RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
जब तक मुझे सहना था, मैने भूख को सहा...लेकिन जब भूख के मारे पेट दर्द देने लगा तो पानी पीने के लिए उठा, इस बीच माँ पर मुझे गुस्सा भी बहुत आ रहा था कि ,ना जाने कहाँ चली गयी...
घर मे पानी भी नही था,इसलिए मैने बाल्टी उठाई और कुए की तरफ बढ़ा और जैसे ही कुए मे बाल्टी डालकर रस्सी नीचे की तभी मेरी नज़र कुए के पानी मे तैरती हुए मेरी माँ की..............."
इतना बोलने के बाद राजश्री पांडे वहाँ से उठकर चल दिया और हम दोनो कभी दरवाजे की तरफ देखते तो कभी खाली ग्लास की तरफ.....हम दोनो बहुत देर तक वैसे ही बैठे रहे,जिस हाल मे राजश्री पांडे हमे छोड़ कर गया था...इस बीच शराब के पूरे नशे के परखच्चे उड़ चुके थे...
"पांडे ने पूरा मज़ा खराब कर दिया बे आलंड, हज़ार रुपये निकाल..एक बोतल और लेकर आता हूँ..."
"चोदु समझा है क्या...आधा तू मिला और आधा मैं मिलाता हूँ..."
"अबे अभी देना...मेरे पास दस हज़ार का नोट है...चेंज कहा से लाऊ..."
"दस हज़ार का नोट "
"अबे मतलब...दस हज़ार का चेक है...कल बॅंक जाउन्गा तो ले लेना...और ये सौरभ कहाँ मरवा रहा है..."
"सौरभ को हटा तू भागकर दारू ला..."
.
अरुण से हज़ार का नोट लेकर मैने वॉर्डन की बाइक ली और चल पड़ा वर्ल्ड कप लेने....हाइवे तक तो मैं नॉर्मल बाइक चला रहा था, लेकिन जैसे ही हाइवे पर पहुचा ना जाने मुझ पर कौन सा जुनून सवार हो गया...मेरे हाथ आक्सेलरेटर पर जो नीचे हुए ,वो फिर कभी उपर नही हुआ और बाइक की स्पीड पहले 60 पहुचि ,फिर 80....
"आज तो बीसी सेंचुरी मारेंगे... "मन मे सोचते हुए मैने फिर से आक्सेलरेटर पर ज़ोर दिया....
अभी 80 किमी अवर की स्पीड को मैं पार ही कर रहा था कि सामने स्कॉर्पियो दिखा ,जिसकी डाइरेक्षन वही थी जो मेरी थी और सामने से एक ट्रक आ रहा था....मैने सोचा कि स्कॉर्पियो और ट्रक के बीच पेरबॉलिक कर्व बनाते हुए निकल जाउन्गा...इसलिए मैने आक्सेलरेटर और पेल दिया और झट से स्कॉर्पियो को क्रॉस करके उसके आगे आ गया ,लेकिन मेरी हवा तब निकली जब सामने से एक लड़की स्कूटी पर थी जो मेरी तरह ही पेरबॉलिक कर्व बनाने का जुगाड़ जमा रही थी...इस तरह उसने ट्रक को क्रॉस किया और मैने स्कॉर्पियो को...लेकिन इसके बाद हम दोनो एक दूसरे के सामने आ गये...जिस तरह मेरी हवा निकली, वैसी हवा लड़की की भी निकली और उसने आँख बंद करके और आक्सेलरेटर दे दिया....
"बीसी ,ठोकेगी क्या..."उस लड़की पर चिल्लाते हुए मैने अचानक ब्रेक मारा और उसके बाद जो दुर्गति हुई ,वो मुझे ही मालूम है...अगला ब्रेक मारने के कारण मैं झटका खाकर दूर सड़क पर गिरा और वॉर्डन की बाइक पीछे पता नही कहा गोते लगाती रही....मेरी स्पीड बहुत ज़्यादा थी ,इसलिए मैं सिर्फ़ रोड पर नही गिरा बल्कि 360 डिग्री के कयि राउंड भी मैने रोड पर लगाए और जब मैं रुका तब मुझे पता चला कि मैं पेला गया हूँ...
एक तो मैं पहले से ही डरा हुआ था उपर से वहाँ जमा हुई भीड़ ने मुझे और डरा दिया...मैं जैसे तैसे करके उठा तो देखा कि कही कोई निशान नही...इसलिए मैने हेकड़ी मारते हुए खुद से कहा"लवडा ,मर्द आदमी हूँ...ये छोटे-मोटे ज़ख़्म तो असर ही नही करते..."
"अबे पागल है क्या, अच्छा हुआ ट्रक रोक दिया वरना साले चढ़ गया होता तुझपर...."जिस ट्रक के चक्कर मे मैं वो पेरबॉलिक कर्व बना रहा था ,उस ट्रक का ड्राइवर उतर कर मुझपर चीखा और मैने देखा कि उसकी तो मुझसे भी ज़्यादा फटी पड़ी थी....
जहाँ पर मैं गिरते हुए ,गोते लगाते हुए रुका था...वहाँ से ट्रक सिर्फ़ एक मीटर की दूरी पर था यानी कि यदि ट्रक वाले ने ट्रक ना रोका होता तो मेरा काम तमाम हो गया होता...
"कोई बात नही, मैं ठीक हूँ...लेकिन बड़ी ताज़्ज़ूब की बात है कि साला कहीं मामूली सा भी खरॉच नही है..."वहाँ जमा हुए लोगो से मैने कहा और बाइक उठाने चल पड़ा....
बाइक की तरफ चलते हुए मुझे इतना अहसास तो ज़रूर हुआ कि मैं थोड़ा लंगड़ा कर चल रहा हूँ और मेरा बाया हाथ बहुत ज़्यादा दर्द दे रहा है.....
"अच्छा हुआ , जो सही-सलामत हूँ...वरना आंकरिंग नही कर पाता,जो कि एक हफ्ते के बाद ही है..."बिके की तरफ बढ़ते हुए मैं बड़बड़ाया और नीचे अपने जॅकेट की तरफ पहली बार निगाह डाली....
"ये बीसी ब्लीडिंग कहाँ से हो रही है...उस लड़की की माँ का..."जॅकेट को लाल रंग मे सना हुआ देख मैं ज़ोर से चिल्लाया.....
.
वो दिन मेरे कॉलेज लाइफ का एक काला दिन था या फिर उसे लाल दिन भी कह सकता हूँ क्यूंकी उस दिन मैं उपर से लेकर नीचे तक खून से लाल हो गया था...जिसका पता मुझे हॉस्टिल की तरफ बढ़ते हुए मालूम हुआ और काला दिन इसलिए क्यूंकी उस समय मेरे लिए जो सबसे इंपॉर्टेंट काम थे वो ऐसे अधूरे हुए जैसे कि एग्ज़ॅम मे लिखते-लिखते पेन की निब टूट जाना और दूसरा कोई ऑप्षन ना होना....
उन दीनो मेरे करियर से भी इंपॉर्टेंट,मेरे फ्यूचर से भी महत्वपुर्णा ऐसे दो काम थे, जो मेरे द्वारा बाइक से पेरबॉलिक कर्व बनाते हुए पूरे नही हुए...पहला काम ये था कि कैसे भी करके विपिन भैया का टाका पांडे जी की बिटिया से भिड़ने से रोकना था लेकिन उस आक्सिडेंट की वज़ह से मैं घर नही जा पाया...
दूसरा काम जो बिगड़ा वो पहले वाले से भी ज़रूरी था और वो था मेरी आंकरिंग मिस होना....ना जाने कितने अरमान सज़ा रख थे उस दिन के लिए ,जब मैं एश के साथ गोल्डन जुबिली के फंक्षन का सुभारंभ करूँगा और पूरा महोत्सव तालिया की आवाज़ से गूंजने लगेगा...लेकिन वो अरमान धरा का धारा रह गया...बोले तो केएलपीडी-खड़े अरमानो पर धोखा....
.
अपनी लूटी-पिटी सूरत और वॉर्डन की तुकी-ठुकाई बाइक लेकर मैं हॉस्टिल की तरफ बढ़ा और रास्ते मे एक क्लिनिक पर रोक दिया...क्लिनिक मे अपना ट्रीटमेंट करा कर मैं वापस हॉस्टिल की तरफ बढ़ा....
"बीसी ,जितने पैसे आते नही ,उससे ज़्यादा तो खर्च हो जाते है...आजकल हाथ से पैसा ऐसे निकल रहा है, जैसे लंड से मूठ.... घोर कलयुग है रे बावा...खैर ,शुक्रा है कि मेरे शक्ल को कुच्छ नही हुआ "
.
"माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥"
दूसरे दिन सुबह अपने बिस्तर पर लेटे हुए मैने कहा....
अरुण अभी कुच्छ देर पहले ही उठकर कॉलेज जाने की तैयारी कर रहा था कि मैने कबीर का एक दोहा कहा...
"ये क्या था बे..."
"अर्थात कबीर दास जी कहते हैं कि मनुष्य का मन और उसमे घुसी हुई माया का नाश नही होता और उसकी आशा ,इच्छाये भी नष्ट नही होती.केवल दिखने वाला शरीर ही मरता है.इसी कारण वह दुख रूपी समुद्र मे सदा गोते खाया करता है...."कबीर जी के उस दोहे का भावार्थ अरुण को समझाते हुए मैने कहा....
"मुझे लगता है कल रात के आक्सिडेंट का सीधा असर तेरे दिमाग़ पर हुआ है, कही तू सतक तो नही गया..."
"हे मूर्ख मानव,मैं सटका नही हूँ, मुझे आत्म-ज्ञान की प्राप्ति कल रात हुई है. ये तुम सब जिस माँस,मदिरा का सेवन करते हो ना ,वो सब पाप के मुख्य द्वार है.इसलिए हे बालक अब भी वक़्त है अपने आपकी उन दुर्गनो से रक्षा करो ,वरना तुम्हारा काल निकट है..."
"ओये सुन बे लोडू...ज़्यादा बात करेगा ना तो तेरा दूसरा हाथ भी तोड़ दूँगा...फिर तुझे डबल आत्म-ज्ञान की प्राप्ति हो जाएगी..."अपना बॅग कंधे पर लटकाते हुए अरुण बोला"साला जब देखो तब पकाता रहता है..."
अरुण और सौरभ के कॉलेज जाने के बाद मैं रूम मे पड़ा-पड़ा बहुत देर तक तो सोचता रहा कि अब ऐसा क्या करूँ,जिससे टाइम पास हो...क्यूंकी मैं ना तो बहुत दूर तक चल सकता था और ना ही उठकर बैठ सकता था...मुझे तो अब कयि दिन बिस्तर पर एक ही पोज़िशन मे गुज़रने थे.
"एक काम करता हूँ, मूवीस देखता हूँ...लेकिन साला सब तो देख चुका हूँ...फिर एक काम करता हूँ, बीएफ देखता हूँ...लेकिन इससे तो लंड खड़ा हो जाएगा और मुझे एनर्जी स्टोर करनी है ,इसलिए नो बीएफ, नो मूवी...."
"ओक बेबी, फिर सबसे पहले घर कॉल करके सनडे को ना आने का कोई सॉलिड बहाना चिपकाता हूँ विपिन भैया को..."बड़बड़ाते हुए मैने अपना मोबाइल निकाला और बड़े भैया का नंबर डाइयल किया...
.
"हां अरमान बोल ,कब आ रहा है..."कॉल उठाते ही बड़े भैया ने झट से पुछा...
"वो भैया,मैं आ नही पाउन्गा...सॉरी...वो क्या है ना कि इस सनडे को प्लेसमेंट के लिए एक कंपनी आ रही है...इसलिए मैं नही आ पाउन्गा. घर मे भी बता देना..."
"ओके...नो प्राब्लम..."
"क्यूँ हूँ मैं इतना होशियार...कहाँ से आते है ऐसे बहाने मेरे अंदर... ,"सोचते हुए मैने खुद से कहा"ये तो कमाल हो गया...मुझे तो ज़्यादा मेहनत भी नही करनी पड़ी..."
"तेरी आवाज़ इतनी धीमी क्यूँ आ रही है..."जब मैं मन ही मन खुद की तारीफ किए जा रहा था तो बड़े भैया ने मुझे टोका...
"वो मैं क्लास मे हूँ..."
"क्लास मे...क्या तेरे टीचर्स चलती क्लास के बीच मे स्टूडेंट्स को कॉल करने की पर्मिशन दे देते है क्या...सच बता कहाँ है..."
"अरे भैया क्लास मे ही हूँ...वो टीचर 5 मिनिट के लिए कहीं बाहर गया है...आपको यकीन ना हो तो टीचर के आने के बाद उनसे बात करा दूँगा..."
"रहने दे..रहने दे.इसकी कोई ज़रूरत नही..."
"ओके, बाइ..."बोलते हुए मैने मोबाइल साइड मे रखा और फिर सोचने लगा कि अब क्या किया जाए....कि तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर नज़र डाली तो मालूम चला कि कॉल एश की थी...
"ज़रूर मेरे कॉल रिसीव करते ही ये मुझे पर टूट पड़ेगी की मैं कहाँ हूँ, क्या कर रहा हूँ...प्रॅक्टीस मे क्यूँ नही आया...मैं इतना लापरवाह क्यूँ हूँ....ब्लाह...ब्लाह"
पहले तो सोचा कि कॉल का कोई रेस्पोन्स ही ना दूं,लेकिन फिर कल डॉक्टर की कही हुई इन्स्ट्रक्षन याद आई कि अब मैं 10-15 दिन के लिए बुक हो चुका हूँ ,तो मैने एश को ये बताने के लिए की मैं आंकरिंग से क्विट कर रहा हूँ, मैने कॉल उठा ही लिया...
"हेलो ,जानू..कैसी हूँ..चलो एक क़िस्सी दो..."
"व्हाट...दिमाग़ तो सही है तुम्हारा अरमान...मैं एश बोल रही हूँ..."
"एश...ओह सॉरी...सॉरी. मुझे लगा आराधना बोल रही है. वो क्या है ना कि आजकल हर आवाज़ मे सिर्फ़ आराधना की आवाज़ सुनाई देती है....वरना यदि मुझे मालूम होता कि तुम लाइन पर हो..."
"अब बाकी बाते रहने दो और जल्दी से आंकरिंग के लिए पहुचो..."
"चल हट, आज मेरा मूड नही है...आज मैं और आराधना लोंग ड्राइव पर जाने वाले है...उस छत्रु को बोल देना कि आइ'म नोट इंट्रेस्टेड..कोई दूसरा बंदा ढूंड ले "
"हेलो...कहना क्या चाहते हो..."
"छत्रपाल उधर है क्या..."
"हां..."
"तो फिर उसके पास जा और बोल कि मिस्टर. प्रेसीडेंट लाइन पर है..."
इसके बाद थोड़ी देर तक खटर-पाटर की आवाज़ आती रही और फिर एश की आवाज़ सुनाई दी...
"सर, अरमान आपसे बात करना चाहता है..."
.
जितना दुख मुझे कल ये जान कर हुआ था कि मैं अब गोल्डन जुबिली के फंक्षन मे आंकरिंग नही कर पाउन्गा, उतने ही पवर का हार्ट-अटॅक छत्रपाल को भी लगा ,जब मैने अपनी कल रात की सारी आप-बीती छत्रु को सुनाई...शुरू मे तो वो हल्का सा मुझपर भड़का भी कि मैने उसके प्लान का पूरा स्ट्रक्चर ही बर्बाद कर दिया लेकिन फिर जब मैने उसे मेरे बॉडी के बिगड़े हुए स्ट्रक्चर के बारे मे विस्तार से बताया तो उसने मेरा हाल-चाल पुछ्कर...गेट वेल सून बोलकर एक टीचर की फॉरमॅलिटी निभाई और फोन रख दिया.....
|