non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
06-06-2019, 12:48 PM,
#2
RE: non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
इतने में दीदी ने कमरे में प्रवेश किया और कहा- “होटेल में क्यों भैया? क्या मैं आपकी कुछ नहीं लगती हूँ क्या? होटेल में रहने की कोई जरूरत नहीं है। दो दिन लगे की तीन दिन लगे, तुम मेरे यहाँ ही रुकोगे और खाना पीना भी मेरे यहाँ ही होगा..."
मैंने कहा- “सारी दीदी। अच्छा ठीक है... आपके यहां ही रहूँगा और खाना पीना भी करूंगा। ठीक है ना?”
दीदी ने कहा- हाँ... ठीक है।
मैंने दमऊ से पूछा- अरे बस कितने बजे है?
दमऊ ने कहा- रात को ठीक दस बजे जलेबी चौक से छूटेगी। तू वहीं पे पहुँच जाना। मैं दीदी को लेकर वहां छोड़ दूंगा।
मैं रात के दस बजे वहाँ पहुँचा तो बस खड़ी थी। मैंने दमऊ को फोन किया तो वो बोला की बस एक मिनट में पहँचने ही वाले हैं। वो दोनों आए, हमने अपना लगेज बस के पीछे लगेज बाक्स में रखवा दिया। बस में जैसे ही चढ़े बस चल पड़ी। मैंने देखा की बस खचाखच भरी हुई है।
मैंने कंडक्टर से पूछा- भाई ये एस-1 और एस-2 कहाँ पे है?
कंडक्टर ऊपर स्लीपर दिखाते हुए कहा की साहब ये सीट है।
मैं चौंक गया- “एस-1 और एस-2 एक ही स्लीपर के दो नंबर थे। सीट चौड़ी जरूर थी पर.....” मैंने कंडक्टर से कहा- “भैया... ये तो एक ही सीट है...”
कंडक्टर ने कहा- “भैया... ये दो बाइ दो स्लीपर कोच है यानी एक स्लीपर पे दो जने सोने का..”
मैंने गुस्से में दमऊ को फोन लगाना चाहा तो दीदी ने मना कर दिया और कहा- “भैया जाने दीजीए ना। रात-रात की ही तो बात है चलिए अड्जस्ट कर लेंगे...”
पहले मैंने दीदी को ऊपर चढ़ने के लिए कहा। वह ऊपर चढ़ने लगी तो उनकी गोरी-गोरी जांघों के बीच में से उनकी गुलाबी रंग की पैंटी नजर आने लगी। मैं ना चाहते हुए भी घूर-घूर के पैंटी को देखने लगा। दीदी के चढ़ने के बाद मैं भी ऊपर आ गया। वैसे स्लीपर ज्यादा चौड़ा तो नहीं पर बढ़िया आरामदायक था। दीदी खिड़की की तरफ लेटी और मैं अंदर की तरफ। सर्दियों के दिन थे, मैंने कंबल ले रखा था।
दीदी ने कहा- “भैया... मेरी कंबल तो पीछे लगेज बाक्स में सामान के साथ रह गई..”
मैंने कहा- “कोई बात नहीं दीदी आप ले लो। मैं ऐसे ही...”
दीदी ने बात काटते हुए कहा- “ऐसे ही क्यों? हम दोनों ही इश्तेमाल करेंगे...”
हम दोनों ने एक ही कंबल को ओढ़ लिया। ज्यादा जगह ना होने के कारण हम दोनों के बदन आपस में सटे हुए थे। अभी तक हम दोनों ही पीठ के बल लेटे हुए थे। अभी तक मेरे मन में कोई गंदा खयाल नहीं आया था। आगे रास्ता कुछ ज्यादा ही खराब था। बस हिचकोले खा रही थी।
दीदी डर के मारे मुझसे चिपकी जा रही थी। दीदी ने करवट बदला और एकाएक बस ने भी जोर से हिचकोला खाया तो दीदी मुझसे पूरी तरह चिपक गई।
अमृता- “भैया, मुझे डर लग रहा है...” अब उनका एक पैर मेरे ऊपर था और हाथ मेरे सीने के ऊपर।
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