RE: Gandi kahani कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
अब सब्र का बाण टूट रहा था, अजय और राहुल अपने भावनाओं पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे थे और दूसरे और कविता और रेखा भी नहीं ख़ामोश रह पा रहे थे
रात को कविता रूम से बाहर गैलरी पे जाके रुकी तो अचानक पीछे से एक ज़ोरदार हमले के साथयह तो बिलकुल उसके सपने जैसा माहौल बन रहा था साथ अजय चिपक गया और उसके पीठ से लेके उसकी कमर को सहलाने लगा, कविता को एहसास हुई के यह तो बिलकुल उसके सपने जैसा माहौल हो रहा था, उसने झट से अजय को अपने गले लगा लिए और दोनों माँ बेटे के पहली बार होंट मिल गए एक दूसरे से l
अजय बेतहाशा अपने माँ को चूमे जा रहा था और अजय के हाथ अपने माँ के कंधो को सहलाता गया पागलों की तरह l
कविता : (सिसकियों के बीच में से) उफ्फ्फ्फ़ चुम मुझे बीटा! और चूम!!! हैं!!! ले जा मुझे अपने कमरे में!
अजय अपने माँ को अपने बाज़ुओ से चिपका के अपने कमरे तक ले जाता हैं l कमरे में पहुँचके कविता हैरान थी कि मनीषा का कहीं अता पता नहीं थी और कमरा भी सिंगल बेड वाला ही था l अजय और कविता अब एक दूसरे के साथ सम्भोग करने के लिए तड़प रहे थे और बिना किसी झिझक के दोनों के दोनों निर्वस्त्र हो जाते हैं, अजय अपने कच्चे पे था और यहाँ कविता केवल एक ब्रा और पैंटी पहनी हुई और गाल थे जैसे टमाटर सामान लाल l
अजय : उफ्फ्फ्फ़ माँ! बड़ी हसीन लग रही हो आज तुम
कविता : षह बीटा! मुझे शर्म आ रही है
अजय : अब यह शर्म और हया किसी काम का नहीं हैं माँ! (पास आता हुआ)
कविता : बब्बेता! तू ही मुझे कुछ कर! ममुझे कुछ हो नहीं पा ररही है ...
अजय : मुझे अच्छी तरह मालूम हैं माँ के आप मुझसे कहीं बार अपने वासना और प्रेम का इज़हार करना चाहती थी लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाई (माँ के चेहरे को सहलाता हुआ) लेकिन अब रुके भी तो कब तक! ठहरे भी तो कब तक! नहीं माँ नहीं! एक विधवा होने का इतनी बड़ी सज़ा खुद को मत दो!
कविता की आँख नमी हो गयी, यह अजय बड़ा कब हो गया भाला l अब अजय से रहा नहीं गया और माँ को जी भर के प्यार करने लगा, कभी उसकी गर्दन तो कभी पलकें, कभी होंट तो कभी कान के लौ को चूमने लग गया l कविता मानो जैसे पागल सी हो रही थी, उसने कस्स के अपने बेटे को जकड लिया और दोनों बिस्तर के चादर से खेलने लगे l अजय और कविता अब सम्भोग में जुड़ गए और जैसे ही अजय का लंड का पहला वार कविता की योनि को प्राप्त हुई तो वह सिसक उठी बुरी तरह "ओह्ह्ह्हह आजआयीयीयी मेरा लाड़लाआ!" उसकी सिसकियाँ गूँज उठी और नज़रों के सामने मानो जैसे सब कुछ धुंदला सो हो गया l
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कविता को कुछ देर तक कुछ नज़र नहीं आई और जब अचानक से होश आई, तो खुद को हॉस्पिटल के एक बिस्तर पर लेटी हुई मिली, हैरानी थी कि उसे जैसे कहीं लम्बे अरसे के बाद होश ायी हो सारे के सारे पल उसके मनन के कोने में जैसे दब गयी हो, उसकी यह दशा देखके बाजु में बैठी नर्स की आँखें बड़ी हो गयी और वह कमरे में से निकल पड़ी l
अंदर आ गया डॉक्टर साहब, अजय और मनीषा lकविता को फिर बताया गया कि वह पिछले २ हफ्तों से कोमा में थी और यह सुनके कविता हैरानी में आगयी, उसकी नज़रों में सारा पिक्चर साफ हो गया था l उसे यक़ीन हो चुकी थी के यह सारे के सारे लम्हे केवल एक हसीन सपना था, पर जिसमे शायद थोड़ी हकीकत थी, उसने फिर अपने आप ही हसि आगयी और सोचने लगा कि क्या सपना इतनी लम्बी और इतनी कामुक हो सकती हैं l
सच में अजीब सी दास्ताँ थी कविता की l
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