RE: Kamukta Story सौतेला बाप
सौतेला बाप--37
काव्या को गहरी सोच मे डूबा देखकर विक्की बोला : "इतना सोचोगी तो मेरा पप्पू बूड़ा हो जाएगा तेरे इंतजार मे...''
और इतना कहते हुए उसने अपने खड़े हुए लंड को आगे बढ़कर उसके हाथ से छुआ दिया..और इतना काफ़ी था काव्या की तंद्रा भंग करने के लिए..उसे तो ऐसे लगा की किसी ने कोई गर्म चीज़ छुआ दी है...उसके हाथ की उंगलियाँ सुलग उठी..और उन पर लगा हुआ विक्की के लंड का प्रीकम किसी तेज़ाब की तरह जलाता हुआ महसूस हुआ ..
और जैसे बचपन से उसने सीखा था, हल्की जलन होने पर उस हिस्से को मुँह मे डालकर चूस लो , वही उसने उस वक़्त भी किया, बिना सोचे समझे उसने अपने हाथ की दोनो उंगलियाँ अपने रसीले होंठों के बीच खिसका दी और उन्हे ज़ोर से चूसने लगी..
विक्की तो हैरानी से उसे देखता ही रह गया...और तब काव्या को एहसास हुआ की उसने क्या किया..क्योंकि विक्की के हैरानी भरे चेहरे के साथ -2 उसको उसके प्रीकम का भी स्वाद अपनी जीभ पर महसूस हुआ..पर अब वो कर भी क्या सकती थी...जब तक वो अपनी उंगलियाँ वापिस बाहर निकालती, उसके स्वाद का असर अंदर तक हो चुका था ..
हल्का खट्टा सा पानी था ..भले ही सिर्फ़ दो बूँद थी वो पर वो उसको अंदर तक झुलसा गयी..
उसके होंठ काँपने लगे...उसकी चूत से पानी की बारिश सी होने लगी पेंटी के अंदर...और उसको विक्की उस समय इतना सेक्सी लगा की उसका मन किया की अभी के अभी उसके लंड को अंदर ले कर जी भर कर चुदवाए..
पर पता नही क्या सोचकर उसने खुद को रोक लिया..चुदना तो वो कब से चाहती थी..पर ऐसे नही...एकदम से विक्की के सामने आत्मसमर्पण करने का मतलब वो पता नही क्या लगाएगा...
और अपनी सेल्फ़ रिस्पेक्ट वो नही खोना चाहती थी...अभी थोड़ी देर पहले जिस एहंकार को उसने फील किया था, उसने फिर से उसके बारे मे सोचा...और खुद को ये एहसास दिलाया की वो ऐसे लंड की भूखी नही है...बल्कि ऐसे लंड उसकी चूत के भूखे हैं..
उसने एकदम से विक्की को धक्का देकर पीछे किया और अपना मुँह घुमा कर दूसरी तरफ कर लिया
काव्या : "ये सब बंद करो....मुझे इसमे अभी कोई इंटेरेस्ट नही है...''
काव्या को ऐसे एकदम से पलटी मारते देखकर विक्की भी मायूस हो गया, उसके एक्सपीरियेन्स के हिसाब से तो ऐसी हालत मे आकर अच्छी से अच्छी लड़की भी सेक्स की आग मे पिघल कर अपना शरीर सौंप देती है...ये पता नही किस मिट्टी की बनी है..
पर विक्की भी जानता था की उसका पलड़ा भारी है...और वो जल्द ही उसके सामने घुटने टेक देगी..
पर अभी के लिए उसने अपने लंड को वापिस उसकी मांद मे धकेल कर जीप लगा ली..और आराम से उसके गद्दे पर पसर गया...जैसे वहीं सोने का प्लान हो उसका..
काव्या अभी तक काँप रही थी...ऐसी हालत तो तब भी नही हुई थी जब उसने अपनी लाइफ का पहला लंड देखा था..यानी दत्त अंकल का..विक्की के जवान लंड ने एकदम से पता नही क्या जादू कर दिया है उसपर की वो अपनी मंज़िल, यानी पहली बार अपने समीर पापा से चुदवाने, से भी भटकने लगी है..
अगर विक्की ने अभी उसकी माँ वाली बात नही बताई होती तो शायद उसका ध्यान सिर्फ़ अभी उसके लंड तक ही रहता..पर अब वो ज़्यादा उस बारे मे ही सोच रही थी..उसके मन मे इसी बात की बहस चल रही थी की क्या वो सही कर रही है..
अब जो भी हो, काव्या ने सोच लिया था की अब वो सबूत इकट्ठा करके रहेगी, ताकि वो भी खुलकर समीर के साथ मज़े ले सके..और बाद मे विक्की के साथ भी..और फिर नितिन के साथ...और फिर दत्त अंकल के साथ...और फिर...और फिर...
ना जाने वो किस-किसके बारे मे सोचती रही.. पर पहले उसकी चूत का उद्घाटन होना भी तो ज़रूरी था..उसके बाद ही तो वो सब होता..
विक्की : "तुम्हारे मन मे जो चल रहा है, मुझे पता है..जैसे तुम्हारी माँ खुलकर मज़े लेना चाहती है, तुम भी लो ना...तुम्हे कौन रोक रहा है...''
काव्या ने अचानक अपना रुख़ बदला , और थोड़े नरम स्वर मे बोली : "देखो...मुझे थोड़ा वक़्त दो..ऐसे...इतनी जल्दी...एकदम से....मुझसे नही होगा...समझो ज़रा...''
उसने इस अदा से ये बात बोली थी की विक्की का दिल घायल सा हो उठा...अभी एक मिनट पहले जहाँ उसके दिल मे सिर्फ़ सेक्स करने की बातें घूम रही थी, एकदम से उसकी जगह वो सब आ गया जब वो स्कूल टाइम मे काव्या के रूप के पीछे पागल सा होकर उसके आस पास फिरता रहता था..उसके दोस्त तो उसे काव्या का मजनूँ कहते थे...फिर उसकी संगत बिगड़ने लगी..वो आवारा लड़को के साथ घूम-घूमकर उनकी तरह ही हो गया..और फिर उसने ना जाने कितनी ही लड़कियो की चूत अलग-2 तरीकों से बजाई थी, इसका अंदाज़ा उसे भी नहीं था..पर काव्या को वो कभी अपने दिल से नही निकाल पाया था..
इसलिए अभी भी जब उसको मौका मिला तो उसकी चूत मारने के लिए किसी कुत्ते की तरहा भागा चला आया..चाहे बाद मे उसे उसकी माँ की सेवा भी करनी पड़ेगी..पर अपनी काव्या के लिए वो कुछ भी करने के लिए तैयार था..
पर अचानक काव्या का ये प्यार वाला रूप देखकर वो सेक्स-वेक्स सब भूल सा गया...और उसके मन मे वही 3 साल पहले वाली प्यार भरी गुदगुदी होने लगी..
वो भी बड़े ही प्यार भरे लहजे मे बोला : "कोई बात नही काव्या...तुम जब चाहो...''
काव्या भी एकदम से उसके बदले हुए व्यवहार को देखकर हैरान हुई..पर फिर ये सोचकर की शायद उसके भोलेपन का जादू चल रहा है उसके उपर, उसने अपनी आगे की योजना उसके सामने रखी
काव्या : "अच्छा सुनो..तुम मेरे साथ एक़्वा वॉटर पार्क चलोगे क्या...''
एक़्वा वॉटर पार्क की बात सुनते ही विक्की एकदम से चौंक गया...क्योंकि उस वॉटर पार्क मे वो अक्सर जाता था...कई बार उसने पानी मे खड़े होकर भी कई लड़कियो की चूत मारी थी...एक तो वो शहर से काफ़ी दूर था और वहाँ की टिकेट भी काफ़ी महँगी थी..इसलिए ज़्यादातर युगल जोड़े ही वहाँ जाकर मज़े लेते थे..क्योंकि इतनी महँगी टिकेट लेकर फेमिली वाले कम ही जाते थे वहाँ..पर काव्या उसके साथ वहाँ क्यो जाना चाहती है...
वो ये पूछने ही वाला था की वो आगे बोली : "और साथ मे मम्मी को भी ले चलेंगे..''
विक्की : "पर मम्मी को क्यो ?"
उसकी समझ मे नही आ रहा था की काव्या के दिमाग़ मे क्या चल रहा है...ये जानते हुए भी की उसकी माँ की नज़र विक्की के उपर है, वो फिर भी उसे साथ मे ले जाना चाहती है...ऐसे में वो तो कुछ कर भी नही पाएगा ...क्योंकि माँ के होते हुए वो कैसे उसकी बेटी से मज़े लेगा...
काव्या : "वो मैं अभी नही बता सकती...अगर तुम चलना चाहते हो तो बताओ...वरना रहने दो...''
ऐसे मौके को वो कभी छोड़ना नही चाहता था...उसने झट से कहा : "अरे नही....ऐसा कुछ नही है...तुम्हारी मर्ज़ी..अगर अपनी माँ को लेकर चलना है तो चलो...''
काव्या मन ही मन मुस्कुरा उठी...अभी वो ज़्यादा बताकर विक्की के दिमाग़ का हलवा नही करना चाहती थी...क्योंकि आख़िर मे जाकर जब विक्की को ये बताना पड़ता की वो अपनी माँ के खिलाफ सबूत इकट्ठा करके,उसे डराएगी, और अपने बाप से चुदवायेगी , तो शायद वो उसका साथ नही दे...क्योंकि वो तो खुद ही काव्या पर अपना पहला हक़ समझ रहा था...इसलिए उसको काफ़ी सोच समझकर ये सब करना था..
विक्की : "पर...तुम्हारी माँ साथ चलने के लिए तैयार होगी क्या...''
काव्या : "उनको मैं मना लूँगी...तुम चिंता मत करो...कल संडे है...मेरी छुट्टी भी है...कल चलते है...ओके ..मैं गाड़ी लेकर आ जाउंगी ...तुम मुझे बैंक रोड पर मिल जाना..ठीक 11 बजे..''
विक्की : " ओके "
और फिर अपने मन मे मीठे गाने गुनगुनता हुआ विक्की वहाँ से वापिस घर की तरफ निकल गया..
थोड़ी ही देर मे उसके कमरे मे रश्मि आई
रश्मि : "अरे काव्या, ये विक्की एकदम से क्यो चला गया...जाते हुए मुझसे मिलकर भी नही गया...''
वो बेड की तरफ देख रही थी...वहाँ की चादर से ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही थी की कुछ हुआ भी था वहाँ या नही...
काव्या : "बस माँ , उसको एक काम याद आ गया...वो चला गया..पर कल मिलने बुलाया है मुझे ...एक़्वा वॉटर पार्क में.''
रश्मि : "वहाँ .....इतनी दूर ....वो तो शहर से बाहर ही पड़ता है...वहाँ क्यो बुलाया है...जो करना है यहीं कर लेता...''
आख़िर की बात पर वो खुद ही झेंप गयी...पर फिर एकदम से बोली : "कुछ खाकर भी नही गया...पता नही क्या सोचेगा..की अपनी जी एफ के घर आया पहली बार, और किसी ने कुछ खिलाया-पिलाया भी नही..''
काव्या (मुस्कुराती हुई) : "तो एक काम करना मम्मी, आप कल खिला देना उसको जो खिलाना है ..क्योंकि आप भी हमारे साथ चल रही है वहाँ ..''
ये सुनते ही रश्मि के पूरे शरीर मे झुरझुरी सी दौड़ गयी...स्वीमिंग पूल मे...विक्की की लगभग नंगी बॉडी ...और वो खुद भी तो स्वीमिंग सूट मे होगी...वाव ...पर साथ मे काव्या भी तो रहेगी...
रश्मि : "नही ..नही ...मैं वहाँ क्या करूँगी ....ऐसे अच्छा थोड़े ही लगता है...''
वो अंदर से तो चाह रही थी वहाँ जाना..पर थोड़ा नाटक करना भी तो बनता ही था ना...
काव्या : "क्या माँ ...आप भी ना...आजकल ये सब कोई नही देखता...और विक्की ने खुद कहा है की मैं आपको साथ लेकर आउ ....शायद वो आपको पटाकर अपनी तरफ करना चाहता है...ताकि बाद मे उसको कोई तकलीफ़ ना हो...''
उसकी ये बात सुनकर रश्मि का चेहरा शर्म से लाल हो उठा...उसने मन मे सोचा की ' बेटी,अभी तू जानती ही क्या है..उसने तो मेरा क्या-2 देख लिया है..और हमारी बात कहाँ तक जा चुकी है...अगर उसने काव्या को पहले चोदने की शर्त ना रखी होती तो वो कब का विक्की के लंड से चुद चुकी होती..
और विक्की के लंड से चुदने का ख़याल आते ही उसका बदन काँपने सा लगा...उसके जहन में फिर से उस दिन वाला द्रिश्य तैर गया जब वो नंगी पुँगी सी होकर पुराने किले मे विक्की से लिपटी खड़ी थी...
अपनी माँ को ऐसे शरमाते देखकर काव्या को काफ़ी मज़ा आ रहा था...
वो बोली : "तो ठीक है माँ ...कल आप चल रही हो..मतलब चल रही हो...ओके ...''
और इतना कहकर वो बाहर निकल गयी...
रश्मि को उसके और विक्की के विचारों मे छोड़कर..
|