RE: Bhabhi ki Chudai लाड़ला देवर पार्ट -2
संजू ने अपनी और प्रिया के मिलन के हसीन पलों को आगे सुनाते हुए कहा –
जानते हैं भैया…, वो बेचारी किस तरह से अब तक अपने आपको औरतों के गरम जवान गोस्त नोचने वाले गिद्धो से बचाए हुए है…?
जब से उसने मेरा अंत होते अपनी आँखों से देखा है.., तबसे आजतक उसने अन्न का एक नीवाला तक नही खाया है.., बार बार बेहोश हो जाती है…!
वहीदा और उसकी बहनों पर अपने भाई की मौत का इतना असर नही है जितना प्रिया को मेरी मौत पर हुआ है.., वो हरामजादिया होश में आने पर उसे तरह तरह से उसपर ज़ुल्म करती हैं, धमकाती हैं..,
उसके परिवार को ख़तम करने की धमकियाँ देती रहती हैं फिर भी वो उनकी बातों को मानने के लिए तैयार नही हुई है.., वो भी अभी उसके
उपर ज़्यादा ज़ुल्म नही कर सकती वरना वो मर जाएगी…!
ये कहते कहते संजू के गले से एक तेज हिचकी निकली.., मेने उसका कंधा थप-थपाकर कहा – हौसला रखो दोस्त.., तुम्हारी प्रिया को कुछ नही होगा..,
ईश्वर ने चाहा तो वक़्त रहते हम उसे वहाँ से निकाल लाएँगे और उसे उसके घर सुरक्षित पहुँचा देंगे…!
संजू – हां भैया.., मेरी बस यही इक्च्छा है.., अभी उसकी उमर ही क्या है.., खेलने कूदने की उमर में उस बेचारी ने कितने ज़ुल्म सहे हैं..,
उसके माँ बाप उसका दोबारा घर बसा दें उस दिन मेरी आत्मा पर से एक बड़ा भारी बोझ कम होगा…!
जानते हैं जब मेने उसे ये कहा कि अगर वो कहे तो हम अपनी सुहागरात यहाँ से निकलने के बाद ही मनाएँगे तो उसने क्या कहा था..?
उस छोटी सी उमर में वो कितना कुच्छ समझ चुकी थी.., शायद वो भाँप चुकी थी कि यहाँ से जीवित निकलना अब मुमकिन नही है.., तभी तो उसने कहा था..
नही प्राण नाथ.., हम यहाँ से निकल सके तो ये हमारी खुश किस्मती होगी.., लेकिन उपर वाले ने हमें मिलाया है तो हमे उसकी इच्छा का आदर करना होगा इतना कहकर वो किसी मासूम बच्ची की तरह मेरे अंकपाश में समाकर मेरे होठों पर उसने अपने पतले पतले लज़्जत भरे
सुर्ख होठ टिका दिए…!
मेने भी उसे अपनी बाहों में भर लिया और हरी इच्छा जानकर उसके साथ पहली रात के मिलन के लिए अपने आपको तैयार करने लगा…!
मेने उसकी भारी भरकम साड़ी को उसके बदन से अलग कर दिया.., अपनी गोद में लेकर उसकी गेंदों को ब्लाउस के उपर से मसल्ते हुए उसके होठों का रस पीने लगा…!
केयी मौकों पर हम दोनो अधूरे रह गये थे.., लेकिन आज उस अधूरे पन को वो हर हाल में पूरा करना चाहती थी शायद.., इसलिए तो बिना किसी अनुभव के भी वो अपनी तरफ से मुझे उत्तेजित करने की भरपूर कोशिश कर रही थी…!
मेरी लूँगी को एक तरफ करके उसने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में कसकर मसलना शुरू कर दिया.., मेने भी उसके ब्लाउस को भी उसके कमसिन बदन से हटा दिया..,
अब उसके कच्चे अनार पहली बार नग्न मेरी आँखों के सामने थे.., एकदम कच्चे.., एकदम गोल.. जिनमें लेशमात्र भी ढीलापन नही था.., उनके
शिखरों पर लगे गहरे लाल रंग के जंगली बेर जितने उसके निपल जो अब कड़क हो गये थे…!
मेने उन्हें अपनी जीभ से चाट लिया तो वो एक मादक सिसकी लेते हुए अपनी कमर को मेरे पेट के साथ घिसने लगी.., ऐसा करने से मेरा
कड़क लंड उसकी छोटी सी गान्ड की चौड़ी दरार में फँस गया…!
मेरे हाथों ने शरारत करते हुए उसके पेटिकोट का नाडा खोल दिया और अपना हाथ अंदर करके उसकी कच्ची कली को पैंटी के उपर से ही मसल दिया..,
आअहह…. नाथ…कहते हुए वो मेरी छाती में समा गयी.., मेने उसका पेटिकोट भी नीचे सरका दिया.., और उसके गोल-मटोल चुतड़ों को
मसल्ने लगा…!
थोड़ी देर में ही हम दोनो के कपड़े पलंग के नीचे पड़े थे.., उसके बदन पर अब मात्र कुच्छ गहने ही बचे थे..,
हाथों में कुहनी तक हरी हरी चूड़ियाँ, माँग में सिंदूर, माथे पर बिंदिया.., और बदन पर मात्र कुच्छ गहनों में वो मेरे सामने पलंग पर पड़ी थी…!
मे बगल में अपनी कुहनी पर लेटा बस एकटक उसके कमसिन बदन को ही निहारे जा रहा था.., शर्मा कर उसने अपनी मखमली जांघों को
कसकर अपनी नादान सहेली को छुपाने की कोशिश करते हुए अपने मेहन्दी लगे हाथों से अपने चेहरे को ढांप लिया..,
मेने एक हाथ से उसके हाथों को चेहरे से हटाने की चेष्टा करते हुए उसके कान में फुसफुसा कर कहा – तुम बहुत सुन्दर हो प्रिय.., जी
चाहता है बस इसी तरह सारी उम्र तुम्हें बस निहारता रहूं…!
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