RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
“कमाल है ! वहां कौन रहता है ?"
"वहां तो जूही चावला नाम की फैशन मॉडल रहती है।"
"सबरवाल वहां पहले रहते होंगे !"
"न । जूही चावला तो वहां बहुत अरसे से रहती है।"
"कमाल है ! ऐसी गडबड़ कैसे हो गई पते में !"
"कहीं तुमने नारायणा तो नहीं जाना ?" "नारायणा और नारायण विहार में फर्क है ?"
"हां ।"
"तो यही गड़बड़ हुई है। शायद मैंने नारायणा ही जाना था। बहरहाल तकलीफ का शुक्रिया ।”
वह मुस्कराई । मुस्कराई क्या, कहर ढाया उसने । - उसके कम्पाउंड से निकलकर मैं वापिस सड़क पर जा पहुंचा।
तभी मुझे एक सफेद एम्बैसडर गली में दिखाई दी - जो कि मेरे 71 नम्बर इमारत के कम्पाउंड में दाखिल होते समय
शर्तिया वहां नहीं थी। मैं तनिक सकपकाया-सा आगे बढ़ा । एम्बैसडर का अगला एक दरवाजा खुला और चितकबरे चेहरे वाले दादा ने बाहर कदम रखा। फिर कार का दूसरा ड्राइविंग सीट की ओर वाला, दरवाजा भी खुला और चितकबरे के जीड़ीदार ने बाहर कदम रखा।
मैं थमकर खड़ा हो गया।
आसार अच्छे नहीं लग रहे थे लेकिन वहां से भाग खड़ा होना भी मेरी गैरत गवारा नहीं कर रही थी। मैं मन ही मन हिसाब लगाने लगा कि क्या मैं उन दोनों का मुकाबला कर सकता था ? अगर चितकबरा रिवॉल्वर न निकाले तो - मेरे मन ने फैसला किया - कर सकता था।
दोनों मेरे करीब पहुंचे। सतर्कता की प्रतिमूर्ति बना मैं बारी-बारी उनकी सूरतें देखने लगा। चितकबरे के चेहरे पर एक विषैली मुस्कराहट उभरी । "पहचाना मुझे ?" - वह बोला ।
"हां ।" - मैं सहज भाव से बोला - "पहचाना ।"
"और इसे ?" - एकाएक उसके हाथ में एक लोहे का कोई डेढ़ फुट का डण्डा प्रकट हुआ। मैंने जवाब देने में वक्त जाया न किया, जो कि मेरी दानाई थी। मैंने एकाएक अपने दायें हाथ का प्रचण्ड घूसा उसके थोबड़े पर जमा दिया। वह पीछे को उलट गया। तभी उसके जोड़ीदार का घूसा मेरी कनपटी से टकराया। मेरे घुटने मुड़ गए । एक और घूसा मेरी खोपड़ी पर पड़ा । मैं मुंह के बल जमीन पर गिरा । बड़ी फुर्ती से गिरे-गिरे मैंने करवट बदली तो मैंने उसे अपने भारी जूते का प्रहार मेरी छाती पर करने को आमादा पाया । मैंने फिर कलाबाजी खाकर उसका वह वार बचाया और फिर लेटे-लेटे ही अपनी दोनों टांगें इकट्ठी करके एक दोलत्ती की सूरत में उन्हें उस पर चलाया। मेरी दोलती उसके पेट के निचले भाग पर पड़ी । वह तड़पकर दोहरा हो गया । तब तक चितकबरा उठकर अपने पैरों पर खड़ा हो चुका था और अपने शोल्डर होल्स्टर में से रिवॉल्वर निकाल रहा था। लेकिन उसका रिवॉल्वर वाला हाथ अभी होल्स्टर से अलग भी नहीं हो पाया था कि वह दोबारा धूल चाट रहा था। खुदाई मदद के तौर पर मेरा नौजवान सिख टैक्सी ड्राइवर वहां पहुंच गया था और उसके एक दोहत्थड़ ने चितकबरे को दोबारा धूल चटा दी थी।
मैं फुर्ती से उठकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ और उसके जोड़ीदार की तरफ आकर्षित हुआ जो कि मेरी दोलत्ती के वार से संभलने की कोशिश कर रहा था। मैंने उसे उसकी कोशिश में कामयाब न होने दिया। उसके सीधा हो पाने से पहले ही मैंने उसे घूसों पर धर लिया। तभी 71 नम्बर का दरवाजा खुला और जीनधारी युवती फिर बरामदे में प्रकट हुई । बाहर होती लड़ाई देखकर वह फौरन वापिस भीतर दाखिल हो गई।
"चलो ।" - मैं टैक्सी ड्राइवर से बोला - "यहां पुलिस आ सकती है।" | उन दोनों को सड़क पर छोड़कर हम सरपट टैक्सी की तरफ भागे ।
३ अगले ही क्षण हम दोनों को लेकर टैक्सी वहां से यूं भागी जैसे तोप से गोला छूटा हो ।
पुलिस वहां न भी पहुंचती तो भी चितकबरा गोलियां दागनी शुरू कर सकता था। इस बार मैं टैक्सी में पीछे नहीं, ड्राइवर की बगल में बैठा था। "बरखुरदार !" - मैं प्रशंसा और कृतज्ञता मिश्रित स्वर में बोला - "तू ता कमाल ई कर दित्ता ।"
"बाउजी" - वह तनिक शर्माया - "अब भला मैं अपनी आंखों से अपनी सवारी की दुर्गत होते कैसे देख सकता था ! ऊपर से तुसी निकले साडे पंजाबी भ्रा ।"
"लेकिन सरदार नहीं ।"
"फेर की होया !" - वह तरन्नुम में बोला - "भापा जी, असी दोवे इक देश दी धड़कन, मां दे पुत्तर सक्के भ्रा । क्यों भई रामचन्दा ?" "हां भई रामसिंगा।" - मैं भी तरन्नुम में बोला। वापिस राजेन्द्रा प्लेस पहुंचने तक हम दोनों ने दर्जनों बार वह एक लाइन का गाना आवाज में आवाज मिलाकर गाया
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