RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
अपनी बेटी को टक-टॅकी लगाकर अपनी चूत देखते हुए रंगीली ने मुस्करा कर कहा- क्या देख रही है सलौनी..? कैसी लगी तेरी माँ की चूत तुझे..? देख ले, तू भी इसी में होकर निकली थी…!
माँ के मूह से इतने खुले शब्द सुनकर सलौनी पर वासना का खुमार तारी होने लगा.., उसका मन कर रहा था कि वो अपनी माँ की बिना बालों वाली चिकनी चमचमाती हुई सुदर कचौड़ी जैसी फूली हुई चूत को छूकर देखे..,
सो अपनी इच्छा जताते हुए बोली – बहुत सुंदर है माँ.., मन कर रहा है मे इसे छूकर देखूं…!
रंगीली – तो देख ना.., मना किसने किया है.., आजा मेरी लाडो.., करले अपने मन की.
बस फिर क्या था, सुनते ही वो उछल्कर अपनी माँ की टाँगों के पास जा बैठी और अपनी कोमल पतली पतली उंगलियों से उसकी चिकनी चमेली को छूकर देखते हुए बोली…
कितनी मुलायम और फूली हुई है ये तो.., मेरी तो…कहते कहते वो लाज्बस चुप रह गयी.., उसकी अधूरी बात का मातब समझते हुए रंगीली उसका टॉप उतारते हुए बोली…
तेरी तो क्या..? खुलकर बोल ना लाडो…, तेरी अभी ऐसी नही है यही ना….
उसने शर्म से अपने होठ चबाते हुए अपनी मुन्डी हां में हिला दी.., उसकी छोटी सी ब्रा में क़ैद उसके कच्चे अमरुदो को अपने हाथों में लेकर रंगीली बोली…
अरे वाह देखो तो कैसी शर्मा रही है मेरी गुड़िया.., अपने भाई का मूसल जैसा लंड लेने को तैयार है.., और शर्म के मारे ज़ुबान तालू से चिपक रही है…
चल दिखा तो अपनी मुनिया.., हम भी तो देखें.., हमारी गुड़िया रानी कितनी जवान हो गयी है..?
सलौनी अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए बोली – मुझे शर्म आ रही है आप दोनो के सामने..,
उसकी बात सुनकर रंगीली ने शंकर की तरफ इशारा किया.., जिसे समझते हुए उसने सलौनी की बगलों में गुदगुदी कर दी.., वो खिल-खिलाकर वहीं बिस्तर पर लेट गयी..,
इसी का लाभ लेते हुए शंकर ने उसका लोवर खींच कर निकाल दिया.., हँसते हुए उसने अपने घुटने मोड़ कर अपने पेट से लगा दिए.., और अपनी नन्ही सी कच्छी को टाँगों से छुपाने का प्रयास करने लगी…!
शंकर ने उसकी पतली-पतली चिकनी मुलायम जांघों को सहलाते हुए फिरसे गुद-गुदि की जिसे सहन ना कर पाने की सूरत में उसकी टाँगें लंबी हो गयी.., इतने में ही रंगीली ने उसकी कच्छी भी निकाल दी…!
अब सलौनी भी मात्र अपनी छोटी सी ब्रा में बिस्तर पर गुड-मूड पड़ी अपनी छोटी सी अनछुई मुनिया को छिपाने का असफल प्रयास कर रही थी…!
रंगीली अपनी बेटी के कोमल बदन से अपनी सुडौल चुचियों की मसाज देती हुई उसे उठने का बोलते हुए बोली- उठना लाडो.. अब इतना भी क्या शरमाना.., तू तो मेरी चूत देखने वाली थी ना.., फिर क्या हुआ…?
देख ज़्यादा नखरे करेगी ना, तो फिर अपने भाई से चुदना तो तू भूल ही जा….!
माँ की इस धमकी का जबरदस्त असर हुआ और सलौनी अपनी लाज शर्म भूलकर फ़ौरन उठकर बैठ गयी…!
रंगीली ने उसकी टाँगें चौड़ा कर उसकी अनछुई मुनियाँ के पतले-पतले होठों को जो आपस में चिपके हुए थे.., बस दोनो के बीच एक पतली सी बारीक लकीर थी..,
उनपर उसने अपना हाथ रखकर सहला दिया.., सलौनी के मूह से एक मादक सिसकी निकल गयी.., सस्स्सिईइ…हाईए…रहने दे ना माँ…बहुत गुद-गुदि होती है.. ये कहकर वो फिरसे अपनी जांघों को आपस में जोड़ने लगी…!
उधर शंकर ने उसकी ब्रा भी निकाल दी.., अपनी छोटी बेहन के कच्चे-कच्चे अनारों को देख कर जिनके शिखर पर दो छोटे-छोटे किस्मीस के दाने जैसे निपल चिपके हुए थे…
जो अब इतनी छेड़-छाड़ से कड़क होकर बाहर को निकल आए थे, उन्हें अपनी चौड़ी हथेली से दबाकर उसने उसके अनारों को थामकर सहला दिया…!
हाईए…भाईईइ…ज़ोर्से नही.., दर्द करते हैं…,
रंगीली ने उसका एक हाथ अपनी पकौड़े जैसी चूत पर रख कर दबा लिया.., और दूसरे हाथ से उसकी चूत सहलाते हुए बोली – दर्द सहना सीख लाडो.., तभी तो तू अपने भाई का ये घोड़ा पछाड़ अपने अंदर ले पाएगी…!
ये कहकर उसने उसका एक हाथ पकड़कर शंकर के लंड पर रख दिया.., जो कड़क होकर अंडरवेर को फाडे दे रहा था…!
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