Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
03-24-2020, 08:57 AM,
#7
RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
"वो दूसरे सिरे पर है।" |

"मुझे नहीं मालूम था ।”

"अब मालूम हो गया ?"

"हां, हो गया । शुक्रिया।"

मैं लम्बे डग भरता हुआ दूसरे सिरे की तरफ बढ़ा । वहां टॉयलेट में दाखिल होने से पहले मैंने पीछे घूमकर देखा । वह दादा अभी भी चौखट के साथ टेक लगाये खड़ा था और मेरी ही तरफ देख रहा था। मैंने झूठमूठ लघुशंका का बहाना किया जो कि अच्छा ही साबित हुआ । मैं घूमकर वाश बेसिन की तरफ बढ़ा तो मैंने उसे टॉयलेट के दरवाजे पर खड़ा पाया। मैंने हाथ धोये और बालों में कंघी फिराने लगा। उसने भीतर कदम रखा।

"मैंने तुम्हें मद्रास होटल के करीब भी देखा था।" - वह बोला ।

"देखा होगा ।" - मैं लापरवाही से बोला ।

"ऐसा कैसे हो गया ?"

"इत्तफाक से हो गया और कैसे हो गया ?"

“मुझे इत्तफाक पसन्द नहीं ।"

"मुझे ऐसे लोग पसंद नहीं जिन्हें इत्तफाक पसन्द नहीं ।”

उसने घूरकर मुझे देखा।

“मुझे खामखाह गले पड़ने वाले लोग भी पसन्द नहीं ।" - मैं बोला । मैंने आगे बढ़कर उसके पहलू से गुजरने की कोशिश की तो उसने मेरी बांह थाम ली। "बांह छोड़ो ।" - मैं सख्ती से बोला।

"कौन हो तुम ?"- उसने पूछा।

"मैंने कहा है, बांह छोड़ो।"

उसने बांह छोड़ दी ।

"बांह मैंने छोड़ दी है तुम्हारी" - वह बोला - "लेकिन मेरी शक्ल अच्छी तरह से पहचान लो । वैसे ही जैसे मैंने तुम्हारी शक्ल अच्छी तरह पहचान ली है।"

"वो किसलिए?"

“ताकि दोबारा ऐसा इत्तफाक न हो।"

"होगा तो तुम क्या करोगे ?"

"वह तुम्हें अगली बार मालूम होगा।"

"मैं अगली बार का इन्तजार करूगा ।"

"मत करना । बेवकूफी होगी ऐसा करना ।”

मैंने बहस न की । कुछ तो उस आदमी की शक्ल ही डरावनी थी, ऊपर से तभी मुझे उसकी बगल में लगे शोल्डर होल्स्टर में से एक रिवॉल्वर की मूठ झांकती दिखाई दी थी। मैं लिफ्ट की तरफ बढ़ा तो वह भी मेरे से केवल दो कदम पीछे था । हम दोनों इकट्टे लिफ्ट में सवार होकर नीचे पहुंचे । मेरी कार तक भी वह मेरे साथ गया। मैं कार में सवार हुआ तो उसने मेरे लिए कार का दरवाजा तक बन्द किया। मैंने कार आगे बढ़ाई तो उसने पीछे हटकर यूं अपनी एक उंगली अपनी पेशानी से छूकर मुझे सैल्यूट मारा जैसे वह कोई दरबान हो और किसी मुअज्जिज मेहमान को वहां से विदा कर रहा हो । मैं कार को मेन रोड पर ले आया । जब मुझे तसल्ली हो गई कि वह किसी और वाहन पर मेरे पीछे नहीं आया था तो मैंने कार को एक गली में मोड़कर खड़ा कर दिया और वापिस सड़क पर आकर एक टैक्सी पकड़ ली। टैक्सी ड्राइवर एक मुश्किल से बीस साल का सिख नौजवान था । टैक्सी पर मैं वापिस राजेंद्रा प्लेस पहुंचा और उस इमारत के सामने से गुजरा जिसमें मैं अभी होकर आया था।
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RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास ) - by sexstories - 03-24-2020, 08:57 AM

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