RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
वो बोली-“किसी ने नहीं… लेकिन तुम अब हर वक्त दीदी की चूत में ही डालते रहते हो…”
मैं बोला-“नहीं कामिनी सच कह रहा हूँ, तेरी चूत जितनी खूबसूरत और खुशबूदर है दीदी की थोड़ी है…” यह कहकर मैं घुटनों के बल बैठा और अपनी छोटी बहन की बंद चूत में जबान घुसाने लगा, उसने टांगें थोड़ी सी खोल दीं, अब जबान अंदर लपलपा रही थी।
वो एक झुरझुरी सी भरिी हुई बोली-“प्रेम भाई पता है आप कितने दिनों के बाद मेरी चूत चूस रहे हैं…”
मैंने बोला-“अच्छा चल कामिनी अब माफ कर दे और लेट जा, मैं तेरी चूत चुसूंगा अभी…”
वो लेट गई और टांगें खोलकर उंगली से चूत के दोनों लब खोल दिए, और मैं उस चूत की लज़्जत में डूब ही गया। और होश तब आया, जब अचानक गहरी साँसों के साथ कामिनी अपनी मनी से मेरा मुँह भरने लगी। आज कामिनी ने बहुत ही जल्दी अपनी मनी छोड़ दी थी, वो बहुत ही गरम थी आज। मनी छोड़ते ही उसने दोबारा मेरा मुँह चूत से लगाना चाहा, मैंने फिर मुँह लगाया ही था, की अचानक मेरा मुँह भरने लगा। कामिनी का गरम पेशाब उसकी चूत के छोटे से मुँह को चीरता हुआ मेरे मुँह को भिगो रहा था। जवानी की महक से महकता मेरी बहन का नशीला पेशाब वो काफी देर बाद मेरा मुँह भिगोता रहा और मैं सरशार हो गया। और फिर पेशाब के आख़िरी कतरे तक मैंने उस नन्हें से सुराख से चूस लिए। अब फिर उसने मेरा मुँह अपनी चूत से सख्ती से चिपकाना चाहा।
मैंने मुँह हटाया और कहा-“कामिनी चूत चुदवाएगी नहीं…”
वो हैरत से बोली-“अभी भाई, बहुत दर्द होगा अभी तो…”
मैं बोला-“दर्द तो बाद में भी होगा, दीदी को देखा अब कितने मजे से जाता है मेरा लंड… पहली बार कितनी मुश्किल से घुस्सा था…”
वह बोली-“चलो ठीक है प्रेम भाई… अब मेरी चूत अपने लंड से खोलो ना…”
मैं बोला-“कामिनी तू अपनी टांगें खोलकर चूत को उंगलियों से खोल ले, मैं अंदर डालने की कोशिस करूँगा, दर्द हो तो बता देना…”
उसने सिर हिलाया और जो मैंने बताया था वैसे ही किया। और मैंने अपना लंड सहलाया, जो बहुत ही टाइट हो रहा था। कामिनी की चूत में जाने का खयाल ही इतना खूबसूरत था। मैं उकड़ू बैठ गया और कामिनी की चूत के ऊपरी सिरे पर उभरे हल्के गुलाबी रंग के दाने पर अपना लंड हल्के हल्के फेरने लगा। वह बहुत लज़्जत महसूस कर रही थी, फिर आहिस्ता आहिस्ता मैंने अपनी टोपी उसकी नम चूत में आगे पीछे करने लगा। इससे शायद वह बहुत लुफ्त हाँसिल कर रही थी, उसकी गान्ड हिलने लगी और वह उचक उचक कर टोपी को चूमने लगी, क्या खाश मंजर था, जब चूत का अन्द्रुनी गुलाबी हिस्सा मेरे लंड की टोपी को चूम कर पीछे जाता तो उसका मधुर रस का हल्का सा नम धब्बा मेरे लंड की टोपी पर होता, अब मैंने टोपी को थोड़ा सा अंदर धकेला, और कामिनी का जिस्म बेचैन हुआ। उसके मजे में कमी आई थी, उसने अपनी मदहोश आँखों को खोला और चूत की तरफ देखा।
“अरे प्रेम भाई आपने अभी तक अंदर नहीं डाला मैं तो समझी चूत खुल गई मेरी…”
मैं बोला-“नहीं कामिनी अभी तो मेरा लंड तेरी चूत को चूम रहा था…”
वह बोली-“भाई जल्दी से पूरा अंदर गायब करें ना जैसे दीदी के करते हैं…”
मैंने सिर हिलाया। और थोड़ा सा दबा दिया लंड को। वह एक इंच अंदर घुसता चला गया।
कामिनी की घुटी-घुटी आवाज सुनाई दी-“हाय… मैं मर गई…”
यह एक कली की आवाज थी जो गुल्लाब बनने जा रहा था, यह कमसिनी की आवाज थी जिसका हुश्न वोही लोग जानते हैं जो इन माहौल से गुजर चुके हैं। अब मैं अंदर बाहर कर रहा था लंड को और वह बेचनी से सिर को इधर उधर पटक रही थी।
मैंने फिर हिम्मत की और लंड फिसलता हुआ उस तंग सुराख में और अंदर चला गया, कामिनी की हालात गैर होने लगी, लेकिन अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकता था। मैंने उसके मम्मों पर हाथ रखे, और एक जबरदस्त झटके से मेरा लंड उस रेशमी घेरे को पार कर गया, मेरा लज़्जत के मारे और कामिनी का दर्द के मारे बुरा हाल हो गया, क्या ही चीख थी उसकी। दरख़्तों से चिड़ियाँ डर कर उड़ गईं। भला उन्होंने ऐसी खूबसूरत चीख पहले कब सुनी थी। एक सुरीली चीख, एक लड़की की औरत बनने की चीख। और वह चीखती ही जा रही थी, और मैं सख़्त पड़ा था। कुछ देर बाद उससे थोड़ा सुकून मिला, तो मैंने लंड बाहर खींचा। और फिर एक बार हलचल मच गई, उसकी चीखें रुक ही नहीं रहीं थीं।
और खून से तो पूरी घास तर हो गई, रंगीन हो गई, बेहद खून बह रहा था उसकी चूत से, और वह चूत पर हाथ रखे उसी तरह रो रही थी, चिल्ला रही थी, भाई क्या कर दिया। भाई मेरी चूत फट गई है कुछ करो, दीदी को बुलाओ, मैं मर रही हूँ भाई। मैंने एक लम्हे इंतजार किया और फिर उस खून बहती चूत में अपना लंड दोबारा डाल दिया, वह चीखी लेकिन इस बार उस चीख में वह दर्द ना था, और मैं जबरदस्त झटके देने लगा। वह थोड़ी देर चूत पर हाथ रखे पड़ी रही फिर हटा लिया और सख़्त पड़ी थी। अब हर झटके से उसका जिस्म खिंच जाता, और चेहरे पर तकलीफ के आसार नजर आते, और फिर मेरी मनी छूटी। उस चूत ने पहली बार मनी को चखा, पहली बार गरम गरम मनी चूत की गहराइयों में नदी के पानी की तरह बहती कहीं गायब हो गई, और मैं उसके सीने पर गिरा, उसके हसीन निप्पलस को दबाने और मम्मे चूसने लगा, क्या ही गुलाबी निपल्स थे मेरी बहन के। कुछ देर बाद मेरा लंड सिकुड़ने लगा तो मैंने आहिस्तगी से बाहर खींच लिया, और कामिनी के बराबर ही लेट गया।
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