RE: Bhabhi ki Chudai कमीना देवर
मेंरे हाथ उसके कंधो पर ठीक उसकी ब्रा की पट्टी पर थे,अब मैंने अपनी ऊंगलियों को ढीला छोड़ दिया और अब वो ठीक उस जगह के उपर थी जहां से उसके स्तन काउभार शुरु हो रहा था। बेचारी, अब समझ कर भी अनजान बनने की उसकी बारी थी। घर में मेंरे रुतबे और मान को देखते हुए और अपने घर की हालत तथा एक शादी लायक बहन सहित तीन बहनॊं के घर में बैठे रहने की परिस्थिती तथा पति के लगातार घर से दूर रहने के हालात और अपनी स्वयं की शारीरिक जरुरत इन तमाम बातों ने उसके सामने ऎसे हालत पैदा कर दिये थे कि शायद अभी चुप्पी साधे रखने में ही उसकी भलाई थी। उसकी बेबसी का अब मैं भरपूर मजा ले रहा था, मुझे इस बात का पूरा यकीन हो गया था कि अकेले में शायद भले ही वो मुझे कुछ कहने का साह्स करे लेकिन सब के सामने मुझे कहने या मेंरे बारे में कुछ भी बुरा बोलने का साहस उसमें नही था।
इन बातों का अहसास होते ही और तमाम परिस्थिती अपने पक्ष में होते देख मैंने अपने मन में अपार शांति का अनुभव किया।
मैने एक बार अपनी मां की तरफ़ देखा वो अभी भी पूरी तल्लीनता से भाई से बात कर रही थी, उसकी तरफ़ से आशवस्त हो कर मैंने अब पूरी निर्भिकता से अपनी भाभी की तरफ़ देखा उसकी नजरें पूरी तरह से जमीन पर गड़ी हुई थी, अब मैने उसके स्तनों पर नजर ड़ाली, किसी अनहोनी की आशंका में उसकी सांसे कुछ तेज हो गई थी और वो जरा जोर से गहरी सांस ले रही थी। गहरी सांसे लेने के कारण उसके स्तन उपर नीचे हो रहे थे, जब उसके दोनों स्तन उपर की तरफ़ उठते तो मेंरी उंगलियां उसके स्तनों के उभार शुरु होने वाले स्थान से काफ़ी नीचे तक अपने आप चली जाती और उसके स्तन का काफ़ी हिस्सा उससे छुआ जाता।मैं अपनी भाभी के शरीर से उसी तरह चिपका हुआ था जैसे लोहा चुंबक से। लेकिन इस तरह स्तन के छुआने से मेंरे लिये खुद पर कबू रखना मुश्किल हो रहा था। कहीं मां के सामने कुछ गड़्बड़ न हो जाय इसलिये मैंने अपना हाथ वहां से हटा लिया और फ़िर से उसे नेहा भाभी की बड़ी बड़ी नरम गांड़ के पास स्थापित कर दिया, चार पांच बार हल्के से अपने हाथ को उसकी गांड़ से टकराने के बाद मैंने अपना हाथ हिलाना बंद कर दिया और मेंरा हाथ अब उसकी गांड़ से चिपक गया।
३०-४० सेकण्ड़ तक उसी तरह से अपना हाथ का उपरी भाग उसकी गांड़ पर रखने के बाद मैंने फ़िर से अपने हाथ को घुमा लिया और अपनी हथेली को उसकी गांड़ से लगा दिया, अब उसकी गांड़ मेंरी हथेली में थी। अब तक उसे पूरी तरह से यकीन हो चुका था कि मैं उसके शरीर से खेल रहा हूं। और यही मैं चाहता भी था।
इस बीच मेंरी मां और भाई के बीच फ़ोन पर संवाद जारी था
मां - बेटा संजय क्या तुम इस बार छुट्टी में थोड़े ज्यादा समय के लिये घर आ सकते हो?
संजय - क्यों मां ?
मां - दरअसल मैं तुम से सनी के विवाह के बारे में बात करना चाहती हूं?
संजय - लेकिन मां अभी तो वो पढ़ रहा है न?
मां - हां, लेकिन समय जाते कहां पता चलता है? और फ़िर ये उसका अखीरी साल ही तो है न कालेज का? और फ़िर तुम्हारे पापा ने कह दिया है कि कालेज खत्म करने के बाद सनी
उनका बीमा का काम ही संभालेगा सो नौकरी की चिंता जैसी कोई बात उसके साथ नहीं है।
संजय - तो तुमने कोई लड़की देखी है उसके लिये?
मां - हां और मुझे तो बेहद पसंद भी है और सनी को भी।
संजय - अच्छा!! कौन है मां वो खुशनसीब लड़की?
मां - नीता। अगर तुन्हें कोई आपत्ति न हो तो।
संजय ने लग्भग चिखते हुए कहा - क्या!!!!! नीता!!!!! , भला ममममुझे क्या आपत्ति हो सकती है। नेहा से पूछो।
मां - अरे हमारी तरफ़ से बात तो बही चलाएगी न। लेकिन तू साफ़ साफ़ बता कि तुझे अपनी साली नीता से सनी की शादी में कोई ऎतराज तो नहीं है न?
संजय - क्या मां , भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है, बल्कि ये तो नेहा के लिये भी बहुत अच्छा होगा उसे यहां अपनी बहन की कंपनी मिल जायेगी। और वो काफ़ी भले लोग है, और मैं नीता को अच्छी तरह से जानता हूं काफ़ी सरल और शांत लड़की है वो। मां मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
इधर मां के मुंह से अपनी बहन और मेंरी शादी की बात सुन कर मेंरी गुलबदन नेहा जान बुरी तरह चौंक गई और आचर्य से कभी मां की तरफ़ तो कभी कभी मेंरी तरफ़ देख रही थी। और मैंने भी मौके का भरपूर फ़ायदा उठाते हुए अपनी हसीना की गांड़ को जरा जोर से दबा दिया। और उसकी गांड़ में हल्के से हाथ घुमाते हुए उसकी अंडरवियर को तलाशते हुए अपना हाथ उसकी अंडरवियर के उभार पर रख दिया। अब वो अपने प्रति मेंरी हवस को समझ चुकी थी लेकिन अब तो वो चाह कर भी न तो मेंरे घर में और ना ही अपने घर में कुछ बता सकती थी। मेंरे एक ही दांव ने उसको चारों खाने चित कर दिया था और वो लाजवाब हो गई थी।
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