RE: Incest Kahani मेरी भुलक्कड़ चाची
तिलक की रसम सुरू होने वाली थी, ये सब हमारे घर के आँगन मे होनेवाला था, सारा गाओं जैसे हमारे घर मे आ गया था घर एक दम खचा खच भरा हुया था. आँगन के बीच मे एक छोटसा मंडप बनाया गया था, मंडप के चारो तरफ हमारे रिस्तेदार और गाओं के लोग जमा थे. घर की औरते ये सब ग्राउंड फ्लोर के कमरों से देख रही और गाओं की औरते ये सब सेकेंड फ्लोर से देख रही थी. मे भी नीचे एक कोने मे खड़ा था और वही से या सब देख रहा था, कुछ देर मे लड़की वाले आने लगे और मंडप के एक तरफ बैठने लगे, मंडप के बीच मे पंडितजी बैठे ही थे, उन्होने चाचा को बुलाने को कहा. चाचा फिर अपने कमरे से निकले और मंडप मे बैठ गये और पंडितजी ने रसम सुरू की. तभी मेरी नज़र उपर रेणु पर पड़ी मैने उसे हाथ दिखाया और रेणु ने मुझे उपर आने का इशारा किया, मैने इशारे से कहा आता हूँ. जैसे ही मे उपर जाने लगा, देखा फूफा दादाजी के कमरे के पास खड़े है और चाची से बाते कर रहे है, फूफा काफ़ी हंस हंस कर बाते कर रहे थे जैसे ही मे वहाँ से गुजरा चाचीने पूछा "कहाँ जा रहे हो?" मे बोला "चाची मे उपर जा रहा हूँ" चाची बोली "अर्रे उपर मत जाओ बहुत लोग है, तुम यही से देखो". फिर मे वहीं रुक गया, लेकिन मुझे कुछ दिखाई नही दे रहा था तो मे कमरे के अंदर जा कर एक टेबल पर खड़ा हो गया और खिड़की से देखने लगा अब सब साफ दिख रहा था.
आप लोगो को बता दू, फूफा का मेरी मा, चाची और पापा की कज़िन सिस्टर से मज़ाक वाला रिस्ता था, घर के इक्लोते दामाद थे, तो उनका मान (रेस्पेक्ट) भी बहुत करते थे. मा और चाची फूफा से बहुत मज़ाक करती, लेकिन फूफा कभी बुरा नही मानते थे वो भी लगे हाथ मज़ाक कर लेते. चाची फूफा के एक दम पास खड़ी थी, उनके आगे बहुत सारी गाओं की औरते और मर्द खड़े थे, जिसकी वजह से चाची को मंडप नही दिख रहा था वो बार बार लोगो के उपर से देखने की कोसिस कर रही थी पर कुछ भी ठीक से नही दिख रहा था, फूफा ने कहा "कोमल्जी आप मेरे पास खड़े हो जाइए, शायद यहाँ आप को दिखेगा" चाची उन्हे पास खड़ी हो गयी और फूफा ने एक दो लोगो को थोड़ा हटने को कहा अब वहाँ से चाची को कुछ साफ दिख रहा था पर चाची फूफा से काफ़ी चिपकी हुई थी उनकी चूतर फूफा के हाथ को छू रही थी, क्यूँ की वनहा पर काफ़ी भीड़ थी और सब लोग मंडप मे तिलक देखने के लिए बेताब थे और सबकी नज़र मंडप पर थी.
चाची: "सुक्रिया, राजेसजी"
फूफा: "अर्रे इसमे सुक्रिया की क्या बात है, आप कहे तो आप को उठा लू"
चाची: "कमल तो उठती नही, हमे क्या उठाएँगे"
फूफा: "क्यूँ..आप क्या कमल से भी भारी है"
चाचीने कुछ जवाब नही दिया और मुस्कुराने लगी, फिर फूफा की शरारत सुरू हुई वो धीरे धीरे चाची के पीछे आगाये, पर फूफा लंबे थे इसीलये वो उनका लंड चाची के चूतर के उपर था, चाची तो बेफिकर मॅडप की तरफ देखा रही थी, फूफा अब धीरे धीरे अपने राइट हॅंड से उनकी चूतर को छू रहे, पर उनकी नज़र तो चाची की चूंचियों पर थी, फूफा लंबे थे इसीलिए वो काफ़ी अच्छी तरह से चाची की चुचियों का मज़ा ले रहे थे. अचानक मेरे पिताजी वहाँ गुज़रे, चाची ने देखा और तुरंत वहाँ से हट गयी और अंदर आ गयी, कुछ देर बाद बाहर आई पर चाची जहाँ खड़ी थी वहाँ पर कोई और खड़ा होगया, फूफा ने देखा और कहा "कोमल्जी आप कोई टेबल लाकर, उसपर खड़ी हो जाओ, आप को साफ दिखेगा" पर वहाँ पर कोई भी टेबल या चेर नही था फिर फूफा ने कोने से एक लकड़ी का छोटा सा बॉक्स लाकर अपने पास रख दिया और बोले "इस पर खड़ी हो जाओ" चाची ने खड़े होने की कोसिस की पर वो हिलने लगा चाची उतर गयी.
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