RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
यूं काम-क्रीड़ा तो अपने जीवन में स्त्री-पुरुष सैंकड़ों-हज़ारों बार करते हैं लेकिन पहली बार अपनी देह पर अपने महबूब के हाथों का जादुई स्पर्श वाला सुख फिर दोबारा नसीब नहीं होता. वसुन्धरा अपनी जिंदगी के बेहतरीन पलों में से गुज़र रही थी. और अभी तो सिर्फ शुरुआत थी. आज की रात वसुन्धरा जन्मों-जन्मों तक नहीं भूल सके, मैं सतत इसी प्रयास में था.
अचानक ही वसुन्धरा का एक हाथ मेरे सर पर से खिसकता-खिसकता, मेरी पीठ पर से होता हुआ मेरे जॉकी के अंदर जाकर मेरे दाएं कूल्हे पर फिरने लगा. चूंकि मेरी वसुन्धरा की ओर अर्धपीठ थी इसलिए मेरा काम-ध्वज अभी वसुन्धरा की पकड़ में नहीं था.
लेकिन यह मुकाबला बराबरी का नहीं था. वसुन्धरा के शरीर पर बहुत सारे कपड़े (साड़ी, पेटीकोट और पैंटी) थे और मेरे सिर्फ एक (जॉकी). मैंने अपना दायां हाथ वसुन्धरा के उरोज़ से उठाया और वसुन्धरा की कमर के परले सिरे से ढीले इज़ारबंद में से पेटीकोट के अंदर सरका दिया और अपना बायां हाथ वसुन्धरा की कमर के अपने पास वाले सिरे से ढीले इज़ारबंद में से पेटीकोट के अंदर डाल कर साड़ी और पेटीकोट इक्कठे एक ही झटके में वसुन्धरा के घुटनों के नीचे तक उतार दिये.
बाहर झमझमाती बारिश के शोर और कमरे में शमा की पीली झिलमिलाती रोशनी में मुझे वसुन्धरा की गोरी, पुष्ट जाँघों के ऊपरी सिरे पर छोटी सी डिज़ाईनर किसी हल्के रंग की पैंटी (गुलाबी या पीली) में बंद नारी के अन्तरंग और गुप्त अंग की झलक मिली.
डिज़ाईनर पेंटी की जाली में से कुछ कुछ रेशमी बालों की झलक सी भी मिली जैसे वैक्स करवाए 15-20 दिन हो गए हों.
वसुन्धरा ने शरमा कर तत्काल अपनी बायीं टांग घुटने से मोड़ कर दायीं टांग पर रख ली और वो स्वर्गिक नज़ारा मेरी आँखों से ओझल हो गया लेकिन वसुन्धरा की इस हरकत का मुझे लाभ यह मिला कि वसुन्धरा की बायीं टांग खुद ही साड़ी और पेटीकोट की गिरफ्त से आज़ाद हो गयी.
मैंने आगे बढ़ कर वसुन्धरा की दायीं टांग को साड़ी और पेटीकोट में से निकाल बाहर किया.
अब हम दोनों सिर्फ एक-एक कपड़े में थे. मैं जॉकी में और वसुन्धरा पैंटी में. मैंने बिस्तर पर से उठ कर तनाव के कारण कड़कड़ाते हुए अपने लिंग को अपने अंडरवियर के अंदर हाथ डाल कर अंदर ही अंदर अपने पेट के साथ-साथ ऊपर नाभि की तरफ सेट किया.
वसुन्धरा मुझे बहुत गौर से ऐसा करते हुए देख रही थी.
मैंने आंख भर कर वसुन्धरा की ओर देखा. जैसे ही मेरी नज़र वसुन्धरा की नज़र से टकराई तो मारे शर्म के, वसुन्धरा ने फ़ौरन अपने दोनों हाथ अपनी आँखों पर रख कर करवट ले कर मेरी ओर पीठ कर ली.
सच कह रहा हूँ पाठकगण! तन्हाई में, सेज़ पर, कभी आँख मिलाती … कभी चुराती, आने वाले पलों में होने वाले अभिसार की प्रत्याशा से रह-रह कर थरथराती, कभी अपने यौवन को दिखाते-दिखाते छुपाती या छुपाते-छुपाते दिखाती, शर्म से लाल हुयी जा रही जवान अर्ध-नग्न अभिसारिका के ज्यादा सम्मोहक़ इस संसार में कोई और चीज़ है ही नहीं. इस संसार की तमाम उपलब्धियां, संसार के सारे धर्मों के सारे स्वर्ग, सारे मोक्ष, सब समाधियां, सब योग, सब पुण्य ऐसे एक पल के सम्मोहन के आगे हेय हैं.
यह वो पल होता है जिसकी जद में आये हुए लोग और उनकी आइंदा तमाम नस्लें भी सदियों तक इस पल के फ़ैसले के पाबन्द रहते हैं. इसी पल के उरूज़ के कारण आदम और हव्वा खुदा के बाग़ से निकाले गए और आज उनकी नस्लों को भी इस पल के फैसले पर ऐतराज़ नहीं … ऐसा है इस पल का सम्मोहन.
और आज हम दोनों इसी पल की ग़िरफ़्त में थे.
मैं बैड के पास पहुंचा और वसुन्धरा के पीछे बैठ कर आहिस्ता से पैरों में पड़ी जयपुरी रजाई वसुन्धरा के ऊपर ओढ़ा कर खुद भी वसुन्धरा की पीठ की तरफ से रज़ाई में घुस गया और वसुन्धरा की पीठ की तरफ से अपना निचला (दायाँ) हाथ वसुन्धरा की गर्दन के नीचे से परली तरफ निकाल के ऊपर की ओर घुमा कर उसे वसुन्धरा के ऊपर वाली (बाएं) छाती पर रखा और अपना बायां हाथ वसुन्धरा के ऊपर से परली तरफ ले जा अपनी हथेली वसुन्धरा के निचले (दायें) उरोज़ पर जमा कर उसे अपने आलिंगन में कस लिया. वसुन्धरा के दोनों उरोजों के एकदम तने हुए और सख़्त निप्पल मेरे दोनों हाथों की हथेलियों के ऐन बीचों-बीच थे.
|