RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
पहले मैं पहले की कहानी संक्षेप में दुहरा देता हूँ.
मेरी इकलौती बेटी की शादी और विदाई हो चुकी थी, घर मेहमानों से भरा हुआ था. मैं पिछले पंद्रह दिनों से दिन रात एक किये हुए था, न ठीक से सोना न खाना.
बेटी की विदाई का दूसरा दिन था, कई मेहमान जा चुके थे, अभी भी घर मेहमानों से भरा हुआ था. मैं रात में सोने की जगह तलाश कर रहा था पर सब जगह भरी हुई थीं.
फिर मुझे ऊपर छत पर बनी कोठरी का ध्यान आया, मैं गद्दों के ढेर में से बिस्तर लेकर ऊपर वाली कोठरी में पहुंच गया सोने के लिए. वहां का बल्ब फ्यूज हो चुका था अतः अंधेरे में ही वहां पड़े सामान को खिसका कर मैंने अपने सोने लायक जगह बनाई और लेटते ही मुझे मुठ मारने की इच्छा होने लगी क्योंकि पिछले महीने भर से बीवी की चूत नसीब नहीं हुई थी. अतः मैं पूरा नंगा होकर मूठ मारने लगा.
तभी अचानक कोई साया कोठरी में घुसता है और अपने पूरे कपड़े उतार कर मुझसे नंगा होकर लिपट जाता है. उसकी आवाज से मैं पहचानता हूं कि वो मेरी इकलौती बहूरानी अदिति थी जो मुझे अपना पति समझ के सम्भोग करने के लिए उकसाती है, मुझसे लिपटती है, मेरा लंड चूसने लगती है. मैं खुद को बचाने की बहुत कोशिश करता हूं पर मेरी कामना भी जाग जाती है और मैं अपनी बहूरानी को चोद डालता हूं. अभी तक बहूरानी को पता नहीं रहता कि मैं, ससुर उसे चोद रहा है. सुबह होते ही मैं निकल लेता हूं.
बाद में बहूरानी को पता चलता है कि वो पिछली रात किसी और से ही चुद गयी थी तो वो टेंशन में आ जाती है कि इतने सारे मेहमानों में वो पता नहीं किससे चूत मरवा बैठी. उसकी चिंता मुझसे देखी नहीं जाती और उसे मैं बता देता हूं कि पिछली रात मैं ही ऊपर कोठरी में उसके साथ था. इसके बाद हम ससुर बहू के सेक्स सम्बन्ध बन जाते हैं और मैं उसे कई बार और चोदता हूं.
फिर बहूरानी मेरे बेटे के साथ चली जाती है जहां वो नौकरी करता था.
इन सब बातों के बाद कई महीने यूं ही गुजर गए. मैं भी अदिति के साथ अपने उस रिश्ते को भुलाने की कोशिश करता रहा और समय के साथ धीरे धीरे वो सब बातें भूलती चली गईं. ज़िन्दगी फिर से पुरानी स्टाइल में चलने लगी.
अदिति बहूरानी का फोन हर दूसरे तीसरे दिन मेरी धर्मपत्नी के फोन पर आता ही रहता था. वो लोग ज्यादातर घर गृहस्थी और रसोई से सम्बंधित बातें ही करती थीं.
‘मम्मी, आज इनको पालक छोले की सब्जी खानी है जैसी आप बनाती हो, आप मुझे गाइड करो कैसे बनाना है’; ‘मम्मी आम का अचार डालना है आज, आप बता दो कैसे क्या क्या करते हैं’ इत्यादि इत्यादि. सास बहू की ऐसी ही घरेलू बातें होती रहतीं फोन पर.
हां अदिति मेरे बारे में अपनी सास से जरूर पूछ लेती हर बार कि पापा जी कैसे हैं. लेकिन बहूरानी ने मेरे फोन पर कभी भी फोन नहीं किया और न ही मैंने उसके फोन पर कभी किया. कभी कोई जरूरी बात होती भी तो अपने बेटे के फोन पर बात कर लेता था.
मैं बहूरानी के इस तरह के व्यवहार से बेहद संतुष्ट था. मुझसे कई बार अपनी चूत चुदवाने के बाद भी वो मेरे साथ बिल्कुल नार्मल बिहेव कर रही थी जैसे कि हम दोनों के बीच कुछ ऐसा वैसा हुआ ही न हो या वो मुझसे चुदवाने के पहले किया करती थी.
दिन यूं ही गुजर रहे थे. हालांकि मुझे अदिति बहूरानी के साथ बिताये वो अन्तरंग पल याद आते तो मन में फिर से उसकी चूत चाटने और चोदने की इच्छा बलवती हो उठती; उसके मादक हुस्न और भरपूर जवां नंगे जिस्म को भोगने की छटपटाहट और उसकी चूत में समा जाने की ललक मुझे बेचैन करने लगती. लेकिन मैं ऐसी कामुक कुत्सित इच्छाओं को बलपूर्वक मन में ही दबा देता था. आखिर वो मेरी बहूरानी, मेरे घर की लाज थी.
हालांकि उसके साथ इन अनैतिक रिश्तों की शुरुआत उसी की तरफ से अनजाने में ही हुई थी फिर बाद में वो और मैं दोनों चुदाई के इस सनातन खेल में लिप्त हो गए थे.
बहू रानी मेरे लम्बे मोटे दीर्घाकार लंड की दीवानी हो चुकी थी तो मैं भी उसकी कसी हुई चूत का दास हो चुका था. उसके यहां से जाने के बाद वो पागलपन, वो चाहतें धीरे धीरे स्वतः ही कमजोर पड़ने लगीं. अच्छा ही था एक तरह से. ऐसे अनैतिक रिश्ते भले ही कितना मज़ा दें लेकिन एक बार बात खुलने के बाद ज़िन्दगी में हमेशा के लिए जहर घोल जाते हैं; जीवन नर्क बन जाता है और इंसान खुद की और अपनों की नज़र में हमेशा के लिए गिर जाता है. कई लोग तो आत्महत्या तक कर डालते हैं.
समय गुजरने के साथ मैंने खुद पर काबू पाना सीख लिया और वो सब बातें मैंने सदा सदा के लिए दिमाग से निकाल दीं.
लेकिन होनी को कोई नहीं टाल सकता; कोई कितनी भी चतुराई दिखा ले लेकिन होनी के आगे उसकी एक नहीं चलती.
एक दिन की बात है सुबह का टाइम था कोई आठ बजने वाले होंगे कि वाइफ के फोन की घंटी बजी. पत्नी किचन से चाय लेकर आ ही रही थी. उसने चाय टेबल पर रखी और फोन ले लिया.
“अदिति का फोन है.” वो मुझसे बोली.
“हां, अदिति कैसी है तू?”
जवाब में अदिति ने भी कुछ कहा.
“बहूरानी, मैं कैसे आ सकती हूं. तू तो जानती है घर संभालना इनके बस का नहीं. दूध वाला, सब्जी वाला, धोबी ये वो पचास झंझट होते हैं गृहस्थी में. और तू अपनी कामवाली को तो जानती ही है कितनी मक्कार है काम करने में, उसके सिर पर खड़े होकर काम करवाओ तभी करती है; अगर मैं तेरे पास आ गई तो समझ लो घर का क्या हाल करेगी वो और सबसे बड़ी बात तू तो जानती ही
है मेरे घुटने का दर्द; स्टेशन की भीड़ भाड़ में पुल चढ़ना उतरना मेरे बस का अब नहीं रह गया. हफ्ते दस दिन की ही तो बात है तू ही आ जा न यहां पर!” पत्नी बोली.
जवाब में अदिति ने क्या कहा मुझे नहीं पता.
“अच्छा ठीक है बहू, जमाना खराब है. मैं इनसे बात करके इन्हें कल भेज दूंगी, तू चिंता मत करना.”
कुछ देर सास बहू में और बातें हुईं और फोन कट गए.
“सुनो जी, आपके लाड़ले को कंपनी वाले दस दिन की ट्रेनिंग पर बंगलौर भेज रहे हैं. अदिति मुझे बुला रही थी वहां रहने के लिए. मैं तो जा नहीं पाऊँगी, आप ही चले जाओ बहू के पास कल शाम की ट्रेन से. वहां वो अकेली कैसे रहेगी. आप तो जानते हो ज़माना कितना ख़राब है आजकल!”
“अरे तो अदिति को यहीं बुला लो ना. गुड़िया की शादी के बाद से आई भी नहीं है वो!” मैंने कहा.
“मैंने तो कहा था उससे आने के लिए पर वो कह रही है कि अगले महीने उसका कोई एग्जाम है बैंक में पी ओ. का वो उसकी तैयारी कर रही है. अब उसके भी करियर की बात है. आप ही चले जाओ कल!” पत्नी ने कहा.
“ठीक है. मैं कल शाम को चला जाऊंगा.” मैंने संक्षिप्त सा जवाब दिया और चाय पीने लगा.
तो दोस्तो इस रसभरी सत्य कथा का मज़ा लीजिये और पढ़ते पढ़ते जैसे चाहें मज़ा लीजिये पर मुझे अपने कमेंट्स जरूर लिखिए. आपके कमेंट्स ही तो हम लेखकों का पारश्रमिक है और प्रोत्साहन भी.
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