Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार
05-18-2019, 01:14 PM,
#89
RE: Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार
मैंने बड़ी मुश्किल से अपना सर हिला कर उसे गांड मारने के लिए प्रोत्साहित किया। अक्कू ने अपना लंड बाहर निकाला और 
उसकी घबराहट की सिसकी से मैं भी घबरा गयी। अक्कू को मेरी गांड में लंड घुसाते हुए लंड पर चोट तो नहीं लग गयी.

मैंने सुबकते हुए मुश्किल से फुसफुसा कर पूछा ," अक्कू, तुम्हारा लंड तो ठीक है ?"

"दीदी, आपकी गांड से खून निकल रहा है। मैं क्या करुँ ?" अक्कू की आवाज़ की घबराहट में मेरे लिए प्यार और मेरी 
हिफाज़त की फ़िक्र थी। 

"अक्कू मम्मी के भी गांड से खून निकला होगा पर डैडी ने तो उसका ज़िक्र भी नहीं किया। तुम मेरी गांड डैडी की तरह मारो। 

मम्मी की तरह मेरी गांड भी कुछ देर में ठीक हो जायेगी, " मेरा अक्कू को दिया आश्वासन पर खुद मुझे उतना भरोसा नहीं 
था। 

अक्कू ने मेरे कांपते चूतड़ों को कस कर पकड़ कर अपना लंड डैडी की नकल करते हुए बेदर्दी से मेरी गांड में एक धक्के के 
बाद दुसरे धक्का मारते हुए फिर से जड़ तक ठूंस दिया। मैं चीख उठी और मेरी सुबकियां और भी ज़ोर से कमरे में गूंजने लगीं। 

पर इस बार मेरे छोटे भैया ने अच्छे बच्चे की तरह मेरे निर्देशों का पालन करते हुए अपना लंड जल्दी से बाहर निकाल कर पूरी 
ताकत से मेरी गांड में वापस घुसा दिया। 

अक्कू ने मेरी गांड मारनी शुरू की तो बिना रुके उसने अपने लंड को मेरी तड़पती फटी हुए गांड में अंदर बाहर करने लगा। 

मेरी चीखें बहुत देर बाद मद्धिम हो गयी पर मेरे सुबकियां तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। 

अक्कू का लंड मेरी जलती दर्द भरी गांड में तूफ़ान की तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था। मुझे दर्द से सुबकते हुए भी अपने नन्हे 
भाई पर अभिमान आ रहा था कि कितनी जल्दी उसने डैडी की तरह मेरी गांड मारने की कला की दक्षता दिखाने में सफल हो 
गया था। 

दर्द और पीड़ा से मेरे माथे, ऊपर के होंठ पर पसीना आ गया था। 
अक्कू ने मेरी गांड मारने की रफ़्तार को बिलकुल धीमा नहीं होने दिया। मैंने अब सुबकना बंद कर दिया था। मुझे अभी 
तक गांड से उस आनंद का आभास नहीं हो रहा था जैसे अक्कू की उँगलियों से होने लगा था। फिर भी मेरी गांड में अब
दर्द बर्दाश्त होने लगा था। मुझे पहले दर्द और फिर अक्कू की आनंद भरी सिस्कारियों ने इतना तल्लीन कर लिया था कि 
समय का कोई अंदाज़ ही नहीं रहा। पर मुझे थोडा अंदाज़ा था कि अक्कू मुझे एक घंटे से चोद रहा था। 

"दीदी मेरे लंड से पहले की तरह का पानी निकलने वाला है ," अक्कू ने दांत किसकिसा कर कहा। 

"अक्कू तुम झड़ने वाले हो। जैसे मम्मे और डैडी झड़े थे, और तुम स्नानगृह में झड़े थे ," मुझे गांड मरवाते हुए भी बड़ी 
बहन के छोटे भाई की शिक्षा के उत्तरदायित्व का पूरा ख़याल था। 

अक्कू के लंड ने गरम द्रव्य की फ़ुहार मेरी गांड में खोल दी। पहले तो मैंने हर बौछार को गिना पर अक्कू रुकने का नाम 
ही नहीं ले रहा था और मैं गिनती भूल गयी। 

अक्कू ने हाँफते हुए मुझे अपनी बाँहों में जकड लिया , " दीदी आप भी झड़ गयीं ?"

मैं शुरू के दर्द से आने की स्थिति में नहीं थी पर मुझे न जाने कैसे समझ आ गया था कि अक्कू को यह सुन कर दुख होगा 

, "क्या तुम बहाने ढूंढ रहे हो और अपनी बहन की गाड़ न मारने के ? यदि मैं आ गयी तो तुम मेरी गांड मारना बंद कर 
दोगे ?"

अक्कू ने मेरी पसीने से भीगी पीठ को प्यार से चूम कर कहा ," दीदी आपकी गांड मारना तो मुझे इतना अच्छा लगा कि
मैं बता ही नहीं सकता। देखए मेरा लंड अभी भी पूरा खड़ा है। यदि आप थकी नहीं हो तो मैं दुबारा गांड मारना शुरू कर दूं ?"

नेकी और पूछ पूछ। मैंने खुशी से लपक कर कहा ," अक्कू तुम मेरी गांड जितनी देर तक और जितनी बार मारना चाहो
मारो। मैं तो चाहूंगी कि तुम रोज़ मेरी गांड मारो और मैं तुम्हारा लंड भी चूसूंगी। "

"दीदी, आप मुझे अपनी चूत और गांड भी चूसने देंगीं ना ?" अक्कू ने जल्दी से आश्वासन मांगा। 

"बिलकुल मेरे भोले भैया ," मेरी छोटी से हंसी निकल गयी और एक क्षण बाद ही मेरी चीख। बात करते हुए अक्कू ने अपने लंड निकाल कर मेरी गांड मारने की तैयारी कर ली थी और दो तीन खुन्कार धक्कों से 
अपना लंड मेरी गांड में ठूंस दिया। 

इस बार मेरी चीख में दर्द के साथ विचित्र सा आनंद भी शामिल था ,"हाय अक्कू तुम्हारा लंड मेरी गांड में जाते हुए बहुत
अच्छा लग रहा है। भैया ज़ोर से अपनी बड़ी बहन की गांड मारो। 

अक्कू ने अपनी बहन के निर्देश और निवेदन का अपने पूर्ण शक्ती से प्रतुत्तर दिया। अक्कू ने मेरी गांड का मर्दन भीषण
धक्कों से करना शुरू कर दिया। दर्द और आनंद के मिश्रित लहर मेरे शरीर में बिजली की तरह कौंध गयी। मेरी 
सिस्कारियां मध्यम से तीव्र हो गयीं। 

"अक्कू मेरे प्यारे भैया मेरी गांड और ज़ोर से मारो। अक्कू अब तो बहुत ही अच्छा लग रहा है, " मैं मम्मी के तरह 
कामाग्नि से जल रही थी। हमारे अविकसित शरीर अब शारीरिक प्रेम की भूख से परिचित हो चले थे। थोड़े से ही अनुभव से 
हम दोनों बहन-भाई उस भूख को भुजाने की तरतीब भी समझ गए थे। 
अक्कू का लंड मेरी गांड में सटासट अंदर बाहर हो रहा था। उसके लंड पर मेरे कुंवारी गांड की पहली चुदाई का खून, 
उसका वीर्य और मेरे गांड के रस का मोटा सा लेप चढ़ चूका था। कमरे में मेरी गांड की मनोहर महक फ़ैल गयी थी। 
हम दोनों उस सुगंध से और भी उत्तेजित हो गए। 



"दीदी, दीदी, मुझे आपकी गांड मारना बहुत अच्छ .......... हुन ," अक्कू ने हचक कर अपना लंड निर्मम प्रहार से मेरी 
गांड में जड़ तक डालते हुए कहा।
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