रख दिया और उसे दबाने लगी 



मेरे होंठो ने उसकी खाल को छुआ तो पुरे बदन में करंट दौड़ सा गया “पुच ” मैं अहिस्ता से उसके सीने के ऊपर वाले हिस्से कर छुआ मैं पिघलने लगा मैंने चाची के ब्लाउज के बटन खोलने शुरू किय और जल्दी ही उसकी ब्रा के अन्दर कैद चुचिया मेरी आँखों के सामने थी मैंने ब्रा के ऊपर से से ही चुचियो को मसल दिया 



“”आह चाची ने धीरे से एक आह भरी और मुझे अपनी बाँहों में भर लिया हम दोनों एक दुसरे से चिपक गए थे मैंने धीरे से अपने होंठ खोले और चाची के गाल को अपने मुह में भर लिया हलके से काटा उसे दांतों से तो वो मुझ से और लिपट गयी 



पर तभी बाहर से अचानक सियारों के रोने की बहुत तेज आवाज आने लगी, तो झटके से मैं और चाची एक दुसरे से अलग हो गए 



“सियारों का रोना है ” चाची ने कहा 



“सियार पर अपनी तरफ सियार है ही कहा, ”


“जंगल है पास तो आ सकते है वैसे मैंने भी काफी टाइम से अपनी तरफ सियार देखे नहीं ”


“मैं देखता हु जरा ” मैंने लालटेन ली और बाहर आया मेरे पीछे चाची आई 



“ये तो पूरा झुण्ड है , अभी भगाता हु उनको ”


“नहीं, पूरा झुण्ड है कही पलट गए तो तुम्हे घायल ना कर दे ”


“अभी देखता हु उनको ”


हाथ में लालटेन और दुसरे में लाठी लिए मैं सियारों की तरफ बढ़ने लगा चाँद की रौशनी में चमकती उनकी आँखे मुझे डरा रही थी मैंने मजबूती से पकड़ा अपनी लाठी को पर जैसे जैसे मैं झुण्ड के करीब जा रहा था वो पीछे होने लगे और भागे जंगल की और मैं उनके पीछे दौड़ा 



जैसे मेरे पैर अपने आप मुझे खीच रहे हो उस तरफ जबकि कायदे से मुझे एक दुरी के बाद रुक जाना चाहिए था जब मैं रुका तो मैंने देखा की खारी बावड़ी के पास खड़ा हु जंगल के किनारे पर ये बावड़ी बनी हुई थी किसी ज़माने में आबाद रही होगी पर कई सालो से ऐसे ही पड़ी थी वीरान सी होती होगी कभी रौनक पर मैंने नहीं देखि थी 



दिन के उजाले में मैं कई बार आया था इस तरफ पर रात को कभी नहीं और पता नहीं क्यों थोडा डर सा लगने लगा ऊपर से रात का टाइम वो सियारों का झुण्ड ना जाने कहा गुम हो गया था पता नहीं क्या हवा थोड़ी तेज सी हो गयी थी पर पास वो बेरी का पेड़ थोडा सा हिलने सा लगा था 



मुझे सच में बहुत डर सा लगने लगा था हमारे खेत वहा से काफी दूर थे मैंने एक गहरी साँस ली और वापिस मुड़ा वहा से मैं लगभग दौड़ सा ही पड़ा था और तभी मेरी लालटेन बुझ गयी मेरे चारो तरफ घुप्प अँधेरा सा हो गया मेरी धड़कन इतनी बढ़ गयी की साँस अपने आप फुल गयी 



क्या ये किसी चीज़ का असर था या बस रात के अँधेरे और सुनसान इलाके का खौफ मैंने मेरी कनपटी पर बहती पसीने को महसूस किया मेरा गला ऐसे खुश्क हो गया जैसे की मैं बरसो से प्यासा हु मेरी प्यास बहुत बढ़ गयी मैंने हिम्मत बटोरी और मैं दौड़ने लगा अपने इलाके की ओर
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