RE: Adult Kahani कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास
सुबह मैने उस से कुछ नही कहा और अपने घर चली आई, माँ ने मुझ से बात करने की कोशिश करी पर मैं माँ को अवाय्ड कर अपने कमरे मे चली गई.
अपने कमरे में आ कर मैं लेट गई और अपनी जिंदगी में आए इस तुफ्फान के बारे में सोचने लगी. इंसान ने चाहे कितनी भी तरक्की कर ली है, रहा वही जानवर का जानवर ही.बस कपड़े पहनना शुरू कर्दिया, नये नये आविष्कार कर लिए, और एक समाज की स्थापना करली, पर जो पूर्वजों के जीन्स हमारे अंदर कब से चले आ रहे हैं, वो कभी ना कभी कहीं ना कहीं तो सर उठाते ही हैं. फ़र्क बस इतना आ गया है, पहले कोई बंधन नही होता था, जिसको चाहा चोद लिया, और जिससे चाहा चुदवा लिया. अब लोग बंद कमरों में अपनी दबी हुई इच्छाओ को पूरा करते हैं.
जैसे मेरे माँ बाप और चाचा चाची कर रहे थे या अब भी कर रहे हैं. पर कल रात जो देखा वो अब तक मैं समझ नही पा रही हूँ एक बाप और बेटी अपनी वासना में लिप्त. अगर बाप बेटी इतना आगे बड़े हुए हैं तो ज़रूर माँ बेटे भी होंगे, ऐसा तो हो नही सकता कि ये दोनो छुप कर ही करते होंगे और मा बेटे को कुछ पता नही होगा. पता नही सच क्या है. पर मुझे उनके सच से क्या लेना देना.
मुझे तो अपने घर का सच जानना है और उसके लिए मुझे माँ के बहुत करीब जाना होगा.
यही सोच कर मैं नीचे गई और देखा कि पापा नाश्ता कर रहे हैं, आज मैं उनके पास ही जा के बैठ गई,मैने बहुत टाइट टॉप पहना हुआ था, मेरे उरोज़ पहाड़ की चोटी की तरहा खड़े थे.
पापा की नज़रें बार बार मेरे उरोजो पे आ के टिक जाती और सर झटक फिर अपना ध्यान खाने में लगा देते. मैं कनखियों से सब देख रही थी. पापा पहले भी शायद मेरे उरोजो को देखते होंगे पर मेरा ध्यान कभी नही गया, शायद कल जो तुफ्फान आया उसने मेरी छठी इंद्री को जागृत कर दिया और मुझे गढ़ती हुई नज़रों का ज़्यादा आभास होने लगा. मम्मी भी मेरे सामने आ के बैठ गई और बहुत रोकते हुए भी मेरे पैनी नज़रें माँ पे गढ़ गई.
पापा : तेरा कोर्स कैसा चल चल रहा है बेटा , कुछ चाहिए तो नही.
मैने अपने ख़यालों की दुनिया से वापस आई ‘ हां पापा सब ठीक चल रहा है, पापा इस बार कहीं घुमाने ले चलो, बहुत बोरियत हो रही है.’
पापा : ‘बेटा अपनी माँ और भाई बहन के साथ मिल के प्रोग्राम फाइनल कर लो और मुझे बता देना’
मैं : ‘भाई की छुट्टियाँ तो बहुत दूर हैं, हम सिर्फ़ वीकेंड पे क्यूँ नही चलते, बस दो दिन के लिए, थोड़ा चेंज हो जाएगा’
पापा : ठीक है, विमल और रिया इस बार जब आएँगे तो अगले हफ्ते का प्रोग्राम फाइनल कर लेना, मैं भी तब तक कुछ ज़रूरी काम निपटा लूँगा.
मैं : पापा के गले लगते हुए, ‘थॅंक यू पापा आप बहुत अच्छे हो’ मैने जान भुज कर अपने उरोज़ पापा की बाँह पे रगडे, और उसका असर एकदम हुआ.
पापा चिहुक पड़े और मुझे अलग कर फटाफट बाथरूम चले गये. मेरी नज़रों ने उनकी पॅंट के अंदर बने तंबू को देख लिया था. यानी पापा मेरे से गरम हो रहे थे.
अब मुझे सोचना ये था किस के साथ आगे बढ़ुँ, किसको अपने जाल में लपेटु पहले पापा या भाई. फिर सोचा क्यूँ ना अपनी सील भाई से ही तुड़वाऊ – मज़ा आएगा इस चॅलेंज को पूरा करने मे, हम दोनो जवान हैं, चुदाई भी ज़्यादा दम दार होगी, पापा को बाद में देखूँगी, बस अब उनको थोड़ा थोडा टीज़ करती रहूंगी.
बाथरूम से निकल पापा बाइ करते हुए चले गये और घर में रह गये मैं और माँ.
मैं जा के माँ के गले लग गई. ‘ माँ चलो थोड़ा बाहर घूम के आते हैं, आज दोपहर को बाहर ही खाएँगे’
माँ : मेरे सर पे हाथ फेरते हुए ‘ आज इन्स्टिट्यूट नही जाना क्या – तूने आज तक अपनी कोई क्लास नही मिस की, ये आज क्या हो रहा है तुझे’
अब माँ को क्या समझाऊ चूत में खुजली बढ़ गई है, उसका भी तो इंतेज़ाम करना है.
मैं : ‘ना माँ आज कोई ज़रूरी क्लास नही है, चलो ना प्लीज़.’ मैं माँ से और भी चिपक गई और अपने उरोज़ माँ की पीठ में गढ़ाने लगी.
माँ : अच्छा मुझे कुछ काम ख़तम करने दे फिर चलते हैं
मैं खुशी से चिल्लाते हुए ‘ ठीक है माँ, एक घंटे मे जो करना है कर लो, मैं तब तक तैयार होती हूँ’ और मैं भागती हुई अपने कमरे में चली गई.
एक घंटे बाद हम लोग चाणक्या पूरी के लिए निकल पड़े, वहाँ एक इंग्लीश फिल्म चल रही थी, मैने ज़िद करी तो माँ मान गयी. फिल्म में कुछ उत्तेजक सीन्स ज़्यादा थे, मेरी हालत बिगड़ने लगी मैं बार बार कनखियों से माँ को देख रही थी, कि उनपे क्या असर होता है, मुझे लगा कि माँ भी कुछ गरम हो रही है, क्यूंकी वो बार बार अपनी सीट पे हिल रही थी और अपनी टाँगें बींच रखी थी.
मूवी के बाद हम लोग मौर्या शेरेटन में लंच के लिए चले गये. मैने हिम्मत करते हुए माँ से पूछा. ‘माँ कभी बियर पी है क्या’
मा चोन्कते हुए ‘ नही , ये क्या बक रही है तू, चुप चाप लंच करते हैं और घर चलते हैं’
मैं : ‘माँ अब मैं बड़ी हो चुकी हूँ, और बड़ी लड़कियों के लिए माँ सबसे अच्छी दोस्त होती है, और दोस्त से कुछ छुपाया नही जाता’ मेरा चेहरा उतर चुका था.
माँ कुछ पलों तक मुझे देखती रही फिर ‘ अरे तू उदास क्यूँ हो गई, ऐसा नही करते, चल आज से हम पक्के दोस्त’ और माँ ने मेरे साथ शेक हॅंड किया, मेरे चेहरे पे मुस्कान दौड़ गयी.
मैने फिर सवालिया नज़रों से माँ को देखा तो इस बार माँ बोल पड़ी ‘ हां कभी कभी तेरे पापा के साथ पी लेती हूँ जब वो ज़्यादा ज़िद करते हैं’
मैं : ‘माँ मैं भी आज ट्राइ कर लूँ थोड़ी सी प्लीज़’
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