RE: Gandi kahani कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
कविता निकल ही रही थी की हरबारी में उसकी विअहाल स्तन किसी और औरत के मोटे मोटे स्तनों से टकरा जाती हैं l वह और कोई नहीं बल्कि उसकी बहू मनीषा थी l ३२ साल की मदमस्त बदन और वैसे ही खिला हुआ एक एक अंग और शरारत में तो बस पूछिए मत l
मनीषा : अरे मुम्मीजी, यूँ लेहरके कहाँ चल दिए? मममम लगता हैं कोई बेसब्री से इंतज़ार कर रही है
कविता : चुप कर बेशरम! कुछ भी कहती हैं, सहेली के वहा जा रही हूँ
मनीषा : (रास्ता छोड़ देती हैं) मममम ठीक हैं (थोड़ी अजीब ढंग से चल देती हैं)
कविता : अरे ऐसे क्या चल रही है?
मनीषा : अरे मम्मीजी, आपके बेटे से पूछिये जाके! (चल लेती हैं)
कविता कुछ पल तक सांस रोकके फिर रेखा के घर की ओर चल पड़ती हैं l
......
रेखा के घर पर
रेखा और कविता गले मिलते हैं। दोनों औरतें हमउम्र थे और ४० साल की दोस्ती थी उन दोनों की। रेखा कविता सामान सुडोल तो नहीं थी लेकिन कहीं कहीं भर ज़रूर गयी थी उम्र के रफ़्तार के साथ। आज वोह एक हरी रंग की साड़ी और सफ़ेद ब्लाउज पहनी थी।
कविता : अब बता! फ़ोन पे क्या बकवास कर रही थी तू????
रेखा : (गहरी आहें भरती हुई) हीी मत पुछ कवी! यह सब राहुल का किया धरा ह उफ्फ्फ मुझसे और सहन नहीं होता l मैं किसी दिन नंगी घुस जाऊंगी उसके कमरे में!
कविता अपनी सहेली की बातों से सिसक उठी "नंगी घुस जाऊंगी" यह कहना क्या एक माँ के लिए आसान थी?
कविता : रेखा यह सबब कक्काइसे मतलब कब? और ज्योति (राहुल की बीवी) को मालूम ????
रेखा : वोह तो मैके गयी हुई हैं आज २ हफ्ते हो गए!
कविता : समझ गयी कलमुही! और राहुल का अकेलापन तुझसे देखि नहीं गयी है न?????
रेखा बस आहें भरती हैं और कामुक अंदाज़ से बैठ जाती हैं l
रेखा : तू नहीं जानती कवी, इस उम्र में प्यास कितनी बढ़ती हैं और ममम यह जिस्म जितनी चौड़ी होती जाती हैं उतनी इसे रगड़ाई और समंहोग चाहिए होता हैं!!! तू तो पत्थर दिल औरत है! तुझे क्या मालुम भला! चल जा यहाँ से! बात नहीं करती मैं तुझसे!
कविता : अरे मेरी बिन्नो!!! इसमें नाराज होने वाली कोनसी बात हैं (पास बैठ के गाल दबाती हैं)
रेखा : हम्म्म्म मस्का एक्सपर्ट कहीं की! कॉलेज में भी तू ऐसी ही करती थी!
कविता और रेखा बात ही कर रहे थे के रेखा की सेल बजने लगी और उसपर राहुल का नाम देखके रेखा की साँस ही चढ़ गयी वोह फ़ोन तो उठै नहीं बल्कि लम्बे लम्बे हे भरने लगी मानो किसी कमसिन लड़की को अपने प्रीतम का पहला ख़त मिला हो l
उसकी यह चाल देखके कविता हैरान रह जाती हैं और धीरे से कहती हैं "बेटे का फ़ोन है!"
हरबारी में रेखा फ़ोन उठा के बात करने लगती हैं l कविता बस रेखा की बातों पर गौर कर रही थी l
रेखा :
"हाँ बेटा, हाँ मैं हूँ न!
"हाँ हाँ सारे ले लूंगी! सब के सब!
"तू मुझे एक मौका तो दे बेटा!"
"ठीक है बेटा, जैसा तू चाहे, बाई!"
रेखा के फ़ोन रखते ही कविता उसे हैरानी से बस देखती रहती हैं
रेखा : ऐसी क्या देख रही है कवी?
कविता : मुँह पर हाथ लहराती हुई! तू क्या इस हद तक जा चुकी है बेटे के साथ???? चीई रेखु! तुझे रेखा नहीं रखेल बुलाना चाहिए मुझे!!! छी
रेखा हंस पड़ती हैं सहेली की बातों से। कविता सोचने लगी कि कितनी बेशर्म हो गयी उसकी सहेली "अरे बिन्नो! हंस क्यों रही है बेशरम!"
रेखा : अरे मेरी प्यारी प्यारी कवी! वोह तो राहुल अपने एक डिलीवरी पार्सल के बारे में बात कर रहा था!!!
कविता : क्या????
रेखा : अरे हाँ रीए! वोह तो पिछली बार मैं नहा रही थी जब वोह सौरीवाला घंटी बजा बजा के चला गया था l
कविता अपनी सर पर हाथ पटक देती हैं और खुद भी हंस पड़ती हैं l
रेखा : हैई राम तुझे क्या लगा??? मैं इतनी जल्दी टूट पड़ूँगी अपनी बेटी पर! ???
कविता एक राहत की सांस लेती हैं और दोनों एक एक कप चाय की चुस्की लिए हुए बैठ जाते हैं।
कविता : क्या राहुल को इसकक....
रेखा : नही!! भले में माँ होक उसे कैसे केहड़ू??? है रम्म नाहीइ मुझसे नहीं होगा यह सब!
कविता को रेखा की कही गयी हर एक बात बहुत उकसाने लगी। फिर उसे ऐसा कुछ सुझा जो उसकी कल्पना से अब तक परे थी l
कविता बस सुनती गयी l
रेखा : वैसे कवी! क्या तुझे कभी किसी जवान आदमी के प्रति कोई भावनाये नहीं आयी?? क्या (थूक घोंट के) क्या तुझे कभी अजय के प्रति कुछःह मतलबब समझ रही है न???
रेखा की कही गयी हर हर एक शब्द कविता के दिल में कामदेव की तीर फ़ेंक रही थी पर थी वोह एक सुलझी हुई औरत, घुसा तो आने ही थी l
कविता : क्क्क्य बकवास कर रही है तू????
रेखा : अरे बाबा ऐसे ही पूछ रही थी
"क्या मेरा और मेरे बेटे के बीच में भी ऐसा" यह ज़रा सी सोच से वह चौंक उठी और स्तन थे कि ऊपर नीचे होने लगे। माथे से पसीने के एक एक बूँद टपकती हुई उसकी गैल से होके स्तन के दरार में घुस गयी हो मनो l
रेखा अपनी सहेली की तरफ चुप चाप देखती गयी l
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