RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
पूजा- अब क्या
मैं- सोने दो इंतज़ार करते है जब जागेंगे तभी कुछ बात बने
करीब दो घंटे बाद उस बुजुर्ग की आँख खुली उसने लेटे हुए ही हमारी तरफ देखा उसकी आँखों में जैसे कई सवाल थे, मैंने राम राम की और बस देखते रहा उनको
बाबा- कितने बरस बीत गए कोई ना आया ,तुम मुसाफिर कैसे इस ओर आ निकले
मैं- तक़दीर ले आयी बाबा
बाबा- तक़दीर के तो खेल ही निराले होवे है राजा को रँक बनादे, और भिखारी को राजा
मैं- एक आस लेकर आया हु बाबा
बाबा- मुझ फ़क़ीर के पास कुछ नहीं देने को
मैं- आशीर्वाद तो मिलेगा ना
बाबा- पर तुम्हारा प्रयोजन क्या है आने को
मैं- पता नहीं बाबा, बस चला आया
बाबा- बिन गरज के तो लोग भगवन को भी याद ना करते कोई ना कोई तो बात जरूर होगी वार्ना मुझ मरणसन्न के पास कोई क्यों आएगा जब सब छोड़ गए
मैं- अतीत के कुछ पन्नो की वजह से मेरा आज परेशां है बाबा, उलझन लेकर आया हु सुलझा दो
बाबा- कहा से आये हो
मैं- अनपरा गाँव से
बाबा- झूठ सरासर झूठ, यहाँ आस लेकर आने वाला केवल या तो अर्जुनगढ़ का होगा या देवगढ़ का
मैं- क्या फर्क पड़ता है बाबा , अरदास लेकर आया हु खाली हाथ ना जाऊंगा
बाबा ने पास पड़ी लाठी पकड़ी और उसका सहारा लेकर उठ गए ,चलते चलते झोपडी से बाहर आये
बाबा- कुछ शेष नहीं अब , न यहाँ न वहां, तुम जिस रास्ते आये हो लौट जाओ
मैं- बाबा मेरे लिए इतिहास जानना बहुत जरुरी है
बाबा- और मेरे लिए दुःख दायीं
मैं- जानता हूं बाबा और मैं क्षमाप्रार्थी हु
बाबा- तुम्हारी माफ़ी से क्या होगा क्या सब ठीक हो जायेगा क्या वक़्त का पहिया फिर जायेगा
मैं- कम से कम आने वाले वक़्त का तो सलीका हो जायेगा बाबा
बाबा- बाते बहुत ऊँची करते हो पर तुम्हारे रक्त से एक जानी पहचानी बदबू आ रही है
मैं- आपसे क्या छुपा है बाबा
बाबा- सत्य कहा बेटा पर मेरे पास कुछ नहीं बताने को
पूजा- बाबा बड़ी आस लेकर आये है खाली न भेजिए
बाबा- बेटी, तू तो सामर्थ्यवान है , तेरा तेज सब कह रहा है फिर मुझसे कैसी आस
पूजा- आस अपनों से ही की जाती है बाबा, बड़े बुजुर्ग तो उस छायादार पेड़ की तरह होते है जो अपनी पीढ़ी को अपने तले सहेज लेते है, माना लाख गलतिया हुई है पर फिर भी हम आपकी सन्तान ही तो है ,बाबा समय का पहिया घूम रहा है कुछ चीज़ों को सही करने का वक़्त आ रहा है
बाबा- अपनी माँ के जैसे बात करती है तूझे देखते ही जान गया था तू पद्मिनी की बेटी है
पूजा- तो क्या पद्मिनी की बेटी आपके दर से खाली हाथ जायेगी
बाबा- नहीं मेरी बच्ची नहीं पर तुम किस विषय में आये हो यहाँ
पूजा- अधूरे रिश्तो की दास्तान पूरी करने
बाबा- डोर टूट गयी है बेटी
पूजा- जानती हूं बाबा
मैं- बाबा आप पद्मिनी को कैसे जानते है
बाबा- मैं गुरु हु उसका
बाबा की बात सुनकर मैं और पूजा एक दूसरे को देखने लगे
बाबा- बड़ी लगन थी उसको बड़ा मना करता था मैं की ये तेरे काम का नही पर एक बार जो ठान ली वो ठान ली
पूजा- और क्या जानते है आप माँ के बारे में
बाबा- यही की उसने जीवन में एक गलती की, तंतर मंत्रो को तो खूब परखा उसने पर इंसानो को परखने की कला न सीख पायी
पूजा- बाबा आखिर ये क्या भूल भुलैया है जिसमे हम सब की जिंदगियां आपस में उलझ गयी है
बाबा- बेटी, ये सब दो लोगो के झूठे अहंकार और शुद्ध रक्त की बेबुनियादी अकड़ का नतीजा है, ये इतिहास है दो दोस्तों की अटूट मित्रता का , ये दास्ताँ है एक राखी के बंधन को दिए वचन को निभाने की ये दास्तान है एक अधूरी रह गयी मोहब्बत की, और उन नफरतो की जो एक तूफ़ान बन कर सब तबाह कर गयी
मैं- कुछ समझा नहीं बाबा
बाबा ने एक गहरी सांस ली और फिर पास रखे गिलास से कुछ घूंट पानी पिया फिर बोले- कोई नहीं समझ पाया इस कहानी को, हज़ारो अनुमान है पर सच कोई नहीं समझ पाया सब गए अपने सीने में उस अनकहे राज़ को लिए और एक जो बचा है उसने अपने दिल को पत्थर का कर लिया है
मैं- कौन बाबा
बाबा- ठाकुर हुकुम सिंह, ऐसी कोई चाबी नहीं जो उसके कलेजे में छुपे राज़ को खोल सके
मैं- पर ये डेरा, इसकी क्या कहानी है और ये कैसे बर्बाद हुआ
बाबा- बरसो पहले एक तांडव हुआ था एक सैलाब आया था, जो अपने साथ सब बहा ले गया
पूजा- कैसा सैलाब बाबा
बाबा- हुकुम सिंह ने एक वचन लिया था डेरे से पर डेरा वो वचन निभा नहीं सका और उनके क्रोध की भीषण अग्नि ने सब तबाह कर दिया
मैं- कैसा वचन
बाबा- हिफाज़त करने का
पूजा- किसकी हिफाज़त बाबा
बाबा- थी कोई अनमोल चीज़ बेटी
पूजा- पर क्या
बाबा- था कुछ जो हुकुम सिंह के लिए बहुत महत्वपूर्ण था
मैं- क्या आप जानते है कि आखिर क्या वजह थी की दो दोस्तों को लाल मंदिर की परीक्षा देनी पड़ी
बाबा- क्या नाम बताया तुमने अपना
मैं- जी कुंदन
बाबा- कुंदन, सब नियति का खेल है सब उसकी लीला है हम सब तो कठपुतलियां है उसकी जैसे वो चाहे वैसे खेल करे
मैं- बाबा, पद्मिनी का खारी बावड़ी से क्या सम्बन्ध है
बाबा- कुछ नहीं जहाँ तक मैं जानता हूं
मैं- और लाल मंदिर से
बाबा- जो हम सबका है
मैं- जी कुछ समझा नहीं
बाबा- लाल मंदिर इस कहानी का सबसे महत्वपूर्ण किरदार है कुछ भी न होता अगर लाल मंदिर ना होता
पूजा- बाबा मेरे मन में एक प्रश्न है
बाबा- अवश्य होगा परन्तु उत्तर तुम स्वयं भी जानती हो बेटी
पूजा- मैं बस इतना जानती हूं की क्या ये संभव है बाबा
बाबा- तुम स्वयं इसका प्रमाण हो बेटी तो संशय क्यों
मैं- किस विषय में बात कर रहे है आप
बाबा- प्रेम के विषय में कुंदन, अगर इस धरा पर कुछ है तो बस प्रेम , प्रेम ही मूल है प्रेम ही शुरुआत और प्रेम ही अंत
पूजा- पर उन्होंने कैसे किया ये
बाबा- प्रेम पुत्री प्रेम , परन्तु अब मुझे लगता है कि तुम दोनों को चलना चाहिए , सांझ होने को है
मैं- पर बाबा
बाबा- जितना मैं जानता था बता चुका हूं
मैं- बाबा एक बात नही बतायी आपने
बाबा- क्या
मैं- मेनका, मेनका को टाल गए आप
जैसे ही बाबा ने मेनका सुना, उनके चेहरे के भाव बदलने लगे
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