RE: Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई
हालाँकि मैं अजय से बहुत स्नेह रखता हूँ, बहुत खुलकर दोस्ताना तरीके से पेश आता हूँ फिर भी मेरे प्रति अजय के मन में कहीं गहराई में डर छिपा है। और आज अपनी काम-भावनाओं के अधीन उस समय जिस समय वो मेरे लण्ड पर अपनी गाण्ड पटक रहा था, यह खौफ उसके मन में बिल्कुल नहीं था की भैया को यदि इसका पता चल जाएगा तो भैया उसके बारे में क्या सोचेंगे? ये सब सोचते-सोचते मुझे पता ही नहीं चला की कब मेरी आँख लग गई।
इसके बाद हम दोनों भाइयों के अपने-अपने काम पर निकलने तक सब कुछ सामान्य था। आज स्टोर में भी मेरे मन में रात की घटना घूम रही थी। रह-रह के पूर्ण नौजवान भाई का आकर्षक बदन, भोला चेहरा और उसका लड़कीपन आँखों के आगे छा रहा था। रात घर आते समय स्टोर से विदेशी 30 कंडोम का एक पैकेट और एक चिकनी वैसेलीन का जार ब्रीफकेस में डालकर ले आया। आज माँ ने गाजर का हलवा, पूरियां, दो मन पसंद शब्जियां, चटनी बना रखी थी और बहुत ही चाव से पूछ-पूछकर दोनों भाइयों को खाना खिलाई। खाना खाने के बाद रोज की तरह हम टीवी के सामने बैठे गप्प-सप्प करने लगे।
विजय ने बात छेड़ी- “माँ आज तो तूने इतने प्यार से खिलाया की मजा आ गया। ऐसे ही हँस-हँसकर परोसती रहोगी और चटनी का स्वाद चखाती रहोगी तो और कहीं बाहर जाने की दरकार ही नहीं है। सीधे स्टोर से तुम्हारे व्यंजनों का स्वाद लेने घर भाग के आया करूंगा...”
राधा हँसकर- “वहाँ गाँव में तो तेरे पिताजी का, गायों का, खेती बारी का और सौ तरह के काम रहते थे। यहाँ तो थोड़ा सा घर का और खाना बनाने का काम है, जो धीरे-धीरे करती रहती हैं। शाम होते ही तुम दोनों के आने की बाट जोहती रहती हूँ। तुम दोनों का ही खयाल नहीं रखूगी तो और किसका रचूँगी। माँ के परोसे हुए खाने में जो मजा है वो दूसरे के हाथों में थोड़े ही है..”
अजय- “हाँ माँ, भैया तो तुम्हारी इतनी बड़ाई करते रहते हैं। भैया कहते रहते हैं की बाहर का खाते-खाते मन ऊब गया अब जो घर का स्वाद मिला है तो बस बाहर कहीं जाने का मन ही नहीं करता...”
विजय- “हाँ मुन्ना, तुम तो इतने दिनों से माँ के साथ का मजा गाँव में लेते आए हो। अब भाई मैं तो यहाँ घर में ही माँ के परोसे हुए खाने का पूरा मजा लूंगा। जो मजा माँ के हाथ में है वो दूसरी में हो ही नहीं सकता...”
माँ- “विजय बेटा, तेरे जैसा माँ का खयाल रखने वाला बेटा पाकर मैं तो धन्य हो गई। मेरी हर इच्छा का तुम कितना खयाल रखते हो। मेरे बिना बोले ही मेरे मन की बात जान लेते हो। वहाँ गाँव में तुमसे दूर रहकर मैं ।
कोई बहुत खुश थोड़े ही थी। मन करता रहता था की तुम्हारे पास चंडीगढ़ कुछ दिनों के लिए आ जाया करूँ, पर तेरे पिताजी को उस हालत में छोड़कर एक दिन के लिए भी तुम्हारे पास आना नहीं होता था...”
विजय- “माँ, तुम्हारे जैसी शौकीन औरत ने कैसे फर्ज़ के आगे मन मारकर अपने सारे शौक और चाहतें छोड़ दी और उसकी पीड़ा को भला मुझसे ज्यादा कौन समझ सकता है? अब तो मेरा केवल एक ही उद्देश्य रह गया है। की आज तक तुझे जो भी खुशी नहीं मिली, वो सारी खुशियां तुझे एक-एक करके दें। माँ, तुम खूब सज-धज के चमकती दमकती रहा करो। मेरे स्टोर में एक से एक औरतों के शृंगार की, चमकने दमकने की, पहनने की चीजें मौजूद हैं। तुम्हें वे सब अब मैं लाकर दूंगा। अब यहाँ खूब शौक से और बन-ठन कर रहा करो..”
राधा लंबी साँस लेकर- "विजय बेटा, ये सब करने की जब उमर और अवस्था थी तब तो मन की साध मन में ही रह गई। अब भला विधवा को यह सब शोभा देगा? आस पड़ोस के लोग भला क्या सोचेंगे?”
विजय- “माँ, यह मेट्रो है, यहाँ तो आस पड़ोस वाले एक दूसरे को जानते तक नहीं, फिर भला परवाह और फिकर किसको है? अब तुम गाँव छोड़कर मेरे जैसे शौकीन और रंगीन तबीयत के बेटे के पास शहर में हो तो तुम गाँव वाली ये बातें छोड़ दो। तुम्हारी उमर को अभी हुआ क्या है? तुम्हारे जैसी मस्त तबीयत की औरतों में तो इस उमर में आकर आधुनिकता के रंग में रंगने के शौक शुरू होते हैं। क्यों मुन्ना, मैं ठीक कह रहा हूँ ना। अब तुम भी तो कुछ कहो ना..."
अजय- “माँ, जब भैया को तुम्हारा बन-ठन के रहना ठीक लगता है और साथ-साथ तुम भी तो यही चाहती रहती हो तो जो सबको अच्छा लगे वैसे ही रहना चाहिए...”
विजय- "और माँ, यह विधवा वाली बात तो अपने मन से बिल्कुल निकाल दो। दुनियां कहाँ से कहाँ आगे बढ़ गई। विदेशों में तो तुम्हारे जैसी शौकीन और मस्त औरतें आज विधवा होती हैं तो, दूसरे ही दिन शादी करके वापस सधवा हो जाती हैं...”
हम कुछ देर तक इसी प्रकार हँसी मजाक करते रहे और टीवी भी देखते रहे। फिर माँ रोज की तरह उठकर अपने कमरे में सोने चल दी। हम दोनों भाई भी अपने कमरे में आ गये। मैं आज सिर्फ बहुत ही टाइट ब्रीफ में था। वैसे तो मैं रोज पायजामा पहनकर सोता हूँ, पर आज एकदम तंग ब्रीफ पहनना भी मेरी तैयारी का एक हिस्सा था। अजय बाथरूम में चला गया।
वापस आया तो वो बिल्कुल टाइट बरमुडा शार्ट में था। कई दिनों से वो रात में बाक्सर या बरमुडा शार्ट में ही सोता है। मैं बेड पर बीचो-बीच बैठा हुआ था, अजय भी मेरे बगल में दोनों घुटने मोड़कर वज्रासन की मुद्रा में बैठ गया।
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