Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:38 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"ड्राइवर.. प्लीज़ गाड़ी इस अड्रेस पे ले लो, थोड़ा समान लेना है वहाँ से.." ज्योति ने ड्राइवर के हाथ में एक कार्ड पकड़ाते हुए कहा



"ओके मॅम..." ड्राइवर ने कार्ड लिया और गाड़ी को बताए हुए अड्रेस पे ले जाने लगा...



शाम के 8 बजे ऑफीस से घर जाने वाले लोगों का ताँता लगा हुआ था, औडी क्यू7 की नरम सीट पे बैठी, ठंडी हवा का आनंद उठाते हुए ज्योति चढ़े हुए शीशे से बाहर की भीड़ को देख रही थी.. मुंबई की 75% जनता लोकल ट्रेन से सफ़र करती, हार्ट बीट ऑफ मुंबई लोकल ट्रेन्स और उसमे सफ़र करती जनता.. बोरीवली से होती हुई ज्योति की गाड़ी धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी.. ज्योति ने एक नज़र घुमाई और फिर उसे एहसास हुआ कि वो कितनी खुश नसीब है कि ऐसी लाइफ स्टाइल मिली है.. जब दिमाग़ थोडा रीवाइंड हुआ, तो दिल ही दिल में उसने भगवान को शुक्रिया किया कि वो अनाथ नहीं रही ज़िंदगी भर, और फिर से बाहर के लोगों को देखने लगी..



"ह्म्म...यह है मुंबई...मुंबई मेरी जान..." ज्योति ने एक बार फिर बाहर देखा और खड़े लोगों को देख खुद से कहा.. जैसे जैसे ट्रॅफिक छँटने लगा वैसे वैसे गाड़ी की गति बढ़ने लगी और वैसे वैसे लोकल ट्रेन की पब्लिक के बदले, ज्योति की आँखों के सामने फिर से उँची उँची बिल्डिंग्स आने लगी..जगमग रोशनी, उँची बिल्डिंग्स, साँस लेने की फ़ुर्सत नही, लोग कहते हैं यह मुंबई की पहचान है..ज्योति जब भी मुंबई आती, ज़्यादा से ज़्यादा समय वो बांद्रा और जुहू के साइड बिताती, वहाँ उसे असली मुंबई नही दिखता, जब से महाबालेश्वर मुंबई ट्रॅवेल करने लगी, तब उसे एहसास हुआ कि मुंबई की असली पहचान कुछ हाइ प्रोफाइल लोग और सेलेब्स नहीं, बल्कि यह लोग हैं जिनकी वजह से मुंबई चलता है..जिनमे मुंबई बस्ता है..



"यू कॅन टेक मी आउट ऑफ मुंबई.. बट यू कन्नोट टेक मुंबई आउट ऑफ मी..." यह लाइन ज्योति ने काफ़ी बार सुनी थी, लेकिन आज खुद इसे महसूस करके अंदर से काफ़ी खुश हो रही थी...




"मॅम.. वी आर हियर..." ड्राइवर की इस आवाज़ से ज्योति अपने ख़यालों से बाहर आई और बाहर देखने लगी.. गाड़ी इस वक़्त एक डिज़ाइनर स्टोर के बाहर खड़ी थी.. ज्योति जल्दी से उतरी और अपना समान कोलेक्ट करके वापस आने लगी...





"भाई..आज ज्योति को लेट हो गया है...कहाँ है वो.." शीना ने रिकी से पूछा जब दोनो आगे के गार्डेन में बैठे बतिया रहे थे



"पता नही यार, मैं कॉल कर रहा हूँ फोन आन्सर नही कर रही." रिकी ने शीना को जूस दिया और खुद कॉफी पीने लगा



"या आइ नो, मैने भी 7 कॉल्स किए बट.." शीना ने इतना ही कहा कि सामने से ज्योति आती हुई दिखी



"यह लो.. आ गयी.." शीना ने रिकी से इशारा किया ज्योति सामने ही आ रही थी..



"हे ज्योति.. कम हियर.." शीना ने इस बार चिल्ला के ज्योति को अपने पास बुलाया




ज्योति कुछ सोच में डूबी हुई थी कि अचानक शीना की आवाज़ से वो अपनी सोच से बाहर निकली.. चेहरे पे झूठी मुस्कान लेके आगे बढ़ी लेकिन दिमाग़ अभी भी कहीं और था..




"हाई डार्लिंग.. गुड ईव्निंग.." शीना ने खुशी खुशी गले लगाया ज्योति को और अपने साथ बिठा दिया



"गुड ईव्निंग डियर, भैया..हाउ आर यू.." ज्योति ने बुझे हुए मन से दोनो से पूछा लेकिन चेहरे पे झूठी मुस्कान अभी भी थी



"यह लो, मेरा जूस, पहले तुम पियो, फिर मैं पियूंगी.." शीना ने ग्लास आगे बढ़ाते हुए कहा, लेकिन ज्योति ने कुछ रिएक्ट नहीं किया और बस नज़रें नीचे घास पे ही गाढ़े रखी



"ज्योति...आर यू फाइन" शीना ने ज्योति के कंधों को थोड़ा हिलाया जिससे ज्योति फिर होश में आई



"उः..क्या.." ज्योति ने जवाब दिया



"ज्योति, सब ठीक है ना..कुछ हुआ है क्या" शीना ने फिर ज्योति का हाथ पकड़ के पूछा



"यस यस.. सब ठीक है डियर, " ज्योति ने फिर जवाब दिया लेकिन दिमाग़ अभी भी कहीं और था.. शीना ने रिकी को इशारे से चुप रहने के लिए कहा और खुद भी चुप हो गयी.. दोनो खामोश करीब 10 मिनट तक ज्योति को देखते रहे, लेकिन ज्योति थी कि वो वहाँ थी ही नहीं, दिमाग़ तो उसका कहीं और ही था...



"ऐसा कैसे हो सकता है.." ज्योति ने खुद से धीरे से कहा, जिसे रिकी और शीना ने भी सुन लिया



"ह्म्‍म्म... अच्छा तो ऐसा है..." शीना ने आख़िर अपना मूह खोल के कहा, उसकी आवाज़ सुन ज्योति फिर होश में आई और शीना को देख फिर खामोश हो गयी..



"भाई..प्लीज़, एक्सक्यूस अस ..प्लीज़.." शीना ने हँस के रिकी से कहा



"ओह यस... कॅरी ऑन गर्ल्स.." रिकी ने बस इतना ही कहा और वहाँ से निकल गया, क्यूँ कि वो जानता था कि अगर कुछ बात हुई भी तो ज्योति शीना से कहने में ज़्यादा कंफर्टबल फील करेगी..



"ह्म्‍म्म... अब बताओ..क्या हुआ, क्या नहीं होना चाहिए..." शीना ने ज्योति के हाथ को पकड़ के उससे पूछा



"शीना... मैने आज भाभी को देखा..." ज्योति ने दबी हुई और परेशानी वाली आवाज़ में कहा



"ओके, वो मैं रोज़ देखती हूँ..आंड चिल मार, ऐसे रोज़ देखेगी तो डर नहीं लगेगा.." शीना ने हँस के कहा लेकिन ज्योति अभी भी खामोश थी



"ओके सॉरी.. बॅड जोक..बताओ, देखा तो क्या हुआ" शीना ने सिचुयेशन को समझ के पूछा



"मैने भाभी को पापा के साथ देखा.." ज्योति ने शीना की आँखों में आँखें डाल के कहा.. ज्योति की यह बात सुन शीना के चेहरे का रंग भी बदल गया, उसके हाव भाव भी बदल गये और उसके चेहरे पे मुस्कान के बदले हैरानी के भाव आने लगे...

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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 04:38 PM

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