RE: Hindi Adult Kahani कामाग्नि
दोस्तो, आपने पिछले भाग में पढ़ा कि कैसे विराज ने जवानी की दहलीज़ पर उसने अपने दोस्त के साथ परस्पर हस्तमैथुन करना सीखा। दोनों की दोस्ती घनिष्ठता की हर सीमा लाँघ चुकी थी।
अब आगे…
पास के ही गाँव में एक बहुत बड़े ज़मींदार थे। लोग तो उनको उस पूरे इलाके का राजा ही मानते थे। उनका एक लड़का सुनील और एक लड़की शालू थी। ज़मीन कुछ ज़्यादा ही थी तो इस डर से कि कहीं सरकार कब्ज़ा ना कर ले, काफी ज़मीन बेटी शालू के नाम पर भी कर दी थी। हुआ ये कि इतने ऐश-ओ-आराम में बच्चे थोड़े बिगड़ गए। चौधरी जी ने भी सोचा इतना पैसा है; ज़मीन-जायदाद है; बच्चे थोड़े बिगड़ भी जाएं तो क्या फर्क पड़ता है।
लेकिन चिंता की बात तो तब सामने आई जब गाँव में काना-फूसी होने लगी कि शालू का अपने ही बड़े भाई सुनील के साथ कोई चक्कर है। यूँ तो चौधरी साहब खुद भी बड़े ऐय्याश किस्म के थे; तो उनको कोई फर्क नहीं पड़ता अगर उनके बेटे ने कोई रखैल पाल ली होती या गाँव में किसी और की बीवी से टांका भिड़ा लिया होता; लेकिन यह मामला तो अलग ही तरह का था। चौधरी जी ने सोचा की अपवाहों के आधार पर अपने बेटे-बेटी से इन सब के बारे में बात करना सही नहीं होगा लेकिन लोगों का मुँह भी बंद नहीं कर सकते। वैसे भी किसी की इतनी हिम्मत तो थी नहीं कि कोई उनके सामने मुँह खोल सके।
आखिर चौधरी जी ने सोचा कि बेटी की शादी करके विदा कर दें, तो न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।
लेकिन इतनी बदनामी के बाद किसी बड़े ज़मींदार के पास रिश्ता भेजा और उसने मना कर दिया तो यह बड़ी बेइज़्ज़ती की बात होगी इसलिए चौधरी ने यह रिश्ता विराज के लिए भेज दिया। उन्होंने बचपन से उसे अनाज मंडी में या खाद-बीज और कीटनाशक लेते हुए देखा था। उनको हमेशा लगता था कि वो बहुत मेहनती लड़का है। उनको विश्वास था कि जो जमीन उनकी बेटी के नाम है उसका सही उपयोग करके विराज ज़रूर उनकी बेटी को सुखी रख पाएगा।
विराज और उसकी माँ ने भी कुछ उड़ती उड़ती बातें सुनी थीं शालू के बारे में लेकिन विराज की माँ कौन सी दूध की धुली थी। उस पर जो ज़मीन शालू अपने साथ लेकर आने वाली थी वो पहले ही उनकी ज़मीन से दोगुनी थी। यह बहू सिर्फ कहने के लिए नहीं बल्कि सच में लक्ष्मी का रूप थी। अब घर आती लक्ष्मी को कौन मना करता है तो विराज की माँ ने तुरंत हाँ कर दी।
चौधरी साहब भी जल्दी में थे तो चट मंगनी पट ब्याह हो भी गया।
बारात वापस आई और सारे पूजा पाठ ख़तम हुए तब दुल्हन रिश्तेदार महिलाओं के साथ एक कमरे में बैठी थी। सुहागरात में अभी समय था तो विराज और जय पीछे बाड़े में अकेले बैठे गप्पें लड़ा रहे थे।
जय- भाई, अब तेरी तो शादी हो गई। मुझे तो अब अपने ही हाथ से मुठ मारनी पड़ेगी।
विराज- अरे नहीं! ऐसा कैसे होगा? पहली बार मुठ मारी थी तब से आज तक हमने हमेशा एक दूसरे की मुठ मारी है लंड चूसा है। ऐसे थोड़े ही कोई शादी होने से दोस्ती में दरार पड़ेगी।
जय- वो तो सही है, लेकिन अब तुझे चूत मिल गई है तो तू मुठ क्यों मारेगा?
विराज- हम्म! यार जब एक दूसरे के हाथ से मुठ मार सकते हैं। एक दूसरे का लंड चूस सकते हैं तो एक दूसरे की बीवी की चूत क्यों नहीं मार सकते?
जय- अरे! ऐसा थोड़े ही होता है।
विराज- अरे तू चल आज मेरे साथ … दोनों भाई साथ में सुहागरात मनाएँगे। वैसे भी छिनाल पता नहीं क्या क्या गुल खिला के बैठी है; बड़े चर्चे थे इसके गाँव में।
जय- अरे यार तू इतना गर्म मत हो। क्या पता किसी ने जलन के मारे यूँ ही खबर उड़ा दी हो। तू अकेले ही जा और प्यार से चोदना भाभी को; अगर पहले कोई गुल खिलाए होंगे तो पता चल ही जाएगा; और नहीं तो जिस दिन मेरी शादी हो जाएगी और अपन दोनों की जोरू राज़ी होंगी तो ही मिल के चोदेंगे। बीवी है यार … अपना हाथ नहीं है कि जो उसकी खुद की कोई मर्ज़ी ना हो।
विराज- हाँ यार, बात तो ये भी तूने सही कही। लेकिन तू अपने हाथ से मुठ नहीं मारेगा। जब तक तेरी शादी नहीं हो जाती तब तक मैं अपनी बीवी और तुझे दोनों को मज़े देने लायक दम तो रखता हूँ।
ऐसे ही बातें करते करते रात हो गई और कुछ औरतें विराज को बुलाने आ गईं। उनमें से एक कहने लगी- काय भैया? मीता संगेई सुहागरात मन ले हो, के जोरू की मूँ दिखाई बी करे हो?
इतना कह के हँसी मजाक करते हुए औरतें विराज को सुहागरात वाले कमरे में धकेल आईं।
अन्दर मंद रोशनी वाला बल्ब जल रहा था। विराज ने दूसरा बल्ब भी जला दिया जिससे कमरा रोशनी से जगमगा गया। विराज के अन्दर प्रेम की भावना कम थी और गुस्सा ज्यादा था क्योंकि उसने काफी लोगों के ताने सुने थे कि विराज ने ज़मीन के लालच में बदचलन लड़की से शादी कर ली। वो देखना चाहता था कि शालू कितनी दुष्चरित्र है? उस ज़माने में गाँव की शादियों में दुल्हनें लम्बे घूंघट में रहतीं थीं तो अभी तक विराज ने शालू को देखा नहीं था।
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