RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
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ख़ैर! प्रिया के पापा, यानि मेरे साढू भाई के स्वर्गीय ताऊ जी के एक बेटे बहुत सालों से शिमला में सेटल्ड थे. उम्र थी कोई पैंसठ साल लेकिन खूब तंदरुस्त और हट्टे-कट्टे. मिलिट्री से अर्ली रिटायरमेंट लेकर शिमला में ही सरकारी ठेकेदारी में जम कर पैसे कूट रहे थे.
उनके दो बेटे थे (दोनों शादीशुदा) और एक अविवाहित बेटी थी … कोई पैंतीस-छत्तीस साल की और नाम था वसुन्धरा! वसुन्धरा सुधा से दो-एक साल छोटी थी.
प्रिया के पापा के ये फर्स्ट कज़न साहब अपनी पत्नी और बेटी वसुन्धरा समेत प्रिया की शादी से तीन दिन पहले से ही मेरे ही घर में अड्डा जमाये हुए थे.
सुधा तो इन लोगों से पहले भी एक-आध बार मिल चुकी थी लेकिन मैं इन सबको पहली बार ही मिल रहा था. वसुन्धरा पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगड़ से इंग्लिश लिट्रेचर में पी एच डी थी और डगशाई में किसी हाई-फ़ाई इंग्लिश स्कूल में वाईस-प्रिंसिपल थी.
डगशाई शिमला से कोई 60-62 किलोमीटर दूर सोलन ज़िले में एक छोटा सा, शांत सा हिल-स्टेशन है. चंडीगढ़-शिमला रोड पर धरमपुर से दायीं ओर साइड-रोड जाती है डगशाई को.
वहीं डगशाई में वसुन्धरा अकेली ही रहती थी. दीगर तौर पर महीने, डेढ़ महीने बाद वो शिमला चक्कर मार तो लेती थी लेकिन रहती डगशाई में ही थी … वो भी अकेली. पहाड़ी लोगों के विपरीत वसुन्धरा वैसे तो खुले-खुले हाथ-पैरों वाली, करीब 5’6″ लम्बी, गोरी-चिट्टी, क़दरतन एक खूबसूरत स्त्री थी लेकिन बन कर ऐसे रहती थी कि खुदा की पनाह! चेहरे पर कोई मेकअप नहीं, कोई क्रीम नहीं, होंठों पर कोई लिपस्टिक नहीं, भवों की कोई थ्रेडिंग नहीं, कोई नेल-पालिश नहीं, कोई मैनीक्योर-पैडीक्योर नहीं. शैम्पू-कंडीशनर से वसुन्धरा के सिर के बालों का शायद ही कभी वास्ता पड़ा हो.
वो सर में ढेर सारा तेल उड़ेल कर सारे बाल इस क़दर पीछे खींच कर चोटी करती थी कि … तौबा तौबा! माथे की सारी खाल दोनों भौहों समेत पीछे खिंच जाती थी. वसुन्धरा की दोनों कलाईयों पर ढ़ेरों बाल नुमाया थे तो यक़ीनन टांगों का भी यही हाल होगा. लगता था वसुन्धरा के लिए वैक्सिंग तो जैसे अभी ईज़ाद ही नहीं हुई थी … रही-सही कसर बोरीनुमा कपड़े की ड्रैस पहन कर निकलती थी.
ऊपर से कोढ़ में खाज़ की सी बात कि बला की दबंग, खुद-पसंद और बेहद बदतमीज़ थी. वसुन्धरा की भृकुटि हर वक़्त यूं तनी रहती कि जैसे उस की पेशानी पर स्थायी तौर पर 111 लिखा गया हो. हर किसी से उलझती थी. हर किसी को हर काम में “करो इसे नहीं तो …” वाली धौंस.
हर बात में मीन-मेख निकालना, हर शख़्स को बात-बात पर नीचा दिखाना वसुन्धरा का फुल-टाइम शुगल था.
यहां तो शादी वाला घर था, सौ तरह के काम थे. अब घरवाले हर मेहमान की पूंछ से चौबीसों घंटे तो नहीं बंधे रह सकते थे और वसुन्धरा थी कि बात-बात पर मुंह फुला लेती थी, हंगामा खड़ा कर देती थी.
उसकी मां उसको समझाती भी थी पर वसुन्धरा माने तब ना. एक मसला सुलझा नहीं कि दूसरा तैयार!
अब चूंकि घर मेरा था तो क़रीब-क़रीब सब बातों का नज़ला मुझ पर ही गिरता था. एक तो मुझ पर प्रिया की शादी के कामों की जिम्मेवारी, तिस पर प्रिया के मुझ से सदा के लिए दूर चले जाने का सदमा, ऊपर से इस वाहियात औरत के मुतवातार उलाहनों ने मेरा काफिया तंग कर रखा था.
पानी की टंकी खाली है, पिछली रात किसी ने मोटर नहीं चलाई तो जिम्मेवार मैं, प्रैस ठीक से गर्म नहीं हो रही तो जिम्मेवार मैं, बाथरूम में टूथ-पेस्ट नहीं मिल रही तो जिम्मेवार मैं, केटरर ने लंच लेट कर दिया तो जिम्मेवार मैं, किचन में कैचअपकी बॉटल में कैचअप ख़त्म हो गया है तो जिम्मेवार मैं, कॉफ़ी में चीनी कम/ज्यादा तो जिम्मेवार मैं.
मेरे 9 साल के लड़के को चेकोस्लोवाकिआ के स्पैलिंग नहीं आते है तो जिम्मेवार मैं.
और तो और … एक दोपहर को एक घंटे का पावर-कट लग गया तो भी जिम्मेवार मैं …
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