RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
टांगो की सफाई के बाद अब बारी थी उसकी अनछुई गुलाबी चुत की, मनिका ने धीरे धीरे अपनी नाइटी को अपने पैरों की गिरफ्त से आज़ाद कर दिया, अब वो सिर्फ अपनी खूबसूरत छोटी सी गुलाबी पैंटी में थी, उसके सुडौल नितम्ब उस छोटी सी पैंटी में उभरकर सामने आ रहे थे, जिन्हें देखकर मनिका ने शर्म के मारे अपनी आंखें ही बन्द कर ली,
धीरे धीरे उसकी उत्तेजना बढ़ने लगी, उसका शरीर गर्म होने लगा और उसकी अंगुलिया उसकी पैंटी में से रास्ता बनाते हुए उसकी चुत के दाने को मसलने लगी,
" उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह पा्ह्ह्ह्हपा फ़क मी पापाआआआ,, मैंने आपको बहुत रुलाया अब आप मेरी इस प्यारी सी चुत को मत रुलाओ पापाआआआ,
उन्ह्ह्ह्ह देखिए कैसे मेरी ये गुलाबी चुत आपके उस लम्बे लन्ड को याद करके टेसुए बहा रही है,ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़ इसे और मत तड़पाओ ........ इस निगोड़ी चुत को अपने लंड से भर दीजिये पापाआआआ.......बुझा दीजिये इसकी प्यास, उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस , मैं आपके उस काले लम्बे लंड को अपनी चुत में लेकर रहूंगी.....ओह्हहहहह ....पापाआआआ आपके लिए मैं कुछ भी करूंगी पापाआआआ..... लौट आइए अपनी मनिका के पास, बुझा दीजिये मेरी चुत की आग को पापाआआआ"
मनिका के हाथ अब तेज़ी से अपनी चुत के दाने को मसल रहे थे, वो पहली बार खुल कर चुत और लंड जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रही थी, अब उसकी उत्तेजना चरम पर पहुंचने वाली थी, उसकी अंगुलिया सरपट उसकी चुत की सड़क पर दौड़ी जा रही थी
"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह पा्ह्ह्ह्हपा मैं गईईईई आहहहहहहहह पापाआआआ"
कहते हुए मनिका के बदन ने एक जोर की अँगड़ाई ली और उसकी चुत से फवारा फुट पड़ा, उसका पानी उसकी चुत से निकलकर उसकी सुडौल जांघो को गीला कर रहा था, उसकी अंगुलिया अभी भी उसकी चुत में फंसी थी, उसने धीरे से अपनी चुत के पानी को अपनी अंगुलियो पर लपेटा और फिर स्लो मोशन में अपने मुंह के अंदर लेकर जीभ से चाटने लगी,
"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह पापाआआआ कब इन अंगुलियो की जगह आपका प्यार लंड होगा, मैं आपके प्यारे लन्ड को अपने मुंह मे लेकर खूब चुसुंगी, उसे खूब प्यार करूंगी, उसे जन्नत के दर्शन करवाउंगी, बस आप एक बार मेरे पास आ जाइए न पापाआआआ"
झड़ने के बाद मनिका की उत्तेजना थोड़ी शांत हुई, पर अपने पापा को पाने की हवस अब और भी ज्यादा उग्र हो चुकी थी,
अब उसे याद आया कि उसे तो अपनी प्यारी सी मुनिया को सजाना भी है, अपनी फुलकुंवारी के बालों की सफाई कर उसे बिल्कुल चिकनी चमेली बनाना है, उसने वीट क्रीम उठाई और अपनी मुनिया के बालों की सफाई करने में मशगूल हो गई,
सफाई करने के बाद उसने बाथ लिया,
कुछ देर बाद जब मनिका नहा चुकी थी, तो उसने पास रखे तौलिए की तरफ हाथ बढाया और अपना तरोताजा हुआ जिस्म पोंछने लगी. तौलिया बेहद नरम था और मनिका का बदन वैसे ही नहाने के बाद थोड़ा सेंसिटिव हो गया था सो तौलिये के नर्म रोंओं के स्पर्श से उसके बदन के रोंगटे खड़े हो गए व उसकी जवान छाती के गुलाबी निप्पल तन कर खड़े हो गए. मनिका को वो एहसास बहुत भा रहा था और वह कुछ देर तक वैसे ही उस नर्म तौलिए से अपने बदन को सहलाती खड़ी रही.
फिर उसने तौलिया एक ओर रखा और अपने अन्तवस्त्रों की तरफ हाथ बढ़ाया, आज उसने एक बिल्कुल महीन पारदर्शी कपड़े की ब्लू पैंटी पहनी और हल्के आसमानी कलर की सी ब्रा...
उसने आज नाइटी की बजाय ब्लैक लिंगरी पहन ली, उसकी लिंगरी उसकी सुडौल झांगो से ऐसे कसकर चिपकी हुई थी, कि मानो उसके झुकते ही लिंगरी का कपड़ा तार तार हो जाएगा, ध्यान से देखने पर उसकी लिंगरी के अंदर से उसकी ब्लू पेंटी की लाइन साफ देखी जा सकती थी, वो जानती थी कि अगर वो इस तरह अपनी मम्मी के सामने गई तो उसे पक्का डांट पड़ेगी इसलिए उसने लिंगरी के ऊपर एक कुर्ती पहन ली जो उसके घुटनो तक आती थी,
रेडी होने के बाद मनिका हॉल में आकर बैठ गयी,और टीवी ऑन कर लिया, उसकी मोम किचन में काम रही थी
इधर जयसिंह अब काफी परेशान से लग रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो घर कैसे जाए
"मैं मधु को बोल देता हूँ कि आज बिज़ी हूँ, कोई मीटिंग है इसलिए लेट हो जाऊंगा.......नहीं नहीं वो सुबह सुबह ही मुझ पर गुस्सा हो गयी थी.... अब अगर मैने मीटिंग का बहाना किया तो वो पक्का मुझसे झगड़ा करेगी...... अब मैं क्या करूँ......लगता है आज तो मुझे घर जाना ही पड़ेगा.....हो सकता है मुझे देखकर मनिका अपने कमरे में रहे.....बाहर ही न आए....ना वो बाहर आएगी न ही मुझे उसका सामना करना पड़ेगा......पर मनिका 1 महीने रुकने वाली है... ऐसे में कभी न कभी तो उससे मिलना ही पड़ेगा..." जयसिंह इसी असमंजस में फंसे थे
"Sir, may i come in " जयसिंह की सेक्रेटरी ने उससे अंदर आने की इज़ाज़त मांगी
"यस सारिका , बोलो क्या काम है" जयसिंह बोला
"Sir, i have a good news" सारिका बोली
"अच्छा और वो क्या" जयसिंह ने पूछा
"सर, दो महीने पहले सिंगापुर की जिस कंपनी ने हमारे साथ बिज़नेस में हाथ मिलाया था, उसे हमारी वजह से काफी फायदा हुआ है, और इसीलिए उन्होंने आपको सम्मानित करने का फैसला किया है, 4 दिन बाद आपको सिंगापुर जाना है सर " सारिका खुश होते हुए बोली
जयसिंह पहले से ही मनिका की वजह से परेशान था इसलिए वो बिना किसी उत्साह के जवाब देते हुए बोला
"वेल , ये तो अच्छी बात है, पर मैं सिंगापुर नही जा सकता, मुझे यहां भी बहुत सारे काम है, तुम एक काम करो, हमारे मैनेजर माथुर साहब को हमारी तरफ से भेज देना"
"बट सर....अगर आप जाते तो.........ओके मैं माथुर साहब के जाने का ही इंतेज़ाम कर देती हूं " सारिका ने जवाब दिया
सारिका वापस बाहर जाने के लिए मुड़ी ही थी कि जयसिंह के दिमाग मे एक आईडिया बिजली की तरह कौंधा
जयसिंह - रुको सारिका
सारिका - क्या हुआ सर
जयसिंह - तुम माथुर साहब को रहने दो और मेरे ही जाने का प्रबंध कर दो
सारिका (चोंकती हुई) - पर सर अभी तो आपने कहा था कि आप नही जा पाएंगे, आपको यह कुछ काम है तो फिर अब........?????
जयसिंह - मैने अपना इरादा बदल दिया है, तुम मेरे जाने का इंतज़ाम करो, और ये बताओ कि प्रोग्राम कितने दिन का है
सारिका - सर वैसे तो पूरी इवेंट 3 दिन की है, बहुत सारी और भी कम्पनियां आ रही है वहां , पर आप चाहे तो हम उनसे बात करके आपको सम्मानित करने वाली इवेंट पहले दिन भी करवा सकते है
जयसिंह - नहीं नहीं उसकी कोई जरूरत नहीं,
सारिका - ओके सर, मैं अभी आपके जाने का इंतज़ाम करती हूं, आपको 4 दिन बाद निकलना होगा
सारिका के जाने के बाद जयसिंह मन ही मन मुस्कुराने लगा
" हम्ममम्म , कम से कम 3-4 दिन के लिए तो हमें एक दूसरे का सामना नहीं करना पड़ेगा, शायद वो भी यही चाहती होगी" जयसिंह मनिका के बारे में सोचने लगा
इधर घर में कनिका और हितेश स्कूल से आ चुके थे, आते ही वो मनिका के साथ बातों में बिजी हो गए, मनिका बेमन से उनका साथ दे रही थी जबकि उसका मन तो अपने पापा में अटका था, फिर वो उठकर अपनी मम्मी के पास किचन में चली गयी जहां मधु रात के खाने की तैयारी कर रही थी,
शाम के 7:00 बजने वाले थे, जयसिंह ने सोचा कि मधु को फ़ोन करके आज टाइम पर घर आने की बात देता हूँ, वरना वो यूँ ही गुस्सा होगी, ये सोचकर जयसिंह ने अपना मोबाइल निकाला और मधु को कॉल लगा दिया
मधु - हेलो
जयसिंह - हेलो, हाँ मधु क्या कर रही हो
मधु - कुछ नहीं बस खाना बना रही हूं
जयसिंह - अच्छा सुनो, मैने इसलिए फ़ोन किया था कि तुम्हे बता दूँ , आज मैं जल्दी घर आ जाऊंगा, इसलिए कहीं खाना फेंक मत देना ....हा हा हा
मधु - अरे वाह आज सूरज पश्चिम से उग आया क्या, जो टाइम पर घर आने की बात कर रहे हो
जयसिंह - अरे ऐसी बात नहीं, आज ऑफिस में काम कम था इसलिए सोचा जल्दी घर चला जाता हूँ वरना जाते ही तुम्हारी डांट सुननी पड़ेगी, अच्छा सुनो मैं 8:00 बजे तक आ जाऊंगा
मधु - चलो ठीक है, बाय
जयसिंह - बाय
"बेटी आज तो कमाल हो गया, तेरे पापा इतने दिनों बाद टाइम पर घर आ रहे है" मधु ने मुस्कुराते हुए पास खड़ी मनिका को कहा
जब मनिका को पता चला कि आज फाइनली उसकी और उसके पिता की मुलाक़ात होने वाली है, तो वो तो ख़ुशी के मारे फूलि ना समाई, उसकी आँखों के सामने उस रात का मंज़र आ गया जब उसके पापा और उसके बीच सब कुछ होने ही वाला था, उस रात को याद कर मनिका गर्म होने लगी
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