RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
दूजे! यह मौका ही ठीक नहीं था, प्यार सहज़ भाव से किया जाता है और जल्दी-जल्दी योनि-भेदन कर स्खलित होना तो निरी पशुता है.
तीसरी बात! जैसे बिना नारी की सहमति के, नारी शरीर भोगना बलात्कार होता है वैसे ही बिना प्यार के किसी भी नारी-शरीर को भोगना भी केवल वासना है, वो भी निकृष्ट वासना. ऐसी वासना का अंत हमेशा पछतावा होता है और मैं पछताना तो हर्गिज़ नहीं चाहता था.
मैं एक कदम पीछे हटा, तत्काल वसुंधरा ने आँखें खोली और मुझे सीधे अपनी आँखों में झांकते पा कर झट से अपनी आँखें वापिस बंद ली.
“आप बहुत कठोर हैं.” अधमुंदी आँखों वाली यूनानी मूर्ती के तराशे हुए होंठों ने मेरे कानों के करीब सरगोशी सी की.
“कठोर नहीं, मज़बूर!” मैंने कहा.
“मज़बूर … कैसे?” वसुंधरा ने चौंक कर आँखें खोली और सीधे मेरी आँखों में झांका.
“आप नहीं समझेंगी.” कहते हुए मैंने लहंगे का नाड़ा काट दिया.
बस! कयामत ही बरपा हो गयी. ज़रुर वसुंधरा ने साइडों से अपना लहँगा ढीले हाथों से पकड़ रखा होगा, नाड़ा कटते ही लहँगा वसुंधरा के पैरों में ऐसे गिरा जैसे किसी मूर्ति के अनावरण समारोह में मूर्ति का पर्दा नीचे गिरता है.
वसुंधरा की केले के पेड़ के तने सी चिकनी दोनों टाँगें और घुटनों के ऊपर दो मरमरी दूधिया जांघें, दोनों जाँधों के ऊपरी जोड़ पर छोटी सी, गुलाबी जाली वाली साटन की डिज़ाईनर पेंटी जिस के जाली के बाद वाले गुलाबी साटन के कपड़े में ठीक बीच में से उठे हुए धरातल का एक त्रिभुज का आकार और उसके बीचों-बीच से शुरू होकर एक नीचे की ओर घुमाव लेती एक रेखा … सबकुछ साफ़-साफ़ नुमाया हो रहा था.
वसुंधरा का छोटी सी पेंटी के इलास्टिक तक सपाट और साफ़-सुथरा गोरा पेट और पेंटी के इलास्टिक के बाद जाली में से झलक दिखाती कुंदन सी साफ़-सुथरी गोरी त्वचा इस बात की चीख-चीख कर गवाही दे रही थी कि वसुंधरा ने आज प्युबिक एरिया की भी वैक्सिंग करवाई है.
इस लहंगा गिरने वाले हादसे पर क्षण भर के लिए वसुंधरा ने अपनी आँखें खोली और मेरी आँखें अपने तन के निचले भाग (जोकि करीब-करीब निर्वस्त्र था) पर जमी पाकर फ़ौरन दोबारा बंद कर ली और जल्दी से मेरी तरफ़ पीठ कर ली.
वसुंधरा का इस तरह मेरी तरफ़ पीठ करना तो और भी कहर बरपाने वाला साबित हुआ. वसुंधरा की हवा में झूलती ओढ़नी, जो उसके जूड़े के साथ पिन की गयी थी, वसुंधरा के तेज़ी से गोल घूमने के कारण बार-बार दाएं-बाएं हो रही थी और इसी प्रक्रिया में वसुंधरा के आकर्षक, भरे-भरे और करीब-करीब अनावृत, गोरे-चिट्टे नितम्बों की मुझे रह-रह झलक मिल रही थी.
उसकी छोटी सी पेंटी की बैक-स्ट्रिंग तो दोनों नितम्बों की दरार में घुसी हुई थी.
“सी..ई..ई..ई … ई … ई … ई … ई … ई!!” अनजाने में ही मेरे मुंह से एक तीख़ी सिसकारी निकल गयी. तीव्र कामोत्तेजना के कारण मेरे लिंग में भयंकर तनाव आ गया था. हालांकि वसुंधरा की पीठ थी मेरी ओर लेकिन उसे इस बात का बाखूबी अंदाज़ा था कि मेरे ज़ेहन पर क्या गुज़र रही थी.
मेरी हस्ती अब आकण्ठ संकट में थी. कामदेव मुझ पर रह-रह कर काम-बाण चला कर मुझे पीड़ित किये जा रहे थे और वसुंधरा साक्षात मेनका के समकक्ष मुझ से रति-दान लेने पर उतारू थी और मैं बेचारा, काम के इस भयावह बवण्डर में तिनके की तरह कभी इधर (कभी हाँ), कभी उधर (कभी न) डोल रहा था.
शारीरिक भूख एक चीज़ है और प्यार बिल्कुल दूसरी चीज़. वसुंधरा से प्यार करने जैसी भावना तो अभी तक मेरे मन में थी नहीं और रही बात शारीरिक भूख की … तो मैं शादीशुदा आदमी इस लानत से कोसों परे था लेकिन वसुंधरा के कुंदन से दमकते जिस्म की शोख़ कशिश … वक़्ती तौर पर इतनी प्रबल थी कि मेरे सारे असूल एक ही झटके में तिनकों की तरह छिन्न-भिन्न हो रहे थे. अब तो मुझे यह डर सताये जा रहा था कि कहीं मैं खुद ही भूखे भेड़िये की तरह वसुंधरा पर टूट ना पडूँ.
“हे परवरदिगार! तू ही कोई चमत्कार कर … अब तो तू ही मुझे, मेरी अपनी नज़रों में गिरने से बचा सकता है.”
और फिर चमत्कार ही हो गया, मालिक ने मेरे दिल से उठी दुआ कबूल कर ली. मेरे सेल की घंटी बज़ी. सुधा लाइन पर थी.
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