RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
पाँचेक मिनट बाद अचानक वसुन्धरा ने अपने दोनों घुटने मोड़ कर अपनी दोनों टाँगें दाएं-बाएं फैला ली और अपने दोनों हाथों से मुझे आलिंगन में ले कर मेरी पीठ पर अपने दोनों हाथ कस दिए और मेरी ताल से ताल मिलाने लगी. जैसे ही मैं अपना लिंग, अपने लिंग-मुण्ड तक उसकी योनि से बाहर खींचता, वसुन्धरा अपनी कमर को ख़म दे कर थोड़ा पीछे ले जाती. और जैसे ही मैं अपने लिंग को तेज़ी से उसकी योनि में अंदर को धकेलता, वसुन्धरा भी अपनी कमर के ख़म को सीधा कर के अपनी योनि ऊपर को धकेलती.
वसुन्धरा के गोरे और पुष्ट नितंबों से मेरी जांघें जा कर ज़ोर से टकराती, एक ‘टप्प’ की आवाज़ आती. वसुन्धरा की योनि से निकलते काम-ऱज़ और मेरे लिंग से निकले प्री-कम के कारण मेरे लिंग का उसकी योनि में आवागमन थोड़ा आसान हो गया था. लेकिन फिर भी अपने लिंग को वसुन्धरा की योनि से बाहर खींच कर दोबारा अंदर घुसाने में वसुन्धरा की योनि की उत्कृष्ट संकीर्णता आड़े आ रही थी और अपने लिंग को दोबारा योनि-प्रवेश करवाने के लिए मुझे बल प्रयोग करना पड़ रहा था. परिणाम स्वरूप योनि की दीवारों से मेरे लिंग-मुण्ड का घर्षण हर गुज़रते पल के साथ-साथ बढ़ता जा रहा था.
हर बार मेरा लिंग-मुण्ड वसुन्धरा की योनि में गर्भाशय के मुंह पर हल्की सी चोट करता और उधर वसुन्धरा के मुंह से ‘आह … ह … उफ़्फ़्फ़ … उम्म्ह… अहह… हय… याह… हाय … सी … इ … ई … ई’ की ऊँची-ऊँची सीत्कारें निकल रही थी. उत्तेजना वश वसुन्धरा की दोनों टांगें हवा में लहरा उठी थी और ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे वसुन्धरा अपनी योनि के रास्ते मेरे लिंग को नहीं अपितु मुझे अपने अंदर समा लेना चाहती हो.
और इधर मैं वसुन्धरा को अपने आगोश में कस कर समेटे हुए नीचे बिजली की तेज़ी से अपनी कमर चलाते हुए ऊपर मैं अनवरत वसुन्धरा के माथे पर, गालों पर, आँखों पर, होठों पर, गर्दन पर, दोनों छातियों के बीच में चुंबनों की बौछार किये जा रहा था.
उत्तेजना-वश वसुन्धरा की दसों उँगलियों के तीखे नाख़ून मेरी पीठ में गड़े जा रहे थे लेकिन अब मुझे इसकी क़तई कोई परवाह नहीं थी. मेरे तीव्र आवेश के कारण वसुन्धरा के मुंह से निकलने वाली ऊँची-ऊँची काम-कराहों से सारा कमरा गुंजायमान था. कामदेव की सार्वभौमिक सत्ता सर्वत्र विराजमान थी.
काम-शिखर अब ज्यादा दूर नहीं था. अचानक ही वसुन्धरा के जिस्म में ज़बरदस्त थरथराहट होने लगी. दो पल बाद ही उसका जिस्म अकड़ने लगा और वो मुझे यहां-वहां काटने की कोशिश करने लगी. मैंने फ़ौरन वसुन्धरा के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर उसके सर के आजु-बाज़ू टिकाये और खुद कोहनियों पर हो कर अपनी कमर को और ज्यादा तेज़ी से चलाना शुरू कर दिया.
अचानक ही मेरे लिंग पर योनि का स्पंदन और सख़्त हो गया. तभी वसुन्धरा के मुंह से ज़िबह होते पशु की ‘गुर्र.. गर्र.. गर्र.. गुर्र.. गुर्र!’ सी दीर्घ आवाज़ें निकलने लगी. फिर अचानक ही वसुन्धरा की योनि ने काम-ऱज़ की जम कर बौछार कर दी और इस के साथ ही उसकी आँखें उलट गयी और वसुन्धरा बेहोश सी हो गयी. वसुन्धरा का गर्म-गर्म ऱज़ मेरे लिंग के साथ-साथ योनि से बाहर टपकने लगा.
अपनी जिंदगी के पहले सम्भोग में वसुन्धरा स्खलित हुई थी लेकिन मैं अभी भी डटा हुआ था. हालांकि मैं भी अपनी मंज़िल से कोई ख़ास दूर नहीं था. मेरी कमर अब बिजली की तेज़ी से चलने लगी थी.
दो-एक मिनट बाद अचानक मेरा लिंग वसुन्धरा की योनि के अंदर फूलने लगा और मैंने अपना लिंग अपने लिंग-मुंड तक वसुन्धरा की योनि से बाहर खींच कर पूरी शक्ति से वापिस वसुन्धरा की योनि में धकेलना शुरू कर दिया.
टप्प … टप्प … टप्पा … टप्प टप्प … टप्प … टप्पा … टप्प! टप्प … टप्प … टप्पा … टप्प!
फिर अचानक ही वसुन्धरा की योनि के अंदर आँखिरी बिंदु पर पहुँच कर जैसे मेरे लिंग में विस्फ़ोट हो गया. गर्म-गर्म वीर्य की एक ज़ोरदार धार सीधी वसुन्धरा वसुन्धरा के गर्भाशय के मुख पर पड़ी … फिर एक और … एक और … एक और! और इस के साथ ही मैं वसुन्धरा के पसीने से लथपथ अर्ध-बेहोश जिस्म पर ढह गया. अर्ध-बेहोशी में भी वसुन्धरा ने मुझे अपने अंक में कस लिया.
वसुन्धरा आज पहली बार अपने स्त्री-रूप अस्तित्व के रु-ब-रू हुई थी. एक नारी लगभग अपनी आधी जिंदगी गुजरने के बाद आज पहली बार अपने नारीत्व को प्राप्त हुई थी. एक काल्पनिक भार्या ने अपने काल्पनिक पति को अपने असली कामौर्य की भेंट चढ़ा दी थी.
आज वसुन्धरा के पैरों में पड़ी चौदह साल पुरानी ज़ंज़ीर कट चुकी थी. आज एक और अहिल्या शाप मुक्त हो चुकी था.
मैंने अपना वादा निभा दिया था, अब बारी थी वसुन्धरा की … अपना वादा निभाने की.
आशा करता हु आपको यह कहानी जरूर पसंद आई होगी....सतीश
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