RE: non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
दीदी- और क्या करती सासूमाँ? मुझसे और बर्दस्त नहीं हो रहा था, और बर्दस्त तो अब भी नहीं हो रहा। मेरा निकलने ही वाला है। बस चम्पा रानी मेरी फुद्दी को चूसती रह। खा ले, पूरा खा ले। सासूमाँ मैं तो गई?
सासूमाँ- मैं भी गई बहूरानी और सासूमाँ की चूत ने भी पानी फेंक ही दिया।
चम्पा- बस... अम्माजी थोड़ी देर और उंगली चलाइए। हाँ हाँ मेरा भी निकला... निकला... ओहह... माँ... गई रे.. और चम्पा रानी भी पलंग के ऊपर ढेर हो गई।
दस मिनट तक तो तीनों को होश ही ना रहा। फिर चम्पा उठकरके अपने कपड़े ठीक करती हुई बोली- अम्माजी, मैं तो जाती हूँ किचेन में खाना बनाने। झरना दीदी भी आने वाली हैं।
सासूमाँ- अरे अभी उसे तीन घंटे पड़े हैं आने में। तू भी रुक ना।
चम्पा- “नहीं अम्माजी... मेरा कोटा पूरा हुआ। आप दोनों सास बहू मस्ती करो... अब मैं खाना बनाती हूँ। ठीक
दीदी- ठीक है चम्पा। पर दरवाजा खोलने से पहले हमें सचेत करते हुए जाना। कहीं ऐसा ना हो जाए कि कोई पड़ोसन आ जाये और हमें ऐसी अवस्था में देख ले।
चम्पा- ठीक है, अम्माजी।
दीदी- हाँ हाँ.. तो अम्माजी, आप भी कोई मजेदार किस्सा सुनाए ना।
सासूमाँ- अरे हाँ... चल बैठ पलंग पर मैं तुझे एक बढ़िया मजेदार किस्सा सुनाती हूँ तेरे ससुर के बारे में।
दीदी- अच्छा, बाबूजी के बारे में?
सासूमाँ- हाँ... तू ठीक से बैठ ना। और अभी उंगली करनी छोड़ फुद्दी में। थोड़ी देर बाद जब मजा आने लगे ना तब उंगली क्या फुद्दी को चाट भी लेना।
दीदी- ठीक है अम्मा जी... आप शुरू हो जायें लेकर लण्ड चूत का नाम।
सासूमाँ- “हाँ... तो सुन... अभी मेरी तेरे बाबूजी के साथ शादी नहीं हुई थी तब की बात है ये। फिर तेरे बाबूजी ने एक दिन बड़े प्यार से मुझे सुनाया था। और इतने सालों के बाद मैं तुझे ये कहानी सुना रही हूँ। बेटी बहुत ही। ध्यान से सुन...”
दीदी- तो क्या बताया बाबूजी ने आपको?
सासूमाँ- ऐसे नहीं बेटी... उन्हीं की जुबानी सुनो, उन्हीं की कहानी। “हमने चंदा किया गोरी मेमसाहब को चोदने
को..."
तेरे बाबूजी, दीनदयाल पहले एक कारखाने में काम किया करते थे। भले ही पढ़े लिखे थे। पर कोई काम ना मिलने तक उसी कारखाने में काम करने की सोच रखे थे। उसकारखाने में पंद्रह सौ कर्मचारी काम करते थे। और सभी की छुट्टी एक साथ शाम को 6:00 बजे के आस-पास होती थी।
दीदी- ऐसे नहीं सासूमाँ... आपके मुँह से अच्छी नहीं लग रही है ये कहानी।
सासूमाँ- तो तेरे बाबूजी को कहाँ से लाऊँ? वो तो बोमय गये हुए हैं, तीन दिन के बाद लौटेंगे। तब सुन लेना, उनका छोटा सा, पतला सा लण्ड पकड़ के, जो अब खड़ा ही नहीं होता।
दीदी- क्या बात करती है सासूमाँ? बाबूजी का लण्ड और पतला सा, छोटा सा? आपसे किसने कहा? उनका तो मोटा और बड़ा है, आपके बेटे के जैसा? और हाथ लगते ही झट से खड़ा हो जाता है।
सासूमाँ- वही तो... यही बात मैं तेरे मुँह से ना जाने कितने दिनों से सुनना चाहती थी बेटी। पर तूने कभी ना कहा। बता सच में तूने अपने बाबूजी से चुदवा लिया है ना?
दीदी- नहीं, मम्मीजी।
सासूमाँ- तब तुझे कैसे पता चला की उनका हाथ में आते ही झट से खड़ा हो जाता है?
दीदी- मैंने कई बार आप दोनों की चुदाई देखी है।
सासूमाँ- ओहो... तो ये बात है, पर तेरा मन करता है उनसे चुदाने को?
दीदी- “सच कहूँ तो सासूमाँ, हाँ..”
सासूमाँ- अरे तो इसमें शर्म की क्या बात है? मैं तेरे पति से चुदवाती हूँ तो तेरा भी हक बनता है उनसे चुदवाने का। अबकी बार उन्हें आने दे। उनसे तुझे चुदवा ही देंगी।
दीदी- लेकिन ऐसे नहीं अम्मा... अंधेरे में ज्यादा मजा आएगा। जब उन्हें मालूम ना होगा की कौन चुदवा रही है।
सासूमाँ- ठीक है, फिर वादा रहा।
* * * * * * * * * *हमने चंदा किया गोरी मेमसाहब को चोदने को
सासूमाँ- अच्छा चल तेरे ससुरजी की पर्सनल डायरी निकालते हैं, और पढ़ते हैं। खूब मजा आएगा।
दीदी- हाँ हाँ.. निकालो डायरी।
सासूमाँ- खोल दे पन्ना डिसेंबर 21 तारीख की।
दीदी- वाह... सासूमाँ, आपको तारीख तक याद है।
सासूमाँ- अरे इतनी धांसू स्टोरी है की क्या बताऊँ? बहू, मेरी फुद्दी तो बिना चुदाए ही पानी छोड़ देती है। हाँ... तो चल तू पढ़।
दीदी ने डायरी के पन्ने खोलकर पढ़ना शुरू किया।
तारीख 21 डिसेंबर।
मैं दीनदयाल इस तारीख को कभी भूल नहीं सकता। हम पंद्रह सौ के कर्मचारी कारखाने में काम करते थे। और रोज शाम को 6:00 बजे छुट्टी मिलती थी। हम लोग अपना-अपना टिफिन बाक्स लेकर जाते थे। याने दोपहर को कारखाने में ही खाना होता था।
एक दिन मेरे एक दोस्त कालिया ने कहा- अरे दीनदयाल, तूने कुछ सुना?
मैं- क्या? भाई कालिया, क्या सुना?
कालिया- अरे अपन कारखाने से घर जाने के टाइम एक बभगलो पड़ता हैं ना रास्ते में। एक गोरी मेमसाहब रहने लगी हैं। कल मैंने देखा, यार बेहोश होते-होते बचा।
मैं- क्यों भाई कालिया, बेहोश होते-होते कैसे बचा? क्यों उसे कोढ़ हो गया है क्या?
कालिया- अरे दीनू भैया, छी... छी... मेरे मूड को खराब क्यों कर रहे हो?
मैं- अच्छा... क्यों बेहोश होते-होते बचा ये तो बता?
कालिया- अरे दीनू भैया, क्या बताऊँ साली गोरी मेमसाहेब इतनी गोरी है की छू लो तो दाग पड़ जाए। आँखें ऐसी की आदमी उसी में डूब जाए, आँखें बड़ी-बड़ी, मुश्कुराहट ऐसी की देखने वाला फिदा हो जाये, चूचियां दोनों जैसे दो पहाड़ हों, बीच में घाटी, कमर एकदम पतली, चलती है तो क्या बताऊँ यारा दोनों कूल्हे आपस में टकराते हैं। तो लगता है सब कुछ भूलकर उसे ही देखता रहूं। यारा, एक बार उसे चोदने मिल जाये। बस... जिंदगी में और कुछ भी ना चाहिए।
मैं- क्या बोलता है कालिया? ऐसी खूबसूरत है वो लड़की?
कालिया- यार, फिल्मी हेरोयिन सब उसके आगे पानी भरें, ऐसी खूबसूरत है वो?
इतने में ही घंटी बजी, और हम फिर से काम पे लग गये। शाम को जब छुट्टी हुई तो कालिया फिर मेरे साथ ही हो लिया। और जब बँगलो के नजदीक पहुँचे तो। हाय... हाय... मैं खुद बेसुध सा रास्ते के ऊपर ही खड़ा रह गया। इतने में किसी ने मुझे झिंझोड़ा और मैं हड़बड़ा गया।
कालिया- “क्यों गुरू? मैंने ठीक कहा था ना...”
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