RE: Bhabhi ki Chudai कमीना देवर
मैं बदहवास हो अपनी इस नग्न सुंदरी को देख रहा था, अब मैं खुद को रोक पाने में असमर्थ था,
मेंरे लण्ड़ के लिये अब पेन्ट के अन्दर रहना अस्मर्थ हो गया था वो अपने संपूर्ण रुप में आ चुका था और उसे पेन्ट के अन्दर संभाल पाना मेरे लिये सम्भव नहीं था। मैं थोड़ा पिछे हटा और अपने पेन्ट को खोल कर निकाल फ़ेंका अब मेरा लण्ड़ काफ़ी आजाद मह्सूस कर रहा था,मैने देखा वो अपने आप झटके मार रहा था और कामवासना की अधीकता के कारण मेंरा पूरा शरीर गरम हो चुका था और मेंरे पैर थरथरा रहे थे। छत पर किसी के आने का कोई खतरा नही था इसलिये मै पूरी तरह से नंगा हो गया, अब मैंने अपना लंड़ अपने हाथो मे जोर से पकड़ लिया और मै फ़िर से नेहा के नंगे जिस्म को देखने के लिये कूलर के छेद में आंख गड़ाकर बैठ़ गया।
कमरे के अंदर का दृष्य अब और भी उत्तेजक हो चुका था,मैने देखा कि नेहा अब वापस पलंग की तरफ़ जा रही है अपने नाईट गाउन को पहनने के लिये और वो पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी,इतनी देर में उसने अपनी पेन्टी भी उतार फ़ेंकी थी। उसकी पूरी तरह से अनावृत निर्वस्त्र बड़ी बड़ी भरपूर गोलाईयों वाली मांसल गांड़ चलते समय बड़े मोहक अंदाज मे हील रही थी। मै कुछ क्षण के लिये उसकी उत्तेजक गांड़ की अंतहीन दरार में खो गया।अब मेंरा हाथ धीरे धीरे अपने लंड़ पर आगे पीछे सरकने लगा और मैं नेहा के नंगे जिस्म को देखते हुए मुठ्ठ मारने लगा। तभी अचानक उसके कमरे में फ़ोन बज उठा, फ़ोन की घंटी सुन कर उसके बढते कदम रुक गए और वो वहीं ठिठक कर खड़ी हो गई। शायद वो ये अंदाज लगाने की कोशीश कर रही थी इस वक्त किस्का फ़ोन हो सकता है। कहीं गाउन पहनने के चक्कर में फ़ोन बंद न हो जाय ये सोच कर तुरंत पलटी और उसके पलटते ही मेरे पूरे शरीर में हजारों वाट का करंट दौड़ गया, कितनी खूबसूरत नंगी थी मेंरी नेहा भाभी। वो उसी तरह नंगी ही दौड़ते हुए t.v. की तरफ़ दौड़ी,फ़ोन वहीं रखा था उसके उपर। भाभी जब नंगी दौड़ कर फ़ोन की तरफ़ आ रही थी तो उसके दोनो वक्ष बुरी तरह से उछल रहे थे और एक दूसरे से टकरा रहे थे,ऎसा दृष्य को देख कर मेंरे मन में हाहाकार मच गया और मैं उत्तेजना के अत्यधिक आवेश में कूलर को ही अपने आगोश में लेकर उसे चुमने लगा।अंदर नंगी भाभी और बाहर उसका नंगा देवर दिवाना। दोनों ही अपने अपने कारणॊ से अधूरे और प्यासे थे। देवर तो पहले से ही पागल हो चुका था और नेहा की बुर चोदने के लिये तड़फ़ रहा था, और नेहा उसे अभी और थोड़ी चिंगारी और वज्रपात की जरुरत थी अपने ही देवर के साथ अवैध
संबंध बनाने के लिये।
औरत दो ही कारणों से अपनी लक्षमण रेखा को लांघती है पहला यदी पति इस लायक है तो वो उसे बचाने के लिये अपने घर की दहलीज लांघ कर यम के दरबार से भी अपने पति के प्राण वापस ले आती है और दूसरा यदि वो नालायक है और उसके मनोभावों को नहीं समझता तब वो इस दिवार को लांघ कर लाती है अपना यार और फ़िर शुरु होता है पति-पत्नी और "वो" का अंतहीन सिलसिला . नेहा के लिये संजय अभी तक दूसरे दर्जे वाला ही पति ही साबित हुआ था . उसकी शादी जरुर हुई थी और उसे एक बड़े घर की बहू होने का पूरा सम्मान भी मिला था अपने ससुराल से और समाज से लेकिन पति के जिस प्यार के लिये स्त्री यम से भी लड़ने का साहस जुटा लेती है उसका एक अंश भी संजय उसे नहीं दे पाया था और न ही उसके पास इसके लिये समय था और न उसकी इतनी समझ थी। पति की इस बेरुखी से उपजे खालीपन ने नेहा को शर्मिली से गूंगी भी बना दिया था। सनी ने नेहा के इस खालीपन को पकड़ लिया था और इसीलिये इस गदराइ हसीना की बुर चोदने के लिये पागल था।
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