RE: Maa Sex Kahani माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना
आगला दिन रविवार था मैं सुबह जल्दी उठ गया था मैं हमेशा जल्दी उठ ता हु माँ ने ये आदत लगाई है मुझे. माँ जादातर मेरे पीछे पड़ पड़ के बचपन से यह आदत बनादि है. माँ हमेशा बोलती थी की सुभा उठके पढाई करूँगा तोह जल्दी से सब याद रह जाएगा. ऐसी बहुत सारी अच्छी आदते मेरे में डाल दिया है माँ ने. इस लिए में ज़िन्दगी के रास्ते में चलते टाइम हर पल उनकी उपस्थिति महसुस करते आया हु. वही एक मात्र नारी है जो मेरे पूरे दिल में छाई हुई है. शायद इस लिए कभी और कोई लड़की मेरे मन में जगह बना नहीं पाई
सुबह नींद तूट ते ही देखा सूरज की पहली किरण खिड़की से अंदर लाक़े पूरा घर रौशनी से भर दिया. खिड़की से बाहर की कुछ आवाज़ें आ रहा है. ऊपर फैन घूम रहा है फुल स्पीड में, फिर भी गर्मी जा नहीं रही है. लेकिन यह सब के अलवा मेरे दिल में एक ठण्डी शीतल अनुभुति महसुस कर रहा हु, जो मेरे पूरे बदन को एक नशीली आवेश में भरके रखा है कल रात नानाजी नानीजी ने जो बात कही है, हो सकता है वह इस दुनिया में ऐसा होता नहीं है. समाज उस चीज़ को मान्यता देता नहीं है. पर हमारे घर में सब..यनि की नाना, नानी और मा...सब इस में सहमत है. सब हमारी खुद की भलाई के लिए ही यह चाहते है. और उसके लिए जो भी बाधा का सामना करना पड़ेगा, जो संकट सामने आकर खड़ा होगा, जो सैक्रिफाइस करना पड़ेगा, वह लोग सब कुछ सहने के लिये, सामना करने के लिए भी तैयार है. तो बाहर की दुनिया के बारे में क्या सोचना है !! और माँ भी एक नारी है. उनके अंदर जो औरत है, उस सुन्दर औरत को में पिछले ६ साल से, एक कल्पना की दुनिया बनाके, अपने ही अंदर छुपाके रख के प्यार करते आ रहा हु. बॉल अब मेरे कोर्ट में है. अगर में चाहू तो वह कोमल दिल की नाज़ुक औरत ज़िन्दगी भरके लिए मेरी हो सकती है इसी वास्तव दुनिया मे, मेरी जीवनसाथी बन सकती है, मेरी बीवी बन सकती है, मेरे बच्चों की माँ बन सकती है. एक ख़ुशी के आवेश मे में आँख मूंद के बिस्तर पर पड़ा रहा. तभी दरवाज़ा खट खटाके नानाजी नास्ते के लिए बुलाया.
अब यह अबतक की मेरी ज़िन्दगी का सबसे कठिन समय है. ऐसी एक परिस्थिति हुई है, जहाँ हर कोई एक सीक्रेट को जानलिया. और ऊपर से इनमे से कोई भी एक इंसान यह भी जनता है की यह सीक्रेट बाकि सब को भी मालूम है. फिर भी कोई कुछ नहीं बोल पा रहा है इस बिषय मे. सब पहले जैसा रहने का, बोलने का कोशिस कर रहा है, पर अंदर ही अंदर न जाने क्या एक चीज़ सब को एक दूसरे से थोड़ा अलग कर के रख रही है. खाली एक ही डिफरेंस है. हम चरों में से, केवल माँ सब की नज़र से छुपके रह रही है. स्पेशली मेरे. नाश्ते की टेबल पे भी कल रात जैसी स्थिति थी. माँ किचन से नानी के हाथ से खाना भेज रही है. आज केवल सब लोग थोड़ा कम बोल रहे है.
पुरा दिन ऐसे ही कट ता रहा. नाना नानी से में कम्फर्टेबल होने की कोशिश किया. फिर भी दिमाग का एक हिस्सा सब कुछ नार्मल बनाने में रोक रहा है. वह लोग भी आपस में बात कर रहे है लेकिन धीरे धीरे, कभी कभी मेरे से दूर रहके या मेरा नज़र से बाहर. पर सब कुछ मैं महसूस कर पा रहा था. ड्राइंग रूम में ज़ादा तर टाइम बिताने लगा. इस लिए माँ भी नज़र नहीं आइ. क्यूँ की में समझ गया माँ केवल अपने रूम और किचन में ही आना जाना कर रही है पीछे का बरंदाह से. सो वह मेरे सामने अने में हिचकिचा रही है. शायद शर्म उनको घिरके रखा है
मैं हमेशा की तरह संडे रात को निकल पड़ा स्टेशन जाने के लिए . मैं रात को ट्रेवल करता था एमपी जाने के लिये. क्यूँ की रात में में सोटे सोटे एमपी पहुच जाता था. इस में नीद भी हो जाती और टाइम भी मैनेज हो जात. हर बार की तरह इस बार सब कुछ पहले जैसे नहीं हुआ. इस बार में चुप चाप निकल ने की तैयारी करने लगा. नाना नानी भी मुह पे स्माइल लेके चुप चाप खड़े है. नानी का पैर छूटे ही उन्होंने सिलेंटली मुझे गले लगा लिया. और कुछ पल ऐसे ही वह पकड़ के रखी. जैसे उन्होंने मुझे कोई सहारा दे रही है. मेरे अंदर की सोच को एक परम ममता से भर दे रही है. जब उन्होंने मुझे छोड़ा तब एक माँ की स्नेह भरी आवाज़ से बोली " अपना ख़याल रखना". मैं ने खामोशी से सर हिलाया. नानाजी मेरे नज़्दीक आकर उनका राईट हैंड मेरे पीठ में रख के थप थपा दिए. मैं उनका पैर छुने गया तो उन्हों ने सिचुएशन इजी करने के लिए कहा " क्या भाय...अपना हीतेश इतने बड़े ऑफिस में इतना बड़ा बड़ा काम कर रहा है, अब वह बच्चा नहीं है. वह अब अपनी ज़िन्दगी का भलाई बुराई खुद ही सोच सकता है...." . फिर मुझे देख के कहा " है की नहीं ?" . मैं खामोशी से स्माइल देके मेरा बैग उठाने लगा. मेरा मन बहुत कह रहा था की में एक बार माँ से मिलके जाऊ. लेकिन कल रात से में खुद उनके सामने जा नहीं पा रहा हु जिद्द के लिए नहि, एक संकोच घेर के रखा है मुझे. एक शर्म मुझे दूर करके रखा है उनसे. चाह कर भी मेरा कदम उठाके उनके सामने जा नहीं पा रहा हु. शायद यह इस लिए की में मेरे से ज़ादा उनको शर्मिंदा नहीं करना चाहता था एक अजीब परिस्थिति में उनको डालके. ऐसे सिचुएशन में उनको नहीं ड़ालना चाहता था जहाँ वह शर्म और ग्लानी में खुद को दुःख पहुँचाए. तभी भी में जाने से पहले उनकी एक झलक देखने के लिए छट पटा रहा था. दरवाजे से निकल के पीछे मुड़के नाना नानी को “बाय” बोलते टाइम , उनकी नज़र चुराके अंदर की तरफ देखा था. मन सोच रहा था , शायद वह वहां कहीं खड़ी होगी. पर में निराश होके निकल गया
ओफिस में काम का प्रेशर था. मैं पूरा दम लगाके काम पे लग गया.
फिर भी हमेशा वह बात मेरा मन में रहता था. पूरे हप्ताह में इस को लेके सोचता रहा. ऑफिस में या साइट विजिट के टाइम भी मन में वह बात आजाती थी. जब भी उस बारे मे में थोड़ा गौर से सोचता था, तब ख़ुशी का एक आवेश मुझे पकड़ लेता था. पूरे हप्ता में ऐसे ही एक ख़ुशी और एक टेंशन में गुजर ता रहा
मैं वापस अने के बाद माँ को भी फ़ोन नहीं करता था. जब भी में फ़ोन करने के लिए सोचता था, मुझे एक शर्म और एक अन्जान अनुभुति घिरके रहता था. नानीजी एक बार फ़ोन करके मेरा हाल पूछे थे. बस...और न उनलोगों ने, ना में...हम कोई किसीसे बात नहीं कर रहा था.
ऐसे धीरे धीरे सब कुछ सोच के, सब ठीक विचार कर के, मेरे मन में एक रोशनाई पैदा होते रही. मेरा दिल भी अब एक पक्का डिसिशन में पहुच गया. और जैसे ही मेरा दिमाग उस डिसिशन को एक्सेप्ट किया, तभी से मेरे अंदर एक आनंद और सुख की अनुभुति फैली हुई है. मैं संकोच से बाहर आके मेरा डिसिशन नानाजी को बताना चाहा.
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