RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
हमारे एक दूसरे में पेवस्त जिस्म जैसे यूँ ही तखलीक किए गये थे जैसे वह कभी अलग ही ना हुये थे। और फिर ना जाने कब, सूरज की शरारती किरणों ने हमें गुदगुदा दिया और मैं आँख मलता उठ बैठा। सामने ही सूरज तूलू हो रहा था। बहुत ही हसीन नजारा था। लेकिन मैं यह मंजर तो 14 साल से देखता आ रहा था। अब मेरे लिए इसमें कोई काशिस ना थी। मैंने कामिनी के जिस्म पर नजर डाली। वह एक हाथ आँखों पर रखे बेसूध सो रही थी। मैंने उसके मम्मे प्यार से सहलाए और उसके होंठ चूमते हुये उससे उठाने लगा।
उसकी मधुर आवाज आई-“क्या है प्रेम भाई, अब तो सोने दो…”
मैं अपनी नाजुक सी कमसिन बहन को अपनी बाहों में उठाकर झोंपड़े की तरफ चल दिया और अंदर लेजाकर उसे एक घास से बने बिस्तर पर आराम से लिटा दिया। उसने उनींदी आँखों से मेरी तरफ देखा और मुश्कुरा कर आँख बंद कर लीं। वह नींद की खूबसूरत दुनियाँ में खो चुकी थी। नींद की नरम आगोश उसके लिए वहां थी, जहाँ एक खूबसूरत दुनियाँ उसकी मुंतजीर थी, जहाँ कोई हदें नहीं थी, जहाँ रास्ते की दीवार यह समुंदर नहीं था, जहाँ रास्ते दूर तक जाते थे। जहाँ सब कुछ था। लेकिन हम ना थे।
और मैं बाहर चला आया, नदी की तरफ जाने के इरादे से। फ़िज़ा गरम होने लगी थी। नदी पर मुझे दीदी बैठी नजर आई और मैं दिल ही दिल में शर्मिंदा सा हुआ। मैंने दीदी को अब नोटिस करना ही छोड़ दिया था। यहाँ तक की मैंने यह भी नहीं देखा की दीदी झोंपड़े में मौजूद हैं या नहीं। मैं तो बस कामिनी के जिस्म के हसीन नजारे लेता हुआ बाहर आ गया। वाकई यह ज़्यादती है दीदी के साथ। बेचारी ने कितने ही दिनों से मेरे लंड का जायका तक नहीं चखा था। उनकी चूत अब अंदर जा चुकी थी। मम्मे दूध आ जाने की वजह से बोझिल हो गये थे।
और गान्ड तो काफी गोल और बड़ी हो गई थी। और फिर मुझे एक ख्याल आया। अब तक दीदी की गान्ड नहीं चोद सका था। मैं दीदी की गान्ड का सुराख, उसकी नरमाहटें, उसकी गरमाहटें, उसकी गहराइयां अब तक अजनबी थीं मेरे लिए। अब तक अंजान था मैं उस हसीन दुनियाँ से, और मेरा लंड खड़ा होने लगा। दीदी मुझे गौर से देख रहीं थीं और मेरा लंड खड़ा होते देखकर मुश्कुरा उठीं। बोलीं-“अरे यह क्या कामिनी को चोदा नहीं था क्या रात में, या चूत बंद कर ली थी उसने…”
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