RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
ठीक उसी वक़्त, देवगढ़ का मंदिर
आज की रात बड़ी आस वाली रात थी सभी सुहागनें अपना सोलह श्रृंगार किये हुए हाथो में पूजा की थाली लिए और दिल में ढेरों अरमान लिए मंगल गा रही थी इस पूजा के बाद बस उन्हें चाँद के दीदार करके अपना व्रत खोलना था
और पूजा भी किसी बिजली की तरह लहराते हुए अपने दिल में कुंदन के प्रेम को समाये उसके लिए व्रत किये जा रही थी मंदिर की ओर तभी उसकी नजर पास ही एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठी एक लड़की पर पड़ी न जाने क्यों पूजा के कदम रूक गए और वो उस लड़की की तरफ बढ़ चली
पूजा- अरे सुनो, तुम यहाँ ऐसे उदास क्यों बैठी हो
छज्जेवाली ने पूजा को ऊपर से नीचे तक देखा और बोली- आपसे मतलब
पूजा- मतलब तो कुछ नहीं, पर आज जब सब स्त्रियां ऐसे सजी संवरी है यहाँ, तो तुम्हे कुछ उदास सा देख कर रुक गयी, कुछ परेशानी है क्या
छज्जेवाली- नहीं कोई परेशानी नहीं, और आपको क्यों बताऊ, वैसे भी ये करवा चौथ तो सुहागनों के लिए है मैं तो कुंवारी हु मुझे क्या लेना देना
पूजा उसके पास बैठते हुए- तन से कुंवारी हो मन से नहीं, मन तो किसी और को सौंप ही चुकी हो
छज्जेवाली ने घूर कर पूजा की तरफ देखा
पूजा- तुम्हारे होंठ झूठ बोल सकते है पर आँखे नहीं ,तो मामला मोहब्बत का है, है ना
छज्जेवाली- अब क्या फर्क पड़ता है
पूजा- अरे फर्क क्यों नहीं पड़ता, फर्क पड़ता है क्योंकि ये तुम्हारी ज़िन्दगी है और प्यार अगर है तो वो जरूर मिलेगा बस कोशिश करो,
छज्जेवाली- ये बस किताबी बाते है ज़िन्दगी से इनका कोई वास्ता नहीं
पूजा- लगता है बड़ी गहरी चोट खायी हो प्रेम में, पर अगर प्यार सच्चा है तो तुम हैरान- परेशान क्यो हो
छज्जेवाली- क्योंकि प्रेम बस किसी को पाना ही नहीं है प्रेम तो एक साधना है ये मेरी चाहत है की मैं उनको चाहू, ये मंदिर देख रही हो ये कान्हा का है और मेरी नियति मीरा की चाहत है
पूजा- बाते तो बहुत अच्छी करते हो पर कान्हा के साथ हमेशा राधिका पूजी है
छज्जेवाली- क्या फर्क पड़ता है राधा होब्या मीरा दोनों अपनी जगह सही है, दोनों का अपना भाग है दोनों का अपना वजूद है
पूजा- न जाने क्यों तुम्हे देख एक अपनापन सा लगता है तुम्हारी इन कजरारी आँखों में एक आस का बादल है इन होंठो पर एक कहानी है और मैं समझ रही हु की तुम्हे चाहने वाले की भी कोई मज़बूरी रही होगी वार्ना इतनी प्यारी गुड़िया को कोई दुःख क्यों देगा
छज्जेवाली- नहीं कोई मजबुरी नहीं, बस हालात ही कुछ ऐसे हो गए एक तरफ फ़र्ज़ था एक तरफ मोहब्बत और मैं उनके हाथ कैसे कमजोर कर सकती थी
पूजा- हम्म, मैं समझती हु कई बार परिस्तिथियों पर चाह कर भी हमारा नियंत्रण नहीं रहता पर अपने हक़ को छोड़ना नहीं चाहिए था तुम्हे
छज्जेवाली- वो भी मुझे चाहते है उनके मन के किसी कोने में मैं हमेशा हु पर उन्होंने दोस्ती का दामन थामा क्योंकि प्रेम के कई रूप होते हों पर दोस्ती का महत्व अलग होता है, और अगर वो मुझे चुन लेते तो दोस्ती और फ़र्ज़ से मुह मोड़ने का कलंक लगता जो मुझे मंजूर नहीं
पूजा- वाह, अच्छा लगा आजके ज़माने में भी ऐसे लोग है जो ज़िन्दगी को ऐसे सोचते है ऐसे जीते है, बुरा न मानो तो हमे नाम बताओगी उस इंसान का जिसके तुम जैसे हमदर्द, हमसफ़र है
छज्जेवाली- कुंदन, कुंदन ठाकुर
जैसे ही छज्जेवाली ने ने कहा पूजा के हाथ काँप गए चेहरे का रंग उड़ गया पर उसने अपने आप को संभाल लिया एक गहरी सांस ली और बोली- ये थाली पकड़ो जरा
पूजा ने अपनी थाली छज्जेवाली के हाथ में दे दी और अपनी केसरिया चुनरिया उसे ओढा के बोली- तुम बहुत प्यारी हो, आज के दिन तुम्हे ऐसे ही नहीं रहना चाहिए जाओ जा के पूजा करो , तुम्हे तुम्हारा प्रेम जरूर मिलेगा
छज्जेवाली- पर ये तो आपका है मैं कैसे
पूजा- क्या फर्क पड़ता है, मुझसे ज्यादा इस पर अब तुम्हारा हक़ है और फ़िर राधिका हो या मीरा मोहन तो सबके ही है बस इतना कहूँगी की तुम्हे तुम्हारी प्रीत जरूर मिलेगी जाओ अब जल्दी जाओ चाँद निकलने ही वाला है
छज्जेवाली की आँखों से आंसू निकल पड़े गला भर गया वो कुछ कहना चाहती तो पर पूजा ने उसके होंठो पर ऊँगली रख दी और उसे अपने सीने से लगा लिया और पूजा की आँख से कुछ बुँदे टपक गयी
पूजा- जाओ खुशिया तुम्हारा इंतज़ार कर रही है
पूजा बस उसे मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते हुए देखती रही और फिर मुस्कुराते हुए ही वहां से मुड गयी आँखों के पानी को पोंछने की जरा भी कोशिश न की उसने पर दिल का बोझ कुछ हल्का सा लगने लगा था
ठीक उसी समय अर्जुनगढ़ की हवेली
मैं अपनी गोदी में मेनका की लाश लिए बैठा था और तभी दरवाजा खुला और सामने राणाजी खड़े थे जो एक मात्र लैंप जल रहा था वो तेजी से फड़फड़ाने लगा और अगले ही पल राणाजी की चीख ने जैसे हवेली के जर्रे जर्रे को हिला दिया
"मेनका, मेंकाआआआआआता" राणाजी चीखते हुए हमारी तरफ दौड़े और जिस ताकत से उन्होंने मुझे मेनका से दूर कर दिया जैसे किसी आंधी में एक तिनका इतनी तेजी से मैं ऊपर जाती सीढियो से टकराया की आँखों के आगे अँधेरा छ गया
पर अपनी होश खोटी आँखों से मैंने देखा की राणाजी ने मेनका की लाश को अपने आगोश में भर लिया और उनके करूण रुदन से जैसे आज सब तबाह हो जाना था
" उठो मेनका बात करो हमसे देखो हम आ गए तुम्हारा हुकुम सिंह आ गया उठो मेनका उठो" राणाजी उसके गालो को थपथपाते हुए बोले पर मेनका जा चुकी थी उनसे दूर हम सब से बहुत दूर इतनी दूर की अब कभी वापिस नहीं आ सकती थी कभी नहीं
तभी राणाजी के हाथ मेनका के ज़ख्म को छू गए और उनकी आँखों में खून उतर आया जबड़े भींच गए
राणाजी- नहीं, तुम मुझे छोड़ कर नहीं जा सकती हर मुश्किल से मुश्किल घड़ी में मेरा साथ दिया तो अब क्यों ,क्यों गयी ,क्यों अकेला कर गयी मुझे क्यों
किसी बच्चे की तरह बिलखते हुए देखा मैंने अपने पिता को, उनके विलाप के संताप से मेरा कालेजा भी फटने लगा था अपने सर की चोट को संभालते हुए मैं लड़खड़ाते कदमो से उनके पास गया और धीरे से बोला - बापू सा
वो मेरी तरफ पलटे और अगले ही पल उनकी लात मेरे सीने से टकराई मैं हवा में उछलता हुआ दरवाजे से जा टकराया
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