RE: Kamvasna मजा पहली होली का, ससुराल में
मैं उससे अब एक दम सट के खडी थी. सिर्फ धोती में उसकी एक मसल्स साफ साफ दिख रही थीं, पूरी मर्दानगी की मूरत हो जैसे.
लेकिन वो अब भी झिझक रहा था.
मैने बचा हुआ पेंट उसकी छाती पे लगा के, उसके निपल्स को कस के पिंच कर दिया और चिढाते हुए बोली, “ देवरानी तो बहोत तारीफ काती है तुम्हारी. तो सिर्फ लगवाओगे ही या लगाओगे भी.
• भौजी, कहां लगाउं...” अब पहली बार मुस्करा के मेरी देह की ओर देखता वो बोला.
मैने भी अपनी देह की ओर देखा, सच में पहले तो मेरी सास, ननद ऐर फिर जो कुछ नन्दोई और ननद ने मिल के लगाया था, फिर सुनील और दोस्तों ने जिस तरह कीचड़ में रगड़ा था उसके बाद चंपा भाभी के यहां...मेरी देह का कोयी हिस्सा बचा नहीं था.
एक मिनट रुको...मैं बोली और फिर पेड के पीछे जा के मैने सब कुछ उतार के सिर्फ साडी लपेट ली, अपने स्तनों को कस के उसी में बांध के...गों और पेंट की झोली, कुये के पास रख दी और कुये पे जा के बैठ के बोली, रोज तो तुम्हारे निकाले पानी से नहाती थी. आज अपने हाथ से पानी निकालो और मुझे नहलाओ भी भी धुलाओ भी. थोड़ी ही देर में पानी की धार से मेरा सारा रंग वंघ धुल गया. पतली गुलाबी साडी अच्छी तरह देह से चिपक गयी थी. गदराये जोबन के उभार, यहां तक की मेरे इरेक्ट निपल्स एक दम साफ साफ झलक रहे थे. दोनो जांघे फैला के मैं बोली, अरे देवर जी जरा यहां भी तो डालो, साडी पाने आप सरक के मेरी जांघों के उपरी हिस्से तक सरक गयी थी. पूरे डोल भर पानी उसने सीधे वहीं डाला और अब मेरी चूत की फांक तक झलक रही थी. जवान मर्द और वो
भी इतना तगडा...धोती के अंदर अब उसका भी खूटा तन गया था.
* क्यों हो गयी न अब डालने के लायक, सीना उभार कर मैने पूछा...” और उस का । इंतजार किये बिना रंग उसके चेहरे छाती हर जगह लगाने लगी. अब वो भी जोश में आ गया था. कस कस के मेरे गाल पे चेहरे पे और जो भी रंग उस के देह पे मैं लगाती वो रगड़ रगड़ के मेरी देह पे...साडी के उपर से ही कस कस के मेरे रसीले जोबन पे भी...
लेकिन अभी भी उसका हाथ मेरी साड़ी के अंदर नहीं जा रहा था.
“अरे सारी होली बाहर ही खेल लोगे तुम दोनों अंदर ले आओ भौजी को.” अंदर से निकल के कुसुमा बोली. और वो मुझे गोद में उठा के अंदर आंगन में ले आया . कुसुमा ने दरवाजा बंद अक्र दिया. उसके बाद तो...
पूरे आंगन में रंग बरसने लगा,हर पेड टेसू का हो गया. बस लग रहा था की सारा गांव नगर छोड के फागुन यहीं आ गया हो. कुसुमा भी हमारे साथ, कभी मेरी तरफ से कभी उसकी. उसने अपने मरद को ललकारा, हे अगर सच्चे मर्द हो तो आज भौजी को पूरी ताकत दिखा दो. मैं भी बोली हां देवर जरा मैं भी देखी तो मेरी देवरानी सही तारीफ कर ती थी या..अगर अपने बाप के होतो ...और मैने उसकी धोती खींच दी. मैने अब तक जितने देखे थे सबसे ज्यादा लंबा और मोटा...फिर वो मेरी साडी क्यों छोड़ता. उसे मैने अपने उपर खींच के कहा देवर जरा आज फागुन में भाभी को इस पिचकारी का रंग तो बरसा के दिखाओ. पल भर में वो मेरे अंदर था. चुदाई और होली साथ साथ चल रही थी. कुसुमा ने कहा जरा हम लोगों का रंग तो देख लो और एक घड़े में गोबर और कीचड़ के घोल से बना ( और भी ‘ पता नहीं क्या क्या' पडा था) डाल दिया. मैने उसके मर्द को सामने कर दिया. क्या तबड तोड चुदाइ कर रहा था. मस्त हो कर मेरी चूत भी कस कस के उसके लंड को भींच रही थी. अब जितनी भी लंड से मैं चुदी थी उनसे ये २० नहीं २२ रहा होगा. जैसे ही वो झड़ के अलग हुआ मिअने कुसुमा को धर दबोचा और अरंग लगाने के साथ निहुर कर उस एपटक के सीधे उसकी चूत कस कस के चाटने लगी और बोली देखें इस ने कितना मेरा देवर का माल घोंटा है. जैसे दो पहलवान अखाड़े में लड़ रहे हों हम दोनो कस कस के एक दूसरे की चूचीयां रगड़ रहे रंघ गोबर और कीचड़ लगा रहे थे. उधर मौका देख के वो पीछे से ही कुतिआ की तरह मुझे चोदने लगा. मैं उसे कस के हुचुक हुचुक कर कुसुमा की चूत अपनी जीभ से चोद रही थी. वो नीचे से चिल्लाइ ये तेरी भौजी छिनाल ऐसे नहीं मानेगी, हुमच के अपना लंड इस की गांड में पेल दो. मैं दर गयी पर बोली और क्या अकेले तुम्ही देवर से गांड मराने का मजा लोगी. लेकिन जैसे ही उसने गांड में मूसल पेला, दिन में तारे दिख गये. मैं भी हार मानने वाली नहीं थी. मेरी चूत खाली हो गयी थी. मैं उसे कुसुमा की झांटो भरी बुर पे रगडनी लगी. कुछ ही देर में हम लोग सिक्स्टी नाइण की पोज में ते । लेकिन वो घचाघच मेरी गांड मारे जा रहा था. हम दोनो दो दो बार झड़ चुके थे. उसने जैसे गांड से झड़ने के बाड लंड निकाला सीधे मैने मुंह में गडप कर लिया. वो लाख मना करता रहा लेकिन चाट चूट के ही मैने छोडा.
तीन बार मेरी बुर चुदी.
मैं उठने की हालत में नहीं थी. किसी तरह साडी लपेटी, ब्लाउज देह पे टांगा और घर को लौटी. शाम को फिर सूखी होली, अबीर और गुलाल की और इस बार भी इनके दोस्त, देवर कइयों ने नम्बर लगाया. और मेरा भाई बेचारा ( हालांखि उसने भी सिरफ छोटी ननद की ही नहीं बल्की दो तीन और की सीळ तोडी)मेरी ननदों ने मिल के जबरन साडी ब्लाउज पहना पूरा श्रिंगार करके लडकी बनाया और मेरे सामने ही निहुरा के...मैं सोच रही थी आज दिन भर..शायद ही कोई लडका मर्द बचा हो जिसने मेरे जोबन का रस ना लिया. सारे के सारे नदीदे ललचाते रहते थे.. होली का मौका हो नयी भौजाई हो...लेकिन मैने भी अपनी ओर से छोडा थोडे ही सबके कपडे फाडै पाजामें में हाथ डाल के नाप जोख की और अंगुली किये बिना छोड़ा नहीं कम से कम चार बार मेरी गांड मारी गयी, ७-८ बार मैने बुर में लिया होगा और मुंह में लिया वो बोनस. ननदों के साथ जो मजा लिया वो अलग. मेरी बडी ननद और जेठानी अपने बारे में बता रही थी...
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