non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:34 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उस दिन और उस रात प्रतिमा ने अजय सिंह की तरफ देखा तक नहीं बात करने की तो बात दूर। अजय सिंह अपनी पत्नी के इस रवैये बेहद परेशान हो गया था, वह अपने किये पर बेहद शर्मिंदा था। वह जानता था कि उसने ग़लती की थी किन्तु अब जो हो गया उसका क्या किया जा सकता था? उसने कई बार प्रतिमा से उस कृत्य के लिए माफ़ी माॅगी लेकिन प्रतिमा हर बार उसे गुस्से से देख कर उससे दूर चली गई थी।

ख़ैर दूसरा दिन शुरू हुआ। आज प्रतिमा का रवैया एकदम सामान्य था। कदाचित् रात के बाद अब उसका गुस्सा उतर गया था। पिछली रात वह दूसरे कमरे में अंदर से कुंडी लगा कर सोई थी। वह जानती थी अजय उसे मनाने उसके पास आएगा और हुआ भी वही लेकिन प्रतिमा कमरे का दरवाजा नहीं खोला था। अजय सिंह मुह लटकाए वापस चला गया था। रात में प्रतिमा ने इस बारे में बहुत सोचा और इस निष्कर्स पर पहुॅची कि अजय सिंह का इसमें भला क्या दोष हो सकता है? उस सूरत में कोई भी मर्द वही करता जो उसने किया। मज़े की चरम सीमा का एक रूप ऐसा भी हो सकता है कि वह उस सूरत में सब कुछ भूल बैठता है। अजय सिंह के साथ भी तो वही हुआ था। प्रतिमा उससे प्यार भी बहुत करती थी, वह उससे इस तरह बेरूखी अख्तियार नहीं कर सकती थी बहुत देर तक।

सुबह जब हुई तो सबसे पहले वह अजय सिंह से बड़े प्यार से मिली। अजय सिंह इस बात से बेहद खुश हुआ। ख़ैर, दोपहर में प्रतिमा फिर से विजय सिंह के लिए खाने का टिफिन तैयार कर तथा एक प्लास्टिक के बोतल में पका हुआ दूध लेकर खेतों की तरफ चल दी। आज भी उसने पिछले दिन की ही तरह लिबास पहना हुआ था। खूबसूरत गोरे बदन पर आज उसने पतली सी पीले रंग की साड़ी और उसी से मैच करता बड़े गले का ब्लाउज पहना था। ब्लाउज के अंदर आज भी उसने ब्रा नहीं पहना था।

प्रतिमा मदमस्त चाल से तथा मन में हज़ारों ख़याल बुनते हुए खेतों पर बने मकान में पहुॅची। पिछले दिन की ही तरह आज भी आस पास खेतों पर कोई मजदूर नज़र नहीं आया उसे,अलबत्ता विजय सिंह ज़रूर उसे दाईं तरफ लगे बोरबेल पर नज़र आया। वह बोर के पानी से हाँथ मुह धो रहा था।

प्रतिमा ने ग़ौर से उसे देखा फिर मुस्कुरा कर मकान के अंदर की तरफ बढ़ गई। कमरे में पहुॅच कर उसने पिछले दिन की ही तरह बेन्च पर टिफिन से निकाल कर खाना लगाने लगी। आज उसने अपना आँचल ढुलकाया नहीं था। शायद ये सोच कर कि विजय कहीं ये न सोच बैठे कि रोज़ रोज़ मैं अपना आँचल क्यों गिरा देती हूँ?

कुछ ही देर में विजय सिंह कमरे में आ गया। कमरे में अपनी भाभी को देख कर वह चौंका फिर सामान्य होकर वहीं बेन्च के पास कुर्सी पर बैठ गया।

"आज भी आपको ही कस्ट उठाना पड़ा भाभी।" विजय सिंह ने कहा___"कितनी तेज़ धूप और गर्मी होती है, कहीं आपको लू लग गई और आप बीमार हो गई तो??"

"अरे कुछ नहीं होगा मुझे।" प्रतिमा ने कहा___"इतनी भी नाज़ुक नहीं हूँ जो इतने से ही बीमार हो जाऊॅगी। और अगर हो भी जाऊॅगी तो क्या हुआ? मेरी दवाई करवाने तुमको ही जाना पड़ेगा। जाओगे न मुझे लेकर?"

"अरे क्या बात करती हैं आप?" विजय सिंह गड़बड़ाया___"भगवान करे आपको कभी कुछ न हो भाभी।"
"हमारे चाहने से क्या होता है?" प्रतिमा ने कहा___"जिसको जब जो होना होता है वो हो ही जाता है। इस लिए कह रही हूँ कि अगर मैं बीमार पड़ जाऊॅ तो तुम मुझे ले चलोगे न डाक्टर के पास??"

"इसमें भला पूछने की क्या बात है?" विजय सिंह ने कहा___"और हाँ आपको डाक्टर के पास ले जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी बल्कि डाक्टर को मैं खुद आपके पास ले आऊॅगा।"

"ऐसा शायद तुम इस लिए कह रहे हो कि तुम मुझे अपने साथ ले जाना ही नहीं चाहते।" प्रतिमा ने बुरा सा मुह बनाया___"सोचते होगे कि मुझ बुढ़िया को कौन ढोता फिरेगा?"

"बु बुढ़िया???" विजय सिंह को फिर से ठसका लग गया। वह ज़ोर ज़ोर से खाॅसने लगा। प्रतिमा ने सीघ्रता से उठ कर मटके से ग्लास में पानी लिये उसके मुह से लगा दिया। इस बीच उसे सच में ध्यान न आया कि उसका आँचल नीचे गिर गया है।

"क्या हुआ आज भी ठसका लग गया तुम्हें?" प्रतिमा ने कहा___"क्या रोज़ ऐसे ही होता है खाते समय?"

विजय सिंह कुछ बोल न सका। उसकी आँखों के बहुत पास प्रतिमा की बड़ी बड़ी चूचियाॅ आधे से ज्यादा ब्लाउज से झूलती दिख रही थी। विजय सिंह की हालत पल भर में खराब हो गई। वह पानी पीना भूल गया था।

"क्या हुआ पानी पियो न?" प्रतिमा ने कहा फिर अनायास ही उसका ध्यान इस तरफ गया कि विजय उसके सीने की तरफ एकटक देखे जा रहा है। ये देख वह मुस्कुराई।
"आज दूध लेकर आई हूँ तुम्हारे लिए।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"और हाँ जहाँ देख रहे हो न वहाँ सूखा पड़ा है। इस लिए तो अलग से लाई हूँ।"

विजय सिंह को जबरदस्त झटका लगा। प्रतिमा को लगा कहीं उसने ज्यादा तो नहीं बोल दिया। अंदर ही अंदर घबरा गई थी वह किन्तु चेहरे से ज़ाहिर न होने दिया उसने। बल्कि सीधी खड़ी होकर उसने अपने आँचल को सही कर लिया था।

"अरे ऐसे आँखें फाड़ फाड़ कर क्या देख रहे हो मुझे?" प्रतिमा हॅसी___"मैं तो मज़ाक कर रही थी तुमसे। देवर भाभी के बीच इतना तो चलता है न? चलो अब जल्दी से खाना खाओ।"

विजय सिंह चुपचाप खाना खाने लगा। इस बार वह बड़ा जल्दी जल्दी खा रहा था। ऐसा लगता था जैसे उसे कहीं जाने की बड़ी जल्दी थी।

"तुम खाना खाओ तब तक मैं बाहर घूम लेती हूँ।" प्रतिमा ने कहा___"और हाँ दूध ज़रूर पी लेना।"
"जी भाभी।" विजय ने नीचे को सिर किये ही कहा था।

उधर प्रतिमा मुस्कुराती हुई कमरे से बाहर निकल गई। पता नहीं क्या चल रहा था उसके दिमाग़ में?"
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