RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जब जयसिंह नहा कर बाहर निकले तो मनिका को अभी भी जगे हुए पाया, वे जा कर काउच पर बैठने लगे,
'पापा?' मनिका ने सधी हुई आवाज़ में कहा.
'जी..?' जयसिंह ने भी उसी लहजे में पूछा और मन में सोचा 'लगता है जो सोचा था वो आज ही करना पड़ेगा.'
'क्या हम बात कर सकते हैं?' मनिका ने बेड से थोड़ा उठते हुए कहा.
'आई एम सो सॉरी मणि...' जयसिंह ने सिर झुकाते हुए कहा.
दो दिन से जयसिंह अपने-आप से संघर्ष कर रहे थे. पहले तो उन्हें अपना प्लान बिगड़ जाने का बहुत अफ़सोस हुआ था लेकिन धीरे-धीरे उनकी अंतरात्मा ने उन्हें लताड़-लताड़ कर अपनी सोच पर शर्मिंदगी का एहसास दिला ही दिया था. आज वे अपने किए का पश्चाताप करने और मनिका से माफ़ी मांगने का सोच कर ही कमरे में आए थे पर मनिका की तरह उनसे भी पहले बात करने की हिम्मत नहीं हुई थी और वे बाथरूम में यह सोच कर घुस गए थे कि शायद उनके बाहर आने तक वह सो चुकी हो और उन्हें हिम्मत जुटाने के लिए कल सुबह तक का वक़्त और मिल जाए (और इसीलिए बाथरूम में पड़े उसके अंतवस्त्रों को देख वे उत्तेजित नहीं हुए थे). लेकिन अब मनिका के संबोधन ने उनके मन का गुबार निकाल दिया था,
मनिका का चेहरा भी लाल हो गया था.
'पता नहीं क्या सोच मैंने आपसे ऐसा कह दिया...आई एम रियली...' जयसिंह बोलते जा रहे थे.
'नो!' मनिका ने अपनी आवाज़ ऊँची कर कहा. जयसिंह ने उसकी इस प्रतिक्रिया पर अपना सिर उठाया और आगे कहने की कोशिश की, उन्हें लगा था की मनिका को उनके माफ़ी मांगने पर यकीन नहीं हुआ था, पर मनिका ने अपनी ऊँची आवाज़ से उनकी बात काट दी,
'पापा डोंट से सॉरी...माफ़ी तो मुझे आपसे माँगनी चाहिए. आप क्यूँ सॉरी बोल रहे हो...आफ्टर ऑल द थिंग्स यू डिड फॉर मी...मैंने आपकी एक बात पर ही इतना ओवर-रियेक्ट कर दिया. सो आई एम सॉरी पापा...प्लीज़ फोर्गिव मी..?’ मनिका ने एक ही साँस में बोलते हुए उनसे मिन्नत की.
जयसिंह के कुछ समझ नहीं आ रहा था. उन्होंने असमंजस भरी नज़रों से मनिका की आँखों में देखा और फिर कहने की कोशिश की,
'आपने ओवर-रियेक्ट नहीं किया था मणि. मैंने बात ही ऐसी कह दी थी के आप हर्ट हो गए. प्लीज़ लिसेन (सुनो) टू मी फॉर अ सेकंड.'
'नहीं पापा...मैं नहीं सुनूंगी...आपने मुझे हर्ट नहीं किया ओके? मैं ही आपको नहीं समझ सकी...आप ने मुझे एक फ्रेंड की तरह बल्कि उस से भी बढ़कर ट्रीट किया और इस ट्रिप पर इतना ख्याल रखा मेरा ताकि आई कैन एन्जॉय माय लाइफ जबकि आप मुझे वापस घर ले जा सकते थे...सबसे झूठ बोला सिर्फ मेरे लिए...और मैंने आपको एक छोटी सी बात के लिए इतना बुरा-बुरा कह दिया...सो आई शुड बी सेयिंग सॉरी...’मनिका जयसिंह की कोई बात सुनने को राज़ी नहीं थी.
'छोटी सी बात नहीं थी वो...' जयसिंह ने फिर कहने का प्रयास किया.
'पापा नो...डोंट से अ वर्ड...सिर्फ कपड़े लेने की ही तो बात थी...' मनिका ने फिर से उनकी बात काट दी. अब जयसिंह चुप हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक मनिका को यह क्या हो गया था और उसके तेवर बदल कैसे गए थे. वह ब्रा-पैंटी को अब सिर्फ कपड़े (ही तो थे) कह रही थी.
'पापा?' मनिका ने इस बार उन्हें दुलार कर कहा.
'मणि..?' जयसिंह ने उसकी बदली आवाज़ सुन सधी हुई सवालिया नज़र से उसे देखा.
'प्लीज़ बिलीव मीं...विश्वास करो मेरा, आई एम रियली सॉरी ना...आपकी कोई गलती नहीं थी.' मनिका उनके करीब आ खड़ी हो गई थी. बैठे हुए जयसिंह ने अपनी नज़र उठा उसकी आँखों में देखा और एक पल बाद धीमे से हाँ में हिला दिया.
'ओके मणि.' जयसिंह ने हौले से कहा.
मनिका ने उनकी बात सुन उनकी ओर अपना हाथ बढ़ाया और मुस्का दी, जयसिंह ने भी धीमे से मुस्कुरा कर थोड़े संकोच के साथ उसका हाथ थाम लिया जिसपर मनिका आगे बढ़ उनकी गोद में बैठ गई.
'आई मिस्ड टॉकिंग टू यू पापा...एंड आई एम रियली सॉरी.' मनिका ने प्यार से मुहँ बना कर उनसे अपनी माफ़ी का इज़हार एक बार फिर कर दिया 'प्लीज़ फोर्गिव मी?'
'आई मिस्ड टॉकिंग टू यू टू डार्लिंग.' जयसिंह ने कहा, पर मनिका ने उनके संबोधन पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी 'प्रॉमिस करो कि फिर मुझसे कभी नाराज़ नहीं होओगी.' उसका बर्ताव देख वे उसे अपने से सटाते हुए आगे बोले.
'आई प्रॉमिस पापा...' मनिका ने मुस्कुरा कर हाँ भर दी थी और उधर जयसिंह का लंड खुश हो एक बार फिर उछल कर खड़ा हो गया.
***
'खाना खाया आपने?' मनिका ने बड़े प्यार से जयसिंह से पूछा था. वह अभी भी उनकी गोद में बैठी थी.
जयसिंह से बातें करते हुए उसे आधे घंटे से ज्यादा हो गया था जिसमें वह एक-दो बार और उन्हें सॉरी बोल चुकी थी. जयसिंह ने जब उसे पूछा कि क्या वह सचमुच उनसे बिल्कुल भी नाराज़ नहीं थी? तो उसने उन्हें बताया था कि किस तरह उसने रिएलाइज़ किया था कि वह गलत थी और उनसे माफ़ी मांगने के लिए ही लाइट ऑन कर बैठी थी. जयसिंह ने अपनी फिर से जगी हुई किस्मत को मन ही मन धन्यवाद दिया था 'अगर कहीं मैंने पहले माफ़ी मांग ली होती तो रांड हाथ से निकल जाती..’ जयसिंह अपने मन की आवाज़ को फिर से अँधेरे में धकेल चुके थे.
मनिका ने उन्हें वह फ़िल्म के सीन वाली बात नहीं बताई थी जिस से की उसका हृदय-परिवर्तन शुरू हुआ था, बल्कि ऐसे जताया कि उसे अपने-आप ही अपनी गलती का एहसास हो गया था. जयसिंह उसकी पीठ सहलाते हुए उसकी बाते सुन अंदर ही अंदर आनंदित हो रहे थे. तभी मनिका को याद आया था कि उसने जयसिंह के लिए खाना भी ऑर्डर किया था जो वहाँ मेज पर रखा था और उसने उनसे वह सवाल पूछा था.
'नहीं खाया तो नहीं है.' जयसिंह ने कहा.
'मैंने आपके लिए ऑर्डर किया था पापा बट अब तक तो सब ठंडा हो चुका होगा.' मनिका ने खेद प्रकट किया.
'कोई बात नहीं. मुझे भूख नहीं है वैसे भी...’ वे बोले और फिर मन में सोचा 'पर साली तूने मुझे तो गरम कर दिया है...'
'क्यूँ नहीं है?' मनिका ने फिर सवाल किया. अभी-अभी उनकी सुलह हुई होने के कारण वह जयसिंह को थोड़ा ज्यादा ही प्यार दिखा रही थी.
'आप जो वापस आ गईं मेरे पास...' जयसिंह ने भी डायलाग दे मारा.
'हाहाहा...पापा मैं कोई खाने की चीज़ हूँ क्या?' मनिका ने हँसते हुए कहा.
जयसिंह ने कुछ ना कहते हुए उसे रहस्यमई अंदाज़ से मुस्का कर देखा भर था. वह भी मुस्का दी और आगे बोली,
'और ये आपने क्या मुझे आप-आप कहना शुरू कर दिया है, ऐसे मत बोलो मैं आपसे छोटी हूँ न...मुझे ऐसे फील हो रहा है जैसे मैं कोई आंटी हूँ.'
'हाहाहा अच्छा भई अब नहीं कहूँगा.' जयसिंह भी हंस पड़े और पूछा 'क्या तुमने खाया खाना?'
'नहीं पापा मुझे भी भूख नहीं लगी है.' मनिका ने उन्हीं का जवाब देते हुए कहा.
'क्यूँ?' जयसिंह ने भी सवाल कर दिया.
'आपसे बात करने की ख़ुशी से ही पेट भर गया.' उसने शरारत से कहा.
'हम्म तो ये बात है...' जयसिंह ने उसके गाल पर अपना दूसरा हाथ रख उसका चेहरा अपनी तरफ मोड़ कर कहा.
'हाँ पापा आई एक सो हैप्पी.' मनिका ने गहरी साँस भर के कहा था.
मनिका ने स्ट्रॉबेरी-फ्लेवर की लिप-ग्लॉस (एक तरह की लिपस्टिक) लगा रखी थी और उनके चेहरे इतने करीब थे की उन्हें उसके होठों की खुशबू आ रही थी जिसपर उनके लंड ने एक अंगड़ाई ली थी.
'पापा?' मनिका एक बार फिर सवाल करने से पहले बोली.
'ह्म्म्म...' जयसिंह उसके हिलते हुए गुलाबी होंठ देख मंत्रमुग्ध से बोले.
'आपको नींद नहीं आ रही?' उसने पूछा.
'तुम्हें आ रही लगती है...है ना?' जयसिंह मनिका के सवाल का आशय समझ गए थे.
'हाँ...आपको कैसे पता?' मनिका ने मानते हुए कहा.
'बस पता है...तुम्हारी जो बात है...' जयसिंह वापस अपनी फॉर्म में आ चुके थे.
'हाहा...दो दिन से अच्छे से नींद ही नहीं आई पापा...' मनिका बोली.
'क्यूँ?' जयसिंह ने फिर पूछा.
'आपको पता तो है...' मनिका ने उनकी तरफ भोली सी निगाहों से देख कर कहा.
'मुझे कैसे पता होगा?' जयसिंह ने अज्ञानता जाहिर की.
'आपसे लड़ाई कर ली थी इसलिए ना...' मनिका ने नज़र झुका अपना अपराध-बोध जाहिर किया.
जयसिंह ने भी उसे और नहीं सताया और कहा, 'चलो फिर सोते हैं.'
मनिका उनकी गोद से उतरते हुए बोली, 'ओके पापा' और बेड की तरफ चल दी. बेड पर चढ़ कर उसने देखा जयसिंह काउच पर ही सोने लगे हैं. 'पापा! आप क्या कर रहे हो?' मनिका ने बुरा सा मुहँ बनाते हुए कहा.
'अरे भई मणि अभी तुमने ही तो कहा सोने को...’ जयसिंह ने शरारती मुस्कुराहट बिखेर दी.
'पापा...यहाँ आ जाओ चुपचाप और मुझे मणि मत बुलाया करो ना...' मनिका ने उनींदी हो कहा.
'सोने के लिए बुला रही हो या ऑर्डर दे रही हो?' जयसिंह टस से मस न होते हुए बोले 'प्यार से बुलाओगी तो आऊँगा.'
'जाओ मैं नहीं बुलाती.' मनिका ने भी नखरा दिखाया.
जयसिंह ने कोई जवाब नहीं दिया और अपनी आँखें मूँद ली. मनिका कुछ पल उन्हें देखती रही फिर नखरा छोड़ मुस्काते हुए कहा,
'पापा?'
'हाँ मनिका?' जयसिंह ने झट से आँखें खोलते हुए कहा.
'पापा मेरे प्यारे पापा यहाँ बेड पर मेरे पास आ कर सो जाओ ना?' मनिका ने आँखे टिमटिमा कर कहा.
जयसिंह मुस्कुराते हुए उठ खड़े हुए और जा कर मनिका के साथ बिस्तर में घुस गए. जयसिंह ने बत्ती बुझा नाईट-लैंप जला दिया. उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ करवट ले रखी थी. मनिका की आँखें अभी खुलीं थी और उसके चेहरे पर भी मुस्कान तैर रही थी, कमरे की उस मद्धम रौशनी में वे दोनों एक-दूसरे को निहारते हुए लेटे थे. जयसिंह ने अपना हाथ थोड़ा आगे किया जिसपर मनिका ने भी अपना हाथ आगे बढ़ा उनका हाथ थाम लिया और वे हौले-हौले उसके हथेली सहलाने लगे. कुछ देर बाद दोनों की आँख लग गई, दोनों अभी भी हाथ पकड़े हुए थे.
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