Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
10-11-2019, 01:15 PM,
#17
RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
शराब सिगरेट भी खूब पीने लगी हूँ। दिन भर में छुपछुपा के स्कूल में और अपने घर में भी कमज़ कम पंद्रह सिगरेट और रोज़ाना शाम को दो-तीन घंटों में लड़कों के साथ चुदाई के दौरान एक पव्वा तो अमूमन पी जाती हूँ। दरसल मुझे नशा जल्दी चढ़ जाता है लेकिन एक पव्वे में बदमस्त सी खुमारी के बावजूद भी मैं इतने होशो हवास में तो रहती हूँ कि ऊपर से नॉर्मल नज़र आती हूँ। वैसे जब मैं फ्राइडे रात को घर से बाहर ऐयाशी करती हूँ या फिर कईं दफ़ा जब कभी अम्मी और अब्बू शहर से बाहर होते हैं तो जरूर दिल खोल के खूब शराब पीती हूँ। ऐसे मौकों पे ज्यादा शराब पी कर कईं दफ़ा तो बेहद टुन्न भी हो जाती हूँ और कईं दफ़ा अगले दिन सुबह सिर भी दुखता है लेकिन मेरी एक खासियत ये है कि मैं कितनी भी शराब पी लूँ लेकिन अल्लाह़ का फज़ल है कि उसकी वजह से कभी भी उल्टी वगैरह आज तक नहीं हुई।

सैक्साहोलिक होने के साथ-साथ मैं बेहद पर्वर्टिड भी हो गयी हूँ। हर मुख्तलिफ़ किस्म की वाहियात और फ़ासिद चुदाई का लुत्फ़ आज़माने के लिये हमेशा तैयार रहती हूँ। मिसाल के तौर पे शराब पी कर एक साथ कईं-कईं लड़कों के साथ ग्रुप-सेक्स करना और अपनी चूत और गाँड में एक साथ दो-दो लौड़ों से चुदते हुए तीसरा लंड मुँह में लेकर चूसना या आम खुली पब्लिक जगहों पे चुदाई करना और चुदाई के दौरान अलग-अलग किस्म के किरदार निभाना (रोल-प्ले करना) और लड़कों के साथ अपने गुलामों जैसा सुलूक करना और उनसे अपने सैंडल चटवाने जैसी हरकतों के अलावा लड़कों के पेशाब में भीगना और उनका पेशाब पीना, लड़कों की गंदी गाँड चाटना वगैरह मेरी बदकारियों के बेहद मामूली और अदना से अक़साम हैं। दर असल मैं जिन्सी बेराहरवियों में इस कदर हद से ज्यादा मुब्तिला हो चुकी हूँ कि अब तो मैं जानवरों तक से बाकायदा चुदवाने लगी हूँ और पिछले एक साल से मैं कुत्ते, बकरे, गधे, बैल और घोड़ों से चुदवाने का शदीद मज़ा ले रही हूँ।

करीब एक साल पहले का वाकिया है। मैं हफ़्ता-वार फ्राइडे रात को कुलद़ीप के आलीशान फ़ार्महाउज़ पे उन ही चारों लुच्चे लड़कों के साथ खूब ऐयाशी कर रही थी। इत्तेफ़ाक से उस दिन संजेय की सालगिरह भी थी। आधी रात तक मैं उन चारों के लौड़ों को कमज़-कम तीन-तीन दफ़ा अपनी चूत या मुँह या गाँड में बिल्कुल निचोड़ कर उन्हें पस्त कर चुकी थी और मज़ीद एक-दो घंटे तो उनसे चुदाई की कोई उम्मीद नहीं थी। मैं खुद भी उनसे चुदाई के दौरान ना मालूम कितनी दफ़ा झड़ते हुए लुत्फ़ अंदोज़ हो चुकी थी लेकिन मेरी शहूत कम नहीं हुई थी और मेरी बदकार चूत मज़ीद चुदाई की मुशताक़ थी। वो चारों लडके बड़े हॉल में ही एक तरफ़ सोफ़े पे आधे नंगे बैठे टीवी पे कोई मैच देखने लगे जबकि मैं कालीन पे महज़ ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी पसरी हुई उन लड़कों के लौड़े जल्दी ताज़ादम होने की उम्मीद में अपनी चूत सहला रही थी। मैं शराब के नशे में भी बेहद मस्त थी और मदहोशी और हवस के आलम में मुझे अपनी शहूत पूरी करने के अलावा किसी बात का होश या फ़िक्र नही थी। बस ये ही आरज़ू थी कि फिर से मेरी चुदाई शुरू हो जाये और मैं तमाम रात मुसलसल चुदती रहूँ। इसी फ्रस्ट्रेशन और तड़प में मैं अपनी चूत सहलाती हुई उन नामुराद स्टूडेंट्स को बीच-बीच में बड़बड़ा कर ताने और गालियाँ बक देती थी लेकिन उन नामाकूलों को मेरी हालत पे ज़रा भी तरस नहीं आ रहा था। बल्कि वो तो हंसते हुए बोले कि, "अरे चूतमरानी तब़्बू मैडम! साली तेरा दिल कभी चुदाई से भरता है कि नहीं है... हमें क्या चुदाई की मशीन समझ रखा है... थोड़ी देर सब्र कर चुदासी कुत्तिया... खूब चोदेंगे तुझे तब़्बू जान लेकिन दम तो लेने दे हमें!"

"भाड़ में जाओ साले मादरचोदों!" मैंने भी ज़रा चिढ़ते हुए उन्हें गाली दी और अपनी बेकरार चूत के लुत्फ़ो-सुकून के लिये मुश्त ज़नी ज़ारी रखी। इसी तरह एक हाथ से अपने फूले हुए बाज़र (क्लिट) को इश्तिआल करती हुई मैं मस्ती में दूसरे हाथ की दो उंगलियाँ अपनी चूत में ज़ोर से अंदर-बाहर कर रही थी और झड़ने के करीब ही थी जब मुझे अपने नज़दीक कुछ हरकत महसूस हुई। मैंने आँखें खोल के देखा तो कुळदीप का पालतू डॉबरमैन कुत़्ता, प्रिंस मेरे इर्द गिर्द मंडरा रहा था। मुझे उससे कोई खौफ़ नहीं था क्योंकि वो अक्सर फार्महाउज़ पे मौजूद होता था और वो भी मुझसे वाक़िफ़ था। उसकी मौजूदगी को नज़र-अंदाज़ करते हुए मैंने खुद-लज़्ज़ती ज़ारी रखी लेकिन कुछ ही लम्हों में मुझे अपनी चूत पे उसकी गरम साँसें महसूस हुई तो मैंने फिर आँखें खोल के उसे देखा। "या अल़्लाह! इस कुत्ते को भी मेरी चूत चहिये क्या!" मैंने मज़ाक में अपने दिल में सोचा लेकिन अगले ही पल जो हुआ उसने तो मुझे बेहद चुदक्कड़ और हवस-परस्त होने के बावजूद भी बदहवास कर दिया। उस कुत्ते़ ने अपनी लंबी सी ज़ुबान मेरी चूत के लबों पे फिरा दी। उसकी ज़ुबान का लम्स महसूस करते ही एक पल के लिये तो मेरी साँस ही रुक गयी... किसी खौफ़ या नफ़रत की वजह से नहीं बल्कि इसलिये कि ये बेहद लुत्फ़ अंदोज़ एहसास था। उसने फिर से अपनी ज़ुबान तीन-चार मर्तबा मेरी चूत पे फिरायी तो मेरी चूत ने वहीं पानी छोड़ दिया।
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RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी - by sexstories - 10-11-2019, 01:15 PM

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