Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
01-02-2020, 12:47 PM,
#23
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
मनिका को लेग्गिंग पहन कर बाहर आने में थोड़ा वक्त लग गया था. खड़े-खड़े इतनी पतली पजामी पैरों में पहनने में उसे थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. तब तक जयसिंह ने भी अपनी सेफ साइड रख ली थी. मनिका ने ऊपर से एक टी-शर्ट डाली और इस बार बिना आईना देखे ही बाहर आ गई. जयसिंह, जो अभी उसकी गांड को अपने मन से निकालने की कोशिश करने में लगे ही थे, पर कहर बरप पड़ा था.

एक तो जयसिंह ने पहले ही लेग्गिंग दो साइज़ छोटी ले कर दी थी उस पर उसका कपड़ा बिल्कुल झीना था तिस पर उसका रंग भी लाइट-स्किन कलर जैसा था; और मनिका यह सब बिन देखे ही बाहर निकल आई थी.

जयसिंह के बदन में करंट दौड़ने लगा था, लेग्गिंग्स के रंग की वजह से उसके कुछ भी न पहने हुए होने का आभास होता था व मनिका के अधो-भाग का एक-एक उभार नज़र आ रहा था. जयसिंह को अभी तक तो अपनी बेटी के कपड़ों में से उसकी जाँघों और नितम्बों का ही दीदार अच्छे से होता आया था लेकिन यह लेग्गिंग्स इतनी ज्यादा टाइट कसी हुई थी कि उसकी टांगों के बीच का फासला 'ᴨ' भी नज़र आने लगा था. कपड़ा पूरी तरह से उसकी जाँघों और योनि पर चिपक गया था और मनिका की योनि का उभार साफ़ दिख रहा था.

'कैसी लग रहीं है पापा?' मनिका चहकते हुए बाहर आई थी.

'उह्ह ह...’ जयसिंह ने कुछ शब्द निकालने का प्रयास किया था पर सिर्फ आह ही निकल सकी.

मनिका उनके पास आ पहुंची थी. जयसिंह को इस बार पहले से ही इल्म था की कहाँ-कहाँ ध्यान से देखने पर मनिका के जिस्मानी जादू का लुत्फ़ उठाया जा सकता है. उनकी नज़र सीधी उसके प्राइवेट पार्ट्स (गुप्तांग) पर जा टिकीं थी और उसके करीब आते-आते उन्हें उसकी पहनी हुई पैंटी के रंग और साइज़ का पता चल चुका था. उसने आज अपनी स्काई-ब्लू रंग वाली अंडरवियर पहन रखी थी. मनिका की उभरी हुई योनि देख जयसिंह वैसे ही आपा खो रहे थे जब मनिका उनके ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी,

'बताओ न पापा?'

'बहुत...बहुत अच्छी ल...लग रही है...’ जयसिंह ने तरस कर कहा. अपने लंड को काबू करने की उनकी सारी कोशिशें बेकार जा चुकीं थी.

मनिका उनकी गोद में आ बैठी, जयसिंह को अपनी बेटी की कच्ची सी योनि अपनी जांघ पर टिकती हुई महसूस हुई थी, उनकी रूह कांप गई थी.

'ओह मनिका यू आर सो ब्यूटीफुल...' उनके मुहँ से निकला.

'इश्श पापा. यू आर मेकिंग मी शाय (शरम)...’मनिका ने मुस्काते हुए जवाब दिया 'इतनी भी सुन्दर नहीं हूँ मैं...मुझे बहलाओ मत...’

'तुम्हें क्या पता?' जयसिंह ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा और उस दिन ट्रेन वाली तरह अपना दूसरा हाथ उसकी जांघ पर रख लिया. मनिका की योनि का आभास उन्हें पागल किए जा रहा था. 'आज तो रेप होगा मुझसे लग रहा है..!' जयसिंह ने मन ही मन अपनी लाचारी व्यक्त की थी.

असल में मनिका को भी जयसिंह की तारीफ़ बहुत भायी थी. एक बात और थी जिसने आज मनिका को अपनी ये फैशन परेड करने के लिए उकसाया था लेकिन जिसका भान अभी उसके चेतन मन को नहीं हुआ था; पिछली रोज जब जयसिंह टी.वी. में दिखाई जा रही लडकियाँ ताड़ रहे थे तो मनिका ने नोटिस कर लिया था व उन्हें छेड़ा था. उस बात ने भी उसके आज के फैसले में कहीं ना कहीं एक भूमिका निभाई थी.

जयसिंह उसकी जांघ सहलाना शुरू कर चुके थे.

'पापा फ़ोन दो ना. पिक्स देखते हैं..’मनिका बोली.

जयसिंह ने उसकी जांघ से हाथ हटा अपने बाजू में रखा फ़ोन उठा कर उसे पकड़ा दिया और फिर से उसकी जाँघों पर हाथ ले गए. मनिका फ़ोन की फोटो-गैलरी खोल जयसिंह की ली हुई तस्वीरें देखने लगी. शुरुआत की कुछ फोटो देख वह बोली,

'पापा! कितनी अच्छी पिक्स क्लिक की है आपने...एंड ये ड्रेसेस कितनी अमेजिंग लग रही है ना?' उसने जयसिंह और अपनी, दोनों की ही तारीफ़ करते हुए पूछा था. जयसिंह ने तो हाँ कहना ही था, उनका खड़ा हुआ लिंग भी उनके अंडरवियर में कसमसा कर हाँ कह रहा था.

फिर आगे मनिका की पार्टी-ड्रेस वाले फोटो आने शुरू हो गए, इस बार वह झेंप गई. जयसिंह ने फोटो भी ज्यादा ले रखे थे सो उन्हें आगे कर-कर देखते हुए उसकी झेंप शरम में तब्दील होती जा रही थी. उसने एक फोटो पर रुकते हुए डिलीट-बटन दबाया था, जयसिंह ने तपाक से पूछा कि वह क्या कर रही है? तो उसने थोड़ा सकुचा कर कहा कि वे फोटोज़ ज्यादा अच्छे नहीं आए थे, उसका मतलब था कि उनमें उसके पहने अंडर-गारमेंट्स का पता चल रहा था.

मनिका ने एक दो फोटो ही डिलीट किए थे कि जयसिंह के फ़ोन पर एक बार फिर से रिंग आने लगी, ऑफिस से माथुर का फ़ोन था.

'ओहो आज तो कुछ ज्यादा ही कॉल्स आ रहीं है आपको..!' मनिका ने झुंझला कर कहा.

'बजने दो...अभी तो बात की थी...’ जयसिंह ने कहा, उनका चेहरा अब मनिका के बालों के पास था और वे उनकी भीनी-भीनी खुशबू में खोए थे. मनिका ने फ़ोन के अपने आप डिसकनेक्ट हो जाने तक इंतज़ार किया और फिर से उन पिक्स को डिलीट करने लगी जो उसे ज्यादा ही रिवीलिंग लगीं थी. बैक-अप ले चुके जयसिंह बेफिक्र थे. फ़ोन एक बार फिर से बजने लगा.

'हाँ माथुर बोलो?' जयसिंह ने तल्खी से पूछा. उन्होंने मनिका को एक बार फिर से कॉल न उठाने को कहा था लेकिन फ़ोन डिसकनेक्ट होते ही वापस रिंग आने लग गई थी.

उनके सेक्रेटरी ने उन्हें बताया की उनका एक बहुत बड़ा क्लाइंट जो पिछले कुछ दिनों से उनसे बात करने के लिए रोज कॉल कर रहा था, वह भी अभी दिल्ली में था. उसने जब आज फिर से कॉल किया तो उनके सेक्रेटरी ने उसको जयसिंह के दिल्ली गए होने की सूचना दी थी, जिस पर उसने उससे मीटिंग फिक्स करने के लिए कहा था और इसी बाबत उनका सेक्रेटरी उन्हें कॉल पर कॉल कर रहा था.

जयसिंह सोच में पड़ गए. यह क्लाइंट बहुत बड़ी आसामी थी और उनकी कंपनी की बैलेंस-शीट में मौजूद बड़े नामों में से एक था, मीटिंग करनी जरूरी थी; उन्होंने सेक्रेटरी से मीटिंग फिक्स कर उन्हें कॉल करने को कहा. अचानक घटनाक्रम में हुए परिवर्तन ने एक बार फिर उनके हवस के मीटर की सुई को चरम पर पहुँच कर टूटने से बचा लिया था,

'कुछ करना पड़ेगा...जल्द.' जयसिंह ने सोचा और मनिका से बोले,

'जाना पड़ेगा मुझे...एक क्लाइंट यहाँ आया हुआ है.' जयसिंह ने मनिका से कहा.

'बट पापा! वी आर ऑन अ हॉलिडे ना?' मनिका ने बेमन से कहा.

'येस डार्लिंग आई क्नॉ बट ये काफी मालदार क्लाइंट है...इसी जैसों से तो तुम्हारी शॉपिंग पूरी होती है.' जयसिंह ने उसके गाल सहला उसे बहलाया 'चलो गेट उप नाओ, मुझे रेडी भी होना है.' जयसिंह ने आगे कहा था और अभी भी काम-वासना के वशीभूत अपने हाथ से, उनकी जांघ पर बैठी हुई मनिका को उठाने के लिए, उसके नितम्ब पर हल्की सी थपकी दे दी थी.

'आउच...ओके-ओके पापा.' मनिका को उनके इस स्पर्श का अंदेशा नहीं था और वह उचक कर खड़ी हो गई थी, जयसिंह ने बिल्कुल भी ऐसा नहीं दर्शाया कि उन्होंने कोई गलत या अजीब हरकत कर दी हो और उठ कर मीटिंग के लिए तैयार होने चल दिए.

मनिका को अपनी गांड में एक हल्की सी तरंग उठती महसूस हुई थी और वह कुछ पल वैसे ही खड़ी उनको जाते हुए देखती रही थी.

***

जयसिंह रात को लेट वापस आए थे. उन्होंने मनिका को कॉल करके बता दिया था कि आज उन्हें आने में देर हो जाएगी, उनके क्लाइंट ने उन्हें अपने एक-दो जानकार इन्वेस्टर्स से मिलवाया था और निकट भविष्य में जयसिंह को उनसे एक बड़ी डील होती नज़र आ रही थी. मीटिंग से निकल उन्होंने माथुर को फ़ोन कर आज की अपनी मीटिंग का ब्यौरा दिया था और जल्द से जल्द अपने नए क्लाइंट्स के लिए एक पोर्टफोलियो तैयार करने को कहा था.

'अब तो दिल्ली चक्कर लगते रहेंगे...’ वे फ़ोन रखते हुए बोले थे.

जब तक जयसिंह अपने हॉटेल रूम में पहुँचे थे मनिका सो चुकीं थी. जयसिंह ने भी बाथरूम में जा कर चेंज किया और आकर लेट गए, 'हे भगवान् ये डील फाइनल हो जाए तो मजा आ जाए.' उन्होंने प्रार्थना की, उनके दीमाग में आज की उनकी बिज़नस मीटिंग के विचार उठ रहे थे. काफी पैसा आने की सम्भावना ने मनिका पर उनका ध्यान अभी जाने नहीं दिया था, पर फिर उन्होंने करवट बदली और उनके विचार भी बदल गए 'और ये डील हो जाए तो डबल मजा आ जाए...’उन्होंने अपनी बेटी के जिस्म की तरफ हाथ बढ़ाते हुए सोचा.

जयसिंह ने शुक्र मनाया कि उन्होंने हाथ मनिका के गाल पर रख उसे सहलाया था. मनिका अभी पूरी तरह से नींद में नहीं थी और उनका स्पर्श पाते ही उसने आँखें खोल लीं थी.

'आह...पापा? आ गए आप?' उसने अंगडाई लेते हुए पूछा.

'हाँ...सोई नहीं अभी तक?' जयसिंह उसे जागती हुई पा कर थोड़ा घबरा गए थे.

'उहूँ...बस नींद आने ही लगी थी आपका वेट करते-करते...’ मनिका ने नींद भरी आवाज़ से कहा.

'ह्म्म्म...वो मीटिंग जरा देर तक चलती रही सो लेट हो गया.' जयसिंह ने बताया.

उनींदी हुई मनिका से कुछ देर बात करने के बाद जयसिंह ने उसे सो जाने को कह और एक बार फिर से लाइट ऑफ कर दी थी. मनिका अभी सोई नहीं थी और आज वे भी थक चुके थे, सो उन्होंने भी अपने सिर उठाते लंड को हल्का सा दबा कर शांत करने का प्रयास किया था और कुछ ही देर में उनकी आँख लग गई थी.

जयसिंह सपना देख रहे थे; सपने में वे एक बिज़नस मीटिंग में बैठे थे और एक बेहद बड़ी डील साईन करने के लिए निगोशिएट कर रहे थे. उन्हें आभास हो रहा था जैसे उनके साथ उनका सेक्रेटरी और ऑफिस के कर्मचारी कागजात लेकर बैठे हुए हैं और काफी गहमा-गहमी का माहौल है लेकिन जयसिंह किसी का भी चेहरा साफ-साफ़ नहीं देख पा रहे थे. कुछ देर इसी तरह सपना चलता रहा जब आखिर सामने बैठा क्लाइंट डील साईन करने को राजी हो गया और उसने उठते हुए उनसे हाथ मिलाया. जयसिंह ने भी उठ कर हाथ आगे बढाया था लेकिन अब उनके सामने क्लाइंट की जगह मनिका खड़ी थी और मुस्का रही थी, 'आई अग्री (मान जाना) पापा..!’सपने वाली मनिका ने कहा, उसने एक छोटी सी काली ड्रेस पहन रखी थी. जयसिंह ने नीचे देखा और पाया कि वे खुद नंगे खड़े थे और उनका लंड खड़ा हो कर हिलोरे ले रहा था, तभी मनिका ने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ लिया; जयसिंह की आँख खुल गई, उनका हाथ पजामे के अन्दर लंड को थामे हुए था और उनके दिल की धड़कनें बढ़ी हुईं थी.

जयसिंह ने खिड़की की तरफ देखा और पाया कि बाहर अभी भी अँधेरा था, उन्होंने सिरहाने रखे फ़ोन में वक्त देखा. सुबह के ४ बजने वाले थे. उन्होंने मनिका की तरफ देखा, वह पेट के बल लेटी सो रही थी. उनका लंड अभी भी उनके हाथ में था पर मनिका को सोते हुए पा कर भी उन्होंने उसे छूने की कोशिश नहीं की थी. वे लेटे-लेटे सोचने लगे,
'उफ़...अब तो साली के सपने भी आने लगे हैं. बड़ी जालिम है इसकी जवानी...पर कुछ होता दिखाई नहीं देता, इसके सिर पर तो दोस्ती का भूत सवार है और मेरे लंड पर इसकी ठुकाई का. दोनों के बीच मेरी बैंड बजी रहती है. क्या करूँ समझ नहीं आता...आज आखिरी दिन है, कल तो चिनाल का इंटरव्यू होगा.' जयसिंह अपनी लाचारगी पर तरस खाते हुए मनिका की उभरी हुई गांड देख रहे थे. 'हर तरह से इसे बहला चुका हूँ...पर आगे दीमाग में कोई तरकीब आ ही नहीं रही है...' कुछ पल इसी तरह फ्रस्टरेट होते रहने के बाद उनके लंड ने एक जोरदार हिचकोला खाया. यकायक जयसिंह के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी, 'आह ये मैंने पहले क्यूँ नहीं सोचा...दीमाग नहीं...अब लंड की बारी है...'

जयसिंह ख़ुशी-ख़ुशी सो गए, आर या पार की लड़ाई का वक्त आ चुका था.
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