non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
06-06-2019, 01:11 PM,
#89
RE: non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
बेड के ऊपर मेरे सपनों की रानी, मेरी जाने जाना, हुश्नपरी, जिसकी एक झलक पाने को मैं बेताब था वो पलंग पे बैठी हुई थी। और मेरी तरफ देखकर मुश्कुरा रही थी। उसने मुझे अपनी ओर देखता पाकरके एक आँख हल्के से दबाई और उंगली के इशारे से अपने पास बुलाया। उसने एक चद्दर ओढ़ रखा था। मैं जैसे ही उसके पास पहुँचा। उसने चद्दर को उतार फेंका और कमरे में जैसे भूचाल आ गया। मैं एकटक उसे ही देखने लगा।
* * * * *
इधर कमरे में दीदी और सासूमाँ दोनों ही नंगी होकर ससुरजी याने अपनी कहानी के सुपर हीरो दीनदयाल की स्टोरी पढ़ रहे थे। और जोश में आकर अपनी-अपनी फुद्दी में उंगली करते जा रहे थे।
दीदी- अरे सासूमाँ... आगे भी तो पढ़ो ना... फिर क्या हुआ? ससुरजी उस गोरी मेमसाहेब को चोद पाए की नहीं?
सासूमाँ- अरी बहू, तू आगे पढ़ने देगी तब ना पढ़ेगी। साली जोश में आकर मेरी फुद्दी में उंगली पेले जा रही है। पढ़ने का मन नहीं कर रहा है। बस एक बार मेरी फुद्दी में उंगली कर दे बेटी।
चम्पा कमरे में आते हुए- लाओ अम्माजी, आपकी फुद्दी में उंगली तो क्या मैं आपकी फुद्दी को जीभ से चाट देती हूँ। खाना बन चुका है। अब मैं भी फ्री हूँ।
सासूमाँ- “चम्पा, ये तूने ठीक किया... आ लग जा मेरी फुद्दी में...”
दीदी- पर मेरा क्या होगा सासूमाँ? मेरी फुद्दी का क्या होगा?
चम्पा- अरे भाभी आप चिंता क्यों करती हैं। मैं हूँ ना... अम्माजी का पानी निकलते ही आपकी फुद्दी और मेरी जीभ... बस खुश ना?
दीदी- हाँ.. ये ठीक रहेगा। तब तक मैं उंगली अंदर-बाहर कर देती हैं। सासूमाँ अब तो चूत चाटी भी चालू हो गई अब तो डायरी आगे पढ़ो।
सासूमाँ- हाँ तो सुनो।
दीनदयाल- और मैं उससे लिपट गया।
मेमसाहेब भी मुझसे लिपट गई। और अगले ही पल बोली- “नौजबान जो करना है जल्दी कर लो। इससे पहले की मेरे बदन की गर्माहट से तुम्हारी जवानी पिघल जाए और तुम मेरी फुद्दी को देखते ही अपने लण्ड से पिचकारी छोड़ दो, बिना चोदे ही अपनी लुंगी गीली कर दो। प्लीज... प्लीज मुझे कुछ तो आनंद दे दो। बहुत दिनों से प्यासी हूँ। प्लीज...” और उसने मेरी लुंगी को मेरे बदन से अलग कर दिया।
मैं बचपन से ही बहुत सफाई पसंद हूँ। लण्ड के चारों तरफ झांटों को हर तीसरे चौथे दिन सफाचट करके एकदम चिकना रखता हूँ। और लड़कियां भी मुझे सफाचट बुर वालियां ही पसंद हैं। मेरे लण्ड के सुपाड़े के ऊपर एक काला तिल मेरे लण्ड की खूबसूरती में चार चाँद लगता है। मेमसाहेब की नजर जैसे ही काले तिल से सुसज्जित मेरे सुपाड़े पर पड़ी जो एक पहाड़ी आलू की तरह ही फूल रखा था। तो वो चौंक गई।
मेमसाहेब- कौन हो तुम?
मैं- “मेरा नाम दीनदयाल है...”
मेमसाहेब- कहीं तुम्हारा घर राजनगर में तो नहीं है?
मैं- हाँ... पर आपको कैसे मालूम?
मेमसाहेब- मैं जो पूछ रही हूँ, केवल उसका जवाब दो।
मैं- हाँ... मेरे गाँव का नाम राजनगर ही है।
मेमसाहेब- फिर तो तुम्हारा नाम दीनू उर्फ दीनदयाल होना चाहिए।
मैं- हाँ मेमसाहेब हाँ... पर आपको कैसे मालूम?
मेमसाहेब- “मैंने तो तेरा गधे जैसे लण्ड के आगे आलू जैसे सुपाड़े के ऊपर काले तिल को देखकर तुम्हें पहचान लिया। अब देखना ये है की तुम मुझे पहचान पाते हो या नहीं? चलो, अब मुझे ये तो यकीन हो गया है की तुम मुझे मझधार में छोड़कर नहीं जाओगे। मुझे अब ये पता है की तुम्हारा मस्ताना लण्ड मेरी फुद्दी की बर्षों की प्यास जरूर बुझाएगा। मेरी फुद्दी की खुजली पूरी तरह मिटाए बिना अपने पिचकारी नहीं छोड़ेगा..."
मैं- पर मेमसाहेब... आप मेरे बारे में इतना कुछ कैसे जानती हैं? जबकी मैं आपको जानता तक नहीं हूँ।
मेमसाहेब- जान जाओगे मेरे प्रीतम... बहुत जल्दी ही जान जाओगे.. और मैं भी तो देखू की जैसे मैंने तुम्हारे लण्ड के तिल को देखकर तुम्हें पहचाना तुम भी मुझे पहचान पाते हो या नहीं? अब मजा आएगा।
मैं- क्यों पहेलिया बुझा रही हो मेमसाहेब... बता दो।
मेमसाहेब- “नहीं... मैं चाहती हूँ की तुम ही मुझे पहचानो। खैर चलो, आओ...”
मैं अपना सिर धुनते हुए, ये सोचने लगा की कौन है ये? जो मुझे पूरी तरह जानती है। मेरे नाम को भी जानती है, वो भी मेरे लण्ड के सुपाड़े के ऊपर के तिल को देखकर। इतना तो यकीन है की इसने मुझे नंगा देखा है। इतने में मेमसाहेब ने कमाल करना शुरू कर दिया था। उनके हाथ मेरे लण्ड को सहलाने लगे थे, और मेरा लण्ड उनके मखमली हाथों का स्पर्श पाकर फनफना उठा था। मैंने भी उसकी गोरी-गोरी चूचियों को पहले तो ब्रा के ऊपर से ही दबाना चालू किया। फिर ब्रा को खोल दिया। दोनों कबूतर आजाद हो चुके थे। और मेरे हाथ में आकर, मेरी मुट्ठी में दबकर अती प्रसन्न थीं उसकी चूचियां। मैंने एक चूची को मुँह में लेकर चूसना चालू कर दिया।
उसके मुँह से सिसकारी निकलनी शुरू हो गई- “अया... आहह.. दीनू बहुत अच्छे... बहुत अच्छा कर रहे हो... बहुत दिनों से जैसे मेरा ये बदन तुम्हारे बदन के स्पर्श को ही चाह रहा था। हाय दीनू.. चूचियां दबाना और चूसने का ढंग वैसा ही है जैसा बचपन में था...” मेमसाहेब बड़बड़ा रही थी।
और मैं उसकी चूचियां चूसते, दबाते हुए ये सोच रहा था- कौन हो सकती है ये? जिसे मैंने बाचपन में उसकी चूचियां दबाने का आनंद तक दे डाला था। और तभी मेरे दिमाग में बिजली सी रेंग उठी। बिजली?
मैं- बिजली... बिलजी, ये तू ही है बिजली? बता बिजली? तू ही है ना?
मेमसाहेब- “हाँ हाँ... मेरे सरताज, मेरे प्रियतम, मेरे माही, मेरे प्यारे दीनू ये मैं ही हूँ तुम्हारी और सिर्फ तुम्हारी बिजली रानी। और दुनियां वालों के लिए गोरी मेमसाहेब...”
और मुझे ध्यान आया। बिजली रानी मेरे पड़ोस में ही रहती थी। हम बचपन से ही साथ-साथ स्कूल जाते थे। और एक दिन बिजली रानी ने मुझे अपने घर बुलाया दोपहर को मैं जब उसके घर गया।
तब उसके पापा उसकी मम्मी को देखकर बोले- “चलो ऊपर स्टोर-रूम में चीनी बोरा फाइना है...” और दोनों ऊपर सीढ़ियां चढ़ने लगे।
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