RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
मैंने उत्सुकतावश पुछा " अभी तक पुजारन देवसेना माँ क्यों नहीं बन पायीं ?"
उसने जवाब दिया " महाराज पुजारन बनने की प्रक्रियाओं में से एक प्रक्रिया के तहत हमे एक ऐसे फल का सेवन करना होता है जिससे हमारी माँ बनने की संभावनाये नगण्य हो जाती हैं।"
मैंने फिर पूछा " तो मां बनना इतना जरुरी क्यों है ?"
वो जवाब देती है " महाराज आजतक कोई भी पुजारन माँ नहीं बन पाई है जो कोई पुजारन कालरात्रि की पूजा से माँ बन जायेगी उसकी पूजा देवी की तरह हर काबिले में की जायेगी।"
अब मुझे सब कुछ समझ में आ गया था कि मुझे यहां किस लिये बुलाया गया है । मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूछा " अच्छा अगर देवसेना देवी बन जाएँगी तो पुजारन कौन होगा ?"
उसने हँसते हुये जवाब दिया "मैं "
मैंने कहा " देवसेना देवी बन जाएँगी और तुम पुजारन तो मुझे क्या मिलेगा ??"
उसने पूछा " मैं समझी नहीं ?? आपको क्या चाहिए "
मैंने कहा " एक वचन आप दोनों से । अगर देवसेना मेरी संतान की माँ बन जाती हैं तो उन्हें मुझे सारे क़बीलों का सरदार घोषित करना होगा और जब तुम पुजारन बन जाओगी तो तुम्हे भी हमेशा मेरी मदद करनी होगी ।"
उसने कुछ सोचते हुए जवाब दिया " महाराज मैं पुजारन देवसेना से अभी इस विषय में बात करती हूं। "
वो जैसे जाने के लिये उठी मैंने उसे अपने ऊपर खींच लिया और फिर एक बार हम दोनो एक दूसरे में फिरसे समा गए।
अगली सुबह मैं पुजारन देवसेना से मिलने उनके मंदिर में गया। वो मुझे देख के अति प्रसन्न हुईं और बोली " महाराज मैंने आपकी शर्ते सुनी और वो मुझे मंज़ूर हैं "
मैंने पास ही खड़ी देवबाला की तरफ देखा " उसने कहा " मुझे भी मंजूर है"
मैंने कहा कि " तो फ़िर मैं भी तैयार हूं आपकी पूजा के लिये बताइये कब से शुरू करनी है ये पूजा ?"
पुजारन देवसेना ने जवाब दिया " आज रात को ही शुरू करेंगे आप आज रात को यहाँ मंदिर में आ जाइयेगा मैं सारी तयारी कर के रखूंगी ।"
मैंने कहा कि " फिर ठीक है मैं अब चलता हूँ "
फिर मैं अपनी कुटिया में वापस आ गया और भोजन करके विश्राम करने लगा क्योंकि आज रात लंबी होनी वाली थी।
रात को मैं भी स्नान करके मंदिर पंहुचा तो गर्भ गृह में पुजारन देवसेना मेरा इंतज़ार कर रही थी। उन्होंने आज अपने शरीर पे भस्म भी नहीं लगाई थी अर्थात वो एकदम नग्न अवस्था में थी। कमरे में चारो ओर खुशबू फैली हुई थी बीच में जानवरों की खाल का बिस्तर था जिसे पुष्प से सजाया गया था। सामने फल और मदिरा का ढेर लगा हुआ था।
मेरे वहां पहुचते ही सारी दासियां वहाँ से चली जाती हैं और हमे वहाँ अकेला छोड़ देती हैं। पुजारन देवसेना मेरा हाथ पकड़कर मुझे बिस्तर तक ले जाती है और मेरे हाथ में मदिरा का एक प्याला दे देती हैं। मैं एक ही घूँट में उसे पी जाता हूं। पुजारन देवसेना का सौंदर्य पास से देखने पे और सम्मोहित करने वाला था। मैंने मदिरा के दो चार और प्याले अपने हलक से नीचे उतार लेता हूं।
थोड़ी देर बाद पुजारन देवसेना ने मुझसे कहा " महाराज इस पूजा के नियम आप को समझाना चाहती हु इस पूजा में आप को मेरे शरीर को अपने हाथ से स्पर्श नहीं करना होगा बाकी आप जो चाहे कर सकते हैं।"
मैंने कहा " ठीक है "
फिर वो मेरा लंड पकड़कर ऊपर नीचे करने लगती है उसने अपने हाथ पे कुछ लगाया था जिससे मेरे लंड पे चिकनाई लग जाती है और उसका हाथ मेरे लंड पे तेजी से फिसलने लगता है । मुझे लगा की मैं तुरंत ही झड़ जाऊंगा पर किसी तरह खुद को संतामित किया। मेरे लिए अजीब विडंबना की स्थिति थी की वो मुझे उत्तेजित कर रहे थी पर मैं उसे उत्तेजित नहीं कर पा रहा था। तभी मेरी नज़र पास ही पड़े मोर पंख पे पड़ती है जो की शायद किसी पूजन कार्य के लिए वहां रखा हुआ था मैंने वो अपने हाथ में ले लिया और उसके चुचको के ऊपर फिराने लगा। उसे शायद गुदगुदी महसूस हुई और वो मचल उठी। मैंने फिर वो मोर पंख उसकी गर्दन पे हलके से फिराया तो उसकी आँखे बंद हो गयी तो मैंने अपने होठ उसके होठों पे रख दिए। कुछ देर तक हम एक दूसरे को चूमते रहे फिर पुजारन देवसेना अपनी पीठ के बल बिस्तर पे लेट गयी। मैंने भी अब उन्हें उत्तेजित करने का तरीका खोज निकाला था मैं भी वो मोर पंख धीरे धीरे उसके शरीर पे फिराने लगा तो वो मचलने लगी । फिर मैंने वो मोर पंख उसकी चूत के ऊपर फिरना शुरू किया तो उसकी टाँगे खुल गयी और उसकी चूत मुझे नजर आने लगी। मैंने भी वो मोर पंख उसकी चूत के दाने पे फिरना शुरू किया तो वो एकदम से तड़पने लगी और झड़ गयी। मेरा लंड अब एकदम कड़क हो गया था पर उसे न छूने की शर्त भी मेरे आड़े आ रही थी तो मैंने उसे घोड़ी बनने को कहा तो वो मेरे आगे घोड़ी बन गयी। मैं उसके पीछे घुटनो के बल खड़ा हो गया तो उसने मेरा लंड अपनी चूत के द्वार पे लगा लिया । मैंने भी अपनी कमर को झटका दिया तो चिकना होने के कारण मेरा लंड सरक कर उसकी चूत में जड़ तक समा गया। मैं फिर अपना लंड हल्का सा बाहर खींच के ताबड़तोड़ कमर हिलाना शुरू किया । कुछ पकड़ने को न होने के कारण मुझे दिक्कत तो हो रही थी फिर भी मैंने ऐसे ही उसकी चुदाई जारी रखी । कुछ देर बाद देवसेना फिर से उत्तेजित होने लगी तो मैंने उसकी उत्तेजना बढ़ाने के लिए फिर उसे मोर पंख से छेड़ना शुरू कर दिया तो नतीजा ये हुआ की वो अपने चरम पे पहुँच गयी और उसके थोड़ी देर बाद मैं भी।
सुबह मैं उठा तो देखा पुजारन देवसेना अभी भी मेरे बगल में लेटी हुई थी। मैं उसके मादक बदन को देख के एक बार फिर उत्तेजित हो गया। मैंने धीरे से उसकी टाँगे फैलाई और उसकी चूत की फांको को हल्का सा फैलाया तो उसकी चूत का दाना दिख गया। अब मेरे सब्र का बाँध टूट गया और मैंने उसकी चूत के दाने को मुंह में ले लिया । पुजारन देवसेना की आँखे खुली तो उसने मुझे धकेलने की कोशिश की तो मैंने भी और जोरो से उसकी चूत के दाने को जीभ से छेड़ने लगा । पुजारन देवसेना की सिसकारियां छूटने लगी । मैंने उसके चूत के दाने को छेड़ते हुए मैंने अपनी एक ऊँगली उसकी चूत में घुसा दी और जोर जोर से अंदर बाहर करने लगा। पुजारन देवसेना मजे से दोहरी हो गयी और अपनी कमर को उठा कर अपनी चूत मेरे मुह में घुसाने लगी। मैंने भी देखा की पुजारन देवसेना गर्म हो गयी है तो मैंने अपना लंड उसकी चूत पे रख कर धक्का दिया तो मेरा लंड उसकी चूत में घुस गया । अब मैंने धक्के पे धक्के लगाने शुरू कर दिए । देवसेना भी मेरे धक्कों के साथ अपनी कमर हिला के मेरा साथ देने लगी । कुछ देर तक ऐसे ही मैं उसकी चूत चोदता रहा फिर मैंने उसे पलट कर घोडी बना दिया और पीछे से चुदाई करने लगा। देवसेना की चीखो से पूरा गर्भगृह गूंजने लगा । अब मेरा भी लंड झड़ने के करीब आ गया था मैंने अपने धक्के की गति को बढ़ा दिया और उसके वक्षो को पीछे से मसलने लगा। कुछ देर बाद देवसेना और मैं दोनों झड़ गए।
कुछ देर हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे फिर पुजारन देवसेना ने मुझसे कहा " महाराज मैंने सोचा था कि कल रात मुझे सम्भोग में अपने जीवन का सबसे मजा आया पर आज सुबह आपने मुझे कल रात से दुगना मजा दे दिया।"
मैंने पुजारन देवसेना से कहा " देवसेना जी आपने अभी कुछ देखा ही नहीं है कुछ दिन और मेरे साथ रहिये मैं आपको मजा देने के साथ गर्भवती भी बनाऊंगा "
देवसेना कहा " भगवन करे ऐसा ही हो "
अब रोज का यही क्रम हो गया था कि रात में पुजारन देवसेना की चूत की पूजा होती थी । इसी प्रकार एक माह बीत गए और इस माह पुजारन देवसेना को मासिक नहीं आया। पूरे मंदिर में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी पुजारन देवेसेना ने मुझे बुलाया और कहा " महाराज मैं आपकी आभारी हूं कि आप की वजह से मेरा वर्षों का सपना पूर्ण हो गया । "
मैंने उत्तर दिया " अब आपको अपने वचन को पूर्ण करने का समय भी आ गया है।"
देवसेना " महाराज मैं आज ही सारे कबीलों में ये संदेश भिजवा देती हूं कि मैंने आपको कबीलों का सरदार चुन लिया है "
मैंने कहा " धन्यवाद पुजारन देवसेना अब मैं वापस जाने की अनुमति चाहता हूं "
देवसेना " महाराज कुछ दिन और रुकिए न "
मैंने कहा " नहीं पुजारन जी मुझे यहाँ आये हुए कई दिन ही गए पता नहीं मेरे कबीले का क्या हाल होगा अब मुझे अपने कबीले के सरदार होने का कर्त्तव्य भी निभाना होगा अतः मैं अब जाना चाहता हु "
पुजारन देवसेना ने भारी मन से मुझे जाने की अनुमति दे दी।
मैंने भी अपना सामान बांधा और निकल पड़ा वापस अपने क़ाबिले की तरफ। ऐसे ही आगे बढ़ते बढ़ते सुबह से शाम हो गयी मैं भी तेजी से कदम बढ़ाने लगाकि अचानक मेरा पैर एक सूखी दाल पे पड़ा जो मेरे वजन से टूट गयी और मेरे पैर किसी फंदे में फंस गया जिसके कारण मैं उल्टा होता हुआ ऊपर की और उठता चला गया। मेरे शरीर का पूरा वजन मेरे एक ही पैर पे पड़ रहा था जिसके कारण मेरे पैर में बहुत जोरों का दर्द उठना शुरू हो गया और उल्टा लटके होने के कारण मेरा सर घूमने लगा। थोड़ी ही देर में एक औरत हाथ में तीर धनुष ताने मेरी दृष्टि के सामने प्रकट हुई। उसने पुरे शरीर को चमड़े के वस्त्र से ढँक रखा था उसके लंबे बाल सर के ऊपर बंधे हुए थे ।
उसने तेज आवाज में मुझसे पूछा " कौन हो तुम और यहाँ हमारे कबीले में क्या कर रहे हो ?"
मैं नहीं जानता था कि ये दोस्त है या दुश्मन सो मैंने भी अपनी पहचान छुपाते हुए जवाब दिया " मैं एक मुसाफिर हु और रास्ता भटक गया हूं "
उसने कहा " कहाँ से आ रहे हो ? "
मैंने जवाब दिया " पुजारन देवसेना के मंदिर से आ रहा हु "
उसने फिर कड़े लहजे में पूछा " देवसेना के मंदिर में कोई बिना अनुमति नहीं जा सकता सच बताओ कौन हो तुम "
मैंने फिर वही बात दोहराई ।
उसे ये बात पसंद नहीं आयी और उसने आगे बढ़ते हुए मेरे सर पे किसी भारी चीज से वार किया और मैं बेहोश ही गया।
आँखे खोलते ही तीव्र पीड़ा मुझे महसूस हुई और मेरी एक आँख पूरी तरह से नहीं खुल पायी थी । लग रहा था कि जब उस औरत ने मेरे सर पे वार किया तो कुछ चोट मेरी आँखों पे भी लग गयी थी जिसके कारण मेरी एक पलक सूज गयी थी। मैंने अपनी दूसरी बची हुई आँख से देखा तो मेरे हाथ पैर बंधे हुए थे और मेरे चारो ओर औरतों का झुण्ड खड़ा था। सब के शरीर चमड़े के वस्त्र से ढंके थे और बाल जटाओं की तरह सर के ऊपर बंधे हुए थी।
मेरी आँखे खोलते ही एक औरत ने मुझसे कड़क आवाज में पूछा " कौन हो तुम और हमारे कबीले में क्या कर रहे हो ?"
मैंने फिर वही जवाब दिया " मैं एक मुसाफिर हु और रास्ता भटक के आपके कबीले में आ गया हूं "
उसने फिर कहा " तुम्हे ये नहीं पता की हमारे कबीले में पुरुषों का प्रवेश वर्जित है ?"
मैंने कहा " जी नहीं मुझे नहीं पता "
उसने फिर कहा " तब तो तुम्हे ये भी नहीं पता होगा की हमारे कबीले में अनाधिकृत प्रवेश करने पर मृत्यु दंड की सजा है "
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