RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी- कितना झूठ बोलेंगे , कितने गर्त में और गिरेंगे आज जब बाज़ी हाथ से निकलते देखी तो ये मज़बूरी का चोला ओढ़ लिया, राणा हुकुम सिंघ जो बस कुछ देर पहले अपने गुरुर में अपना ही खून बहाने को आतुर था अब देखो , इतनी जल्दी तो कोई रंडी भी ग्राहक नहीं बदलती जितनी जल्दी आप एक मगरूर से मजलूम हो गए,
आपको क्या लगा इन चिकनी चुपड़ी बातो में आ जायेंगे हम नहीं सरकार नहीं, जरा अपनी आँखे खोलिये और देखिये कुंदन को आप बता सकते है कि क्या कसूर है इसका नहीं आप नहीं बता सकते मैं बताती हु,
आपने कभी अपनी ज़िंदगी में परिवार, रिश्तो नातो को कभी तवज्जो नहीं दी आपने केवल लोगो को खिलोने से ज्यादा इज्जत नहीं दी दिल किया तो खेला दिल किया तो नया खिलौना ले लिया ,
माना बहुत प्रेम किया मेनका से, पर फिर क्यों नहीं उसको लाये समाज के आगे बीवी बनाकर सारी उम्र वो परदे के पीछे रही रखैल बन कर अब ऐसे मत देखिये आज जस्सी रती भर भी नहीं डरेगी आपसे,
ये कैसा प्यार था मेनका से जो एक बंजारन को हवेली की रानी न बना सके, अजी छोड़िये बात तो तब शुरू हुई थी जब भरी पंचायत में आपके घमण्ड को आपके बेटे ने नहीं माना, कितनी मुश्किलें पैदा की आपने इसके लिए जीना हराम कर दिया,
पर दाद देनी पड़ेगी इसकी, अपनी मेहनत से उस जमीन पर फसल लगा दी जहा आप एक दाना नहीं बो पाये थे असल में आपकी आँखों में जलन देखती थी मैं कुंदन के लिए, और होती भी क्यों न बरसो बाद राणाजी को कोई टक्कर दे रहा था और जब अपना ही खून बगावत पर हो तो मजा कुछ और ही होता है ना,
खैर कुंदन की बात बाद में पहले आपकी और मेरी बात हो जाये, आपकी सारी बाते सच है हो सकता है की आपको ये पता हो की पद्मिनी ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है और जब आपको पता चला की जिस खजाने के लिए आपने इतने पापड़ बेले थे उस तक पहुचने का रास्ता मैं हु तो जुगत लगा कर मुझे अपने घर ले आये,
पर किया क्या मेरे साथ, जब इतने दिन मेरी तरफ आँख उठा कर न देखा तो फिर क्यों सोच बदल गयी, ये सब तभी क्यों शुरू हुआ जब कुंदन ने आपके खिलाफ सर उठाना शुरू किया तभी क्यों
मैं आँखे फाड़े बस उनकी बाते सुन रहा था
भाभी- कुंदन, तुम हमेशा पूछते थे ना की मैं राणाजी और तुम्हारे बीच हमेशा इनका चुनाव क्यों करती थी बार बार तुम जिस मज़बूरी को पूछते थे आज मैं बताती हु की वो मज़बूरी क्या थी, वो मज़बूरी तुम थे बोलते बोलते भाभी को आवाज रुंध गयी
भाभी- हां कुंदन इस इंसान को मालूम था कि मैं किस हद तक तुमसे जुडी हु इस घर में माँ सा के बाद बस तुम ही तो थे जो मेरे अपने थे अपनी खुंदक मिटाने के लिए इन्होंने मेरा इस्तेमाल किया और इस डर से की कही ये तुम्हे ना मरवा दे मै सोती रही इनके साथ
भाभी की आँखों से गिरते आंसू मेरे कलेजे को चीर रहे थे मुझे आज सच में इतना गुस्सा था कि राणाजी के दो टुकड़े कर दू, पर भाभी ने मुझे रोका
भाभी- कुंदन इस इंसान की सबसे बड़ी सजा ये ही होगी की ये जिए ,
मैं- आपको एक बार तो मुझे बताना चाहिए था मैं पागलो के तरह हर बार पूछता रहा पर आप चुप रही मेरे लिए ये बलिदान करने की जरूरत नहीं थी नहीं थी
भाभी- जरूरत थी, कुंदन क्योंकि जो इंसान जब अपनी बेटी ले साथ इतनी खौफनाक हरकत कर सकता था उसके लिए मेनका की बेटी ला जिस्म क्या था कुछ भी नहीं, जिस इंसान को पता ही नहीं की रिश्ते होते क्या है उसके लिए हर औरत बस एक जिस्म है साधन है अपनी आग बुझाने का और फिर जिस्म तो जिस्म होता है चाहे जायज बेटी का हो या फिर नाजायज बेटी का
मैं- राणाजी घिन्न आती है मुझे जो आपकी वजह से मैं इस दुनिया में आया, काश मैं दिखा पाता किस हद तक दर्द उबल रहा है मेरे दिल में, दिल तो करता है अभी जान से मार दू पर जस्सी भाभी, कहते कहते मेरे शब्द लड़खड़ा गए की अब जस्सी को क्या काहू
भाभी या बहन साला रिश्ते नातो का कोई मोल ही ना बचा था
मैं- जस्सी, ये आपका गुनहगार है आप इसे सजा देंगी
राणाजी किसी बूत की तरह सीढियो पर बैठे थे शांत किसी सागर की तरह जैसे कुछ विचार कर रहे हो भाभी ने एक नजर उनकी ओर देखा और फिर मेरी बाहं पकड़ते हुए मुझे अपने साथ दरवाजे की तरफ ले चली जल्दी ही वहाँ बस मेनका की लाश और राणाजी ही रह गए
मेरी चोटो का दर्द न जाने कहा गुम हो गया था पर दिल आज बुरी तरह से जल रहा था जस्सी गाड़ी चला रही थी जल्दी ही अर्जुनगढ़ को पार करते हुए हम कच्चे रस्ते पर उतर गए मेरे मन में हज़ार विचार थे हज़ार नयी मुश्किलें आ जो खड़ी थी
मैं- तो आप सब जानती थी, इसीलिए आप मुझे हमेशा रोक देती थी
जस्सी- इस बारे में हम कल बात करेंगे
मैं- ठीक है अभी मुझे खेत पर छोड़ दो
जस्सी- पागल हुए हो क्या, इस हालत में नहीं छोड़ सकती तुम्हे, तुम मेरे साथ चल रहे हो
मैं- नहीं, अभी नहीं आप मुझे बस वहाँ छोड़ दो
जस्सी- इतने जिद्दी क्यों हो तुम
मैं- इसके बारे में हम कल बात करेंगे
कुछ देर बाद बड़े अनमने ढंग से जस्सी ने मुझे खेत में बने कमरे में छोड़ा और न चाहते हुए भी वहां से चली गयी , मैंने जब ये तस्सली कर ली की जस्सी चली गयी है तो मैं लड़खड़ाते हुए उस तरफ चल दिया जहा पूजा मेरा इंतज़ार कर रही थी
मैं बहुत थक गया था अपने दर्द की परवाह नहीं थी मुझे पर सीने में धड़कता मेरा मासूम दिल कुछ कह रहा था जिसे सुनने की हिम्मत अब नहीं थी मेरी आँखों में जो हसरत थी अपनी जीजी को देखने की वो दम तोड़ चुकी थी , मुझे उनके जिन्दा होने की उम्मीद नहीं थी,
पर जस्सी का ख्याल मुझे चैन नहीं लेने दे रहा था वो भाभी नहीं बहन थी मेरी, इस अकाट्य सत्य ने मेरे हर विचार को बदल दिया था और मुझे अपनी नजरो में इतना गिरा दिया था की अब उठ पाना नामुमकिन था
आँखों में कुछ आंसू लिए मैं उस तरफ चले जा रहा था जहाँ पूजा मुझे मिलनी थी ,मैं उसी पेड़ के पास पहुंचा जहाँ मेरी पहली मुलाकात पूजा से हुई थी उसी पेड़ के चबूतरे पर बैठी मेरा इंतज़ार कर रही थी वो
पूजा- कुंदन, बहुत देर लगाई आने में
मैं- आ गया मेरी जान आ गया अब तू देर ना कर सबसे पहले अपना व्रत खोल
पूजा- हां, कुंदन
उसने एक थाली मेरी तरफ की मैंने गिलास से उसे पानी पिलाया कुछ घूंट पीने के बाद वो बोली- बस कुंदन
मैंने गिलास रख दिया और उसका हाथ अपने हाथ में लिया
मैं- पूजा एक बात बतानी थी तुझे
वो- हां कुंदन बता
मैं उसे पूरी बात बताना चाहता था पर मेरे शब्द लड़खड़ा रहे थे पूजा समझ गयी और बोली- क्या हुआ सब ठीक तो है
मैं-कुछ देर तेरी गोद में सर रख कर लेट जाऊ
पूजा- हां
मैं उसकी गोद में लेट गया वो मेरे सर पर हाथ फेरने लगी तभी उसका हाथ मेरे ज़ख्म पर लगा
पूजा- ये गीला सा क्या है
मैं- चोट लगी है खून है
पूजा- किसकी मजाल मेरे कुंदन पर हाथ उठा सके
मैं- शांत हो जा , मैं बहुत थका हुआ हूं मेरी जान थोड़ी देर तेरे आँचल तले सुकून लेने दे
फिर वो कुछ न बोली बस मेरे सर को सहलाती रही जब बहुत देर हुई तो बोली- चल घर चल
उसने गाड़ी स्टार्ट की और हम उसके घर आ गए जब उसने बल्ब की रौशनी में मेरा हाल देखा तो एक बार फिर उसकी आँखों में गुस्सा तैरने लगा कई देर तक वो चिल्लाती रही झल्लाती रही और मैंने फिर उसे पूरी बात बताई
बहुत ध्यान से उसने पूरी बात सुनी और बोली- तेरे पिता और भाभी दोनों ही बहुत बड़ा खेल खेल रहे है दोनों का व्यवहार एक सा है वैसे तो हमेशा आक्रामक रहते है पर मौका मिलते ही भावनात्मक फायदा लेने से नहीं चूकते,
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