RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
रंगीली कुच्छ देर बाबलों की तरह उसे घूर रहे सेठ को देखती रही, फिर हल्की सी मुस्कान अपने होंठों पर लाकर वो मूडी और खुद ही उसने दरवाजे को बंद किया…
लाला की तंद्रा भंग हुई, और वो जैसे ही उनकी तरफ मूडी, लपक कर उन्होने उसे अपनी बाहों में लेना चाहा…
रंगीली ने अपने हाथ का इशारा करके उन्हें रुकने को कहा, लाला अपनी जगह ठिठकते हुए बोले –
अब मत रोको हमें रंगीली रानी, बहुत सब्र कर लिया, अब नही कर पाएँगे…!
रंगीली – मे भी अपना तन-मन आपको सौंपने ही आई हूँ मालिक, लेकिन सबसे पहले अपना वादा तो पूरा करिए…!
धरमदास – कॉन सा वादा…? ओह्ह्ह्ह…वो..! अभी लो, इतना कहकर वो गद्दी की ओर मुड़े, और अपनी डेस्क के उपर रखे कुच्छ बही-खाते उन्होने रंगीली के हाथ पर रख दिए…
लो ये रहे तुम्हारे दोनो घरों के लेन-देन का हिसाब-किताब, देख लो बराबर है कि नही, और जो जी में आए वो इनका करो…!
रंगीली बेचारी ज़्यादा पढ़ी-लिखी तो नही थी, बस पाँचवी तक अपने गाओं के मदरसे में गयी थी,
फिर भी उसने लाला को दिखाने के लिए वो बही खाते खोल लिए, और यूँही पन्ने उलट-पलट कर कुच्छ देर देखती रही…!
लाला – विश्वास करो हमारा रानी, हम तुम्हारे साथ कोई धोखा नही करेंगे…
बही खातों को पकड़े हुए वो मेज की तरफ बढ़ गयी, खातों को बैठक के एक कोने में पटका, वहाँ से एक दिया उठाकर उसका तेल उनपर छिड़का और उसी दिए से उनमें आग लगा दी…!
फिर उन्हें जलता देखकर उसने एक गहरी साँस ली, मानो उसके दिल से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो…!
उसने आज अपने दोनो परिवारों को लाला के क़र्ज़ से मुक्त करा लिया था…!
उसके बाद वो लाला के पास लौटी, और उनकी आँखों में आँखें डालकर बोली – अब ये दासी आपकी गुलाम है मालिक, जैसे जी में आए वैसे भोग सकते हैं…!
लाला ने उसकी कमर में हाथ डालकर अपने सीने से चिपका लिया, उनका मूसल जो अभी भी किसी बॉर्डर के जवान की तरह सीना ताने जंग लड़ने के लिए तैयार खड़ा था, उसकी कमर में जा अड़ा…
उसकी सख्ती महसूस कर रंगीली के मूह से सिसकी निकल गयी…!
लाला ने प्यार से उसके होंठों पर अपनी उंगली घूमाते हुए कहा – तुम हमारी दासी नही हो रंगीली, हमारे दिल की मलिका हो… आज से हमें अकेले में कभी मालिक मत कहना…!
रंगीली सेठ के चौड़े चाकले सीने से लगी उनकी छाती के बालों में अपनी उंगलियाँ फेरती हुई बोली –
मे तो आपकी नौकर हूँ, और अब अपना तन भी आपको सौंप रही हूँ, तो आप मेरे मालिक ही हुए ना…!
लाला – ओह्ह्ह..रानी, छोड़ो ये मालिक नौकर का झंझट, आओ गद्दी पर चलते हैं, इतना कहकर उन्होने उसे किसी बच्ची की तरह अपनी गोद में उठा लिया, और उसे लेकर गद्दी पर आकर बैठ गये…
वो अभी भी उनकी गोद में सिकुड़ी सिमटी सी बैठी थी…, लाला ने उसके हल्की सी लाली लगे होंठों को चूमते हुए उसके कठोर उरोजो को सहला कर कहा –
हम तुम्हारे लिए कुच्छ लेकर आए हैं, ये कहकर पास के ही डेस्क से एक पॅकेट निकाल कर उसे थमाते हुए बोले – इसमें तुम्हारे लिए अधोवस्त्र हैं,
हमारी इच्छा है कि तुम गुसल खाने में जाकर इन्हें पहनो, और उन्ही में हमारे पास आओ…!
जी मालिक हम अभी आए, और पॅकेट लेकर वो बैठक की साइड में बने गुसलखाने में चली गयी…!
लाला बड़ी बेसब्री से गुसलखाने की तरफ दृष्टि जमाए उसके निकलने का इंतेज़ार करने लगे…!
उधर गुसलखाने में जब रंगीली ने वो पॅकेट खोलकर देखा, उसमें गुलाबी रंग की नये जमाने की अंगिया और कच्छी (ब्रा-पेंटी) को देखकर खुद ही उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया…
हाए राम, इतने छोटे कपड़े पहन कर हम मालिक के सामने कैसे जा पाएँगे..? नही नही हमसे ये नही हो पाएगा…!
पर अब तो हम अपना सबकुच्छ सौंपने आही गये हैं, ये भी कपड़े तो निकालने ही पड़ेंगे, तो फिर इन्हें पहनने में ही क्या हर्ज़ है..
देखें तो सही इनमें लगते कैसे हैं…? लेकिन ये बताएगा कॉन…? इसी उधेड़-बुन में उसने अपनी साड़ी का पल्लू गिरा दिया…,
एक-एक करके सारे कपड़े उसके बदन से अलग हो गये, आज उसने अपने यौनि
प्रदेश को भी साफ किया था, सो अपनी छोटी सी मुनिया के पतले-पतले चिकने होंठों को सहलाते हुए वो खुद ही शर्म से पानी-पानी होने लगी…!
फिर जी कड़ा करके उसने वो अधोवस्त्र पहन लिए और उपर से बिना पेटिकोट और ब्लाउस के ही साड़ी लपेटकर वो बाहर आ गयी….!
लाला ने उसे देखते ही झुँझलाकर कहा – ओहू.., तुम तो उन्ही कपड़ों में हो अभी भी, हमारी ज़रा सी इच्छा पूरी नही कर सकती…!
वो धीरे-धीरे चलते हुए उनके पास तक आई, और उनके गले में अपनी पतली-पतली बाहें डालकर, नीचे के होंठ को दाँतों तले दबाकर बोली –
अब ये परदा तो आपको ही उठाना पड़ेगा हुज़ूर, लीजिए.. ये कहकर अपनी साड़ी का एक छोर उन्हें पकड़ा दिया…!
लाला उसकी बात समझ गये, और उसकी साड़ी को उसके बदन से अलग करने के लिए दुशासन की तरह खींचने लगे…!
उनके सारी खींचते ही वो भी गोल-गोल घूमने लगी, और दूसरे ही पल उसकी साड़ी द्रौपदी के चीर की तरह उसके बदन से अलग हो गयी, जिसे लाला ने दूर उछाल दिया…
अब उनकी आँखों के सामने जो रंगीली खड़ी हुई थी, वो किसी मेनका से कम नही थी, जो किसी भी विश्वामित्र तक का तप भंग कर्दे, यहाँ तो एक लंपट लाला था…!
उसे पिंक कलर की ब्रा-पैंटी में देखकर लाला की बान्छे खिल उठी और उन्होने उसे अपनी बाहों में भर लिया…………!
धरम दास, अपने सपनो की रानी को मात्र दो छोटे से कपड़ों में देखकर बाबला हो उठा, कितनी ही देर वो उसके रूप को निहारता रहा,
लंबे काले घने बालों के बीच उसका गोल सुंदर पूनम के चाँद सा चेहरा, जिसपर पहली बार नज़र पड़ते ही वो मर मिटा था,
बड़ी बड़ी हिरनी जैसी कजरारी आँखों के बीच माथे पर छोटी सी बिंदिया…, यौं तो रंगीली उसे बहुत सुंदर लगती थी, लेकिन आज वो कुच्छ बन संवर के भी आई थी, इस वजह से उसकी सुंदरता में और चार चाँद लग गये थे…
लंबी सुराइदार गर्दन के नीचे एक छोटी सी ब्रा में क़ैद उसके छोटे-छोटे अमरूद, एकदम गोलाई लिए हुए…, लंबा सपाट पतला सा पेट…जिसपर एक कतरा भी मास का नही था…
हल्की गहराई लिए उसकी नाभि, और उसके नीचे नज़र डालते ही लाला दीन दुनिया ही भूल गये…, एकदम पतली कमर जिसे लाला जैसा मर्द अपने हाथों के बीच समा सकता था…
दो पतली-पतली मक्खन जैसी कोमल जांघों के बीच उसका यौनी प्रदेश जो इस समय उस चार अंगुल की पैंटी में क़ैद था,
उसकी यौनी की पतली-पतली फाँकें हल्की सी उठान लिए उस पैंटी में अपनी उपस्थिति का आभास करा रही थी…!
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