RE: Hawas ki Kahani हवस की रंगीन दुनियाँ
अचानक मुझे ख्याल आया की ऐसा न हो की रचना जग गयी हो और वो मुझे यहाँ ऐसे देख लेगी तो वो क्या सोचेगी ,ऐसा है की में एक बार उसके कमरे में जाकर उसे चेक कर लेता हु की वो सो रही है या जाग रही है। में उसके कमरे की और गया और जैसे ही बत्ती जलाई मेरा दिल धक से रह गया। थकी होने के कारण रचना घोड़े बेचकर सो
रही थी। इतनी गर्मी में कुछ ओढ़ने का तो सवाल ही नहीं उठता था। ऊपर से पंखा भी भगवान
भरोसे ही चल रहा था। उसकी स्कर्ट उसकी जाँघों के ऊपर उठी हुई थी। अभी एक महीने पहले
ही वो अठारह साल की हुई थी। उसकी हल्की साँवली जाँघें ट्यूबलाइट की रोशनी में ऐसी
लग रही थीं जैसे चाँद की रोशनी में केले का तना
अचानक मुझे लगा कि मैं यह क्या कर रहा हूँ? यह लड़की मुझे भैया कहती है और
मैं इसके बारे में ऐसा सोच रहा हूँ। मुझे बड़ी आत्मग्लानि महसूस हुई ,और मेने सोचा की मुझे बाहर ही चला जाना चाहिए
बाहर आकर मैंने सोचा कि इसकी स्कर्ट तो ठीक कर दूँ फिर अंदर जाते जाते रुक गया फिर मुझे लगा कि अगर यह जग गई तो कहीं कुछ गलत न सोचने लग जाए ऐसा लग रहा था जैसे मेरे भीतर एक युद्ध चल रहा हो। कामदेव ने मौका देखकर
अपने सबसे घातक दिव्यास्त्र मेरे सीने पर छोड़े। मैं कब तक बचता। आखिर मैं अंदर गया और
मैंने कमरे की बत्ती जला दी। रचना की स्कर्ट और ऊपर उठ गई थी और अब उसकी नीले
रंग की पैंटी थोड़ा थोड़ा दिखाई पड़ रही थी। उसकी जाँघें बहुत मोटी नहीं थीं और उरोज
भी संतरे से थोड़ा छोटे ही थे। मैं थोड़ी देर तक उस रमणीय दृष्य को देखता रहा। मेरा लंड खड़ा हो चूका था। अगर इस वक्त रचना जग जाती तो पता नहीं
क्या सोचती।
फिर मेरे दिमाग में एक विचार आया और मैंने
बत्ती बुझा दी। थोड़ी देर तक मैं वैसे ही खड़ा रहा धीरे धीरे मेरी आँखें अँधेरे की
अभ्यस्त हो गईं। फिर मैं बेड के पास गया और बहुत ही धीरे धीरे उसकी स्कर्ट को पकड़कर
ऊपर उठाने लगा। जब मुझे लगा कि स्कर्ट और ज्यादा ऊपर नहीं उठ सकती तो मैंने स्कर्ट
छोड़कर थोड़ी देर इंतजार किया और कमरे की बत्ती जला दी। जो दिखा उसे देखकर मैं दंग रह
गया। ऐसा लग रहा था जैसे पैंटी के नीचे रचना ने डबल रोटी छुपा रक्खी हो या नीचे
आसमान के नीचे गर्म रेत का एक टीला बना हुआ हो। मैं थोड़ी देर तक उसे देखता
रहा।फिर मैंने बत्ती बुझाई और बेड के पास आकर उसकी
जाँघों पर अपनी एक उँगली रक्खी। मैंने थोड़ी देर तक इंतजार किया लेकिन कहीं कोई हरकत
नहीं हुई। मेरा दिल रेस के घोड़े की तरह दौड़ रहा था और मेरे लंड में आवश्यकता से
अधिक रक्त पहुँचा रहा था। फिर मैंने दो उँगलियाँ उसकी जाँघों पर रखीं और फिर भी कोई
हरकत न होते देखकर मैंने अपना पूरा हाथ उसकी जाँघों पर रख
दिया।
धीरे धीरे मैंने अपने हाथों का दबाव बढ़ाया मगर
फिर भी कोई हरकत नहीं हुई। रचना वाकई घोड़े बेचकर सो रही थी।
धीरे धीरे मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी। फिर मैंने अपना हाथ उसकी जाँघों से
हटाकर उसकी पैंटी के ऊपर रखा। मेरी हिम्मत और बढ़ी। मैंने अपने हाथों का दबाव बढ़ाया।
अचानक मुझे लगा कि उसके जिस्म में हरकत होने वाली है। मैंने तुरंत अपना हाथ हटा लिया।
में वापस बाहर आ गया और फिर से मॉम डैड के बैडरूम के की होल में जाकर अपनी नजरे गड़ा दी,ओह माय गॉड क्या नजारा था,अंदर का सीन फिर से बदल चूका था,मॉम बेड के उप्पर अपने दोनों घुटने चोदे कर के बैठी हुई थी और डैड बेड के निचे भेटे हुए माँ की चूत को चूस रहै थे,मॉम बहुत उत्तेजित लग रही थी और वो डैड के बालो में हाथ फिरती हुई सिस्कारिया भर रही थी। मॉम कुछ ज्यादा ही जोश में थी वो जोर जोर से चिल्ला सी रही थी ,ओह अनिल जोर से जोर से जोर से चूस। ....... ओह भाडू ओह भोसड़ी के ,…। ओह मादर चोद चूस जोर से चूस निकल दे मेरी चूत का पानी,,में बहुत हतप्रभ था की मॉम ऐसी किसी आवारा भाषा का यूज़ कर रही है ,मॉम की ये बाते सुन मेरा दिमाग पूरी तरह सुन्न हो चूका था ,लौड़ा तम्बू की तरह तना और होठ मेरे सुख चुके थे।
अब डैडी अपना मुंह मॉम के खुले मुंह से लगा कर अपनी जीभ उनके मुंह में धकेल रहै थे। मॉम के मुंह से हल्की हल्की
सिस्कारियां निकल रहीं थीं। मॉम भी डैडी से लिपट कर उनके मुंह में अपनी जीभ देने लगीं। डैडी ने अपने बड़े हाथों में
मॉम के दोनों चूचियों को भर कर ज़ोर से उन्हें दबाने, मसलने लगे।
पर मम्मी की सिस्कारियां और भी ऊंची हो गयी ,"अनिल , और ज़ोर से दबाओ। मसल डालो इन निगोड़ी चूचियों को." डैडी
ने मम्मी के दोनों निप्पल पकड़ कर बेदर्दी से मड़ोड़ दिए और फिर उन्हें खींचने लगे।
" हाय अनिल कितना अच्छा दर्द है। " मम्मी को बहुत अच्छा लग रहा था।
डैडी ने कुछ देर बाद मम्मी का एक निप्पल अपने मुंह में लेकर ज़ोर से चूसने लगे और दुसरे को मसलने और मडोड़ने लगे।
मम्मी ने ज़ोर से चीख कर डैडी का सर अपनी चूचियों पर दबा लिया, "अंकु, और ज़ोर से काटो मेरी चूचियों को , आः
….., माँ …….. कितना दर्द कर रहै हो …….. और दर्द करो आँह … आँह …. आँह …….. अंकु। "
मम्मी डैडी को अंकु सिर्फ प्यार से और घर में ही पुकारतीं थी।
डैडी ने बड़ी देर तक मम्मी के दोनों चूचियों को बारी बारी चूसा, चूमा और कभी सहलाया कभी बेदर्दी से मसला। पर मम्मी
को जो भी उन्होंने किया वो बहुत अच्छा लगा।
|