RE: Hindi Porn Story चीखती रूहें
३
दूसरी सुबह जूलीया को इस बात पर ताओ आ रहा था कि स्कीम के खिलाफ रॉबर्टू और लीज़ी तो बाहर चले गये थे......और वो लोग अभी तक वहीं रुके हुए थे. कुच्छ देर बाद उसे पता चला कि चौहान भी गायब है......और एक बार फिर इमरान पर बरस पड़ी.
कहने की बात भी थी. यूँ भी क्या....खुद ही स्कीम बनाई और अब वो इस तरह ख़तम हो गयी थी जैसे प्रेज़ेंट सिचुयेशन असली स्कीम का ही परिणाम हो. इमरान खामोशी से उस का बक बक सुनता रहा. फिर बड़ी गंभीरता से बोला.
"तुम बहुत हसीन हो. मैं पिच्छली रात पौने तीन घंटे तक केवल तुम्हारे बारे मे सोचता रहा था...."
"मत बकवास करो." जूलीया दहाडी.
"ओके.....तुम बहुत ही बद-सूरत हो. मैं तुम्हारे बारे मे पौने तीन मिनट भी नहीं सोच सकता.
"मेरी बात का जवाब दो. मैं क़ैदियों जैसी ज़िंदगी नहीं गुज़ार सकती. मैं बाहर जाउन्गि."
"और साथ ही फ्रेंच करेन्सी का भी डिमॅंड करोगी......क्यों?"
"ज़ाहिर है...." जूलीया आँखें निकाल कर बोली.
"तिजोरी की कुंजी मेरी जेब मे है.....निकाल सकती हो तो निकाल लो...."
इस बार जूलीया के कंठ से आवाज़ ना निकल सकी. बस वो दाँत ही पीसती रही.
"मुझे देखो....." इमरान ने कुच्छ देर बाद ठंडी साँस ली....."चुन्गम तक नहीं खरीद सकता."
"अच्छा.....जाओ यहाँ से निकलो. मैं तन्हाई चाहती हूँ." जूलीया ने हाथ हिला कर कहा.
इमरान कुच्छ देर खड़ा शरारत भरी निगाहों से देख कर मुस्कुराता रहा फिर उस के कमरे से निकल आया.
सफदार अपने कमरे मे उंघ रहा था. और जोसेफ किचन मे मसूर की दाल उबाल रहा था. क्योंकि उन्हें यहाँ मसूर की डाल और चावल के सिवा कुच्छ नहीं मिला था. और ये इतनी बड़ी मात्रा मे थे की वो आसानी से एक महीना काट सकते थे.
जोसेफ का विचार था की पॅक्ड डिब्बों मे फिशस आंड ड्राइ चिकन भी शायद कहीं मिल ही जाएँ. इस लिए उस ने बिल्डिंग का कोना
कोना छान मारा था लेकिन सफलता नहीं मिली थी.
उस ने इमरान से कहा....."बॉस ये मसूर की दाल भी गनीमत है. वरना मैं तो रूम का शोरबा लगा कर पत्थर तक चबा सकता हूँ."
उसे ना इसकी परवाह थी कि वो इस समय किस हाल मे हैं और ना इस की चिंता थी कि कल क्या होगा. बॅस एक गम उसे खाए जा
रहा था.....वो ये कि कहीं ये तीनों बॅरल भी ख़तम ना हो जाएँ. लेकिन इसका ये मतलब नही कि वो किफायत से काम ले रहा था.
आज तो वो बेतहाशा पी रहा था. इस समय किचन की मेज़ पर भी एक बड़े जुग मे रूम मौजूद थी. इमरान इतने धीरे से किचन मे आया कि उसे पता ही नहीं चल पाया.....और ना ये जान पाया कि रूम की जगह पानी से भरे हुए दूसरे जुग ने ले ली है. फिर इमरान वापस भी चला गया......लेकिन जोसेफ तो उबलने वाली दाल की "खड्ड....बद्ड..." मे खोया हुआ था......और शायद उसे अपना वतन याद आ रहा था.
ब्रिटिश ईस्टर्न आफ्रिका के एक गाओं की वो क्राल याद आ रही थी जहाँ उकड़ूं बैठ कर वो चावल और गोश्त उबाला करता था. थोड़ी देर बाद वो भाड़ सा मूह फाड़ कर एक लंबी अंगड़ाई ली और जग की तरफ हाथ बढ़ा दिया. लेकिन उसकी निगाहें उबलटी हुई दाल पर ही थीं.
जग को मूह से लगाते समय उस ने ये देखने का भी कष्ट नहीं किया की उस मे क्या है? वो तभी उस के हाथ से छूट पड़ा जब उस ने घूँट लिया.
पैरों के पास गिरे हुए जग को उस ने आँखें फाड़ फाड़ कर देखा.....लेकिन पानी का घूँट अभी तक मूह मे ही था......और दोनों गाल फूले
हुए थे. फिर वो हर्डबडा कर चारों तरफ देखने लगा. मेज़ पर और कोई दूसरा जग भी नहीं था.
अचानक उसके मूह से एक चीख निकली...."भानन्न..." और मूह से पानी उछल कर दूर तक गया था.
"भ....भूतततत...." वो फँसी फँसी आवाज़ मे चीखता हुआ किचन से निकल भागा.
इमरान जो इस बार की प्रतीक्षा ही कर रहा था अपने कमरे से निकल कर उसकी तरफ बढ़ता हुआ बोला...."आब्बे....क्या हुआ......क्यों चीख रहा है?"
जोसेफ खड़ा हांफता रहा. चढ़ती हुई साँसों का कारण उस का भय था.
"बोल क्या बात है?" इमरान ने फिर उसे झंझोड़ा.
"तबाही......बर्बादी.....बॉस.....मैं अब यहाँ नहीं रहूँगा. तुम कहो तो पागल हाथियों के झुंड मे घुस जाउ. लेकिन ये....ये.....मेरे वश से बाहर
है कि मैं ऐसी शक्तियों के हाथों मारना पसंद नहीं करता जो मुझे दिखाई ना दें..."
"ह्म....तो तुम हवा खा के मरना पसंद नहीं करते?" इमरान ने आँखें निकालीं.
"हवा?" जोसेफ मूह फैला कर रह गया.
"और क्या.....वही ऐसी शक्ति है जो दिखाई नहीं देती."
"मैं प्रेत आत्माओं की बात कर रहा हूँ बॉस....."
"अब्बे....फिर वही प्रेत......अब क्या हो गया?"
"रूम पानी हो गयी."
"अर्रे....वो तो पहले ही पानी ही थी. तुझे नशा कब होता है?"
"पानी....मतलब बिल्कुल पानी....यानी कि सच मूच पानी....सादा पानी.....मैं तुम्हें किस तरह सम्झाउ बॉस?"
"क्या तीनो बॅरल?" इमरान ने हैरत प्रकट की.
"नहीं....मैने जग मे डाल कर किचन मे रखी थी. पीता भी जा रहा था. अब अंतिम बात जब जग उठाया .....घूँट लिया.....तो पानी."
"ज़रूर तुझे नशा हो गया है."
इस पर जोसेफ बहुत जोश मे कस्में खाने लगा. जोसेफ की चीख सुन कर सफदार और जूलीया भी वहाँ आ गये. फिर जूलीया किचन
की तरफ चली गयी......और फर्श पर पड़ा हुआ जग उठा लाई.....जिस मे अब भी थोड़ा सा पानी था.
इमरान ने जग का निरीक्षण करते हुए अर्थ-पूर्ण ढंग से गर्दन हिलाई.
"समझ मे नहीं आता कि वो लोग चाहते क्या हैं." जूलीया ने सफदार की तरफ देख कर कहा.
इमरान जोसेफ से कह रहा था...."अगर तुम यहाँ नहीं रहना चाहते तो हम भी नहीं रहना चाहते.....लेकिन फिर कहाँ जाएँ? सुनो जोसेफ....क्या तुम जंगल मे कोई ऐसी जगह नहीं खोज सकते जहाँ हम शांति से कुच्छ दिन गुज़ार सकें? और हां अच्छा तो यही होगा कि तुम अपने
लिए शप्ललि भी तलाश करो. वरना अगर शराब किसी दिन तुम्हारे पेट मे पहुच कर पानी हो गयी तो तुम जल-परी ही कहलाओगे......समझे."
"ओह्ह.....तो क्या उसे यहीं छोड़ जाएँगे?" जोसेफ होंठो पर ज़ुबान फेर कर बोला.
"अब्बे.....वो जादू की शराब है.....नाक के अंधे. देख तो लिया इस जडी की शराब पी पी कर कैसा बूटा सा कद और फूल सा चेहरा निकल आया है."
"नहीं....." जोसेफ डर कर अपने चेहरे पर हाथ फेरने लगा.....फिर जूलीया की तरफ देख कर कहा....."क्यों मिसी?"
"मत बकवास करो....." जूलीया झल्ला गयी और सफदार हंस पड़ा.
इमरान ने सफदार से कहा...."ज़रा देखो इस का कद साढ़े चार फीट रह गया है लेकिन ये बेचारा अपने नुकसान से अंजान है."
"अर्रे नहीं बॉस...." जोसेफ मूर्खों की तरह हंसा.
"गधे हो तुम.......अगर तुम्हें भी इसका अहसास होने लगे तो वो जादू की शराब क्यों कहलाएगी? बस अब ये समझ लो कि तुम से कोई नहीं डरेगा. तुम केवल साढ़े चार फीट के रह गये हो......यकीन करो."
जोसेफ के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं......और कुच्छ ही देर मे ऐसा लगने लगा जैसे उसके शरीर से एक एक बूँद खून निचोड़ लिया गया हो.
सफदार आश्चर्य से इमरान की तरफ देख रहा था. इमरान ने उसे आँख मार दी.
"फिर....? फिर मैं क्या करूँ बॉस? जोसेफ ने रुआंसी आवाज़ मे पुछा.
"वही जो मैं कह रहा हूँ. जंगल मे कोई ऐसी जगह तलाश करो जहाँ फल हों.....और हम सुरक्षित रह सकें........जाओ वरना ये मसूर की दाल भी कोई गुल खिला देगी."
"अभी जाउ?"
"हां.....पिछ्ला गेट खोल कर नाले मे उतरो और चुप चाप लेफ्ट साइड चल पडो. नाला तुम्हें जंगल मे ही ले जाएगा. मैं चाहता हूँ कि तुम ये काम रात होने से पहले ही कर डालो."
जोसेफ थोड़ी देर तक खड़ा कुच्छ सोचता रहा.......फिर आगे बढ़ गया. सफदार इमरान को सवालिया निगाहों से देख रहा था.
"मैं नहीं समझ सका." उस ने कहा.
"आन्यूयल एग्ज़ॅम स्टार्ट होने से एक हफ़्ता पहले समझ लेना. अभी समझ गये तो भुला दोगे." इमरान ने लापरवाही से कहा......और अपने कमरे की तरफ चला गया.
(जारी)
|