RE: Adult Kahani छोटी सी भूल की बड़ी सज़ा
नीता की बात सुनते ही मेरे पैर काँपने लगे….मुझे समझ में नही आ रहा था कि, में उसे क्या जवाब दूं. घर पर जवानी की दहलीज पर खड़ी दो-2 बेटियाँ है. नही नही उन पर क्या असर पड़ेगा.
में: नीता तुम कहीं ये तो नही कहना चाहती की, कि उस लड़के और तुम्हारे बीच. कुछ है.
नीता: हां वही कह रही हूँ. बोल मेरी हेल्प करेगी.
में: नही नीता में ऐसा नही कर सकती. तू पागल हो गयी है क्या. घर पर दो दो लड़कियाँ है. उन पर क्या असर पड़ेगा. नही में तुम्हें अपने यहा नही ठहरा सकती.
नीता: देख रेखा प्लीज़ मेरी बात मान ले. एक रात की ही तो बात है.
में: नही नीता तू समझ क्यों नही रही. बोल अपनी बेटियों को क्या कहूँगी. नही ये सब ठीक नही है. वैसे भी मेने उनको इन सब चीज़ों से बहुत दूर रखा है. अच्छा मुझे खाना बनाना है. तुम किसी होटेल में क्यों नही रुक जाते.
ये कहते हुए मेने फोन रख दिया. और वही बेड पर बैठ गयी. क्या जमाना आ गया है. खुद की तो इज़्ज़त की परवाह है नही, और साथ में मुझे भी घसीट रही है. उसकी हिम्मत कैसे हुई, मेरे से ये सब पूछने की. एक बार भी शरम नही झलकी उसकी आवाज़ में. रंडी खाना समझा है क्या मेरे घर को. में यही सब बातें सोच रही थी कि, फिर से फोन की बेल बजी. में अपने ख़यालो से बाहर आई. और फोन की तरफ देखा. जो बजे जा रहा था. मेने फोन उठाया.
में: हेलो..
नीता: रेखा सुन तो,
में: क्या सुनू. तेरी ये बकवास मुझे नही सुननी.
नीता: अर्रे सुन तो बोल कितने पैसे चाहिए तुझे. बोल जितने कहेगी उतने पैसे दूँगी. बोल एक हज़ार दो हज़ार बोल ना. बस एक रात की बात है.
में: तू ये क्या बोले जेया रही है. मुझे समझ में नही आ रहा.
(जैसे ही उसने मेरे सामने इतने पैसों की पेशकस रखी में सोचने पर मजबूर हो गयी. आप भी सोच रहे होंगे. कैसी औरत है, पैसों का नाम सुनते ही, नीयत बदल गयी. पर अगर आप मेरी जगह होते तो उस वक़्त मेरी मजबूरी को समझ पाते. पति के देहांत को 5 साल हो चुके थे. मरने से पहले पति ने मेरे नाम एक घर बनवा दिया था. जिसमे नीचे 4 रूम थे, और ऊपेर एक रूम था. नीचे दो रूम हम माँ बेटियों के पास थे. और बाकी के दो रूम और ऊपेर वाला रूम हमने रेंट पर दे रखे थी.
जिससे अब तक हमारा घर चलता आया था. पर पिछले कुछ महीनो से धीरे-2 हमारे सभी किरायेदार कमरे खाली कर चले गये थे. घर की आमदनी का एक लौता ज़रिया भी बंद हो चुका था. और उस महीने तो हमारी आर्थिक हालत और खराब हो चुकी थी. घर का राशन भी ख़तम हो चुका था. ऐसे में एका एक पैसे आ दिखे तो में सोच में पड़ गयी)
नीता: हेलो रेख क्या सोच रही है. हम यहाँ बस स्टॅंड पर है. बारिश में फँसे हुए है. बोल ना.
में: पर वो रामा और सोन्या उनको क्या.
नीता: अर्रे उनको बोल देना कि मेरी सहेली है, और जो लड़का है अमित उसको बोल देना मेरा बेटा है. उनको भी शक नही होगा.
मुझे नीता की बात सही लगी. मेने थोड़ी देर सोचने के बाद उससे कहा. ठीक है मुझे 5000 रुपये चाहिए. मेने मन ही मन सोचा कही मेने ज़्यादा पैसे तो नही माँग लिए. पर मुझे उस वक़्त बहुत हैरानी हुई, जब नीता ने मुझसे कहा कि ठीक है हम तुम्हारे घर आ रहे है.
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